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तैलचित्रण

सूची तैलचित्रण

तैलचित्रण (Oil painting) चित्र के उस अंकनविधान का नाम है जिसमें तेल में घोंटे गए रंगों का प्रयोग होता है। 19वीं शती के पूर्व यूरोप में ही इसका प्रयोग अधिक हुआ, पूर्वी देशों में तैल माध्यम से उस काल में चित्रांकन का कोई उल्लेखनीय प्रमाण प्राप्त नहीं है। यद्यपि तेल की वार्निश बनाने का उल्लेख 8वीं सदी की "लूका की पांडुलिपि" में हुआ है तथापि रंगों के साथ इसके प्रयोग का उल्लेख 12वीं शती में सबसे पहले थियोफिलस, इराक्लियस और पीटर द सेंट आडेमार ने किया है। ये तीनों यूरोप में आल्प्स पर्वत के उत्तर के निवासी थे। इटली में भी इनके पूर्व बहुत पहले से तैलचित्रण होता था, ऐसा विश्वास किया जाता है, कहते हैं, फ्लोरेंस का विख्यात चित्रकार जियोतो (Giotto) (1276-1337) कभी कभी तैल माध्यम का प्रयोग करता था। ईस्टलेक का कथन है कि "जर्मनी, फ्रांस, इटली और इंग्लैंड में कम से कम 14वीं सदी मे तैलचित्रण प्रचलित था।" पर तैल माध्यम का विकसित रूप 15वीं-16वीं सदी से दिखाई देने लगता है। किंतु यह धारणा भी प्रचलित है कि डच चित्रकार जान फान आयक (Jan Van Eyck) (मृत्यु 1441 ई) ने ही तैल माध्यम से चित्रांकन शुरू किया था। तैल माध्यम अन्य माध्यमों की अपेक्षा सरल होता है और पारदर्शी रंग इसमें सर्वाधिक पारदर्शी रहते हैं, अत: सुंदर लगते हैं। पानी का भी कोई असर तैल चित्रों पर फौरन नहीं होता। इसी कारण यह माध्यम इतना लोकप्रिय है। तैलचित्रण में आमतौर से अस्तर चढ़े कैनवास पर तेल में घोंटे गए गाढ़े चिपचिपे रंगों को बुरुश से लगाया जाता है। इसके लिये अधिकतर अलसी और पोस्त के तेल प्रयुक्त होते हैं। तेलों का चुनाव विभिन्न देशों में रुचि और आवश्यकता पर निर्भर करता है। पहले के चित्रकार आवश्यकतानुसा अपने रंगों को, काम शु डिग्री करने के पहले तैयार कर लेते थे पर प्राय: पिछले 100 वर्षों से जलीय रंगों (Water colours) की भाँति तैल के रंग भी ट्यूबों में उपलब्ध हैं। बीजों को बिना गर्म किए हुए निकाला हुआ अलसी का तेल धूप और हवा मे शोधकर प्रयोग किया जाए तो उसमें रंग मैले नहीं दीखते और टिकते भी ज्यादा हैं। रंगों को पतला करने और शीघ्र सुखाने के लिये पहले अलसी या तारपीन का तेल मिलाते थे लेकिन आजकल चमकीले रंग पसंद नहीं किए जाते इसलिये अलसी का तेल न मिलाकर सिर्फ तारपीन के तेल या पेट्रोल मिलाते हैं। कैनवास सूती कपड़े का अथवा सन का बनाया जाता है। विभिन्न रुचियों और आवश्यकताओं के अनुसार उसकी सतह खुरदुरी अथवा सपाट रखी जाती है। कैनवास के अलावा गत्ते, कागज, काच, लकड़ी, ताँबे, जस्ते (Zinc) की चादरें और दीवार पर भी अस्तर (Ground) चढ़ाकर तैल माध्यम से चित्रांकन किया जाता है। प्लाइउड, हार्डबोर्ड, अलम्यूनियम और एस्बेस्टस आदि का प्रयोग भी अनेक चित्रकार कर रहे हैं, क्योंकि ये सुलभ और सस्ते होते हैं तथा बड़े आकार में मिल भी जाते हैं। अस्तर बनाने के लिये जिस चीज पर चित्र बनाना है उस पर सरेस का हलका लेप चढ़ाते हैं, सूख जाने पर, सफेद रंग, अलसी का तेल और वार्निश मिलाकर आवश्यकतानुसार दो तीन कोट लगाए जाते हैं। जमीन तैयार करने के विभिन्न कालों में और विभिन्न चित्रकारों के भिन्न भिन्न नुस्खे रहे हैं। कैनवास को एक चौखटे (Stretcher) पर ताना जाता है। आजकल कैनवास की विभिन्न किस्में बाजार में तैयार मिल जाती हैं। प्राचीन काल का कैनवास या अन्य वस्तुओं की जमीन का रंग कुछ कत्थई रंगत का होता था पर आजकल के चित्रकार सफेद रंग की जमीन पसंद करते हैं। सूअर के बाल के बने, लंबे हैंडल के, चपटे और गोल बुरुशों का चलन अधिक है पर कुछ चित्रकार सपाट और कोमल अंकन के लिये सैबल (एक प्रकार की लोमड़ी) के बालों से बने बुरुश पसंद करते हैं। रंगों को महोगनी की लकड़ी अथवा काच या चीनी मिट्टी की एक प्लेट (Pallette) पर छुरी से मिलाया जाता है। इन प्लेटों और छुरियों के विभिन्न नमूने होते हैं। प्राचीन काल में रंग सीपियों और प्यालों में भी रखे जाते थे। तैल चित्रों को अधिकतर "ईजल" (Easel) पर रखकर तथा खड़े रहकर बनाने की प्रथा है। यूरोप में तो अन्य चित्र भी खड़े होकर बनाए जाते हैं। पर इस माध्यम में विशेष रूप से खड़े रहकर काम करने में ही सुविधा रहती है क्योंकि आवश्यकतानुसार दूर जाकर भी बीच बीच में चित्रों को देखा जा सकता है और रंग भी शरीर पर नहीं लगते। प्राचीन चित्रकार कैनवास पर पहले अंगूर की बेलों के कोयले (Charcoal) से रेखांकन कर लेते थे, फिर केवल किसी एक रंग से "शेड" आदि लगाकर चित्र को पूरा कर लेते थे। इसके बाद आवश्यकतानुसार उसमे रंगों की पतली तहें लगाई जाती थीं जिससे नीचे का रंग भी झलकता रहे। इसी तरह धीरे धीरे वांछनीय प्रभाव प्राप्त होने तक रंग लगाए जाते। रैमब्राँ (Rembrandt) रुबेंस (Rubens) और टिटियां (Titian) इस प्रकार के अंकनविधान में बेजोड़ थे। कला के अन्य गुणों के अलावा बुरुश का दक्ष प्रयोग उनके चित्रों की विशेषता है जो केवल तैल चित्रण में ही संभव है। आजकल अनेक चित्रकार बुरुश का प्रयोग न कर सीधे छुरी से कैनवास अथवा अन्य सतहों पर काम करना पसंद करते हैं। ऐसा केवल अपनी रुचि और शैली के लिये किया जाता है। इस प्रकार का चित्रांकन बड़ा मोटा और प्रभावशाली (Bold) होता है। पर इसमें बड़ी दक्षता की आवश्यकता होती है क्योंकि बुरुश से अंकित चित्र की भाँति इस प्रकार के चित्रों को एक बार बिगड़ जाने पर सुधारना संभव नहीं। चित्र पूरा हो जाने पर पुराने चित्रकार कुछ महीनों बाद उसपर वार्निश लगाते थे जिससे वह मौसमी परिवर्तनों से अप्रभावित रहे। वार्निश से चित्रों में कुछ चमक भी आ जाती है। वार्निश का प्रयोग अब शायद ही कोई चित्रकार करता हो, क्योंकि आजकल रंगों में चमक पसंद नहीं की जाती। तैल माध्यम से बने चित्रों का सबसे बड़ा दोष यह होता है कि कुछ काल के पश्चात् वे पीले पड़ने लगते हैं। नमी और अँधेरे में रखे चित्र तो और भी जल्दी पीले पड़ जाते हैं। रंग की पहली तह में कम तेल हो और बाद वाली में ज्यादा तथा एक तह सूख जाने के बाद ही दूसरी तह लगाई जाए तो रंग बाद में चटखते नहीं हैं। कैनवास की पिछली तरफ मोम की वार्निश लगाने से कैनवास अधिक दिन टिकता है और रंग सुरक्षित रहते हैं। भारतवर्ष में तेल के रंगों का प्रयोग यूरोपीय चित्रकारों द्वारा 1800 ई के लगभग शुरू हुआ। प्रारंभिक भारतीय तैल चित्रकारों में त्रावणकोर के राजा रविवर्मा का नाम उल्लेखनीय है। भारतवर्ष में विशेष रूप से शबीह चित्रण (Portrait painting) के लिए तैल मध्यम पसंद किया जाता है। 19वीं सदी के मध्य से त्रिचनापल्ली में इस माध्यम से काँच पर धार्मिक चित्र बनने लगे। आजकल के चित्रकार तैलचित्रों की अपेक्षा फिर से जलीय और अंडे की जर्दी के साथ घोंटे रंगों को पसंद करने लगे हैं। इन रंगों से बने चित्र अधिक टिकाऊ होते हैं। .

6 संबंधों: तिरुचिरापल्ली, त्रवनकोर, भारत, यूरोप, रैम्ब्राण्ट, कांच

तिरुचिरापल्ली

तिरुचुरापल्ली(त्रिचि/तिरुची तमिल:தி௫ச்சிராப்பள்ளி/தி௫ச்சி) भारत के तमिलनाडु प्रान्त का एक शहर है। प्राचीन काल में चोल साम्राज्‍य का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा रहा तिरूचिरापल्‍ली वर्तमान में तमिलनाडु राज्य का एक जिला है। तिरूचिरापल्ली जिले का मुख्यालय चिरूचिलापल्ली शहर है। यह स्थान त्रिची के नाम से भी से प्रसिद्ध है। यह शहर कावेरी नदी के तट पर बसा हुआ है। यह स्थान विशेष रूप से विभिन्न मंदिरों जैसे श्री रंगानाथस्वामी मंदिर, श्री जम्बूकेश्‍वरा मंदिर और वरैयूर आदि के लिए प्रसिद्ध है। शहर के मध्य से कावेरी नदी गुजरती है। .

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त्रवनकोर

त्रवनकोर या तिरुवितामकूर (मलयालम: തിരുവിതാംകൂർ) सन् १९४९ से पहले एक भारतीय राज्य (रियासत) था। इसपर त्रवनकोर राजपरिवार का शासन था, जिनकी गद्दी पहले पद्मनाभपुरम और फिर तिरुवनन्तपुरम में थी। अपने चरम पर त्रवनकोर राज्य का विस्तार भारत के आधुनिक केरल के मध्य और दक्षिणी भाग पर और तमिल नाडु के कन्याकुमारी ज़िले पर था। राजकीय ध्वज पर लाल पृष्टभूमि के ऊपर चांदी का शंख बना हुआ था। १९वीं शताब्दी में यह ब्रिटिश-अधीन भारत की एक रियासत बन गई और इसके राजा को स्थानीय रूप से २१ तोपों की और राज्य से बाहर १९ तोपों की सलामी की प्रतिष्ठा दी गई। महाराज श्री चितिरा तिरुनल बलराम वर्मा के १९२४-१९४९ के राजकाल में राज्य सरकार ने सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिये कई प्रयत्न किये जिनसे यह ब्रिटिश-अधीन भारत का दूसरा सबसे समृद्ध रियासत बन गया और शिक्षा, राजव्यवस्था, जनहित कार्यों और सामाजिक सुधार के लिये जाना जाने लगा।"Travancore." Encyclopædia Britannica.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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यूरोप

यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.

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रैम्ब्राण्ट

रैम्ब्राण्ट हारमनज़ून फ़ान रैन (डच: Rembrandt Harmenszoon van Rijn, 15 जुलाई 1606 – 4 अकटूबर 1669) एक प्रसिद्ध डच चित्रकार थे। उन्हें यूरोपीय कला इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण चित्रकारों में से एक स्मरण किया जाता है।Gombrich, p. 420.

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कांच

स्वच्छ पारदर्शी कांच का बना प्रकाश बल्ब काच, काँच या कांच (glass) एक अक्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। कांच आमतौर भंगुर और अक्सर प्रकाशीय रूप से पारदर्शी होते हैं। काच अथव शीशा अकार्बनिक पदार्थों से बना हुआ वह पारदर्शक अथवा अपारदर्शक पदार्थ है जिससे शीशी बोतल आदि बनती हैं। काच का आविष्कार संसार के लिए बहुत बड़ी घटना थी और आज की वैज्ञानिक उन्नति में काच का बहुत अधिक महत्व है। किन्तु विज्ञान की दृष्टि से 'कांच' की परिभाषा बहुत व्यापक है। इस दृष्टि से उन सभी ठोसों को कांच कहते हैं जो द्रव अवस्था से ठण्डा होकर ठोस अवस्था में आने पर क्रिस्टलीय संरचना नहीं प्राप्त करते। सबसे आम काच सोडा-लाइम काच है जो शताब्दियों से खिड़कियाँ और गिलास आदि बनाने के काम में आ रहा है। सोडा-लाइम कांच में लगभग 75% सिलिका (SiO2), सोडियम आक्साइड (Na2O) और चूना (CaO) और अनेकों अन्य चीजें कम मात्रा में मिली होती हैं। काँच यानी SiO2 जो कि रेत का अभिन्न अंग है। रेत और कुछ अन्य सामग्री को एक भट्टी में लगभग 1500 डिग्री सैल्सियस पर पिघलाया जाता है और फिर इस पिघले काँच को उन खाँचों में बूंद-बूंद करके उंडेला जाता है जिससे मनचाही चीज़ बनाई जा सके। मान लीजिए, बोतल बनाई जा रही है तो खाँचे में पिघला काँच डालने के बाद बोतल की सतह पर और काम किया जाता है और उसे फिर एक भट्टी से गुज़ारा जाता है। .

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