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क्वाण्टम सांख्यिकी

सूची क्वाण्टम सांख्यिकी

भौतिकी में मुख्य रूप से तीन प्रकार की सांख्यिकी का उपयोग होता है। चिरसमत सांख्यिकी (मैक्सबेल- बोल्ट्जमैन सांख्यिकी), बोस-आइंस्टाइन और फर्मी- डिरैक सांख्यिकी। दूसरे और तीसरे प्रकार का सम्मिलित रूप में क्वांटम सांख्यिकी (Quantum Statistics) भी कहते हैं, क्योंकि इनमें हम क्वांटम सिद्धांत के द्धारा जटिल समुदायों के गुणधर्मो का अध्ययन करते हैं। क्वांटम सांख्यिकी के आविष्कार के पूर्व चिरसंमत (classical) सांख्यिकी से ही यह कार्य लिया जाता था और इसमें पर्याप्त सफलता भी मिलती थी। परंतु कालांतर में प्रकाशविद्युत प्रभाव न्यून ताप पर विशेष ऊष्मा, काली वस्तु का विकिरण (black body radiation) विषयक कुछ ऐसे आविष्कार हुए जिनको चिरसंतम भौतिकी भली प्रकार से समझा नही सकी। इस प्रकार क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ। क्वांटम सांख्यिकी का आविष्कार भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एस. एन. बोस ने सन्‌ १९२४ में किया जब उन्होंने पहली बार प्लैंक का विकिरण नियम सांख्यिकी ढंग से निकाला। गैसीय समुदाय के लिए इसी नियम का प्रसार करते हुए आइंस्टाइन ने बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी नामक सिद्धांत का मौलिक रूप से प्रतिपादन किया। फर्मी और डिरैक ने सन्‌ १९२४ में स्वतंत्र रूप से फर्मी -डिरैक सांख्यिकी की नींव, डाली, जो पाउली के अपवर्जन (exclusion) सिद्धांत पर आधारित थी। समान कणों के किसी समुदाय में सिद्धांतत: कण कण में अंतर कर पाना असंभव है, इसलिए समुदाय का तरंगफलन (wave function) किन्हीं दो कणों के निर्देशांको (coordinates) में सममित (symmetrical) अथवा असममित (asymmetrical) होना चाहिए। इससे विनिमय क्रिया (exchange phenomena) जैसे बहुत से प्रभाव होते हैं, जो कतिपय धातुओं में लौह चुंबकत्च तथा प्रतिलोहचुबकत्व (anti-ferro magnetism) के लिए उत्तरदायी है। विभिन्न कणों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है जिससे एक प्रकार के समान कणों का समुदाय बोस-आइंस्टाइन-सांख्यिकी के अनुसार होगा और दूसरे प्रकार के समान कणों का व्यवहार फर्मी-डिरैक-सांख्यिकी पर आधारित होगा। वे सब पारमाणवीय नाभिक जिनकी संहतिसंख्या युग्म होती है, बोस-आइंस्टाइन-सांख्यिकी में सम्मिलित हैं (उदहरणत: फ़ोटान, पाओन (pion) के-मेसान (K-meson)) आदि, तथा जिनकी संहतिसंख्या विषम होती है, वे सब फर्मी-डिरैक-सांख्यिकी के अनुसार व्यवहार करते है (उदाहरणत: इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, प्रोटान आदि)। सीमांत दशा में फर्मी-डिरैक, बोस-आइंस्टाइन तथा मैक्स्वेल सांख्यिकी का व्यवहार एक समान होता है। अक्रिय (non-interacting) समान कणों के समुदाय के गुण आदर्श गैस के गुणों से कितने भिन्न होते हैं, इसका अनुमान हमें p.

5 संबंधों: प्रमात्रा यान्त्रिकी, प्रकाश-विद्युत प्रभाव, भौतिक शास्त्र, सत्येन्द्रनाथ बोस, सांख्यिकी

प्रमात्रा यान्त्रिकी

प्रमात्रा यान्त्रिकी (Quantum mechanics) कुछ वैज्ञानिक सिद्धान्तों का एक समुच्चय है जो परमाणवीय पैमाने पर उर्जा एवं पदार्थ के ज्ञात गुणधर्मों की व्याख्या करते हैं। इसमें उप-परमाणु पैमाने पर जो प्रकाश और उप-परमाण्वीय कणों में तरंग-कण द्विरूप देखा जाता है, उसका गणित आधार सम्मिलित है। क्वाण्टम यान्त्रिकी में उर्जा और पदार्थ के गहरे सम्बन्ध का भी गणित आधार सम्मिलित है। .

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प्रकाश-विद्युत प्रभाव

किसी धातु के प्लेट से एलेक्ट्रानों का उत्सर्जन प्रकाशविद्युत प्रभाव का अध्ययन करने के लिये प्रयोग। इसमें प्रकाश स्रोत एक पतली आवृत्ति बैण्ड वाला (लगभग एकवर्णी) लेते हैं। इस प्रकाश को कैथोड पर डालते हैं जो निर्वात में स्थित है। एनोड और कैथोड के बीच विभवान्तर से यह निर्धारित हो जाता है कि कैथोड से उत्सर्जित वे ही इलेक्ट्रान एनोड तक आ पायेंगे जिनके पास निकलते समय eV से अधिक गतिज ऊर्जा होगी। धारा की मात्रा (μA), प्राप्त इलेक्ट्रानों की संख्या के समानुपाती होगी। जब कोई पदार्थ (धातु एवं अधातु ठोस, द्रव एवं गैसें) किसी विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे एक्स-रे, दृष्य प्रकाश आदि) से उर्जा शोषित करने के बाद इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करता है तो इसे प्रकाश विद्युत प्रभाव (photoelectric effect) कहते हैं। इस क्रिया में जो एलेक्ट्रान निकलते हैं उन्हें "प्रकाश-इलेक्ट्रॉन" (photoelectrons) कहते हैं। सन 1887 मे एच.

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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सत्येन्द्रनाथ बोस

सत्येन्द्रनाथ बोस (१ जनवरी १८९४ - ४ फ़रवरी १९७४) भारतीय गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री हैं। भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं - बोसान और फर्मियान। इनमे से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही हैं। .

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सांख्यिकी

एक ग्राफ जिसमें सामान्य वितरण (Normal distribution) प्रदर्शित है। सांख्यिकी, गणित की वह शाखा है जिसमें आँकड़ों का संग्रहण, प्रदर्शन, वर्गीकरण और उसके गुणों का आकलन का अध्ययन किया जाता है। सांख्यिकी एक गणितीय विज्ञान है जिसमें किसी वस्तु/अवयव/तंत्र/समुदाय से सम्बन्धित आकड़ों का संग्रह, विश्लेषण, व्याख्या या स्पष्टीकरण और प्रस्तुति की जाती है। यह विभिन्न क्षेत्रों में लागू है - अकादमिक अनुशासन (academic disciplines), इस से प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, मानविकी, सरकार और व्यापार आदि। सांख्यिकीय तरीकों को डेटा के संग्रह के संग्रहण अथवा वर्णन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे वर्णनात्मक सांख्यिकी (descriptive statistics) कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, डेटा में पैटर्न को इस तरह से मॉडल किया जा सकता है कि वह निष्कर्षों की यादृच्छिकता और अनिश्चितता का कारण बने और फिर इस प्रक्रिया को उस विधि, या जिस जनसंख्या का अध्ययन किया जा रहा हो, उसके बारे में अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। इसे अनुमानित सांख्यिकी (inferential statistics) कहा जाता है। वर्णनात्मक तथा अनुमानित सांख्यिकी, दोनों में व्यावहारिक सांख्यिकी सम्मिलित है। एक और विद्या है - गणितीय सांख्यिकी (mathematical statistics), जो विषय के सैद्धान्तिक आधार से सम्बन्ध रखती है। आप किरण किसी श्रेणी में पदों के बेकरार को प्रदर्शित करता है जबकि विषमता का संबंध उसकी आकृति की विशिष्टताओं से होता है अन्य शब्दों में अवकरण हमें श्रेणी की संरचना के बारे में बताता है जबकि विषमता हमें वक्र की आकृति के बारे में बताता है अपकिरण हमें श्रेणी के पदों के मानक रूप में स्वीकृत अन्य किसी पद के व्यक्तिगत अंतरों की ओर संकेत करता है विषमता विचलनों की दशा की ओर संकेत करता है अब करण द्वितीय श्रेणी के माध्यम पर आधारित है .

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