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गवर्न्मेंट आफ इंडिया एक्ट १८५८

सूची गवर्न्मेंट आफ इंडिया एक्ट १८५८

यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद संयुक्त राजशाही (यूनाइटेड किंगडम) ब्रिटेन सरकार की संसद द्वारा पास किया गया अधिनियम था। .

9 संबंधों: पाकिस्तान का इतिहास, बांग्लादेश का इतिहास, ब्रिटिश राज, ब्रिटेन, भारत परिषद अधिनियम, 1909, भारत सरकार अधिनियम, १९३५, भारत का इतिहास, यूनाइटेड किंगडम, ईस्ट इण्डिया कम्पनी

पाकिस्तान का इतिहास

पाकिस्तान शब्द का जन्म सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली के द्वारा हुआ। इसके पहले सन् 1930 में शायर मुहम्मद इक़बाल ने भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रान्तों -सिन्ध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद)- को मिलाकर एक अलग राष्ट्र का मांग की थी। 1947 अगस्त में भारत के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ। उस समय पाकिस्तान में वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों सम्मिलित थे। सन् 1971 में भारत के साथ हुए युद्ध में पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा (जिसे उस समय तक पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था) बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र हो गया। आज का पाकिस्तानी भूभाग कई संस्कृतियों का गवाह रहा है। आज के पाकिस्तानी भूभाग में ईसा के 3000 साल पहले सिन्धुघाटी सभ्यता का जन्म हुआ। यह 1500 ईसापूर्व के आसपास नष्ट हो गई और 1200 ईसापूर्व के आसपास आर्यों की एक शाखा भारत आई। ईसापूर्व सन् 543 में यह फारस के हखामनी शासकों के साम्राज्य का अंग बना। सिकन्दर ने 330 ईसापूर्व के आसपास हखामनी शासक दारा तृतीय को हराकर उसके सम्पूर्ण साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। उसके साम्राज्य को उसके सेनापतियों ने बाँट लिया और इस क्षेत्र मे एक अभूतपूर्व यूनानी-बैक्टियन संस्कृति का अंग बना। इसके बाद यह मौर्य साम्राज्य का अंग बना। इसके बाद शक (सीथियनों की भारतीय शाखा) और फिर कुषाणों की शाखा यहाँ आई। सन् 712 में फारस के एक अरब सेनापति मुहम्मद-बिन-क़ासिम ने सिन्ध के नरेश को हरा दिया। इसके बाद यहाँ इस्लाम का आगमन हुआ। इस क्षेत्र पर गजनवियों का अधिकार बारहवीं सदी में हुआ और 1206 में यह दिल्ली सल्तनत का अंग बन गया। सन् 1526 में दिल्ली की सत्ता पर मुगलों का अधिकार हो गया और 1857 के बाद यहाँ अंग्रेजों का शासन आया। 14 अगस्त 1947 को यह स्वतंत्र हुआ। .

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बांग्लादेश का इतिहास

बांग्लादेश में सभ्यता का इतिहास काफी पुराना रहा है। आज के भारत का अंधिकांश पूर्वी क्षेत्र कभी बंगाल के नाम से जाना जाता था। बौद्ध ग्रंथो के अनुसार इस क्षेत्र में आधुनिक सभ्यता की शुरुआत ७०० इसवी इसा पू.

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ब्रिटिश राज

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में "इंडिया" कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, "ब्रिटिश इंडिया") और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी। .

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ब्रिटेन

ब्रिटेन शब्द का प्रयोग हालाँकि आम तौर पर हिंदी में संयुक्त राजशाही अर्थात् यूनाइटेड किंगडम देश का बोध करने के लिए होता है, परंतु इसका उपयोग अन्य सन्दर्भों के लिए भी हो सकता है.

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भारत परिषद अधिनियम, 1909

भारत परिषद अधिनियम 1909 (Indian Councils Act 1909) या मार्ले-मिन्टो सुधार भारत परिषद अधिनियम 1909 (Indian Councils Act 1909) को मार्ले-मिन्टो सुधारों के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस समय मार्ले भारत सचिव एवं लार्ड मिन्टो वायसराय थे। इन्हीं दोनों के नाम पर इसे मार्ले-मिन्टो सुधारों की संज्ञा दी गयी। सरकार द्वारा इन सुधारों को प्रस्तुत करने के पीछे मुख्य दो घटनाये थीं। अक्टूबर 1906 में आगा खां के नेतृत्व में एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल वायसराय लार्ड मिन्टो से मिला और मांग की कि मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की जाए तथा मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये। प्रतिनिधिमंडल ने तर्क दिया कि ‘उनकी साम्राज्य की सेवा’ के लिए उन्हें पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व दिया जाये। 1906 में ढाका में नवाब सलीमुल्लाह, नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और वकार-उल-मुल्क द्वारा मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी थी। लार्ड मिन्टो से मिलने वाला यह प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो गया। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को साम्राज्य के प्रति निष्ठा प्रकट करने की शिक्षा दी तथा मुस्लिम बुद्धिजीवियों को कांग्रेस से पृथक रखने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष सुधारों की मांग करने, नरम दल को संतुष्ट करने, अतिवादियों के प्रभाव को कम करने तथा क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को रोकने के लिये भी सुधार किया जाना आवश्यक हो गया था। मुख्य सुधारः 1909 के मार्ले-मिन्टो सुधारों की मुख्य धारायें इस प्रकार थीं- इस अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि कर दी गयी। प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी बहुमत स्थापित किया गया। किंतु गैर-सरकारी सदस्यों में नामांकित एवं बिना चुने सदस्यों की संख्या अधिक थी, जिसके कारण निर्वाचित सदस्यों की तुलना में अभी भी उनकी संख्या अधिक बनी रही। सुमित सरकार के अनुसार, केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा में 60 सदस्य और 9 पदेन सदस्य होते थे। इन 69 सदस्यों में से 37 सरकारी अधिकारी और 32 गैर-सरकारी सदस्य थे। 32 गैर-सरकारी सदस्यों में से 5 नामजद एवं 27 चुने हुये सदस्य थे। निर्वाचित 27 सदस्यों में से 8 सीटें पृथक् निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत मुस्लिमों के लिए आरक्षित थीं, जबकि 4 सीटें ब्रिटिश पूंजीपतियों के लिए तथा 2 सीटें जमींदारों के लिए आरक्षित थीं और 13 सीटें सामान्य निर्वाचन के अंतर्गत आती थीं। निर्वाचित सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते थे। स्थानीय निकायों से निर्वाचन परिषद का गठन होता था। ये प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों का निर्वाचन करती करते थे। प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्य केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्तों का निर्वाचन करते थे। इस अधिनियम द्वारा मुसलमानों के लिये पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू की गयी। साथ ही मुसलमानों को प्रतिनिधित्व के मामले में विशेष रियायत दी गयी। उन्हें केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषद में जनसंख्या के अनुपात में अधिक प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया। मुस्लिम मतदाताओं के लिये आय की योग्यता को भी हिन्दुओं की तुलना में कम रखा गया। व्यवस्थापिका सभाओं के अधिकारों में वृद्धि की गयी। सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखने, उनको कुछ विषयों पर मतदान करने, प्रश्न पूछने, साधारण प्रश्नों पर मतदान करने, साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया। व्यवस्थापिकाओं को इतने अधिकार देने के पश्चात भी गवर्नर जनरल तथा गवर्नरों को व्यवस्थापिकाओं में प्रस्तावों को ठुकराने का अधिकार था। गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। पहले भारतीय सदस्य के रूप में सत्येंद्र सिन्हा को नियुक्त किया गया। सुधार की समीक्षा 1909 के सुधारों से भारतीय राजनैतिक प्रश्न का न कोई हल हो सकता था न ही इससे वह निकला। अप्रत्यक्ष चुनाव, सीमित मताधिकार तथा विधान परिषद की सीमित शक्तियों ने प्रतिनिधि सरकार को मिश्रण सा बना दिया। लार्ड मार्ले ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत स्वशासन के योग्य नहीं है। कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष स्वशासन की मांग करने के पश्चात भी मार्ले ने स्पष्ट तौर पर उसे ठुकरा दिया। उसने भारत में संसदीय शासन व्यवस्था या उत्तरदायी सरकार की स्थापना का स्पष्ट विरोध किया। उसने कहा ‘यदि यह कहा जाये कि सुधारों के इस अध्याय से भारत में सीधे अथवा अवश्यंभावी संसदीय व्यवस्था स्थापित करने अथवा होने में सहायता मिलेगी तो मेरा इससे कोई संबंध नहीं होगा’ । वास्तव में 1909 के सुधारों का मुख्य उद्देश्य उदारवादियों को दिग्भ्रमित कर राष्ट्रवादी दल में फूट डालना तथा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को अपना कर राष्ट्रीय एकता को विनष्ट करना था। सरकार इन सुधारों द्वारा नरमपंथियों एवं मुसलमानों को लालच देकर राष्ट्रवाद के उफान को रोकना चाहता थी। सरकार एवं मुस्लिम नेताओं ने जब भी द्विपक्षीय वार्ता की, उसका मुख्य विषय पृथक निर्वाचन प्रणाली ही रहा किंतु वास्तव में इस व्यवस्था से मुसलमानों का छोटा वर्ग ही लाभान्वित हो सका। इस अधिनियम के अंतर्गत जो पद्धति अपनाई गयी वह इतनी अस्पष्ट थी कि जन प्रतिनिधित्व प्रणाली एक प्रकार की बहुत सी छन्नियों में से छानने की क्रिया बन गयी। कुछ लोग स्थानीय निकायों का चुनाव करते थे, ये सदस्य चुनाव मण्डलों का चुनाव करते थे और ये चुनाव मण्डल प्रांतीय परिषदों के सदस्यों का चुनाव करते थे और यही प्रांतीय परिषदों के सदस्य केंद्रीय परिषद के सदस्यों का चुनाव करते थे। सुधारों को कार्यान्वित करते हुये बहुत सी गड़बड़ियां उत्पन्न हो गयीं। संसदीय प्रणाली तो दे दी गयी परंतु उत्तरदायित्व नहीं दिया गया, जिससे भारतीय नेताओं ने विधान मण्डलों को सरकार की कटु आलोचना करने का मंच बना लिया। केवल गोपाल कृष्ण गोखले जैसे कुछ भारतीय नेता ही इस अवसर का वास्तविक उपयोग कर सके। उन्होंने सभी के लिये प्राथमिक शिक्षा, सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना तथा दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों पर हो रहे अत्याचार जैसे मुद्दों को उठाकर इस मंच का सही अर्थों में उपयोग किया। यद्यपि इस अधिनियम द्वारा चुनाव प्रणाली के सिद्धांत को भारत में पहली बार मान्यता मिली, गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद् में पहली बार भारतीयों को प्रतिनिधित्व मिला तथा केन्द्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों को कुछ सिमित अधिकार प्रदान किए गए किन्तु अधिनियम की औसत उपलब्धियां नगण्य ही रहीं। 1909 के सुधारों से जनता को केवल ‘नाममात्र’ सुधार ही प्राप्त हुये, वास्तविक रूप से कुछ नहीं। इससे प्रभाव तो मिला पर शक्ति नहीं। शासन का उत्तरदायित्व अन्य वर्ग को और शक्ति अन्य वर्ग को सौंप दी। ऐसी स्थिति पैदा हो गयी कि विधानमण्डल तथा कार्यकारिणी के बीच कड़वाहट बढ़ गयी तथा भारतीयों और सरकार के सम्बंध और बदतर हो गये। 1909 के सुधारों से जनता ने कुछ और ही चाहा था उन्हें कुछ और ही मिला। भारतीयों ने स्वशासन की मांग की तथा उन्हें ‘हितवादी निरंकुशता’ सौंप दी गयी। इन सुधारों के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा ‘मार्ले-मिन्टो सुधारों ने हमारा सर्वनाश कर दिया’। .

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भारत सरकार अधिनियम, १९३५

इस अधिनियम को मूलतः अगस्त 1935 में पारित किया गया था (25 और 26 जियो. 5 C. 42) और इसे उस समय के अधिनियमित संसद का सबसे लंबा (ब्रिटिश) अधिनियम कहा जाता था। इसकी लंबाई की वजह से, प्रतिक्रिया स्वरूप भारत सरकार (पुनःमुद्रित) द्वारा अधिनियम 1935 को (26 जियो. 5 & 1 EDW. 8 C. 1) को दो अलग-अलग अधिनियमों में विभाजित किया गया.

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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यूनाइटेड किंगडम

वृहत् ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैण्ड का यूनाइटेड किंगडम (सामान्यतः यूनाइटेड किंगडम, यूके, बर्तानिया, UK, या ब्रिटेन के रूप में जाना जाने वाला) एक विकसित देश है जो महाद्वीपीय यूरोप के पश्चिमोत्तर तट पर स्थित है। यह एक द्वीपीय देश है, यह ब्रिटिश द्वीप समूह में फैला है जिसमें ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड का पूर्वोत्तर भाग और कई छोटे द्वीप शामिल हैं।उत्तरी आयरलैंड, UK का एकमात्र ऐसा हिस्सा है जहां एक स्थल सीमा अन्य राष्ट्र से लगती है और यहां आयरलैण्ड यूके का पड़ोसी देश है। इस देश की सीमा के अलावा, UK अटलांटिक महासागर, उत्तरी सागर, इंग्लिश चैनल और आयरिश सागर से घिरा हुआ है। सबसे बड़ा द्वीप, ग्रेट ब्रिटेन, चैनल सुरंग द्वारा फ़्रांस से जुड़ा हुआ है। यूनाइटेड किंगडम एक संवैधानिक राजशाही और एकात्मक राज्य है जिसमें चार देश शामिल हैं: इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स. यह एक संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है जिसकी राजधानी लंदन में सरकार बैठती है, लेकिन इसमें तीन न्यागत राष्ट्रीय प्रशासन हैं, बेलफ़ास्ट, कार्डिफ़ और एडिनबर्ग, क्रमशः उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड की राजधानी.जर्सी और ग्वेर्नसे द्वीप समूह, जिन्हें सामूहिक रूप से चैनल द्वीप कहा जाता है और मैन द्वीप (आईल ऑफ मान), यू के की राजत्व निर्भरता हैं और UK का हिस्सा नहीं हैं। इसके इलावा, UK के चौदह समुद्रपार निर्भर क्षेत्र हैं, ब्रिटिश साम्राज्य, जो १९२२ में अपने चरम पर था, दुनिया के तकरीबन एक चौथाई क्षेत्रफ़ल को घेरता था और इतिहास का सबसे बड़ा साम्रज्य था। इसके पूर्व उपनिवेशों की भाषा, संस्कृति और कानूनी प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है। प्रतीकत्मक सकल घरेलू उत्पाद द्वारा दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति समानता के हिसाब से सातवाँ बड़ा देश होने के साथ ही, यूके एक विकसित देश है। यह दुनिया का पहला औद्योगिक देश था और 19वीं और 20वीं शताब्दियों के दौरान विश्व की अग्रणी शक्ति था, लेकिन दो विश्व युद्धों की आर्थिक लागत और 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में साम्राज्य के पतन ने वैश्विक मामलों में उसकी अग्रणी भूमिका को कम कर दिया फिर भी यूके अपने सुदृढ़ आर्थिक, सांस्कृतिक, सैन्य, वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है। यह एक परमाणु शक्ति है और दुनिया में चौथी सर्वाधिक रक्षा खर्चा करने वाला देश है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट धारण करता है और राष्ट्र के राष्ट्रमंडल, जी8, OECD, नाटो और विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है। .

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ईस्ट इण्डिया कम्पनी

लन्दन स्थित ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्यालय (थॉमस माल्टन द्वारा चित्रित, १८०० ई) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ३१ दिसम्बर १६०० ईस्वी में हुई थी। इसे यदाकदा जॉन कंपनी के नाम से भी जाना जाता था। इसे ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिये २१ सालो तक की छूट दे दी। बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक अधिपत्य जमा लिया। १८५८ में इसका विलय हो गया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

भारत सरकार अधिनियम 1858, भारत सरकार अधिनियम, 1858

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