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चमराजेन्द्र वोडेयार

सूची चमराजेन्द्र वोडेयार

चामराजेन्द्र ओडियार चामराजेंद्र ओडियार (1863–94) मैसूर राज्य के अंतिम हिंदू राजा कारुगहल्ली वंशीय चामराज के पौत्र थे। महाराज कृष्णराज ने उन्हें गोद लिया था। यशस्वी पिता की २७ मार्च १८६८ की मृत्यु के उपरांत जब तक वे १८ वर्ष के पूर्ण वयस्क नहीं हो गए तब तक अंग्रेजों ने उनके नाम से शासन किया। महाराज स्वयं बड़े ही दूरदर्शी, न्यायप्रिय, उदार, निरभिमानी, मर्यादित तथा कुशल शासक थे। कलाकौशल तथा संगीत से विशेष प्रेम था। शासनप्रबंध भी उन्होंने बड़ी निपुणता से किया। उनके पूर्व मैसूर राज्य में भीषण अकाल पड़ चुका था। परंतु मितव्ययता और किसानों को विशेष रूप से उत्साहित कर उन्होंने अन्नसंकट दूर किया। शिक्षा में महाराज की विशेष अभिरुचि थी। बालकों की ही नहीं, बालिकाओं की शिक्षा की भी अधिक उन्नति हुई। आश्चर्य और गर्व की बात है कि भारतीय राज्यों में सबसे पहले उन्होंने ही मैसूर में प्रतिनिधि शासन की नीवं डाली। उन्होंने जिस विधानसभा की स्थापना की उसकी संख्या बढ़ती ही रही। अपने शासनकाल के अंतिम दिनों में स्वामी विवेकानंद को अमरीका भेजने का व्यय देकर; अपने को बड़ा ही लोकप्रिय शासक बना लिया था। अत: स्वामीजी ने विदेश जाकर हिंदू धर्म की जो इतनी प्रतिष्ठा जमाई उसमें उनका योगदान कम नहीं था। प्रसन्न हाकर स्वामी जी ने उनको तथा उनके परिवार को आशीर्वाद दिए थे। आशीर्वाद का वह पत्र बड़े महत्व का है। खेद है कि ऐसे लोकप्रिय शासक डिपथीरिया के भयानक रोग से ग्रस्त हो १८९४ ई. में चल बसे। अंग्रेज गवर्नर जनरलों ने उनके कुशल शासनप्रबंध की भूरि भूरि प्रशंसा की है। पति की मृत्य के उपरंत महारानी श्रीमती वाणीविलास ने संनिधान से संरक्षिका के रूप में बड़ी योग्यता से कार्य किया। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:मैसूर के राजा श्रेणी:मैसूर के लोग.

2 संबंधों: मैसूर, संगीत

मैसूर

मैसूर भारत के कर्नाटक प्रान्त का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह प्रदेश की राजधानी बंगलौर से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दक्षिण में तमिलनाडु की सीमा पर स्थित है। .

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संगीत

नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं। गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते हैं। .

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चामराजेन्द्र ओडियार

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