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5 संबंधों: तिरुवातिरकली, भारत के नृत्य, शिव ताण्डव स्तोत्र, ओणम, केरल की संस्कृति।
तिरुवातिरकली
तिरुवातिरकली या कैकोट्टिकलि केरल के दासियों द्वारा प्रदर्शन करते हुए एक बेहद लोकप्रिय नृत्य रूप है। यह एक समूह-नृत्य है और मुख्य रूप से ओणम और तिरुवातिरा के अवसर पर मनाया जाता है। महिलाएं या युवा, चाहे कोई भी हो इस अवसर पर अपने आपको भूलकर इस अवसर पर खुशी से शामिल होते हैं। तिरुवातिरकली में लास्या या सौंदर्य तत्व प्रकाशित करते हुए एक बेहद खूबसूरत नृत्य कला के रूप में माना जाता है। तान्डव का एक तत्व (ब्रह्मांड को नष्ट करने के लिए नृत्य) हालाँकि पुरुषों को भी इसमें भाग लेने के लिये अवसर देते है। .
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भारत के नृत्य
मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांसे की नृत्य प्रतिमा कुचीपुडी नृत्य नृत्य का इतिहास, मानव इतिहास जितना ही पुराना है। इसका का प्राचीनतम ग्रंथ भरत मुनि का नाट्यशास्त्र है। लेकिन इसके उल्लेख वेदों में भी मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में नृत्य की खोज हो चुकी थी। इस काल में मानव जंगलों में स्वतंत्र विचरता था। धीरे-धीरे उसने समूह में पानी के स्रोतों और शिकार बहुल क्षेत्र में टिक कर रहना आरंभ किया- उस समय उसकी सर्वप्रथम समस्या भोजन की होती थी- जिसकी पूर्ति के बाद वह हर्षोल्लास के साथ उछल कूद कर आग के चारों ओर नृत्य किया करते थे। ये मानव विपदाओं से भयभीत हो जाते थे- जिनके निराकरण हेतु इन्होंने किसी अदृश्य दैविक शक्ति का अनुमान लगाया होगा तथा उसे प्रसन्न करने हेतु अनेकों उपायों का सहारा लिया- इन उपायों में से मानव ने नृत्य को अराधना का प्रमुख साधन बनाया। इतिहास की दृष्टि में सबसे पहले उपलब्ध साक्ष्य गुफाओं में प्राप्त आदिमानव के उकेरे चित्रों तथा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाईयों में प्राप्त मूर्तिया- हैं, जिनमें एक कांसे की बनी तन्वंगी की मूर्ति है- जिसकी समीक्षा करने वाले विद्वानों ने यह सिद्ध किया है कि यह नृत्य की भावभंगिमा से युक्त है। भारतीय नृत्य कला के इतिहास में- उत्खनन से प्राप्त यह नृत्यांगना की मूर्ति- प्रथम मूल्यवान उपलब्धि है जो आज भी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई है। हड़प्पा की खुदाई में भी एक काले पत्थर की नृत्यरत मूर्ति प्राप्त हुई है जिसके संबंध में पुरातत्वेत्ता मार्शल ने नर्तकी होने का दावा किया है। .
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शिव ताण्डव स्तोत्र
शिव ताण्डव स्तोत्र (संस्कृत:शिवताण्डवस्तोत्रम्) महान विद्वान एवं परम शिवभक्त लंकाधिपति रावण द्वारा विरचित भगवान शिव का स्तोत्र है। .
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ओणम
ओणम केरल का एक प्रमुख त्योहार है। ओणम केरल का एक राष्ट्रीय पर्व भी है। ओणम का उत्सव सितम्बर में राजा महाबली के स्वागत में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है जो दस दिनों तक चलता है। उत्सव त्रिक्काकरा (कोच्ची के पास) केरल के एक मात्र वामन मंदिर से प्रारंभ होता है। ओणम में प्रत्येक घर के आँगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर सुन्दर रंगोलिया (पूकलम) डाली जाती हैं। युवतियां उन रंगोलियों के चारों तरफ वृत्त बनाकर उल्लास पूर्वक नृत्य (तिरुवाथिरा कलि) करती हैं। इस पूकलम का प्रारंभिक स्वरुप पहले (अथम के दिन) तो छोटा होता है परन्तु हर रोज इसमें एक और वृत्त फूलों का बढ़ा दिया जाता है। इस तरह बढ़ते बढ़ते दसवें दिन (तिरुवोनम) यह पूकलम वृहत आकार धारण कर लेता है। इस पूकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा महाबली तथा उसके अंग रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिटटी से बनायीं जाती है। ओणम मैं नोका दौड जैसे खेलों का आयोजन भी होता है। ओणम एक सम्पूर्णता से भरा हुआ त्योहार है जो सभी के घरों को ख़ुशहाली से भर देता है। .
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केरल की संस्कृति
केरल की कला-सांस्कृतिक परंपराएँ सदियों पुरानी हैं। केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले कलारूपों में लोककलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका उल्लेखनीय है। केरलीय कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं - एक दृश्य कला और दूसरी श्रव्य कला। दृश्य कला के अंतर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्रकला और सिनेमा आते हैं।.
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तिरुवातिरा कलि के रूप में भी जाना जाता है।