लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

दलित साहित्य

सूची दलित साहित्य

दलित साहित्य से तात्‍पर्य दलित जीवन और उसकी समस्‍याओं पर लेखन को केन्‍द्र में रखकर हुए साहित्यिक आंदोलन से है जिसका सूत्रपात दलित पैंथर से माना जा सकता है। दलितों को हिंदू समाज व्‍यवस्‍था में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण न्याय, शिक्षा, समानता तथा स्वतंत्रता आदि मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया। उन्‍हें अपने ही धर्म में अछूत या अस्‍पृश्‍य माना गया। दलित साहित्य की शुरूआत मराठी से मानी जाती है जहां दलित पैंथर आंदोलन के दौरान बडी संख्‍या में दलित जातियों से आए रचनाकारों ने आम जनता तक अपनी भावनाओं, पीडाओं, दुखों-दर्दों को लेखों, कविताओं, निबन्धों, जीवनियों, कटाक्षों, व्यंगों, कथाओं आदि के माध्‍यम से पहुंचाया। .

22 संबंधों: तुलसी राम, दलित पैंथर, दलित साहित्य, धर्म, धर्मवीर, न्याय, बिहारी लाल हरित, बौद्ध धर्म, मराठी भाषा, महाशय नत्थु राम ताम्र मेली, मानवाधिकार, मोहनदास नैमिशराय, रवीन्द्र प्रभात, शिक्षा, समानता, स्वतन्त्रता, सूरजपाल चौहान, हिन्दी, जयप्रकाश कर्दम, ओमप्रकाश वाल्‍मीकि, आंदोलन, अस्पृश्यता

तुलसी राम

तुलसी राम,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1952 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बदायूँ जिले के 110 - बदायूँ (दक्षिण-पश्चिम) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। .

नई!!: दलित साहित्य और तुलसी राम · और देखें »

दलित पैंथर

दलित पैंथर मुंबई, महाराष्ट्र में 1972 में गठित एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन है, जिसने बाद में एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। नामदेव ढसाल, राजा ढाले व अरुण कांबले इसके आरंभिक व प्रमुख नेताओं में हैं। इसका गठन अफ्रीकी-अमेरिकी ब्‍लैक पैंथर आंदोलन से प्रभावित होकर किया गया। .

नई!!: दलित साहित्य और दलित पैंथर · और देखें »

दलित साहित्य

दलित साहित्य से तात्‍पर्य दलित जीवन और उसकी समस्‍याओं पर लेखन को केन्‍द्र में रखकर हुए साहित्यिक आंदोलन से है जिसका सूत्रपात दलित पैंथर से माना जा सकता है। दलितों को हिंदू समाज व्‍यवस्‍था में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण न्याय, शिक्षा, समानता तथा स्वतंत्रता आदि मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया। उन्‍हें अपने ही धर्म में अछूत या अस्‍पृश्‍य माना गया। दलित साहित्य की शुरूआत मराठी से मानी जाती है जहां दलित पैंथर आंदोलन के दौरान बडी संख्‍या में दलित जातियों से आए रचनाकारों ने आम जनता तक अपनी भावनाओं, पीडाओं, दुखों-दर्दों को लेखों, कविताओं, निबन्धों, जीवनियों, कटाक्षों, व्यंगों, कथाओं आदि के माध्‍यम से पहुंचाया। .

नई!!: दलित साहित्य और दलित साहित्य · और देखें »

धर्म

धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .

नई!!: दलित साहित्य और धर्म · और देखें »

धर्मवीर

धर्मवीर,भारत के उत्तर प्रदेश की चौथी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1967 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के 272 - मेजा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। .

नई!!: दलित साहित्य और धर्मवीर · और देखें »

न्याय

यह तय करना मानव-जाति के लिए हमेशा से एक समस्या रहा है कि न्याय का ठीक-ठीक अर्थ क्या होना चाहिए और लगभग सदैव उसकी व्याख्या समय के संदर्भ में की गई है। मोटे तौर पर उसका अर्थ यह रहा है कि अच्छा क्या है इसी के अनुसार इससे संबंधित मान्यता में फेर-बदल होता रहा है। जैसा कि डी.डी.

नई!!: दलित साहित्य और न्याय · और देखें »

बिहारी लाल हरित

कविता-अछूतों का पैगम्बर (1946),चमार हूँ मैं (1975) श्रेणी:दलित श्रेणी:दलित साहित्यकार.

नई!!: दलित साहित्य और बिहारी लाल हरित · और देखें »

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। इसा पूर्व 6 वी शताब्धी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज, हालाँकि बौद्ध धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं। .

नई!!: दलित साहित्य और बौद्ध धर्म · और देखें »

मराठी भाषा

मराठी भारत के महाराष्ट्र प्रांत में बोली जानेवाली सबसे मुख्य भाषा है। भाषाई परिवार के स्तर पर यह एक आर्य भाषा है जिसका विकास संस्कृत से अपभ्रंश तक का सफर पूरा होने के बाद आरंभ हुआ। मराठी भारत की प्रमुख भाषओं में से एक है। यह महाराष्ट्र और गोवा में राजभाषा है तथा पश्चिम भारत की सह-राजभाषा हैं। मातृभाषियों कि संख्या के आधार पर मराठी विश्व में पंद्रहवें और भारत में चौथे स्थान पर है। इसे बोलने वालों की कुल संख्या लगभग ९ करोड़ है। यह भाषा 900 ईसवी से प्रचलन में है और यह भी हिन्दी के समान संस्कृत आधारित भाषा है। .

नई!!: दलित साहित्य और मराठी भाषा · और देखें »

महाशय नत्थु राम ताम्र मेली

कोई विवरण नहीं।

नई!!: दलित साहित्य और महाशय नत्थु राम ताम्र मेली · और देखें »

मानवाधिकार

मानवाधिकार हर एक का हकदार होता है मानव अधिकारों से अभिप्राय "मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है। अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार.

नई!!: दलित साहित्य और मानवाधिकार · और देखें »

मोहनदास नैमिशराय

मोहनदास नैमिषराय विचारात्मक लेखन के लिए सृजन गाथा द्वारा प्रदत्त महेश तिवारी सम्मान ग्रहण करते हुए। मोहनदास नैमिशराय ख्यातनाम दलित साहित्यकार एवं बयान के संपादक हैं। झलकारी बाई के जीवन पर वीरांगना झलकारी बाई नामक एक पुस्तक सहित उनकी ३५ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें उपन्यास, कथा संग्रह, आत्म कथा तथा आलेख इत्यादि शामिल हैं। वे सामाजिक न्यास संदेश के संपादक भी हैं। उनका बचपन गरीबी में बीता। वे मेरठ में रहते थे। मिट्टी का कच्चा घर था। विशेष कपड़े भी उस समय पहनने के लिए नहीं थे। बिना चप्पल या जूते के भी आना-जाना पड़ता था। उनकी शिक्षा मेरठ में कुमार आश्रम में हुई। यह आश्रम लाला लाजपत राय ने दलितों की शिक्षा के लिए बनवाया था। उनके पिता आरंभ में सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे डिप्रेस्ड लीग के चेयरमेन रहे और जब उन्होंने हायस्कूल किया तो वे पूरे जिले में हायस्कूल करने वाले दूसरे व्यक्ति थे। पिताजी नाटकों में भूमिका भी करते थे। .

नई!!: दलित साहित्य और मोहनदास नैमिशराय · और देखें »

रवीन्द्र प्रभात

रवीन्द्र प्रभात (जन्म: ५ अप्रैल १९६९) भारत के हिन्दी कवि, कथाकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, स्तंभकार, सम्पादक और ब्लॉग विश्लेषक हैं। उन्होंने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है परंतु व्यंग्य और गज़ल में उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ हैं। १९९१ में प्रकाशित अपने पहले गज़ल संग्रह "हमसफर" से पहली बार वे चर्चा में आये। लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी दैनिक 'जनसंदेश टाईम्स' और 'डेली न्यूज एक्टिविस्ट' के वे नियमित स्तंभकार रह चुके हैं। .

नई!!: दलित साहित्य और रवीन्द्र प्रभात · और देखें »

शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

नई!!: दलित साहित्य और शिक्षा · और देखें »

समानता

सामाजिक सन्दर्भों में समानता (equality) का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान (अलग-अलग नहीं) अधिकार या प्रतिष्ठा (status) रखते हैं। सामाजिक समानता के लिए 'कानून के सामने समान अधिकार' एक न्यूनतम आवश्यकता है जिसके अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, सम्पत्ति अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान पहुँच (access) आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आतीं हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी इसके अन्तर्गत आता है। सामाजिक समानता (Social Equality) किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस लिहाज़ से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है। दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग-अलग तरीके अख्तियार करने पर समानता के विचार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ उभरती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील प्रमुख हैं। .

नई!!: दलित साहित्य और समानता · और देखें »

स्वतन्त्रता

स्वतंत्रता आधुनिक काल का प्रमुख राजनैतिक दर्शन है। यह उस दशा का बोध कराती है जिसमें कोई राष्ट्र, देश या राज्य द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने पर किसी दूसरे व्यक्ति/ समाज/ देश का किसी प्रकार का प्रतिबन्ध या मनाही नहीं होती। अर्थात स्वतंत्र देश/ राष्ट्र/ राज्य के सदस्य स्वशासन (सेल्फ-गवर्नमेन्ट) से शासित होते हैं। स्वतंत्रता का विलोम शब्द 'परतंत्रता' है। जरूरी नहीं कि 'स्वतंत्रता' का अर्थ 'आजादी' (freedom) भी हो। .

नई!!: दलित साहित्य और स्वतन्त्रता · और देखें »

सूरजपाल चौहान

सूरजपाल चौहान हिंदी के दलित साहित्यकार हैं। उनका कहानीसंग्रह, "हैरी कब आएगा" (लघु कथाएँ) (1999) दलित साहित्य जगत में प्रख्यात हैं। .

नई!!: दलित साहित्य और सूरजपाल चौहान · और देखें »

हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

नई!!: दलित साहित्य और हिन्दी · और देखें »

जयप्रकाश कर्दम

जयप्रकाश कर्दम एक हिन्दी साहित्यकार हैं। वह दलित साहित्य से जुड़े हैं। कविता, कहानी और उपन्यास लिखने के अलावा दलित समाज की वस्तुगत सच्चाइयों को सामने लानेवाली अनेक निबंध व शोध पुस्तकों की रचना व संपादन भी उन्होंने किया है। .

नई!!: दलित साहित्य और जयप्रकाश कर्दम · और देखें »

ओमप्रकाश वाल्‍मीकि

ओमप्रकाश वाल्मीकि (30 जून 1950 - 17 नवम्बर 2013) वर्तमान दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। .

नई!!: दलित साहित्य और ओमप्रकाश वाल्‍मीकि · और देखें »

आंदोलन

चिपको आन्दोलन:किसानो के द्वारा वृक्षों की कटाई पर् विरोध के लिये किया गया था। आंदोलन संगठित सत्ता तंत्र या व्यवस्था द्वारा शोषण और अन्याय किए जाने के बोध से उसके खिलाफ पैदा हुआ संगठित और सुनियोजित अथवा स्वतःस्फूर्त सामूहिक संघर्ष है। इसका उद्देश्य सत्ता या व्यवस्था में सुधार या परिवर्तन होता है। यह राजनीतिक सुधारों या परिवर्तन की आकांक्षा के अलावा सामाजिक, धार्मिक, पर्यावरणीय या सांस्कृतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी चलाया जाता है। उदाहरणस्वरूप चिपको आंदोलन पेड़ों की रक्षा के लिए चलाया गया आंदोलन है। .

नई!!: दलित साहित्य और आंदोलन · और देखें »

अस्पृश्यता

भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र 'मानव-जाति से प्यार' ऊँच-नीच की भावना रूपी हवा के झोंके से यत्र-तत्र बिखर गया। ऊँच-नीच का भाव यह रोग है, जो समाज में धीरे धीरे पनपता है और सुसभ्य एवं सुसंस्कृत समाज की नींव को हिला देता है। परिणामस्वरूप मानव-समाज के समूल नष्ट होने की आशंका रहती है। अतः अस्पृश्यता मानव-समाज के लिए एक भीषण कलंक है। आज संसार के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह राजनीतिक हो अथवा आर्थिक, धार्मिक हो या सामाजिक, सर्वत्र अस्पृश्यता के दर्शन किए जा सकते हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि यद्यपि वैज्ञानिक दृष्तिकोण से विकसित और संपन्न देश हैं किंतु अस्पृश्यता के रोग में वे भी ग्रसित हैं। अमेरिका जैसे महान राष्ट्र में काले एवं गोरें लोगों का भेदभाव आज भी बना हुआ है। अस्पृश्यता .

नई!!: दलित साहित्य और अस्पृश्यता · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

हिंदी दलित साहित्‍य

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »