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गौतमी पुत्र शातकर्णी

सूची गौतमी पुत्र शातकर्णी

लगभग आधी शताब्दी की उठापटक तथा शक शासकों के हाथों मानमर्दन के बाद गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित कर लिया। गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे महान शासक था जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया अपितु एक विशाल साम्राज्य की भी स्थापना की। गौतमी पुत्र के समय तथा उसकी विजयों के बारें में हमें उसकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। उसके सन्दर्भ में हमें इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि उसने क्षत्रियों के अहंकार का मान-मर्दन किया था। उसका वर्णन शक, यवन तथा पहलाव शासको के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी। जोगलथम्बी (नासिक) समुह से प्राप्त नहपान के चान्दी के सिक्कें जिन्हे कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने दुबारा ढ़लवाया तथा अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु-लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जों यह प्रमाणित करतें है कि उसने शक शासकों द्वारा छीने गए प्रदेशों को पुर्नविजित कर लिया। नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17वें और 18वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर र्गातमी पुत्र ने अपरान्त, अनूप, सौराष्ट्र, कुकर, अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त गौतमी पुत्र का ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) आदि प्रदेशों पर भी अधिपत्य था। उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूवै में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था। उसने 'त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था। ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान को हराकर जीते गए क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए। गौतमी पुत्र से इन प्रदेशों को छीनने वाले संभवतः सीथियन जाति के ही करदामक वंश के शक शासक थे। इसका प्रमाण हमें टलमी द्वारा भूगोल का वर्णन करती उसकी पुस्तक से मिलता है। ऐसा ही निष्कर्ष 150 ई0 के प्रसिद्ध रूद्रदमन के जूनागढ़ के शिलालेख से भी निकाला जा सकता है। यह शिलालेख दर्शाता है कि नहपान से विजित गौतमीपुत्र शातकर्णी के सभी प्रदेशों को उससे रूद्रदमन ने हथिया लिया। ऐसा प्रतीत होता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने करदामक शकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर रूद्रदमन द्वारा हथियाए गए अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करने का प्रयास किया।.

10 संबंधों: नहपान, मालवा, यूनानी, रुद्रदमन, शक, सातवाहन, विदर्भ, काठियावाड़, क्लाडियस टॉलमी, कृष्णा नदी

नहपान

नहपान प्राचीन भारत के क्षहरातवंश का प्रतापी राजा था। इसके शासनकाल का निर्धारण विवादास्पद है। इसके सिक्कों पर कोई तिथि अंकित नहीं है। कुछ अभिलेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि इसने किसी अज्ञात संवत् के इकतालीसवें और छियालीसवें वर्ष में शासन किया। डुब्रेल के अनुसार इसमें विक्रमी संवत् निर्दिष्ट है। दिनेशचंद्र सरकार इस नहपान के अभिलेखों के संवत् का प्रारंभ ७८ ई. में मानते हैं। इस प्रकार नहपान के शासनकाल की ज्ञात तिथियाँ ११९ ई. और १२५ ई. निर्धारित की जा सकती है। नहपान के बहुत से चाँदी और ताँबे के सिक्के मिले हैं। जोगलथंबी (नासिक के पास) से प्राप्त एक जखीरे के ९२७० सिक्कों को, जो कि नहपान के हैं, गौतमीपुत्र शातकर्णि ने पुन: टंकित किया था। इससे यह पता चलता है कि नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि का समकालीन था। नहपान शक था। इस वंश का मूलस्थान पश्चिमोत्तर भारत प्रतीत होता है। संभवत: इसी कारण नहपान के सिक्कों पर खरोष्ठी अक्षरों का अंकन हुआ है। नहपान के पूर्वज कुषाणों, या पहलवें के प्रांतीय शासक के रूप में पश्चिम भारत का शासन करते थे और 'क्षत्रप' की उपाधि धारण करते थे। क्षहरातवंश का प्रथम ज्ञात राजा, भूमिक, क्षत्रप मात्र था और राजा की उपाधि नहीं धारण करता था। 'राजा' की उपाधि सर्वप्रथम नहपान के ही सिक्कों पर मिलती है जो उसी स्वंतत्र सत्ता और राजत्व का परिचायक है। नहपान की पूर्ण उपाधि 'रंखाोखरातस खतपस' थी। लगभग ११९ ई. से लगभग १२५ ई. के बीच नहपान ने अपने राज्य का अत्यधिक विस्तार कर लिया था। उसकी बेटी दक्षमित्रा का विवाह दीनकसुत उषवदात (शक) के साथ हुआ था। नहपान का जामाता उषवदात नहपान के साम्राज्यविस्तार और शासनसंचालन में बड़ा सहायक हुआ था। नहपान ने उसे मालवों के विरुद्ध उत्तमभद्रों की सहायता के लिए भेजा था। मालवों को पराजित करके उषवदात पुष्करक्षेत्र (अजमेर) तक गया था और संभवत: यहाँ तक नहपान की राजसत्ता का विस्तार किया था। नहपान के अमात्य अर्यमन् के एक अभिलेख से नहपान के साम्राज्य का अच्छा परिचय मिलता है। इस तथा अन्य अभिलेखों से ऐसा अनुमान होता है कि नहपान का शासन गोवर्धन आहार (नासिक), मामाल आहार (पूना), दक्षिण और उत्तरी गुजरात, कोंकण, भड़ौंच से सोपारा तक, कायूर आहार (बड़ौदा के पास), प्रभास (दक्षिणी काठियावाड़), दशपुर (मालवा में) तथा पुष्कर (अजमेर) क्षेत्रों पर था। अभिलेखों के प्राप्तिस्थान से ऐसा लगता है कि इसके प्रभावक्षेत्र में ताप्ती, बनास और चंबल की घाटियाँ भी थीं। किंतु १२५ ई. के लगभग नहपान का राजनीतिक प्रभाव घटने लगा। जोगलथंबी के उन सिक्कों से, जिन्हें गौतमीपुत्र शातकर्णि ने पुन: टंकित किया था, ऐसा विश्वास किया जाता है कि १२५ के लगभग, अर्थात्, अज्ञात तिथि ४६ के लगभग, नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि के द्वारा पराजित कर दिया गया होगा। संभव है कि नहपान के शासन का अंत भी इसी समय हो गया हो, क्योंकि इसके बाद नहपान के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिलता। इस तथ्य की पुष्टि गौतमीपुत्र शातकर्णि की माता बलश्री के नासिक अभिलेख से भी होती है। इस अभिलेख के पटृट में कहा गया है कि (गौतमीपुत्र) ने खखरातों की सत्ता का विनाश कर दिया। (खखरातवसनिर्विशेषकरस)। इसी अभिलेख में उन प्रांतों का भी उल्लेख है, जो कभी नहपान के अधीन थे किंतु इस विजय के बाद गौतमीपुत्र शातकर्णि के हाथों लगे। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

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मालवा

1823 में बने एक एक ऐतिहासिक मानचित्र में मालवा को दिखाया गया है। विंध्याचल का दृश्य, यह मालवा की दक्षिणी सीमा को निर्धारित करता है। इससे इस क्षेत्र की कई नदियां निकली हैं। मालवा, ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग से गठित यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है। मालवा का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है। यद्यपि इसकी राजनीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस छेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति एंव भाषा का विकास हुआ है। मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है। इसे प्राचीनकाल में 'मालवा' या 'मालव' के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में मध्यप्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई ४९६ मी.

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यूनानी

यूनानी का अर्थ यूनान-सम्बन्धी -- लोग, भाषा, संस्कृति अत्यदि। यूनानियों ने भारत को इंडिया कहा .

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रुद्रदमन

रुद्रदमन रुद्रदमन् (r. 130–150) भारत के पश्चिमी क्षत्रप वंश का एक शक राजा था। .

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शक

सरमतिया मध्य एशिया का भौतिक मानचित्र, पश्चिमोत्तर में कॉकस से लेकर पूर्वोत्तर में मंगोलिया तक स्किथियों के सोने के अवशेष, बैक्ट्रिया की तिलिया तेपे पुरातन-स्थल से ३०० ईसापूर्व में मध्य एशिया के पज़ियरिक क्षेत्र से शक (स्किथी) घुड़सवार शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली स्किथी लोगों की एक जनजाति या जनजातियों का समूह था। इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन रहा है क्योंकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका अलग-अलग विवरण देते हैं। फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि 'सभी शक स्किथी थे, लेकिन सभी स्किथी शक नहीं थे', यानि 'शक' स्किथी समुदाय के अन्दर के कुछ हिस्सों का जाति नाम था। स्किथी विश्व के भाग होने के नाते शक एक प्राचीन ईरानी भाषा-परिवार की बोली बोलते थे और इनका अन्य स्किथी-सरमती लोगों से सम्बन्ध था। शकों का भारत के इतिहास पर गहरा असर रहा है क्योंकि यह युएझ़ी लोगों के दबाव से भारतीय उपमहाद्वीप में घुस आये और उन्होंने यहाँ एक बड़ा साम्राज्य बनाया। आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलंडर 'शक संवत' कहलाता है। बहुत से इतिहासकार इनके दक्षिण एशियाई साम्राज्य को 'शकास्तान' कहने लगे हैं, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सिंध, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा और अफ़्ग़ानिस्तान शामिल थे।, Vesta Sarkhosh Curtis, Sarah Stewart, I.B.Tauris, 2007, ISBN 978-1-84511-406-0,...

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सातवाहन

सातवाहन प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसने ईसापूर्व २३० से लेकर दूसरी सदी (ईसा के बाद) तक केन्द्रीय दक्षिण भारत पर राज किया। यह मौर्य वंश के पतन के बाद शक्तिशाली हुआ था। इनका उल्लेख ८वीं सदी ईसापूर्व में मिलता है। अशोक की मृत्यु (सन् २३२ ईसापूर्व) के बाद सातवाहनों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। सीसे का सिक्का चलाने वाला पहला वंश सातवाहन वंश था, और वह सीसे का सिक्का रोम से लाया जाता था। .

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विदर्भ

विदर्भ महाराष्ट्र प्रांत का एक उपक्षेत्र है। इस उपक्षेत्र में कुल 11 जिले है। महाराष्ट्र में कोयला खदान और मूल्यवान मँगणिज कि खदाने विदर्भ में हि बहुतायत में पाये जाते हैं। कोयला खदानो कि वजह से हि विदर्भ में चंद्रपूर,कोराडी, खापरखेडा, मौदा और तिरोडा में औष्णिक विद्युत निर्माण संयंत्र पाये जाते हैं जिससे संपुर्ण महाराष्ट्र विद्युत आपूर्ती में लाभान्वित होता है। इसके अलावा महाराष्ट्र कि ज्यादातर वनसंपदा विदर्भ क्षेत्र में हि मौजूद है। इसके व्यतिरिक्त चावल उत्पादन में तुमसर मंडी विदर्भ में हि है जो महाराष्ट्र में सबसे बड़ी कृषी उत्पाद कि मंडी का सम्मान पाती है। प्रसिद्ध बासमती चावल का उत्पादन भी इसी क्षेत्र में होता है। विदर्भ के हि चंद्रपूर जिले में महाराष्ट्र के कुल सिमेंट कारखानो में सर्वाधिक कारखाने अकेले चंद्रपूर जिले में है। विदर्भ में मराठी और हिन्दी बोली जाती हैं। श्रेणी:महाराष्ट्र का भूगोल.

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काठियावाड़

काठियावाड़ (કાઠીયાવાડ) पश्चिम भारत में एक प्रायद्वीपहै। ये गुजरात का भाग है, जिसके उत्तरी ओर कच्छ के रण की नम भूमि, दक्षिण और पश्चिम की ओर अरब सागर और दक्षिण-पश्चिम की ओर कैम्बे की खाड़ी है। इस क्षेत्र की दो प्रमुख नदियाँ भादर और शतरंजी हैं जो क्रमश: पश्चिम और पूर्व की ओर बहती हैं। इस प्रदेश का मध्यवर्ती भाग पहाड़ी है। इस स्थान का नाम राजपुत शासक वर्ग की काठी जाति से पड़ा है। प्रतिहार शासक सम्राट मिहिर भोज के काल में क्षत्रिये प्रतिहार की पश्चिमी सीमा काठियावाड़ और पूर्वी सीमा बंगाल की खाड़ी थी। हड्डोला शिलालेखों से यह सुनिश्चित होता है कि क्षत्रिये प्रतिहार शासकों का शासन सम्राट महिपाल २ के काल तक भी उत्कर्ष पर रहा। काठिय़ावाड़ के वर्तमान जिले काठियावाड़ क्षेत्र के प्रमुख शहरों में प्रायद्वीप के मध्य में मोरबी राजकोट, कच्छ की खाड़ी में जामनगर, खंबात की खाड़ी में भावनगर मध्य-गुजरात में सुरेंद्रनगर और वधावन, पश्चिमी तट पर पोरबंदर और दक्षिण में जूनागढ़ हैं। पुर्तगाली उपनिवेश का भाग रहे और वर्तमान में भारतीय संघ में जुड़े दमन और दीव संघ शासित क्षेत्र काठियावाड़ के दक्षिणी छोर पर हैं। सोमनाथ का शहर और मंदिर भी दक्षिणी छोर पर स्थित हैं। इस मंदिर में हिन्दू धर्म के बारह ज्योतिर्लिंगोंमें से एक ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इसके अलावा दूसरा प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ द्वारका भी यहीं स्थित है, जहां भगवान कृष्ण ने अपनी नगरी बसायी थी। पालिताना प्रसिद्ध जैन तीर्थ है, जहां पर्वत शिखर पर सैंकड़ो मंदिर बने हैं। विश्व का सबसे बड़ा शिपब्रेकिंग यार्ड अलंग और विश्व की सबसे बड़ी जामनगर तेल शोधनी (ऑयल रिफ़ाइनरी) भी इस क्षेत्र में ही स्थित हैं। गिर वन स्थित सासन भी यहीं है, जहां एशिया के एशियाटिक जाति के प्रसिद्ध गिर लॉयन का प्राकृतिक आवास है और सिंह सफ़ारी का भी आयोजन होता है। यहाँ चूने का पत्थर पर्याप्त रूप में मिलता है जो आर्थिक दृष्टि से महत्वूपर्ण है। इस प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर पर दीव स्थित है। .

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क्लाडियस टॉलमी

टाँलेमी एक प्रख्यात ज्योतिर्विद थे। उन्होंने पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में चन्द्रमा को जो समय लगता है उसका निर्धारण किया। उन्होंने प्रकाश के नियम का भी प्रतिपादन किया। क्लाडियस टॉलमी एक प्रमुख भूगोलवेत्ता था। वह मिस्त्र का निवासी था। उसका जन्म टॉलेमस सरसी या पेलुसियम मे हुवा (जीवन काल ९० से १६८ ई. या १०० से १७८ ई.)। टॉलमी नें अपना अधिकांश गणित व प्र्क्षेप निर्माण सम्बन्धी सचना कार्य एवं पेक्षण सिकन्दरिया के महान पुस्तकालय में ३-४ दशकों में पूरे किए। उसने सिकन्दरिया के निकट के एक नगर नोरस से कई खगोलिए बेध किए। .

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कृष्णा नदी

विजयवाड़ा में बहती कृष्णा कृष्णा भारत में बहनेवाली एक नदी है। यह पश्चिमी घाट के पर्वत महाबलेश्वर से निकलती है। इसकी लम्बाई प्रायः 1290 किलोमीटर है। यह दक्षिण-पूर्व में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। कृष्णा नदी की उपनदियों में प्रमुख हैं: तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा.

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