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तानसेन समारोह

सूची तानसेन समारोह

तानसेन समारोह या तानसेन संगीत समारोह हर साल दिसंबर के महीने में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के बेहत गांव में मनाया जाता है। यह एक 4 दिन का संगीतमय कल्पात्मक नाटक है। दुनिया भर से कलाकार और संगीत प्रेमी यहाँ पर महान भारतीय संगीत उस्ताद तानसेन को श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह समारोह मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा तानसेन के मकबरे के पास आयोजित किया जाता है। इस समारोह में पूरे भारत से कलाकारों को गायन एवं वाद्य प्रसतुति देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। श्रेणी:ग़ैर हिन्दी भाषा पाठ वाले लेख .

17 संबंधों: तानसेन, पखावज, बनारस घराना, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश सरकार, राजन एवं साजन मिश्र, शिवकुमार शर्मा, सरोद, सितार, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, जयपुर घराना, विश्व मोहन भट्ट, ग्वालियर, कर्नाटक संगीत, किराना घराना, कृष्णराव शंकर पण्डित, अमजद अली ख़ान

तानसेन

तानसेन या मियां तानसेन या रामतनु पाण्डेय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक महान ज्ञाता थे। उन्हे सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है। संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुढ़कते हैं तो ताल में। इस नगरी ने पुरातन काल से आज तक एक से बढ़कर एक संगीत प्रतिभायें संगीत संसार को दी हैं और संगीत सूर्य तानसेन इनमें सर्वोपारि हैं। तानसेन को संगीत का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ? प्रारम्भ से ही तानसेन मे दूसरों की नकल करने की अपूर्व क्षमता थी। बालक तानसेन पशु-पक्षियों की तरह- तरह की बोलियों की सच्ची नकल करता था और हिंसक पशुओं की बोली से लोगों को डरवाया करता था। इसी बीच स्वामी हरिदास से उनकी भेंट हो गयी । मिलने की भी एक मनोरंजक घटना है। उनकी अलग-अलग बोलियों को बोलने की प्रतिभा को देखकर वो काफी प्रभावित हुए। स्वामी जी ने उन्हें उनके पिता से संगीत सिखाने के लिए माँग लिया। इस तरह तानसेन को संगीत का ज्ञान हुआ। .

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पखावज

पखावज एक वाद्ययंत्र है। यह उत्तर-भारतीय शैली का ढ़ोलक (ड्रम) है। यह मृदंग के आकार प्रकार का परन्तु उससे कुछ छोटा एक प्रकार का बाजा है। तबले की उत्पत्ति इसी यंत्र से हुई है। कहा जाता है कि अमीर खुसरो पखावज बजारहे थे। उसी समय यह दो टुकड़ों में टूट गया। तब उन्होने इन टुकड़ों को बजाने की कोशिश की जो कि काम कर गया। इस प्रकार तबले का जन्म हुआ। .

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बनारस घराना

शाहिद परवेज़ खान बनारस घराने के तबले के जादूगर पंडित समता प्रसाद के संग एक संगीत सभा में। बनारस घराना भारतीय तबला वादन के छः प्रसिद्ध घरानों में से एक है। ये घराना २०० वर्षों से कुछ पहले ख्यातिप्राप्त पंडित राम सहाय (१७८०-१८२६) के प्रयासों से विकसित हुआ था। पंडित राम सहाय ने अपने पिता के संग पांच वर्ष की आयु से ही तबला वादन आरंभ किया था। ९ वर्ष की आयु में ये लखनऊ आ गये एवं लखनऊ घराने के मोधु खान के शिष्य बन गये। जब राम सहाय मात्र १७ वर्ष के ही थे, तब लखनऊ के नये नवाब ने मोधु खान से पूछा कि क्या राम सहाय उनके लिये एक प्रदर्शन कर सकते हैं? कहते हैं, कि राम सहाय ने ७ रातों तक लगातार तबला-वादन किया जिसकी प्रशंसा पूरे समाज ने की एवं उन पर भेटों की बरसात हो गयी। अपनी इस प्रतिभा प्रदर्शन के बाद राम सहाय बनारस वापस आ गये। शाहिद परवेज़ खां, बनारस घराने के अन्य बड़े महारथी पंडित किशन महाराज के साथ एक सभा में। कुछ समय उपरांत राम सहाय ने पारंपरिक तबला वादन में कुछ बदलाव की आवश्यकता महसूस की। अगले छः माह तक ये एकांतवासी हो गये और इस एकांतवास का परिणाम सामने आया, जिसे आज बनारस-बाज कहते हैं। ये बनारस घराने की विशिष्ट तबला वादन शैली है। इस नयी वादन शैली के पीछे प्रमुख उद्देश्य था कि ये एकल वादन के लिये भी उपयुक्त थी और किसी अन्य संगीत वाद्य या नृत्य के लिये संगत भी दे सकती थी। इसमें तबले को नाज़ुक भी वादन कर सकते हैं, जैसा कि खयाल के लिये चाहिये होता है और पखावज की तरह ध्रुपद या कथक नृत्य शैली की संगत के लिये द्रुत गति से भी बजाया जा सकता है। राम सहाय ने तबला वादन में अंगुली की थाप का नया तरीका खोजा, जो विशेषकर ना की ताल के लिये महत्त्वपूर्ण था। इसमें अंगुली को मोड़कर दाहिने में अधिकतम अनुनाद कंपन उत्पन्न कर सकते हैं। इन्होंने तत्कालीन संयोजन प्रारूपों जैसे जैसे गट, टुकड़ा, परान, आदि से भी विभिन्न संयोजन किये, जिनमें उठान, बनारसी ठेका और फ़र्द प्रमुख हैं। आज बनारसी तबला घराना अपने शक्तिशाली रूप के लिये प्रसिद्ध है, हालांकि बनारस घराने के वादक हल्के और कोमल स्वरों के वादन में भी सक्षम हैं। घराने को पूर्वी बाज मे वर्गीकृत किया गया है, जिसमें लखनऊ, फर्रुखाबाद और बनारस घराने आते हैं। बनारस शैली तबले के अधिक अनुनादिक थापों का प्रयोग करती है, जैसे कि ना और धिन। बनारस वादक अधिमान्य रूप से पूरे हाथ से थई-थई थाप देते हैं, बजाय एक अंगुली से देने के; जैसे कि दिल्ली शैली में देते हैं। वैसे बनारस बाज शैली में दोनों ही थाप एकीकृत की गई हैं। बनारस घराने के तबला वादक तबला वादन की सभी शैलियों में, जैसे एकल, संगत, गायन एवं नृत्य संगत आदि में पारंगत होते हैं। बनारस घराने में एकल वादन बहुत इकसित हुआ है और कई वादक जैसे पंडित शारदा सहाय, पंडित किशन महाराज और पंडित समता प्रसाद, एकल तबला वादन में महारत और प्रसिद्धि प्राप्त हैं। घराने के नये युग के तबला वादकों में पं॰ कुमार बोस, पं.समर साहा, पं.बालकृष्ण अईयर, पं.शशांक बख्शी, संदीप दास, पार्थसारथी मुखर्जी, सुखविंदर सिंह नामधारी, विनीत व्यास और कई अन्य हैं। बनारसी बाज में २० विभिन्न संयोजन शैलियों और अनेक प्रकार के मिश्रण प्रयुक्त होते हैं। .

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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .

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मध्य प्रदेश सरकार

राज्य का गठन- 1 नवम्बर,1956 ईस्वी मध्यप्रदेश दिवस- 1 नवम्बर मध्यप्रदेश का वर्तमान स्वरूप- 1 नवम्बर, 2000 ईस्वी राज्य भाषा- हिंदी राजकीय पक्षी- दूधराज या शाहबुलबुल राजकीय पशु- बारहसिंगा राजकीय पुष्प- लिलि राजकीय खेल- मलखंब राजकीय नाट्य- माच राजकीय नृत्य- राई राजकीय फ़सल- सोयाबीन राजकीय वृक्ष- बरगद भौगोलिक क्षेत्रफल- 3,08,525 ज़िले- 51 (आगर नवीन है) तहसीलें- 353 विकासखंड- 313 नगर निगम- 16 लोस सीटें- 29 रास सीटें- 11 विस सीटें- 230 +1 (राज्यपाल के द्वारा मनोनीत) लोस सीटों में आरक्षण.

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राजन एवं साजन मिश्र

राजन मिश्र एवं साजन मिश्र को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। .

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शिवकुमार शर्मा

पंडित शिवकुमार शर्मा (जन्म १३ जनवरी, १९३८, जम्मू, भारत) प्रख्यात भारतीय संतूर वादक हैं। संतूर एक कश्मीरी लोक वाद्य होता है। इनका जन्म जम्मू में गायक पंडित उमा दत्त शर्मा के घर हुआ था। १९९९ में रीडिफ.कॉम को दिये एक साक्षातकार में उन्होंने बताया कि इनके पिता ने इन्हें तबला और गायन की शिक्षा तब से आरंभ कर दी थी, जब ये मात्र पाँच वर्ष के थे। इनके पिता ने संतूर वाद्य पर अत्यधिक शोध किया और यह दृढ़ निश्चय किया कि शिवकुमार प्रथम भारतीय बनें जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को संतूर पर बजायें। तब इन्होंने १३ वर्ष की आयु से ही संतूर बजाना आरंभ किया और आगे चलकर इनके पिता का स्वप्न पूरा हुआ। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में १९५५ में किया था। १९८८ में वादन करते हुए शिवकुमार शर्मा संतूर के महारथी होने के साथ साथ एक अच्छे गायक भी हैं। एकमात्र इन्हें संतूर को लोकप्रिय शास्त्रीय वाद्य बनाने में पूरा श्रेय जाता है। इन्होंने संगीत साधना आरंभ करते समय कभी संतूर के विषय में सोचा भी नहीं था, इनके पिता ने ही निश्चय किया कि ये संतूर बजाया करें। इनका प्रथम एकल एल्बम १९६० में आया। १९६५ में इन्होंने निर्देशक वी शांताराम की नृत्य-संगीत के लिए प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म झनक झनक पायल बाजे का संगीत दिया। १९६७ में इन्होंने प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित बृजभूषण काबरा की संगत से एल्बम कॉल ऑफ द वैली बनाया, जो शास्त्रीय संगीत में बहुत ऊंचे स्थान पर गिना जाता है। इन्होंने पं.

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सरोद

thumb सरोद भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। श्रेणी:वाद्य यंत्र श्रेणी:हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत श्रेणी:भारतीय वाद्य यंत्र.

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सितार

सितार भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्रों में से एक है, जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। इसके इतिहास के बारे में अनेक मत हैं किंतु अपनी पुस्तक भारतीय संगीत वाद्य में प्रसिद्ध विचित्र वीणा वादक डॉ लालमणि मिश्र ने इसे प्राचीन त्रितंत्री वीणा का विकसित रूप सिद्ध किया। सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्योँ की तीनों विशेषताएं हैं। तंत्री या तारों के अलावा इसमें घुड़च, तरब के तार तथा सारिकाएँ होती हैं। कहा जाता है कि भारतीय तन्त्री वाद्यों का सर्वाधिक विकसित रूप है। आधुनिक काल में सितार के तीन घराने अथवा शैलियाँ इस के वैविध्य को प्रकाशित करते रहे हैं। बाबा अलाउद्दीन खाँ द्वारा दी गयी तन्त्रकारी शैली जिसे पण्डित रविशंकर निखिल बैनर्जी ने अपनाया दरअसल सेनी घराने की शैली का परिष्कार थी। अपने बाबा द्वारा स्थापित इमदादखानी शैली को मधुरता और कर्णप्रियता से पुष्ट किया उस्ताद विलायत खाँ ने। पूर्ण रूप से तन्त्री वाद्यों हेतु ही वादन शैली मिश्रबानी का निर्माण डॉ लालमणि मिश्र ने किया तथा सैंकडों रागों में हजारों बन्दिशों का निर्माण किया। ऐसी ३०० बन्दिशों का संग्रह वर्ष २००७ में प्रकाशित हुआ है। सितार से कुछ बड़ा वाद्य सुर-बहार आज भी प्रयोग में है किन्तु सितार से अधिक लोकप्रिय कोई भी वाद्य नहीं है। इसकी ध्वनि को अन्य स्वरूप के वाद्य में उतारने की कई कोशिशें की गई, किन्तु ढांचे में निहित तन्त्री खिंचाव एवं ध्वनि परिमार्जन के कारण ठीक वैसा ही माधुर्य प्राप्त नहीं किया जा सका। गिटार की वादन शैली से सितार समान स्वर उत्पन्न करने की सम्भावना रन्जन वीणा में कही जाती है किन्तु सितार जैसे प्रहार, अन्गुली से खींची मींड की व्यवस्था न हो पाने के कारण सितार जैसी ध्वनि नहीं उत्पन्न होती। मीराबाई कृष्ण भजन में सितार का प्रयोग करती थी। .

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हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख शैली में से एक है। दूसरी प्रमुख शैली है - कर्नाटक संगीत। यह एक परम्प्रिक उद्विकासी है जिसने 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। यह दिशा प्रोफेसर ललित किशोर सिंह के अनुसार यूनानी पायथागॉरस के ग्राम व अरबी फ़ारसी ग्राम के अनुरूप आधुनिक बिलावल ठाठ की स्थापना मानी जा सकती है। इससे पूर्व काफी ठाठ शुद्ध मेल था। किंतु शुद्ध मेल के अतिरिक्त उत्तर भारतीय संगीत में अरबी-फ़ारसी अथवा अन्य विदेशी संगीत का कोई दूसरा प्रभाव नहीं पड़ा। "मध्यकालीन मुसलमान गायकों और नायकों ने भारतीय संस्कारों को बनाए रखा।" राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। हिंदुस्तानी संगीत केवल उत्तर भारत का ही नहीं। बांगलादेश और पाकिस्तान का भी शास्त्रीय संगीत है। .

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जयपुर घराना

मुहम्मद अली खाँ इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके बेटे मशहूर गायक आशिक अली खाँ थे। इस घराने की विशेषतायें इस प्रकार हैं--1.

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विश्व मोहन भट्ट

विश्व मोहन भट्ट या पंडित विश्व मोहन भट्ट भारतीय संगीत की प्रमुख हस्तियों में से एक हैं। .

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ग्वालियर

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र.

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कर्नाटक संगीत

300px कर्नाटक संगीत या संस्कृत में कर्णाटक संगीतं भारत के शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली का नाम है, जो उत्तरी भारत की शैली हिन्दुस्तानी संगीत से काफी अलग है। कर्नाटक संगीत ज्यादातर भक्ति संगीत के रूप में होता है और ज्यादातर रचनाएँ हिन्दू देवी देवताओं को संबोधित होता है। इसके अलावा कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है। जैसा कि आमतौर पर भारतीय संगीत मे होता है, कर्नाटक संगीत के भी दो मुख्य तत्व राग और ताल होता है। कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की 'त्रिमूर्ति' कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं। .

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किराना घराना

किराना घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत और गायन की हिंदुस्तानी ख़याल गायकी की परंपरा को वहन करने वाले हिंदुस्तानी घरानों में से एक है। किराना घराने का नामकरण उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले के एक तहसील कस्बा कैराना (जो की अब जिला शामली में हैं)से हुआ माना जाता है। यह उस्ताद अब्दुल करीम खाँ (१८७२-१९३७) का जन्मस्थान भी है, जो बीसवीं सदी में किराना शैली के सर्वाधिक महत्वपूर्ण भारतीय संगीतज्ञ थे। इन्हें किराना घराने का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उस्ताद करीम खाँ कर्णाटक संगीत शैली में भी पारंगत थे। इनका मैसूर दरबार से गहरा संबंध था। .

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कृष्णराव शंकर पण्डित

कृष्णराव शंकर पण्डित (1893–1989) भारत के एक संगीतकार थे जिन्हें ग्वालियर घराने का प्रमुख गायक माना जाता है। उन्होने संगीत से सम्बन्धित अनेक लेख एवं ८ पुस्तकों की रचना की है। उन्होने शंकर गन्धर्व महाविद्यालय की स्थापना की। .

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अमजद अली ख़ान

अमजद अली खान एक प्रसिद्ध सरोद वादक हैं जिनको भारत सरकार द्वारा सन १९९१ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली से हैं। .

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