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गीत

सूची गीत

स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है। गीत, सहित्य की एक लोकप्रिय विधा है। इसमें एक मुखड़ा तथा कुछ अंतरे होते हैं। प्रत्येक अंतरे के बाद मुखड़े को दोहराया जाता है। गीत को गाया भी जाता है। .

8 संबंधों: झपताल, ठुमरी, धमार, नाटक, पंजाबी भाषा, भरत, मृदंग, लोकगीत

झपताल

झपताल-यह दस मात्राओं की ताल है। ‌× २ ० ३ धि ना धि धि ना ति ना धि धि ना श्रेणी:नृत्य.

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ठुमरी

ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है। इसमें रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है। अर्थात जिसमें राग की शुद्धता की तुलना में भाव सौंदर्य को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विविध भावों को प्रकट करने वाली शैली है जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है साथ ही यह रागों के मिश्रण की शैली भी है जिसमें एक राग से दूसरे राग में गमन की भी छूट होती है और रंजकता तथा भावाभिव्यक्ति इसका मूल मंतव्य होता है। इसी वज़ह से इसे अर्ध-शास्त्रीय गायन के अंतर्गत रखा जाता है। .

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धमार

धमार का जन्म ब्रज भूमि के लोक संगीत में हुआ। इसका प्रचलन ब्रज के क्षेत्र में लोक- गीत के रूप में बहुत काल से चला आता है। इस लोकगीत में वर्ण्य- विषय राधा- कृष्ण के होली खेलने का था। रस शृंगार था और भाषा थी ब्रज। ग्रामों के उन्मूक्त वातावरण में द्रुत गति के दीपचंदी, धुमाली और कभी अद्धा जैसी ताल में युवक- युवतियों, प्रौढ़ और वृद्धों, सभी के द्वारा यह लोकगीत गाए और नाचे जाते थे। ब्रज के संपूर्ण क्षेत्र में रसिया और होली जन-जन में व्याप्त है। पंद्रहवीं शताब्दी के अंत और सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में उस समय के संगीत परिदृश्य को देखते हुए मानसिंह तोमर और नायक बैजू ने धमार गायकी की नींव डाली। उन्होंने होरी नामक लोकगीत ब्रज का लिया और उसको ज्ञान की अग्नि में तपाकर ढ़ाल दिया। प्राचीन चरचरी प्रबंध के सांचे में, जो चरचरी ताल में ही गाए जाते थे। होरी गायन का प्रिय ताल आदि चाचर (चरचरी) दीपचंदी बन गया। होरी की बंदिश तो पूर्ववत रही, वह विभिन्न रागों में निबद्ध कर दी गई। गायन शैली वही लोक संगीत के आधार पर पहले विलंबित अंत में द्रुत गति में पूर्वाधरित ताल से हट कर कहरवा ताल में होती है और श्रोता को रसाविभूत कर देती है। नायक बैजू ने धमारों की रचना छोटी की। इसकी गायन शैली का आधार ध्रुवपद जैसा ही रखा गया। वर्ण्य-विषय मात्र फाग से संबंधित और रस शृंगार था, वह भी संयोग। वियोग शृंगार को धमार बहुत कम स्थान प्राप्त हैं। इस शैली का उद्देश्य ही रोमांटिक वातावरण उत्पन्न करना था। ध्रुवपद की तरह आलाप, फिर बंदिश गाई जाती थी। पद गायन के बाद लय- बाँट प्रधान उपज होती थी। विभिन्न प्रकार की लयकारियों से गायक श्रोताओं को चमत्कृत करता था। पखावजी के साथ लड़ंत होती थी। सम की लुकाछिपी की जाती थी। श्रेष्ठ कलाकार गेय पदांशों के स्वर सन्निवेशों में भी अंतर करके श्रोताओं को रसमग्न करते थे। इस प्रकार धमार का जन्म हुआ और यह गायन शैली देश भर के संगीतज्ञों में फैल गई। गत एक शताब्दी में धमार के श्रेष्ठ गायक नारायण शास्री, धर्मदास के पुत्र बहराम खाँ, पं॰ लक्ष्मणदास, गिद्धौर वाले मोहम्मद अली खाँ, आलम खाँ, आगरे के गुलाम अब्बास खाँ और उदयपुर के डागर बंधु आदि हुए हैं। ख्याल गायकों के वर्तमान घरानों में से केवल आगरे के उस्ताद फैयाज खाँ नोम-तोम से अलाप करते थे और धमार गायन करते थे। इसी प्रकार समय के साथ-साथ मृदंग और वीणा वादन में भी परिवर्तन होता गया। मृदंग और वीणा प्राचीन काल से ही अधिकांशतया गीतानुगत ही बजाई जाती थीं। मुक्त वादन भी होता था। मृदंग और वीणावादकों ने भी ध्रुवपद और धमार गायकी के अनुरुप अपने को ढाला। वीणा में ध्रुवपदानुरुप आलाप, जोड़ालाप, विलंबित लय की गतें, तान, परनें और झाला आदि बजाए गए। धमार के अनुरुप पखावजी से लय- बाँट की लड़ंत शुरु हुई। पखावजी ने भी ध्रुवपद- धमार में प्रयुक्त तालों में भी अभ्यास किया, साथ ही संगत के लिए विभिन्न तालों और लयों की परनों को रचा। .

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नाटक

नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है। नाट्यशास्त्र में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है। .

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पंजाबी भाषा

पंजाबी (गुरमुखी: ਪੰਜਾਬੀ; शाहमुखी: پنجابی) एक हिंद-आर्यन भाषा है और ऐतिहासिक पंजाब क्षेत्र (अब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित) के निवासियों तथा प्रवासियों द्वारा बोली जाती है। इसके बोलने वालों में सिख, मुसलमान और हिंदू सभी शामिल हैं। पाकिस्तान की १९९८ की जनगणना और २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार, भारत और पाकिस्तान में भाषा के कुल वक्ताओं की संख्या लगभग ९-१३ करोड़ है, जिसके अनुसार यह विश्व की ११वीं सबसे व्यापक भाषा है। कम से कम पिछले ३०० वर्षों से लिखित पंजाबी भाषा का मानक रूप, माझी बोली पर आधारित है, जो ऐतिहासिक माझा क्षेत्र की भाषा है। .

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भरत

कोई विवरण नहीं।

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मृदंग

मृदंग (मृदंग,மிருதங்கம், ಮೃದಂಗ., മൃദംഗം, మృదంగం) दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है। यह कर्नाटक संगीत में प्राथमिक ताल यंत्र होता है। इसे मृदंग खोल, मृदंगम आदि भी कहा जाता है। गांवों में लोग मृदंग बजाकर कीर्तन गीत गाते है। इसका एक सिरा काफी छोटा और दूसरा सिरा काफी बड़ा (लगभग दस इंच) होता है। मृदंग एक बहुत से प्राचीन वाद्य है। इनको पहले मिट्टी से ही बनाया जाता था लेकिन आजकल मिट्टी जल्दी फूट जने और जल्दी खराब होने के कारण लकड़ी का खोल बनाने लग गये हैं। इनको उपयोग, ये ढोलक ही जैसे होते है। बकरे के खाल से दोनों तरफ छाया जाता है इनको, दोनों तरफ स्याही लगाया जाता है। हाथ से आघात करके इनको भी बजाया जाता है। छत्तीसगढ़ में नवरात्रि के समय देवी पूजा होती है, उसमें एक जस गीत गाये जाते हैं। उसमें इनका उपयोग होता है। .

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लोकगीत

लोकनृत्य के साथ लोकगीत लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता है। शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता हॅ, वही लोकगीत है। इस प्रकार लोकगीत शब्द का अर्थ हॅ- १- लोक में प्रचलित गीत २- लोक-रचित गीत ३- लोक-विषयक गीत कजरी, सोहर, चैती, लंगुरिया आदि लोकगीतों की प्रसिद्ध शैलियाँ हैं। .

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