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व्यापार
उनीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुणे के शनिवार पेठ का दृष्य व्यापार (Trade) का अर्थ है क्रय और विक्रय। दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति (या संस्था) से दूसरे व्यक्ति (या संस्था) को सामानों का स्वामित्व अन्तरण ही व्यापार कहलाता है। स्वामित्व का अन्तरण सामान, सेवा या मुद्रा के बदले किया जाता है। जिस नेटवर्क (संरचना) में व्यापार किया जाता है उसे 'बाजार' कहते हैं। आरम्भ में व्यापार एक सामान के बदले दूसरा सामान लेकर (वस्तु-विनिमय या बार्टर) किया जाता था। बाद में अधिकांश वस्तुओं के बदले धातुएँ, मूल्यवान धातुएँ, सिक्के, हुण्डी (bill) अथवा पत्र-मुद्रा से हुईँ। आजकल अधिकांश क्रय-विक्रय मुद्रा (मनी) द्वारा होता है। मुद्रा के आविष्कार (तथा बाद में क्रेडिट, पत्र-मुद्रा, अभौतिक मुद्रा आदि) से व्यापार में बहुत सरलता और सुविधा आ गयी। .
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आजीविका
कोई व्यक्ति जीवन के विभिन्न कालावधियों में जिस क्षेत्र में काम करता है या जो काम करता है, उसी को उसकी आजीविका या 'वृत्ति' या करिअर (Career) कहते हैं। आजीविका प्राय: ऐसे कार्यों को कहते हैं जिससे जीविकोपार्जन होता है। शिक्षक, डाक्टर, इंजिनीयर, प्रबन्धक, वकील, श्रमिक, कलाकार, आदि कुछ आजीविकाएँ हैं। हममें से प्रत्येक को किसी न किसी स्तर पर अपना जीवनयापन करने के लिये जीविकोपार्जन का साधन चुनना पड़ता है। व्यापार का क्षेत्र स्वरोजगार तथा सवेतन रोजगार के अनगिनत अवसर प्रदान करता है। आज स्वरोजगार, बेरोजगारी दूर करने का एक अति उत्तम विकल्प है जिससे देश की उन्नति भी होती है। स्वयं के लिये कार्य करना अपने आप में एक चुनौती तथा प्रसन्नता है। .
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कंपनी
समवाय या कंपनी (Company), व्यापारिक संगठन का एक रूप है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कंपनी एक निगम होता है- जिसका आशय एक संघ, संगठन, भागीदारी से हो सकता है और ये एक औद्योगिक उद्देश्य से जुड़ी होनी चाहिये। 'कम्पनी' शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ 'साथ-साथ' है। प्रारम्भ में कम्पनी, ऐसे व्यक्तियों के संघ को कहा जाता था जो अपना खाना साथ-साथ खाते थे। इस खाने पर व्यवसाय की बातें भी होती थी। आजकल कम्पनियों का आशय ऐसे संघ से हो गया जिसमें संयुक्त पूंजी होती है। कम्पनी का आशय कम्पनी अधिनियम के अधीन निर्मित एक 'कृत्रिम व्यक्ति' से है, जिसका अपने सदस्यों से पृथक अस्तित्व एवं अविच्छिन्न उत्तराधिकार होता है। साधारणतः ऐसी कम्पनी का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होता है और जिसकी एक सार्वमुद्रा (common seal) होती है। गौरव श्याम शुक्ल के अनुसार, .
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