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जेट इंजन

सूची जेट इंजन

जेट इंजन जेट इंजन रॉकेट के सिद्धांत पर कार्य करने वाला एक प्रकार का इंजन है। आधुनिक विमान मुख्यतः जेट इंजन का ही प्रयोग करते है। रॉकेट और जेट इंजन का कार्य करने का सिद्धांत एक ही होता है लेकिन इस दोनो मे अंतर केवल यह है कि जहॉ रॉकेट अपना ईंधन स्वयं ढोहता है जेट इंजन आस पास की वायु को ही ईंधन के रूप मे उपयोग करता है। इसिलिये जेट इंजन पृथ्वी के वातावरण से बाहर जहॉ वायु नही होती है, काम नही कर सकते। अंग्रेजी मे इन्हे 'एयर ब्रिदिन्ग इंजन' (air breathing) कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है वायु मे साँस लेने वाले इंजन। .

4 संबंधों: पृथ्वी, रॉकेट, जेट नोदन, ईन्धन

पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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रॉकेट

अपोलो १५ अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण रॉकेट एक प्रकार का वाहन है जिसके उड़ने का सिद्धान्त न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया तथा बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया पर आधारित है। तेज गति से गर्म वायु को पीछे की ओर फेंकने पर रॉकेट को आगे की दिशा में समान अनुपात का बल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कार्य करने वाले जेट विमान, अंतरिक्ष यान एवं प्रक्षेपास्त्र विभिन्न प्रकार के राकेटों के उदाहरण हैं। रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग के साथ बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है। अंतरिक्ष यानों को वायुमंडल से ऊपर उड़ना होता है इसलिए वे अपना ईंधन एवं आक्सीजन लेकर उड़ते हैं। जेट विमान में केवल ईँधन रहता है। जब विमान चलना प्रारम्भ करता है तो विमान के सिरे पर बने छिद्र से बाहर की वायु इंजन में प्रवेश करती है। वायु के आक्सीजन के साथ मिलकर ईँधन अत्यधिक दबाव पर जलता है। जलने से उत्पन्न गैस का दाब बहुत अधिक होता है। यह गैस वायु के साथ मिलकर पीछे की ओर के जेट से तीव्र वेग से बाहर निकलती है। यद्यपि गैस का द्रव्यमान बहुत कम होता है किन्तु तीव्र वेग के कारण संवेग और प्रतिक्रिया बल बहुत अधिक होता है। इसलिए जेट विमान आगे की ओर तीव्र वेग से गतिमान होता है। रॉकेट का इतिहास १३वी सदी से प्रारंभ होता है। चीन में राकेट विद्या का विकास बहुत तेज़ी से हुआ और जल्दी ही इसका प्रयोग अस्त्र के रूप में किया जाने लगा। मंगोल लड़ाकों के द्वारा रॉकेट तकनीक यूरोप पहुँची और फिर विभिन्न शासकों द्वारा यूरोप और एशिया के अन्य भागों में प्रचलित हुई। सन १७९२ में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद अंग्रेज सेना ने रॉकेट के महत्त्व को समझा और इसकी तकनीक को विकसित कर विश्व भर में इसका प्रचार किया। स्पेस टुडे पर--> .

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जेट नोदन

जेट नोदन या क्षिपप्रणोदन (Jet Propulsion), नोदन की वह विधि है जिसमें वस्तु पर आगे की तरफ धक्का लगाने के लिए उस वस्तु की गति की विपरीत दिशा में पदार्थ का जेट (जैसे वायु या जल का जेट) का उपयोग किया जाता है। इसकी क्रियाविधि न्यूटन के गति के तृतीय नियम का पर आधारित है। यह एक प्रकार की प्रतिक्रिया प्रणोदन है अर्थात्‌ इसमें प्रतिक्रिया की शक्ति को काम में लाया जाता है। यह नोदन प्रायः जेट इंजनों में उपयोग में लाया जाता है। इसी प्रकार अंतरिक्ष यानों के लिऐ भी जेट नोदन सबसे अधिक उपयोग में लाया जाता है। बहुत से जन्तुओं में भी जेट नोदन से आगे बढ़ने की प्रक्रिया देखी जाती है, जैसे शीर्षपाद, संधिपाद प्राणी, समुद्री खरगोश, तथा मछलियाँ। न्यूटन के तीन प्रसिद्ध नियमों में से एक यह है कि हर कार्य की प्रतिक्रिया होती है। जैसे मेज के ऊपर यदि कोई भार दिया गया है, तो यह भार मेज को नीचे की ओर दबाने का कार्य कर रहा है और क्योंकि मेज इस भार को उठा रही है, इसलिए मेज का दबाव ऊपर की ओर है जिसके कारण भार उठा हुआ है। इसी ऊपरी दबाव को प्रतिक्रिया कहा जाता है और जहाँ भी कोई कार्य हो रहा हो, प्रतिक्रिया का किसी न किसी रूप में होना आवश्यक है। जब कोई बंदूक चलाई जाती है तो पीछे की ओर धक्का लगता है। यदि इस बंदूक के पीछे कोई गेंद रख दी जाए तो इस धक्के के कारण गेंद उछलकर बहुत दूर जा सकती है। प्रत्येक मशीन में क्रिया की शक्ति को ही काम में लाया जाता है और प्रतिक्रिया को सहन करने का प्रबंध किया जाता है, जैसे बंदूक में गोली को चलाया जाता है और उसके कारण धक्के को सहन किया जाता है। परंतु क्षिपप्रणोदन में इसी प्रतिक्रिया से वह काम लिया जाता है जो अच्छी मशीनें भी नहीं कर सकतीं। हर प्रकार की मोटर गाड़ियों, हवाई तथा पानी के जहाजों के चलाने में पिस्टन इंजनों का उपयोग होता चला आया है। दिन प्रति दिन इन इंजनों में नई नई खोज होती रही और इनसे अधिक से अधिक शक्ति प्राप्त होने लगी। इन मशीनों की और अधिक तीव्र चाल की माँगों ने इन इंजनों के आकल्पन को यहाँ पहुँच दिया कि अब इनकी और उन्नति संभव नहीं। साथ ही साथ इस उन्नति के कारण इनकी मशीनें इतनी उलझ गईं कि इनकी सुविधा से बनाना और उपयोग करना कठिन हो गया। इसलिए गैस टरबाइन का उपयोग हुआ, जिसके कारण हवाई तथा पानी के जहाजों की गति अत्यधिक बढ़ सकी। अब क्षिपप्रणोदन को दो प्रकार से लिया जा सकता है, एक तो गैस टरबाइन के साथ और दूसरा केवल क्षिप का ही उपयोग। यदि इस गैस के बाहर निकलने का छेद छोटा हो तो यह जोर के साथ बाहर निकलेगी, जिससे गाड़ी को धक्का लगेगा और वह आगे की ओर चलने लगेगी। जैसे जैसे गैस जोर से बाहर निकलेगी वैसे वैसे गाड़ी की चाल भी बढ़ती जायगी। यदि गाड़ी हलकी है और इनमें घर्षण नहीं होता। तो इसकी चाल अधिक तेज होगी। इस गाड़ी के इस प्रकार चलने का कारण यहाँ कहा जाता है कि यह गैस छेद से बाहर निकलती है तो बाहर की हवा से टकराती है और इसी कारण गाड़ी आगे बढ़ जाती है, परंतु वस्तुस्थिति यह नहीं है। यदि इसे बिना हवा के स्थान पर चलाया जाय तो इसकी चाल और भी तीव्र होगी। इसलिए यह केवल प्रतिक्रिया ही है इसको चलाती है। इस प्रकार पीछे निकलनेवाली क्षिप के दबाव के ही कारण यह शक्ति प्राप्त होती है। जहाँ अधिक चाल की आवश्यकता हुई वहाँ क्षिपप्रणोदन का उपयोग किया गया। वस्तुत: क्षिपप्रणोदन का व्यवहार वहीं पर सफल होगा जहाँ अधिक गति की आवश्यकता हो। युद्धकाल में समय की बचत के लिए क्षिप हवाई जहाज की उन्नति हुई और उड़नेवाले बमगोलों में इसका उपयोग हुआ। भूमि पर चलनेवाली मशीनों में घर्षण अधिक होता है। और वे तीव्र गति से नहीं चलाई जा सकतीं। अत: उनमें क्षिपप्रणोदन लाभकर सिद्ध नहीं हुआ। क्षिपप्रणोदन की वास्तविक उन्नति हवाई तथा पानी के जहाजों में हुई। इस प्रकार के हवाई जहाजों के हलके इंजनों और तीव्र चाल ने समय को इतना घटा दिया है कि संसार के एक कोने से दूसरे कोने में बहुत थोड़े समय में ही पहुँचा जा सकता है। क्षिपप्रणोदन के लिये सभी प्रकार के इंजनों के निमित्त एक ही नियम हैं। सब इंजन बाहर की हवा को अपने भीतर खींचते हैं और इसके भीतर हवा तथा ईंधन मिल जाते है, जहाँ दोनों जलकर फैलते है। इस फैलाव के कारण मशीन को धक्का लगता है। जलने के समय ईंधन और हवा की निष्पति अधिक होती है और जब मशीन चल पड़ती है तो हवा का मिश्रण अधिक हो जाता है। हवा तथा इंर्धन के जलने से जो गैस तैयार होती है उसको अधिक गति दी जाती है। गैस को अधिक गति उसी समय मिल सकती है जब उसे ठीक प्रकार से फैलने का अवसर दिया जाए। परंतु इस फैलाव में गैस की दाब घट जायगी, क्योंकि गैस को उसी हवा में छोड़ना है जहाँ से हवा को ईंधन के साथ मिलाने के लिये भीतर खींचा गया था। इसलिए दाब के घटने से पूरी शक्ति प्राप्त न होगी। जब तक गैस के पीछे पूरी दाब नहीं होगी, प्रणोदन समर्थ न होगा। अत: गैस के पीछे पूरी दाब प्राप्त करने के लिए संपीडक मशीन की व्यवस्था की जाती है। इस संपीडक को चलाने के लिए गैस टरबाइन लगाया जाता है। हवा को संपीडक बाहर से खींचकर टरबाइन की ओर पूरे बल केसाथ फेंकता है। टरबाइन तथा संपीडक के बीच ईंधन को इसी हवा में मिला दिया जाता है और इस मिश्रण को जलने का अवसर दिया जाता है। इसके जलने से आयतन तथा ताप एक ही दाब पर बढ़ते हैं। यह शक्ति इतनी होती है कि इससे टरबाइन भी चलाया जा सके और क्षिप के लिए भी इसमें पूरी गतिज ऊर्जा (kinetic energy) रह जाए। संपीडक हवा को खींचकर दहन कोठरियों को देता है, जहाँ ईंधन पहले से जलता हुआ मिलता है और यह गैस अधिक ताप पर टरबाइन को जाती है। टरबाइन इस गैस से चलता है और यह टरबाइन संपीडक को भी चलाता है। टरबाइन से निकलकर यह गैस क्षिप की भाँति फैलती हुई अधिक दाब पर बाहर निकलती है। चलने के समय यह टरबाइन दूसरे इंजनों से कम ईंधन लेता है, परंतु गति बढ़ जाने पर यह सब इंजनों से कम ईंधन लेता है। ऊँचाई पर पहुँचकर तो यह और भी कम ईंधन खर्च करता है। इस टरबाइन से चलनेवाले हवाई जहाज की गति आवश्यकतानुसार नहीं होती। समय की बचत और लंबी यात्राओं के लिये आवश्यक है कि हवाई जहाज का वजन कम हो और गति अधिक। यदि हवाई जहाज में केवल क्षिपप्रणोदन ही हो, जिसमें टरबाइन का उपयोग न हो तो ऐसा हो सकता है। इसकी मशीन में बहुत से कल पुरजों की आवश्यकता नहीं होती। इस मशीन के केवल तीन भाग है। पहला भाग आगे का है जिसमे हवा के लिए कपाट हैं और ईंधन की नली है जिसके द्वारा पंप से ईंधन भीतर फेंका जाता है। इन कपाटों के समय पर खुलने से हवा भीतर जाती है। यह कपाट उस समय बंद होते हैं जब ईंधन और हवा जलकर गैस बन जाती है। ईंधन के जलने पर धड़ाका होता है और गैस बाहर की ओर भागती है। दूसरा भाग दहन कोठरी का है और तीसरा भाग इंजन के पीछे की नाली का है, जिसकी लंबाई इंजन की शक्ति के अनुसार रखी जाती है। जब इसको चलाना होता है तो इसमें सबसे पहले ईंधन छिड़का जाता है और आग लगा दी जाती है। इस समय हवा के कपाट खुल जाते हैं और हवा भीतर आकर ईंधन के साथ मिल जाती है। मिलावट ठीक प्रकार से की जाती है। ईंधन और हवा का मिश्रण लगभग २ मिलीसेंकड में जल जाता है और इसका ताप २५० सें.

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ईन्धन

जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध्‌ धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत्‌ ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .

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