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नकारात्मक ईश्वरमीमांसा

सूची नकारात्मक ईश्वरमीमांसा

नकारात्मक ईश्वरमीमांसा (Apophatic theology या negative theology) वह ईश्वरमीमांसा है जो ईश्वर के बारे में सीधे नहीं कहती बल्कि यह कहती है कि ईश्वर क्या-क्या नहीं है। .

3 संबंधों: धर्ममीमांसा, नेति नेति, ईश्वर

धर्ममीमांसा

किसी धार्मिक संप्रदाय के द्वारा स्वीकृत विश्वासों का क्रमबद्ध संग्रह उस संप्रदाय की धर्ममीमांसा है। धर्ममीमांसा में विज्ञान और दर्शन के दृष्टिकोण की सार्वभौमता नहीं होती, इसकी पद्धति भी उनकी पद्धति से भिन्न होती है। विज्ञान प्रत्यक्ष पर आधारित है, दर्शन में बुद्धि की प्रमुखता है और धर्ममीमांसा में, आप्त वचन की प्रधानता स्वीकृत होती है। जब तक विश्वास का अधिकार प्रश्नरहित था, धर्ममीमांसकों को इस बात की चिंता न थी कि उनके मंतव्य विज्ञान के आविष्कारों और दर्शन के निष्कर्षों के अनुकूल हैं या नहीं। परंतु अब स्थिति बदल गई है और धर्ममीमांसा को विज्ञान तथा दर्शन के मेल में रहना होता है। धर्ममीमांसा किसी धार्मिक संप्रदाय के स्वीकृत सिद्धांतों का संग्रह है। इस प्रकार की सामग्री का स्रोत कहाँ है? इन सिद्धांतों का सर्वोपरि स्रोत तो ऐसी पुस्तक है, जिसे उस संप्रदाय में ईश्वरीय ज्ञान समझा जाता है। इससे उतरकर उन विशेष पुरुषों का स्थान है जिन्हें ईश्वर की ओर से धर्म के संबंध में निर्भ्रांत ज्ञान प्राप्त हुआ है। रोमन कैथोलिक चर्च में पोप को ऐसा पद प्राप्त है। विवाद के विषयों पर आचार्यों की परिषदों के निश्चय भी प्रामाणिक सिद्धांत समझे जाते हैं। धर्ममीमांसा के विचार विषयों में ईश्वर की सत्ता और स्वरूप प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त जगत्‌ और जीवात्मा के स्वरूप पर भी विचार होता है। ईश्वर के संबंध में प्रमुख प्रश्न यह है कि वह जगत्‌ में अंतरात्मा के रूप में विद्यमान है, या इससे परे, ऊपर भी है। जगत्‌ के विषय मं पूछा जाता है कि यह ईश्वर का उत्पादन है, उसका उद्गार है, या निर्माण मात्र है। उत्पादनवाद, उद्गारवाद और निर्माणवाद की जाँच की जाती है। जीवात्मा के संबंध में, स्वाधीनता और मोक्षसाधन चिरकाल के विवाद के विषय बने रहे हैं। संत आगस्तिन ने पूर्व निर्धारणवाद का समर्थन किया और कहा कि कोई मनुष्य अपने कर्मों से दोषमुक्त नहीं हो सकता, दोषमुक्ति ईश्वरीय करुणा पर निर्भर है। इसके विपरीत भारत की विचारधारा में जीवात्मा स्वतंत्र है और मनुष्य का भाग्य उसके कर्मों से निर्णीत होता है। .

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नेति नेति

नेति नेति (.

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ईश्वर

यह लेख पारलौकिक शक्ति ईश्वर के विषय में है। ईश्वर फ़िल्म के लिए ईश्वर (1989 फ़िल्म) देखें। यह लेख देवताओं के बारे में नहीं है। ---- परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का स्रष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुडी हुई है। संस्कृत की ईश् धातु का अर्थ है- नियंत्रित करना और इस पर वरच् प्रत्यय लगाकर यह शब्द बना है। इस प्रकार मूल रूप में यह शब्द नियंता के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसी धातु से समानार्थी शब्द ईश व ईशिता बने हैं। .

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