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डॉ० लाल रत्नाकर

सूची डॉ० लाल रत्नाकर

डॉ० लाल रत्नाकर डॉ॰ लाल रत्नाकर- का जन्म जौनपुर जनपद के बिशुनपुर ग्राम के एक कृषक परिवार में हुआ। डॉ॰ रत्नाकर ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से "पूर्वी उत्तर-प्रदेश की लोक कला" विषय पर पी-एच.डी की डिग्री प्रो॰ आनंद कृष्ण के निर्देशन में ली। डॉ॰ रत्नाकर एम.

4 संबंधों: बिशुनपुर ग्राम, जौनपुर, खलिहान, काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय

बिशुनपुर ग्राम

बिशुनपुर जौनपुर जनपद क़ा गाँव जौनपुर इलाहबाद मार्ग पर जौनपुर से १० किलोमीटर की दूरी पर सई नदी के पूरब और सड़क के दक्षिण क़ा गाँव है, यह गाँव कृषि प्रधान के साथ साथ पशु पालन और नौकरी पेशे में अधिकांस शिक्षण प्रसिक्षण से जुड़ा गाँव है, देश बिदेश में भी कुछ एक क़ा जाना आना है सामाजिक सरोकारों से जुड़ा थोड़ी थोड़ी सबकी आबादी वाला गाँव जिसमे दलित, पिछड़े ज्यादा है थोड़े से बामन और एकाध घर ठाकुरों के भी है, गाँव की ज्यादा महिलाएं अपढ़ है पर कर्मठ और मेहनती है, पर आज गाँव में एक प्राइमरी स्कूल है | नदी के किनारे क़ा गाँव होने के नाते वर्षा ऋतू में बाढ़ क़ा खतरा बना रहता है, पर बाग बगीचे हरे भरे फलदार बने होते है | श्रेणी:जौनपुर जिले के गाँव.

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जौनपुर

जौनपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर है। मध्यकालीन भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर वाराणसी से 58 किलोमीटर और इलाहाबाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में गोमती नदी के तट पर बसा है। मध्यकालीन भारत में जौनपुर सल्तनत (1394 और 1479 के बीच) उत्तरी भारत का एक स्वतंत्र राज्य था I वर्तमान राज्य उत्तर प्रदेश जौनपुर सल्तनत के अंतर्गत आता था, जिसपर शर्की शासक जौनपुर से शासन करते थे I .

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खलिहान

अमेरिका के विस्कॉन्सिन राज्य में स्थित एक खलिहान कनाडा के किसी मैदान में खड़ा एक खलिहान खलिहान, जिसे बाड़ा भी बोलते हैं, ऐसे स्थान या कक्ष को कहते हैं जिसमें पशु-मवेशी, खेती के औज़ार और कटी हुई फ़सल को रखा जाता है। आम तौर पर खलिहान बारिश, बर्फ़, धूप और आंधी से सुरक्षा के लिए किसी कच्ची या पक्की छत से ढके हुए होते हैं। ध्यान दें कि कुछ सन्दर्भों में खलिहान और बाड़ा केवल उस मकान को ही नहीं बल्कि उसके इर्द-गिर्द की बिना ढकी हुई ज़मीन को भी कहते हैं जहाँ फ़सल और हल वग़ैरह पड़े रहते हैं। .

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काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (आम तौर पर बी.एच.यू.) वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक १६, सन् १९१५) महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् १९१६ में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार इस विधालय की स्थापना मे मदन मोहन मालवीय जी का योगदान सिर्फ सामान्य संस्थापक सदस्य के रूप मे था,महाराजा दरभंगा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान ले कर की ।इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ॰ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी। विश्वविद्यालय को "राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान" का दर्ज़ा प्राप्त है। संप्रति इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर (१३०० एकड़) वाराणसी में स्थित है जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी। मुख्य परिसर में ६ संस्थान्, १४ संकाय और लगभग १४० विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (२७०० एकड़) पर स्थित है। ७५ छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा रिहायशी विश्वविद्यालय है जिसमे ३०,००० से ज्यादा छात्र अध्यनरत हैं जिनमे लगभग ३४ देशों से आये हुए छात्र भी शामिल हैं। इसके प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी है। सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुक-डिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

डा० लाल रत्नाकर

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