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न्यूरॉन

सूची न्यूरॉन

तंत्रिका कोशिकाओं तंत्रिकोशिका या तंत्रिका कोशिका (अंग्रेज़ी:न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका है। इस कोशिका का कार्य मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है।। हिन्दुस्तान लाइव। १ फ़रवरी २०१० यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है। तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र के प्रमुख भाग होते हैं जिसमें मस्तिष्क, मेरु रज्जु और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं। कई तरह के विशिष्ट तंत्रिका कोशिका होते हैं जिसमें सेंसरी तंत्रिका कोशिका, अंतरतंत्रिका कोशिका और गतिजनक तंत्रिका कोशिका होते हैं। किसी चीज के स्पर्श छूने, ध्वनि या प्रकाश के होने पर ये तंत्रिका कोशिका ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने संकेत मेरु रज्जु और मस्तिष्क को भेजते हैं। मोटर तंत्रिका कोशिका मस्तिष्क और मेरु रज्जु से संकेत ग्रहण करते हैं। मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रंथियां इससे प्रभावित होती है। एक सामान्य और साधारण तंत्रिका कोशिका में एक कोशिका यानि सोमा, डेंड्राइट और कार्रवाई होते हैं। तंत्रिका कोशिका का मुख्य हिस्सा सोमा होता है। तंत्रिका कोशिका को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। यह एकध्रुवी, द्विध्रुवी और बहुध्रुवी (क्रमशः एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय और बहुध्रुवीय) होते हैं। तंत्रिका कोशिका में कोशिकीय विभाजन नहीं होता है जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। किन्तु इसे स्टेम कोशिका के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि अस्थिकणिका को तंत्रिका कोशिका में बदला जा सकता है। तंत्रिका कोशिका शब्द का पहली बार प्रयोग जर्मन शरीर विज्ञानशास्त्री हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर ने किया था। २०वीं शताब्दी में पहली बार तंत्रिका कोशिका प्रकाश में आई जब सेंटिगयो रेमन केजल ने बताया कि यह तंत्रिका तंत्र की प्राथमिक प्रकार्य इकाई होती है। केजल ने प्रस्ताव दिया था कि तंत्रिका कोशिका अलग कोशिकाएं होती हैं जो कि विशिष्ट जंक्शन के द्वारा एक दूसरे से संचार करती है। तंत्रिका कोशिका की संरचना का अध्ययन करने के लिए केजल ने कैमिलो गोल्गी द्वारा बनाए गए सिल्वर स्टेनिंग तरीके का प्रयोग किया। मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका की संख्या प्रजातियों के आधार पर अलग होती है। एक आकलन के मुताबिक मानव मस्तिष्क में १०० अरब तंत्रिका कोशिका होते हैं। टोरंटो विश्वविद्यालय में हुए अनुसंधान में एक ऐसे प्रोभूजिन की पहचान हुई है जिसकी मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रोभूजिन की सहायता से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को और समझना भी सरल होगा व अल्जामरर्स जैसे रोगों के कारण भी खोजे जा सकेंगे। एसआर-१०० नामक यह प्रोभूजिन केशरूकीय क्षेत्र में पाया जाता है साथ ही यह तंत्रिका तंत्र का निर्माण करने वाले जीन को नियंत्रित करता है। एक अमरीकी जरनल सैल (कोशिका) में प्रकाशित बयान के अनुसार स्तनधारियों के मस्तिष्क में विभिन्न जीनों द्वारा तैयार किए गए आनुवांशिक संदेशों के वाहन को नियंत्रित करता है। इस अध्ययन का उद्देश्य ऐसे जीन की खोज करना था जो मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका के निर्माण को नियंत्रित करते हैं। ऎसे में तंत्रिका कोशिका के निर्माण में इस प्रोभूजिन की महत्त्वपूर्ण भूमिका की खोज तंत्रिका कोशिका के विकास में होने वाली कई अपसामान्यताओं से बचा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका निर्माण के समय कुछ गलत संदेशों वाहन से तंत्रिका कोशिका का निर्माण प्रभावित होता है। तंत्रिका कोशिका का विकृत होना अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों के कारण भी होता है। इस प्रोभूजिन की खोज के बाद इस दिशा में निदान की संभावनाएं उत्पन्न हो गई हैं। .

15 संबंधों: टोरंटो विश्वविद्यालय, तन्त्रिका तन्त्र, प्रोटीन, बीसवीं शताब्दी, मस्तिष्क, मानक एलेक्ट्रोड विभव, मेरूरज्जु, शारीरिकी, स्टेम कोशिका, हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर, जर्मन भाषा, कशेरुकी प्राणी, कोशिका, अलजाइमर रोग, अंग्रेज़ी भाषा

टोरंटो विश्वविद्यालय

टोरंटो विश्वविद्यालय अमरीका के टोरोंटो शहर में स्थित एक विश्वविद्यालय है। श्रेणी:अमेरिकी विश्वविद्यालय.

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तन्त्रिका तन्त्र

मानव का '''तंत्रिकातंत्र''' जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरुरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हाइड्रा, प्लेनेरिया, तिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। .

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प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

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बीसवीं शताब्दी

ग्रेगरी पंचांग (कलेंडर) के अनुसार ईसा की बीसवीं शताब्दी 1 जनवरी 1901 से 31 दिसम्बर 2000 तक मानी जाती है। कुछ इतिहासवेत्ता 1914 से 1992 तक को संक्षिप्त बीसवीं शती का नाम भी देते हैं। (उन्नीसवी शताब्दी - बीसवी शताब्दी - इक्कीसवी शताब्दी - और शताब्दियाँ) दशक: १९०० का दशक १९१० का दशक १९२० का दशक १९३० का दशक १९४० का दशक १९५० का दशक १९६० का दशक १९७० का दशक १९८० का दशक १९९० का दशक ---- समय के गुज़रने को रेकोर्ड करने के हिसाब से देखा जाये तो बीसवी शताब्दी वह शताब्दी थी जो १९०१ - २००० तक चली थी। मनुष्य जाति के जीवन का लगभग हर पहलू बीसवी शताब्दी में बदल गया।.

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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मानक एलेक्ट्रोड विभव

गैलवानिक सेल (डेनियल सेल) साम्यावस्था में अर्ध सेलों (हाफ सेल) के एलेक्ट्रोड विभव को मानक एलेक्ट्रोड विभव (standard electrode potentials) कहते हैं। जब तत्वो को उनके मानक अपचयन विभव के आरोही क्रम मे व्यवस्त्थित करते हैं तो इस प्रकार प्राप्त हुइ श्रेणी विद्युत रासायनिक श्रेणी कहलाती है। इनका उपयोग विद्युतरासायनिक सेल (electrochemical cell) (गैल्वानिक सेल) का विभव ज्ञात करने के लिये किया जा सकता है। इसके अलावा इनका उपयोग किसी विद्युतरासायनिक रिडॉक्स (redox) अभिक्रिया के साम्य की स्थिति का पता करने के लिये किया जा सकता है। अतर्थात इसकी सहायता से यह पता कर सकते हैं कि उष्मागतिकी की दृष्टि से किसी विद्युतरासायनिक अभिक्रिया की गति की दिशा क्या होगी।Milazzo, G., Caroli, S., and Sharma, V. K. (1978).

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मेरूरज्जु

कशेरूक नाल में नीचले मेरूरज्जु की स्थिति मेरूरज्जु (लैटिन: Medulla spinalis, जर्मन: Rückenmark, अंग्रेजी: Spinal cord), मध्य तंत्रिकातंत्र का वह भाग है, जो मस्तिष्क के नीचे से एक रज्जु (रस्सी) के रूप में पश्चकपालास्थि के पिछले और नीचे के भाग में स्थित महारंध्र (foramen magnum) द्वारा कपाल से बाहर आता है और कशेरूकाओं के मिलने से जो लंबा कशेरूका दंड जाता है उसकी बीच की नली में चला जाता है। यह रज्जु नीचे ओर प्रथम कटि कशेरूका तक विस्तृत है। यदि संपूर्ण मस्तिष्क को उठाकर देखें, तो यह 18 इंच लंबी श्वेत रंग की रज्जु उसके नीचे की ओर लटकती हुई दिखाई देगी। कशेरूक नलिका के ऊपरी 2/3 भाग में यह रज्जु स्थित है और उसके दोनों ओर से उन तंत्रिकाओं के मूल निकलते हैं, जिनके मिलने से तंत्रिका बनती है। यह तंत्रिका कशेरूकांतरिक रंध्रों (intervertebral foramen) से निकलकर शरीर के उसी खंड में फैल जाती हैं, जहाँ वे कशेरूक नलिका से निकली हैं। वक्ष प्रांत की बारहों मेरूतंत्रिका इसी प्रकार वक्ष और उदर में वितरित है। ग्रीवा और कटि तथा त्रिक खंडों से निकली हुई तंत्रिकाओं के विभाग मिलकर जालिकाएँ बना देते हैं जिनसे सूत्र दूर तक अंगों में फैलते हैं। इन दोनों प्रांतों में जहाँ वाहनी और कटित्रिक जालिकाएँ बनती हैं, वहाँ मेरूरज्जु अधिक चौड़ी और मोटी हो जाती है। मस्तिष्क की भाँति मेरूरज्जु भी तीनों तानिकाओं से आवेष्टित है। सब से बाहर दृढ़ तानिका है, जो सारी कशेरूक नलिका को कशेरूकाओं के भीतर की ओर से आच्छादित करती है। किंतु कपाल की भाँति परिअस्थिक (periosteum) नहीं बनाती और न उसके कोई फलक निकलकर मेरूरज्जु में जाते हैं। उसके स्तरों के पृथक होने से रक्त के लौटने के लिये शिरानाल भी नहीं बनते जैसे कपाल में बनते हैं। वास्तव में मरूरज्जु पर की दृढ़तानिका मस्तिष्क पर की दृढ़ तानिका का केवल अंत: स्तर है। दृढ़ तानिका के भीतर पारदर्शी, स्वच्छ, कोमल, जालक तानिका है। दोनों के बीच का स्थान अधोदृढ़ तानिका अवकाश (subdural space) कहा जाता है, जो दूसरे, या तीसरे त्रिक खंड तक विस्तृत है। सबसे भीतर मृदु तानिका है, जो मेरूरज्जु के भीतर अपने प्रवर्धों और सूत्रों को भेजती है। इस सूक्ष्म रक्त कोशिकाएँ होती हैं। इस तानिका के सूत्र तानिका से पृथक् नहीं किए जा सकते। मृदु तानिका और जालक तानिका के बीच के अवकाश को अधो जालक तानिका अवकाश कहा जाता है। इसमें प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भरा रहता है। नीचे की ओर द्वितीय कटि कशेरूका पर पहुँचकर रज्जु की मोटाई घट जाती है और वह एक कोणाकार शिखर में समाप्त हो जाती है। यह मेरूरज्जु पुच्छ (canda equina) कहलाता है। इस भाग से कई तंत्रिकाएँ नीचे को चली जाती हैं और एक चमकता हुआ कला निर्मित बंध (bond) नीचे की ओर जाकर अनुत्रिक (coccyx) के भीतर की ओर चला जाता है। .

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शारीरिकी

अंगूठाकार शारीरिकी, शारीर या शरीररचना-विज्ञान (अंग्रेजी:Anatomy), जीव विज्ञान और आयुर्विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत किसी जीवित (चल या अचल) वस्तु का विच्छेदन कर, उसके अंग प्रत्यंग की रचना का अध्ययन किया जाता है। अचल में वनस्पतिजगत तथा चल में प्राणीजगत का समावेश होता है और वनस्पति और प्राणी के संदर्भ में इसे क्रमश: पादप शारीरिकी और जीव शारीरिकी कहा जाता है। जब किसी विशेष प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना का अध्ययन किया जाता है, तब इसे विशेष शारीरिकी (अंग्रेजी:Special Anatomy) अध्ययन कहते हैं। जब किसी प्राणी या वनस्पति की शरीररचना की तुलना किसी दूसरे प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना से की जाती है उस स्थिति में यह अध्ययन तुलनात्मक शारीरिकी (अंग्रेजी:Comparative Anatomy) कहलाता है। जब किसी प्राणी के अंगों की रचना का अध्ययन किया जाता है, तब यह आंगिक शारीरिकी (अंग्रेजी:Regional Anatomy) कहलाती है। .

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स्टेम कोशिका

'''मानव भ्रूण कोशिकाएं''' ए: अभी तक विभेदित नहीं हुई कोशिका समूह बी: तंत्रिका कोशिका स्टेम कोशिका या मूल कोशिका (अंग्रेज़ी:Stem Cell) ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ६ जनवरी २०१० वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गईं, तो इनकी मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। इसी प्रकार यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो जायें, तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसी प्रकार मानव के लिए अत्यावश्यक तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उददेश्य से स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।हिन्दुस्तान लाइव। २५ दिसम्बर २००९। लंदन-एजेंसी अपने मूल सरल रूप में स्टेम कोशिका ऐसे अविकसित कोशिका हैं जिनमें विकसित कोशिका के रूप में विशिष्टता अर्जित करने की क्षमता होती है। क्लोनन के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने एक और क्षेत्र को जन्म दिया है, जिसका नाम है कोशिका चिकित्सा। इसके अंतर्गत ऐसी कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसमें वृद्धि, विभाजन और विभेदन कर नए ऊतक बनाने की क्षमता हो। सर्वप्रथम रक्त बनाने वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार व प्रयोग शुरु हुआ था। अस्थि-मज्जा से प्राप्त ये कोशिकाएं, आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करतीं हैं और कैंसर आदि रोगों में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को, पुनर्संचित किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं को ही स्टेम कोशिका कहते हैं। इन कोशिकाओं का स्वस्थ कोशिकाओं को विकसित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। १९६० में कनाडा के वैज्ञानिकों अर्नस्ट.ए.मुकलॉक और जेम्स.ई.टिल की खोज के बाद स्टेम कोशिका के प्रयोग को बढ़ावा मिला। स्टेम कोशिका को वैज्ञानिक प्रयोग के लिए स्नोत के आधार पर भ्रूणीय, वयस्क तथा कॉर्डब्लड में बांटा जाता है। वयस्क स्टेम कोशिकाओं का मनुष्य में सुरक्षित प्रयोग लगभग ३० वर्षो के लिए किया जा सकता है। अधिकांशत: स्टेम सेल कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती है। ये जन्म के समय ही सुरक्षित रखनी होती हैं। हालांकि बाद में हुए किसी छोटे भाई या बहन के जन्म के समय सुरक्षित रखीं कोशिकाएं भी सहायक सिद्ध हो सकती हैं। .

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हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर

हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर हैनरिक विल्हेल्म गॉटफ्राइड वॉन वॉल्डेयर-हार्ट्ज़ (६ अक्टूबर १८३६ - २३ जनवरी १९२१) एक जर्मन शरीर संरचना शास्त्री थे। इन्होंने तंत्रिका तंत्र के न्यूरॉन सिद्धांत का प्रतिपादन और गुणसूत्रों का नामकरण क्रोमोज़ोम किया था। इन्होंने मानव शरीर के दो संरचना ढांचे दिये थे, जिन्हें इन्हीं का नाम दिया गया है। श्रेणी:जर्मन वैज्ञानिक.

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जर्मन भाषा

विश्व के जर्मन भाषी क्षेत्र जर्मन भाषा (डॉयट्श) संख्या के अनुसार यूरोप की सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। ये जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की मुख्य- और राजभाषा है। ये रोमन लिपि में लिखी जाती है (अतिरिक्त चिन्हों के साथ)। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में जर्मनिक शाखा में आती है। अंग्रेज़ी से इसका करीबी रिश्ता है। लेकिन रोमन लिपि के अक्षरों का इसकी ध्वनियों के साथ मेल अंग्रेज़ी के मुक़ाबले कहीं बेहतर है। आधुनिक मानकीकृत जर्मन को उच्च जर्मन कहते हैं। जर्मन भाषा भारोपीय परिवार के जर्मेनिक वर्ग की भाषा, सामान्यत: उच्च जर्मन का वह रूप है जो जर्मनी में सरकारी, शिक्षा, प्रेस आदि का माध्यम है। यह आस्ट्रिया में भी बोली जाती है। इसका उच्चारण १८९८ ई. के एक कमीशन द्वारा निश्चित है। लिपि, फ्रेंच और अंग्रेजी से मिलती-जुलती है। वर्तमान जर्मन के शब्दादि में अघात होने पर काकल्यस्पर्श है। तान (टोन) अंग्रेजी जैसी है। उच्चारण अधिक सशक्त एवं शब्दक्रम अधिक निश्चित है। दार्शनिक एवं वैज्ञानिक शब्दावली से परिपूर्ण है। शब्दराशि अनेक स्रोतों से ली गई हैं। उच्च जर्मन, केंद्र, उत्तर एवं दक्षिण में बोली जानेवाली अपनी पश्चिमी शाखा (लो जर्मन-फ्रिजियन, अंग्रेजी) से लगभग छठी शताब्दी में अलग होने लगी थी। भाषा की दृष्टि से "प्राचीन हाई जर्मन" (७५०-१०५०), "मध्य हाई जर्मन" (१३५० ई. तक), "आधुनि हाई जर्मन" (१२०० ई. के आसपास से अब तक) तीन विकास चरण हैं। उच्च जर्मन की प्रमुख बोलियों में यिडिश, श्विज्टुन्श, आधुनिक प्रशन स्विस या उच्च अलेमैनिक, फ्रंकोनियन (पूर्वी और दक्षिणी), टिपृअरियन तथा साइलेसियन आदि हैं। .

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कशेरुकी प्राणी

कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .

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कोशिका

कोशिका कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। 'कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।"...

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अलजाइमर रोग

अल्जाइमर रोग(अंग्रेज़ी:Alzheimer's Disease) रोग 'भूलने का रोग' है। इसका नाम अलोइस अल्जाइमर पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इसका विवरण दिया। इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना तथा फिर इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति आदि शामिल हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है। अमूमन 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है।। घमासान.कॉम।।१० अक्टूबर, २००९ हालांकि बीमारी के शुरूआती दौर में नियमित जांच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है। मस्तिष्क के स्त्रायुओं के क्षरण से रोगियों की बौद्धिक क्षमता और व्यावहारिक लक्षणों पर भी असर पड़ता है। हम जैसे-जैसे बूढ़े होते हैं, हमारी सोचने और याद करने की क्षमता भी कमजोर होती है। लेकिन इसका गंभीर होना और हमारे दिमाग के काम करने की क्षमता में गंभीर बदलाव उम्र बढ़ने का सामान्य लक्षण नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि हमारे दिमाग की कोशिकाएं मर रही हैं। दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं (न्यूरान) होती हैं। हरेक कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक नेटवर्क बनाती हैं। इस नेटवर्क का काम विशेष होता है। कुछ सोचती हैं, सीखती हैं और याद रखती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं। अपना काम करने के लिए दिमाग की कोशिकाएं लघु उद्योग की तरह काम करती हैं। वे सप्लाई लेती हैं, ऊर्जा पैदा करती हैं, अंगों का निर्माण करती हैं और बेकार चीजों को बाहर निकालती हैं। कोशिकाएं सूचनाओं को जमा करती हैं और फिर उनका प्रसंस्करण भी करती हैं। शरीर को चलते रहने के लिए समन्वय के साथ बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन और ईंधन की जरूरत होती है। अल्जाइमर रोग में कोशिकाओं की उद्योग का हिस्सा काम करना बंद कर देता है, जिससे दूसरे कामों पर भी असर पड़ता है। जैसे-जैसे नुकसान बढ़ता है, कोशिकाओं में काम करने की ताकत कम होती जाती है और अंततः वे मर जाती हैं। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तन्त्रिका कोशिका, तंत्रिका कोशिका, न्यूरांस

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