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कौल्पिट दोलित्र

सूची कौल्पिट दोलित्र

कौल्पिट दोलित्र (Colpitts oscillator) कुण्डली-संधारित्र से निर्मित इलेक्ट्रॉनिक दोलक है जो निश्चित आवृति की के दोलन जनित करने के लिए संधारित्र और प्रेरक के संयोजन से बनता है। इसका आविष्कार १९१८ में अमेरिकी अभियंता एड्विन एच॰ कौल्पिट ने किया। कौल्पिट दोलित्र का विशिष्ठ गुणधर्म यह है कि इसमें सक्रीय परिपथ का पुनर्निवेश प्रेरक के साथ श्रेणी क्रम में जुड़े दो संधारित्रों से निर्मित विभव विभाजाक द्वारा दिया जाता है। .

3 संबंधों: प्रेरक, संधारित्र, इलेक्ट्रॉनिक दोलक

प्रेरक

प्रेरकत्व का प्रतीक कुछ छोटे आकार-प्रकार के प्रेरकत्व अपेक्षाकृत बड़ा प्रेरकत्व जो पावर सप्लाइयों में प्रयुक्त होते हैं। प्रेरक या इंडक्टर (inductor) एक वैद्युत अवयव है जिसमें कोई विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में उर्जा का भंडारण करता है। प्रेरक द्वारा चुम्बकीय उर्जा के भंडारण की क्षमता को इसका प्रेरकत्व (inductance) कहा जाता है और इसे मापने की इकाई हेनरी है। प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं। .

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संधारित्र

विभिन्न प्रकार के आधुनिक संधारित्र समान्तर प्लेट संधारित्र का एक सरल रूप संधारित्र या कैपेसिटर (Capacitor), विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाला दो सिरों वाला एक प्रमुख अवयव है। यदि दो या दो से अधिक चालकों को एक विद्युत्रोधी माध्यम द्वारा अलग करके समीप रखा जाए, तो यह व्यवस्था संधारित्र कहलाती है। इन चालकों पर बराबर तथा विपरीत आवेश होते हैं। यदि संधारित्र को एक बैटरी से जोड़ा जाए, तो इसमें से धारा का प्रवाह नहीं होगा, परंतु इसकी प्लेटों पर बराबर मात्रा में घनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश संचय हो जाएँगे। विद्युत् संधारित्र का उपयोग विद्युत् आवेश, अथवा स्थिर वैद्युत उर्जा, का संचय करने के लिए तथा वैद्युत फिल्टर, स्नबर (शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी) आदि में होता है। संधारित्र में धातु की दो प्लेटें होतीं हैं जिनके बीच के स्थान में कोई कुचालक डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ (जैसे कागज, पॉलीथीन, माइका आदि) भरा होता है। संधारित्र के प्लेटों के बीच धारा का प्रवाह तभी होता है जब इसके दोनों प्लेटों के बीच का विभवान्तर समय के साथ बदले। इस कारण नियत डीसी विभवान्तर लगाने पर स्थायी अवस्था में संधारित्र में कोई धारा नहीं बहती। किन्तु संधारित्र के दोनो सिरों के बीच प्रत्यावर्ती विभवान्तर लगाने पर उसके प्लेटों पर संचित आवेश कम या अधिक होता रहता है जिसके कारण वाह्य परिपथ में धारा बहती है। संधारित्र से होकर डीसी धारा नही बह सकती। संधारित्र की धारा और उसके प्लेटों के बीच में विभवान्तर का सम्बन्ध निम्नांकित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ: .

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इलेक्ट्रॉनिक दोलक

क्रॉस कपल्ड एल-सी दोलक, जिसका आउटपुट आरेख में ऊपर दिया है इलेक्ट्रॉनिक दोलक वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो आवर्ती इलेक्टानिक संकेत उत्पन्न करती है। प्रायः ये संकेत साइन तरंग या वर्ग तरंग के होते हैं। निम्न आवृत्ति दोलक वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति होती है, जिसमें प्रत्यावर्ती धारा का उत्पादन होता है। ये धारा २० हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति वाली होती है। .

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