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ज्वालामुखीय चाप

सूची ज्वालामुखीय चाप

ज्वालामुखीय चाप (volcanic arc) ज्वालामुखियों की एक शृंखला होती है जो दो भौगोलिक तख़्तों की संमिलन सीमा में निम्नस्खलित तख़्ते (subducting plate) के ऊपर बन जाती है। ऊपर से देखने पर ज्वालामुखियों की यह शृंखला एक चाप (आर्क) के आकार में नज़र आती है। यदि यह किसी महासागर में स्थित हो तो अक्सर यह ज्वालामुखी समुद्र सतह से ऊपर निकलकर ज्वालामुखीय द्वीप बना देते हैं और यह शृंखला एक द्वीप चाप के रूप में नज़र आती है। अक्सर इन द्वीपों से सामानांतर एक महासागरीय गर्त (ट्रेन्च) भी स्थित होता है। .

8 संबंधों: चाप, द्वीप चाप, निम्नस्खलन, प्लेट विवर्तनिकी, महासागरीय गर्त, संमिलन सीमा, ज्वालामुखी, ज्वालामुखीय द्वीप

चाप

ईंट से निर्मित एक चाप 1. Keystone 2. Voussoir 3. Extrados 4. Impost 5. Intrados 6. Rise 7. Clear span 8. Abutment वास्तुशिल्प में चाप या मेहराब (अंग्रेज़ी: arch, आर्च) वृत्त के चाप की सी संरचना को कहते हैं जो दो आलम्बों के बीच की दूरी को पाटता है तथा अपने ऊपर भार वहन करता है। जैसे पत्थर की दीवार में दरवाजे के लिये बनायी गयी संरचना। वैसे तो वास्तुशास्त्र में चाप का उपयोग दो हज़ार वर्ष से भी पुराना है, किन्तु इसका विधिवत उपयोग प्राचीन रोमवासियों द्वारा आरम्भ हुआ दिखाई पड़ता है। .

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द्वीप चाप

द्वीप चाप (island arc) एक ऐसा द्वीप समूह होता है जिसमें द्वीप, ज्वालामुखी व समुद्र के नीचे उभरी चट्टानें एक चाप (arc) के आकार में सुसज्जित होती हैं। यह द्वीप चाप अक्सर दो भौगोलिक प्लेटों की सीमा पर स्थित होते हैं और उस सीमा पर एक प्लेट के दूसरी प्लेट के नीचे दब जाने से निर्मित होते हैं। चढ़ी हुई प्लेट उठने से द्वीप बनते हैं और दबी हुई प्लेट की तरफ़ एक गहरी समुद्री खाई भी अक्सर अस्तित्व में होती है। प्लेटों की इस जूझन से मैग्मा भी उभरता है और अक्सर ज्वालामुखी भी द्वीप चापों में मिलते हैं। .

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निम्नस्खलन

भूविज्ञान में निम्नस्खलन या सबडक्शन (subduction) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें दो भौगोलिक तख़्तों की संमिलन सीमा पर एक तख़्ता दूसरे के नीचे फिसलकर दबने लगता है, यानि कि उसका दूसरे तख़्ते के नीचे स्खलन होने लगता है। निम्नस्खलन क्षेत्र (सबडक्शन ज़ोन, subduction zone) पृथ्वी के वे इलाक़े होते हैं जहाँ यह निम्नस्खलन चल रहा हो। अक्सर इन निम्नस्खलन क्षेत्रों में ज्वालामुखी, पर्वतमालाएँ, या (यदि यह समुद्री क्षेत्र में हो) महासागरीय गर्त (खाईयाँ या ट्रेन्च) बन जाते हैं। निम्नस्खलन की प्रक्रिया की गति चंद सेन्टीमीटर प्रति वर्ष ही होती है। एक तख़्ता दूसरे तख़्ते के नीचे दो से आठ सेमी प्रति वर्ष के औसत दर से खिसकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारतीय प्लेट के यूरेशियाई प्लेट की संमिलन सीमा पर भारतीय प्लेट के निम्नस्खलन से ही हिमालय व तिब्बत के पठार की उच्चभूमि का निर्माण हुआ है। .

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प्लेट विवर्तनिकी

प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonics) एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है जो पृथ्वी के स्थलमण्डल में बड़े पैमाने पर होने वाली गतियों की व्याख्या प्रस्तुत करता है। साथ ही महाद्वीपों, महासागरों और पर्वतों के रूप में धरातलीय उच्चावच के निर्माण तथा भूकम्प और ज्वालामुखी जैसी घटनाओं के भौगोलिक वितरण की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। यह सिद्धान्त बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में अभिकल्पित महाद्वीपीय विस्थापन नामक संकल्पना से विकसित हुआ जब 1960 के दशक में ऐसे नवीन साक्ष्यों की खोज हुई जिनसे महाद्वीपों के स्थिर होने की बजाय गतिशील होने की अवधारणा को बल मिला। इन साक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण हैं पुराचुम्बकत्व से सम्बन्धित साक्ष्य जिनसे सागर नितल प्रसरण की पुष्टि हुई। हैरी हेस के द्वारा सागर नितल प्रसरण की खोज से इस सिद्धान्त का प्रतिपादन आरंभ माना जाता है और विल्सन, मॉर्गन, मैकेंज़ी, ओलिवर, पार्कर इत्यादि विद्वानों ने इसके पक्ष में प्रमाण उपलब्ध कराते हुए इसके संवर्धन में योगदान किया। इस सिद्धान्त अनुसार पृथ्वी की ऊपरी लगभग 80 से 100 कि॰मी॰ मोटी परत, जिसे स्थलमण्डल कहा जाता है, और जिसमें भूपर्पटी और भूप्रावार के ऊपरी हिस्से का भाग शामिल हैं, कई टुकड़ों में टूटी हुई है जिन्हें प्लेट कहा जाता है। ये प्लेटें नीचे स्थित एस्थेनोस्फीयर की अर्धपिघलित परत पर तैर रहीं हैं और सामान्यतया लगभग 10-40 मिमी/वर्ष की गति से गतिशील हैं हालाँकि इनमें कुछ की गति 160 मिमी/वर्ष भी है। इन्ही प्लेटों के गतिशील होने से पृथ्वी के वर्तमान धरातलीय स्वरूप की उत्पत्ति और पर्वत निर्माण की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है और यह भी देखा गया है कि प्रायः भूकम्प इन प्लेटों की सीमाओं पर ही आते हैं और ज्वालामुखी भी इन्हीं प्लेट सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं। प्लेट विवर्तनिकी में विवर्तनिकी (लातीन:tectonicus) शब्द यूनानी भाषा के τεκτονικός से बना है जिसका अर्थ निर्माण से सम्बंधित है। छोटी प्लेट्स की संख्या में भी कई मतान्तर हैं परन्तु सामान्यतः इनकी संख्या 100 से भी अधिक स्वीकार की जाती है। .

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महासागरीय गर्त

ये महासागरीय बेसिन के सबसे नीचे भाग हैं और इनकी तली औसत महासागरीय नितल के काफी नीचे मिलती हैं। इनकी स्थिति सर्वत्र न मिलकर यत्र-तत्र बिखरे हुए रूप में मिलती हैं। वास्तव में ये महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे, पतले तथा गहरे अवनमन के क्षेत्र हैं। इनकी उतपत्ति महासागरीय तली में प्रथ्वी के क्रस्ट के वलन एवं भ्रंशन के परिणामस्वरूप मानी जाती हैं। अर्थात इनकी उतपत्ति विवर्तनिक क्रियाओं से हुई हैं। .

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संमिलन सीमा

भूवैज्ञानिक प्लेट विवर्तनिकी में संमिलन सीमा (convergent boundary) वह सीमा होती है जहाँ पृथ्वी के स्थलमण्डल (लिथोस्फ़ीयर) के दो भौगोलिक तख़्ते (प्लेटें) एक दूसरे की ओर आकर टकराते हैं या आपस में घिसते हैं। ऐसे क्षेत्रों में दबाव और रगड़ से भूप्रावार (मैन्टल) का पत्थर पिघलने लगता है और ज्वालामुखी तथा भूकम्पन घटनाओं में से एक या दोनों मौजूद रहते हैं। संमिलन सीमाओं पर या तो एक तख़्ते का छोर दूसरे तख़्ते के नीचे दबने लगता है (इसे निम्नस्खलन या सबडक्शन कहते हैं) या फिर महाद्वीपीय टकराव होता है।Butler, Rob (October 2001).

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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ज्वालामुखीय द्वीप

ज्वालामुखीय द्वीप (volcanic island) ऐसा द्वीप होता है जो किसी ज्वालामुखी के फटने से निकले हुए पत्थर व चट्टानों से उभरकर पानी की सतह से ऊपर निकल आए। ऐसे द्वीपों की ऊँचाई अक्सर अवसादन (सेडिमेन्टेशन) या मूँगे (कोरल) द्वारा बने द्वीपों से अधिक होती है, इसलिये इन्हें कभी-कभी ऊँचे द्वीप (high islands) भी कहा जाता है। इन द्वीपों को बनाने वाले ज्वालामुखी अक्सर द्वीप पर देखे जा सकते हैं हालांकि कभी-कभी वे मृत होते हैं या वायु-जल के प्रभाव से घिसे और वनस्पतियों से ढके जा चुके होते हैं। .

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