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अपघर्षी कर्तन

सूची अपघर्षी कर्तन

घूमता हुआ ग्राइंडर अपघर्षण से पदार्थ का कटना ग्राइण्डिंग (Grinding) या पेषण एक अपघर्षक मशीनिंग प्रक्रिया (abrasive machining process) है जो काटने के लिये शीण चक्र (grinding wheel) का उपयोग करती है। घर्षक या ग्राइण्डर लकड़ी, धातु तथा पत्थरों के प्रमार्जन तथा उनपर चमक पैदा करने के कामों में लाया जाता है। ये घर्षक प्राकृतिक तथा बनावटी पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है। कुरुबिंद (कोरंडम, corundum), एमरी, (emery), बालू (sand) तथा विविध प्रकार के पत्थर आदि प्राकृतिक घर्षक हैं, जिनका उपयोग पेषण पत्थर (सिलवट्ट / ग्राइन्डिंग स्लैब) और शाणचक्रों (grinding wheels) के बनाने में होता है। दूसरे प्राकृतिक घर्षक भी हैं, जो इतने लाभदायक और अधिक उपयोगी नहीं हैं। बनावटी घर्षकों में कारबोरंडम (carborundum), पिसा हुआ लोहा तथा इस्पात हैं। कारबोरंडम, कार्बन तथा कुरुबिंद को मिलाकर बनता है। इस्पात से एमरी भी बनाया जाता है। या तो इस्पात को पीसकर, या फिर इस्पात एमरी बनाकर घर्षक बनाते हैं। इस्पात एमरी बनाने का नियम यह है कि अच्छे इस्पात को अधिक तपाकर तुंरत जल में डाल देते हैं। इस ठंढे लोहे को यंत्रों द्वारा पीस लिया जाता है। इन प्राकृतिक तथा बनावटी घर्षकों को चिपकनेवाले पदार्थ के साथ मिलाकर पेषण पत्थर या शाणचक्र बनाए जाते हैं। इन चिपकनेवाले पदार्थों में काचित (Vitrified) सिलिकेट, चपड़ा (shellac), संश्लिष्ट रेजिन और रबर मुख्य हैं। विशेष भारी कामों के लिये, या ऐसे कामों के लिये जहाँ धातु को अधिक तीव्र गति पर घिसना होता है, काचित पदार्थ का उपयोग सबसे अधिक होता है। रबर ऐसे पतले चक्र बनाने के काम में लाया जाता है जिनसे किसी धातु को दो भागों में काटा जाता है। ये चक्र भंगुर नहीं होते और इस प्रकार इनके टूटने का डर नहीं रहता। घर्षक की संरचना पर ध्यान देना जरुरी है। संरचना से मतलब घर्षक के कणों की एक दूसरे से दूरी से है। दूर-दूर रखे गए कण मृदु और तन्य (ductile) धातु को ठीक प्रकार से काट सकते हैं, परंतु पास पास रखे गए कण कठोर तथा भंगुर धातु के लिये उपयुक्त होते हैं। पास पासवाले कण से अच्छी परिसज्जा (finish) होती है और समतल पर चमक आ जाती है। घर्षक के कणों के परिमाण का भी प्रभाव धातु पर पड़ता है। कठोर और भंगुर धातुएँ छोटे कण के घर्षक से अच्छी कटती हैं और इसी प्रकार ये घर्षक प्रमार्जन के लिय भी ठीक होते हैं। मोटे कण के घर्षकों से अधिक धातु कम समय में कट जाती है, परंतु अच्छी परिसज्जा नहीं हो पाती और धातु पर रेखाएँ पड़ जाती हैं। विभिन्न प्रकार के अपघर्षण कार्य श्रेणी:मशीनिंग.

12 संबंधों: चपड़ा, एमरी, तन्यता, धातु, बालू, रबड़, लकड़ी, लोहा, इस्पात, कार्बन, कुरुविन्द, अपघर्षी कर्तन

चपड़ा

विभिन्न रंग का चपड़ा चपड़ा (Shellac) कच्ची लाख से बनता है। समस्त संसार के उत्पादन का लगभग ९५ प्रति शत चपड़ा भारत में ही तैयार होता है। चपड़ा तैयार करने की वास्तविक विधि कच्ची लाख की प्रकृति, कुसुम (एक प्रकार की लाख) की किस्म अथवा बैसाखी और कतकी किस्म पर निर्भर करती है। चपड़े का सबसे अधिक (३० से ३५%) उपयोग ग्रामोफोन रेकार्ड बनाने में होता था। ग्रामोफोन रेकार्ड में २५ से ३० प्रतिशत तक चपड़ा रहता है। ऐसा अनुमान है कि प्रति वर्ष ११ से लेकर १३ हजार टन तक चपड़ा ग्रामोफोन रेकार्ड बनाने में खपता था। विद्युद्यंत्र, वार्निश और पालिश, हैट उद्योग, शानचक्रों के निर्माण, ठप्पा देने के चपड़े, काच और रबर जोड़ने के सीमेंट, बरसाती कपड़े, जलाभेद्य स्याही, पारदर्शक ऐनिलीन स्याही आदि का निर्माण तथा लकड़ी पर नक्काशी करने आदि में चपड़े का उल्लेखनीय उपयोग होता है। किसी भी संश्लिष्ट पदार्थ में वे सब गुण नहीं मिलते जो चपड़े में होते हैं। इससे चपड़े का स्थान कोई भी संश्लिष्ट पदार्थ अभी तक नहीं ले सका है, यद्यपि कुछ कामों के लिये संश्लिष्ट रेजिन समान रूप से उपयोगी सिद्ध हुए हैं। आजकल अनेक प्रकार के रेजिन और प्लास्टिक कृत्रिम रीति से बनने लगे हैं, जो देखने में चपड़े जैसे ही लगते हैं। .

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एमरी

नैक्सोस (ग्रीस) से प्राप्त एमरी नैक्सोस (ग्रीस) से प्राप्त एमरी शैल का एक टुकड़ा एमरी (Emery या corundite) एक गहरे रंग की दानेदार शैल है जिससे अपघर्षक चूर्ण (abrasive powder) बनाया जाता है। इसका नाम नैक्सोस द्वीप के केप एमरी (Cape Emeri) पर पड़ा है जहाँ सबसे पहले इस तरह की शैल प्राप्त हुई थी। इस शैल में मुख्यतः खनिज कोरण्डम (अलुमिनियम आक्साइड) होता है। .

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तन्यता

ताम्बा अपनी तन्यता के कारण, बिना टूटे, तारों में खींचा जा सकता है बेलनाकार छड़ के सिरों को विपरीत दिशा में खींचकर तानने पर:(क) भंगुर पदार्थ का भंजन (टूटना)(ख) तन्य पदार्थ का भंजन (ग) पूर्णतः तन्य पदार्थ का भंजन पदार्थ विज्ञान में तन्यता (ductility) किसी ठोस पदार्थ की तनाव डालने पर खिचकर आकार बदल लेने की क्षमता को बोलते हैं। तन्य पदार्थ (ductile materials) आसानी से खींचकर तार के रूप में बनाए जा सकते हैं, जबकि अतन्य (non-ductile) पदार्थ तनाव डालने पर असानी से नहीं खिंचते और अक्सर टूट जाते हैं। सोना और ताम्बा दोनों तन्य पदार्थों के उदाहरण हैं। इसी तरह आघातवर्धनीयता (Malleability) किसी पदार्थ की दबाव या आघात पड़ने पर बिना टूटे आकार बदल लेने की क्षमता को कहते हैं। मसलन चाँदी को पीटकर उसका मिठाई व पान पर चढ़ाने वाला वर्क इसलिए बनाया जा सकता है क्योंकि वह तत्व आघातवर्धनीय (malleable) है। .

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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बालू

लिबिया में बालू का ढ़ेर गोबी मरुस्थल के बालू का पास से लिया गया फोटो (1 x 1 सेमी) चट्टानें और अन्य धात्विक पदार्थ विविध प्राकृतिक और अप्राकृतिक साधनों से टूट फूटकर बजरी, बालू, गाद या चिकनी मिट्टी का रूप ले लेते हैं। यदि टुकड़े बड़े हुए तो बजरी और यदि छोटे हुए तो कणों, के विस्तार के हिसाब से उन्हें क्रमश: बालू (sand), गाद (silt) या मृत्तिका (चिकनी मिट्टी / clay) कहते हैं। .

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रबड़

रबर के वृछ का चित्रांकन रबड़ के वृक्ष भूमध्य रेखीय सदाबहार वनों में पाए जाते हैं, इसके दूध, जिसे लेटेक्स कहते हैं से रबड़ तैयार किया जाता हैं। सबसे पहले यह अमेजन बेसिन में जंगली रूप में उगता था, वहीं से यह इंगलैण्ड निवासियों द्वारा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में ले जाया गया। पहले इसका प्रयोग पेन्सिल के निशान मिटाने के लिये किया जाता था। आज यह विश्व की महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से है। इसका प्रयोग मोटर के ट्यूब, टायर, वाटर प्रूफ कपड़े, जूते तथा विभिन्न प्रकार के दैनिक उपयोग की वस्तुओं में होता है। थाईलैंड, इण्डोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन तथा श्रीलंका प्रमुख उत्पादक देश है। भारत का विश्व उत्पादन में चौथा स्थान है परन्तु घरेलु खपत अधिक होने के कारण यह रबर का आयात करता है। रबर का आदिमस्थान अमरीका है। अमरीका की एक आदि जाति 'माया' थी, जिसमें रबर के गेंद प्रचलित थे। कोलंबस ने सन्‌ 1493 ई. में वहाँ के आदिवासियों को रबर के बने गेदों से खेलते देखा था। ऐसा मालूम होता है कि दक्षिण पूर्व एशिया के आदिवासी भी रबर से परिचित थे और उससे टोकरियाँ, घड़े और इसी प्रकार की व्यवहार की अन्य चीजें तैयार करते थे। धीरे-धीरे रबर का प्रचार सारे संसार में हो गया और आज रबर आधुनिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। रबर के बने सामानों की संख्या और उपयोगिता आज इतनी बढ़ गई है कि उसके अभाव में काम चलाना असंभव समझा जाता है। रबर का उपयोग शांति और युद्धकाल में, घरेलू और औद्योगिक कार्मों में समान रूप से होता है। संसार के समस्त रबर के उत्पादन का प्राय: 78 प्रतिशत गाड़ियों के टायरों और ट्यूबों के बनाने में तथा शेष जूतों के तले और एड़ियाँ, बिजली के तार, खिलौने, बरसाती कपड़े, चादरें, खेल के सामान, बोतलों और बरफ के थैलों, सरजरी के सामान इत्यादि, हजारों चीजों के बनाने में लगता है। अब तो रबर की सड़के भी बनने लगी हैं, जो पर्याप्त टिकाऊ सिद्ध हुई है। रबर का व्यवसाय आज दिनोंदिन बढ़ रहा है। .

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लकड़ी

कई विशेषताएं दर्शाती हुई लकड़ी की सतह काष्ठ या लकड़ी एक कार्बनिक पदार्थ है, जिसका उत्पादन वृक्षों(और अन्य काष्ठजन्य पादपों) के तने में परवर्धी जाइलम के रूप में होता है। एक जीवित वृक्ष में यह पत्तियों और अन्य बढ़ते ऊतकों तक पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है, साथ ही यह वृक्ष को सहारा देता है ताकि वृक्ष खुद खड़ा रह कर यथासंभव ऊँचाई और आकार ग्रहण कर सके। लकड़ी उन सभी वानस्पतिक सामग्रियों को भी कहा जाता है, जिनके गुण काष्ठ के समान होते हैं, साथ ही इससे तैयार की जाने वाली सामग्रियाँ जैसे कि तंतु और पतले टुकड़े भी काष्ठ ही कहलाते हैं। सभ्यता के आरंभ से ही मानव लकड़ी का उपयोग कई प्रयोजनों जैसे कि ईंधन (जलावन) और निर्माण सामग्री के तौर पर कर रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में इसका उपयोग मुख्य रूप भवन, औजार, हथियार, फर्नीचर, पैकेजिंग, कलाकृतियां और कागज आदि बनाने में किया जाता है। लकड़ी का काल निर्धारण कार्बन डेटिंग और कुछ प्रजातियों में वृक्षवलय कालक्रम के द्वारा किया जाता है। वृक्ष वलयों की चौड़ाई में साल दर साल होने वाले परिवर्तन और समस्थानिक प्रचुरता उस समय प्रचलित जलवायु का सुराग देते हैं। विभिन्न प्रकार के काष्ठ .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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इस्पात

इस्पात (Steel), लोहा, कार्बन तथा कुछ अन्य तत्वों का मिश्रातु है। इसकी तन्य शक्ति (tensile strength) अधिक होती है जबकि प्रति टन मूल्य कम होने के कारण यह भवनों, अधोसंरचना, औजार, जलयान, वाहन, और मशीनों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। 'इस्पात' शब्द इतने विविध प्रकार के परस्पर अत्यधिक भिन्न गुणोंवाले पदार्थो के लिए प्रयुक्त होता है कि इस शब्द की ठीक-ठीक परिभाषा करना वस्तुत: असंभव है। परंतु व्यवहारत: इस्पात से लोहे तथा कार्बन (कार्बन) की मिश्र धातु ही समझी जाती है (दूसरे तत्व भी साथ में चाहे हों अथवा न हों)। इसमें कार्बन की मात्रा साधारणतया 0.002% से 2.14% तक होती है। किसी अन्य तत्व की अपेक्षा कार्बन, लोहे के गुणों को अधिक प्रभावित करता है; इससे अद्वितीय विस्तार में विभिन्न गुण प्राप्त होते हैं। वेसे तो कई अन्य साधारण तत्व भी मिलाए जाने पर लोहे तथा इस्पात के गुणों को बहुत बदल देते हैं, परंतु इनमें कार्बन ही प्रधान मिश्रधातुकारी तत्व है। यह लोहे की कठोरता तथा पुष्टता समानुपातिक मात्रा में बढ़ाता है, विशेषकर उचित उष्मा उपचार के उपरांत। इस्पात एक मिश्रण है जिसमें अधिकांश हिस्सा लोहा का होता है। इस्पात में 0.2 प्रतिशत से 2.14 प्रतिशत के बीच कार्बन होता है। लोहा के साथ कार्बन सबसे किफायत मिश्रक होता है, लेकिन जरूरत के अनुसार, इसमें मैंगनीज, क्रोमियम, वैंनेडियम और टंग्सटन भी मिलाए जाते हैं। कार्बन और दूसरे पदार्थ मिश्र-धातु को कठोरता प्रदान करते हैं। लौहे के साथ, उचित मात्रा में मिश्रक मिलाकर लोहे को आवश्यक कठोरता, तन्यता और सुघट्यता प्रदान किया जाता है। लौहे में जितना ज्यादा कार्बन मिलाते हैं इस्पात उतना ही कठोर बनता जाता है, कठोरता बढ़ने के साथ ही उसकी भंगुरता भी बढ़ती जाती है। 1149 डिग्री सेल्सियस पर लौहे में कार्बन की अधिकतम घुल्यता 2.14 प्रतिशत है। कम तापमान पर अगर लौहे में ज्यादा मात्रा में कार्बन हो तो इससे सिमेंटाइट का निर्माण होगा। लौहे में अगर इससे ज्यादा कार्बन हो तो यह कास्ट आयरन कहलाता है, क्योंकि इसका गलनाक कम हो जाता है। इस्पात, कास्ट आयरन से इसलिए भी अलग होता है क्योंकि इसमें दूसरे तत्वों की मात्रा अत्यंत कम होती है यानी 1 से तीन प्रतिशत के करीब.

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कार्बन

कार्बन का एक बहुरूप हीरा। कार्बन का एक अन्य बहुरूप ग्रेफाइट। पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में कार्बन या प्रांगार एक प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इस रासायनिक तत्त्व का संकेत C तथा परमाणु संख्या ६, मात्रा संख्या १२ एवं परमाणु भार १२.००० है। कार्बन के तीन प्राकृतिक समस्थानिक 6C12, 6C13 एवं 6C14 होते हैं। कार्बन के समस्थानिकों के अनुपात को मापकर प्राचीन तथा पुरातात्विक अवशेषों की आयु मापी जाती है। कार्बन के परमाणुओं में कैटिनेशन नामक एक विशेष गुण पाया जाता है जिसके कारण कार्बन के बहुत से परमाणु आपस में संयोग करके एक लम्बी शृंखला का निर्माण कर लेते हैं। इसके इस गुण के कारण पृथ्वी पर कार्बनिक पदार्थों की संख्या सबसे अधिक है। यह मुक्त एवं संयुक्त दोनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है। इसके विविध गुणों वाले कई बहुरूप हैं जिनमें हीरा, ग्रेफाइट काजल, कोयला प्रमुख हैं। इसका एक अपरूप हीरा जहाँ अत्यन्त कठोर होता है वहीं दूसरा अपरूप ग्रेफाइट इतना मुलायम होता है कि इससे कागज पर निशान तक बना सकते हैं। हीरा विद्युत का कुचालक होता है एवं ग्रेफाइट सुचालक होता है। इसके सभी अपरूप सामान्य तापमान पर ठोस होते हैं एवं वायु में जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस बनाते हैं। हाइड्रोजन, हीलियम एवं आक्सीजन के बाद विश्व में सबसे अधिक पाया जाने वाला यह तत्व विभिन्न रूपों में संसार के समस्त प्राणियों एवं पेड़-पौधों में उपस्थित है। यह सभी सजीवों का एक महत्त्वपूर्ण अवयव होता है, मनुष्य के शरीर में इसकी मात्रा १८.५ प्रतिशत होती है और इसको जीवन का रासायनिक आधार कहते हैं। कार्बन शब्द लैटिन भाषा के कार्बो शब्द से आया है जिसका अर्थ कोयला या चारकोल होता है। कार्बन की खोज प्रागैतिहासिक युग में हुई थी। कार्बन तत्व का ज्ञान विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं को भी था। चीन के लोग ५००० वर्षों पहले हीरे के बारे में जानते थे और रोम के लोग लकड़ी को मिट्टी के पिरामिड से ढककर चारकोल बनाते थे। लेवोजियर ने १७७२ में अपने प्रयोगो द्वारा यह प्रमाणित किया कि हीरा कार्बन का ही एक अपरूप है एवं कोयले की ही तरह यह जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस उत्पन्न करता है। कार्बन का बहुत ही उपयोगी बहुरूप फुलेरेन की खोज १९९५ ई. में राइस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर इ स्मैली तथा उनके सहकर्मियों ने की। इस खोज के लिए उन्हें वर्ष १९९६ ई. का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। .

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कुरुविन्द

विभिन्न रंग-रूप के कुरुविन्द कुरुविंद या कुरंड एक मणिभीय खनिज पत्थर है, जो संसार के विभिन्न स्थलों में पाया जाता है। इस पत्थर की दो विशेषाएँ हैं, एक तो यह कठोर होता है, दूसरे चमकदार। भारत में भी कुरुविंद प्राप्य है। असम की खासी और जयंतिया पहाड़ियों, झारखण्ड (हजारीबाग, सिंहभूम और मानभूम जिलों में), तमिलनाडु (सेलम जिले में), मध्यप्रदेश (पोहरा, भंडारा तथा रीवाँ), उड़ीसा तथा कर्नाटक प्रदेशों में यह पत्थर मिलता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और कश्मीर में प्राप्त होनेवाली कुरुविंद अधोवर्ती वर्ग (लोवर कग्रेड) का है। सामान्य कुरुविंद में कोई आकर्षक रंग नहीं होता। यह साधारणतया धूसर, भूरा, नीला और काला होता है। कुछ रंगीन कुरु्व्राद विशिष्ट आकर्षक रंगों के होने के कारण रत्न के रूप में, माणिक, नीलम, याकूत आदि नामों से बिकते हैं। थोड़े अपद्रव्यों के कारण इसमें रंग होता है। ये अपद्रव्य धातुओं के आक्साइड, विशेषत: क्रोमियम और लोहे के आक्साइड होते हैं। कुरुविंद की कठोरता ९ है, जबकि हीरे की कठोरता १० होती है। इसका विशिष्ट घनत्व ३.९४ से ४.१० होता है। यह ऐल्यूमिनियम का प्राकृतिक आक्साइड (Al2 O3) है, जिसके मणिभ षट्कोणीय तथा कभी-कभी बेलन या मृदंग की आकृति के होते हैं। अंगुठी में लगा हुआ कुरुविंद कुरुविंद का अभियांत्रिकी उद्योगों में तथा अपघर्षकों (abrasives) और शणचक्रों (ग्राइंडिंग ह्वील) के निर्माण में अधिकतर प्रयोग किया जाता है। पारदर्शक कुरुविंद का प्रयोग बहुमूल्य पत्थर की भाँति होता है। आजकल कुरुविंद का स्थान एक नवीन पदार्थ कार्बोरंडम ने ले लिया है, जो भारत में विदेशों से आयात होता है। .

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अपघर्षी कर्तन

घूमता हुआ ग्राइंडर अपघर्षण से पदार्थ का कटना ग्राइण्डिंग (Grinding) या पेषण एक अपघर्षक मशीनिंग प्रक्रिया (abrasive machining process) है जो काटने के लिये शीण चक्र (grinding wheel) का उपयोग करती है। घर्षक या ग्राइण्डर लकड़ी, धातु तथा पत्थरों के प्रमार्जन तथा उनपर चमक पैदा करने के कामों में लाया जाता है। ये घर्षक प्राकृतिक तथा बनावटी पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है। कुरुबिंद (कोरंडम, corundum), एमरी, (emery), बालू (sand) तथा विविध प्रकार के पत्थर आदि प्राकृतिक घर्षक हैं, जिनका उपयोग पेषण पत्थर (सिलवट्ट / ग्राइन्डिंग स्लैब) और शाणचक्रों (grinding wheels) के बनाने में होता है। दूसरे प्राकृतिक घर्षक भी हैं, जो इतने लाभदायक और अधिक उपयोगी नहीं हैं। बनावटी घर्षकों में कारबोरंडम (carborundum), पिसा हुआ लोहा तथा इस्पात हैं। कारबोरंडम, कार्बन तथा कुरुबिंद को मिलाकर बनता है। इस्पात से एमरी भी बनाया जाता है। या तो इस्पात को पीसकर, या फिर इस्पात एमरी बनाकर घर्षक बनाते हैं। इस्पात एमरी बनाने का नियम यह है कि अच्छे इस्पात को अधिक तपाकर तुंरत जल में डाल देते हैं। इस ठंढे लोहे को यंत्रों द्वारा पीस लिया जाता है। इन प्राकृतिक तथा बनावटी घर्षकों को चिपकनेवाले पदार्थ के साथ मिलाकर पेषण पत्थर या शाणचक्र बनाए जाते हैं। इन चिपकनेवाले पदार्थों में काचित (Vitrified) सिलिकेट, चपड़ा (shellac), संश्लिष्ट रेजिन और रबर मुख्य हैं। विशेष भारी कामों के लिये, या ऐसे कामों के लिये जहाँ धातु को अधिक तीव्र गति पर घिसना होता है, काचित पदार्थ का उपयोग सबसे अधिक होता है। रबर ऐसे पतले चक्र बनाने के काम में लाया जाता है जिनसे किसी धातु को दो भागों में काटा जाता है। ये चक्र भंगुर नहीं होते और इस प्रकार इनके टूटने का डर नहीं रहता। घर्षक की संरचना पर ध्यान देना जरुरी है। संरचना से मतलब घर्षक के कणों की एक दूसरे से दूरी से है। दूर-दूर रखे गए कण मृदु और तन्य (ductile) धातु को ठीक प्रकार से काट सकते हैं, परंतु पास पास रखे गए कण कठोर तथा भंगुर धातु के लिये उपयुक्त होते हैं। पास पासवाले कण से अच्छी परिसज्जा (finish) होती है और समतल पर चमक आ जाती है। घर्षक के कणों के परिमाण का भी प्रभाव धातु पर पड़ता है। कठोर और भंगुर धातुएँ छोटे कण के घर्षक से अच्छी कटती हैं और इसी प्रकार ये घर्षक प्रमार्जन के लिय भी ठीक होते हैं। मोटे कण के घर्षकों से अधिक धातु कम समय में कट जाती है, परंतु अच्छी परिसज्जा नहीं हो पाती और धातु पर रेखाएँ पड़ जाती हैं। विभिन्न प्रकार के अपघर्षण कार्य श्रेणी:मशीनिंग.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

शीण चक्र, ग्राइंडिंग

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