11 संबंधों: द्रव्यमान, प्रकाश-वर्ष, बहिर्ग्रह, महापृथ्वी, सौर मण्डल, सूर्य, हंस तारामंडल, वासयोग्य क्षेत्र, गुरुत्वाकर्षण, केप्लर अंतरिक्ष यान, कॅप्लर-२२ तारा।
द्रव्यमान
द्रव्यमान किसी पदार्थ का वह मूल गुण है, जो उस पदार्थ के त्वरण का विरोध करता है। सरल भाषा में द्रव्यमान से हमें किसी वस्तु का वज़न और गुरुत्वाकर्षण के प्रति उसके आकर्षण या शक्ति का पता चलता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली *.
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प्रकाश-वर्ष
प्रकाश वर्ष (चिन्ह:ly) लम्बाई की मापन इकाई है। यह लगभग 950 खरब (9.5 ट्रिलियन) किलोमीटर के अन्दर होती है। यहां एक ट्रिलियन 1012 (दस खरब, या अरब पैमाने) के रूप में लिया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार, प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जो प्रकाश द्वारा निर्वात में, एक वर्ष में पूरी की जाती है। यह लम्बाई मापने की एक इकाई है जिसे मुख्यत: लम्बी दूरियों यथा दो नक्षत्रों (या तारों) बीच की दूरी या इसी प्रकार की अन्य खगोलीय दूरियों को मापने मैं प्रयोग किया जाता है। .
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बहिर्ग्रह
धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .
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महापृथ्वी
पृथ्वी और "कॅप्लर-१०बी" नामक महापृथ्वी ग्रह के आकारों की तुलना व्यास (r) और द्रव्यमान (m) एक सीमा में संतुलन में होने से कोई ग्रह महापृथ्वी बनता है - नीली लकीर पर स्थित ग्रह पूरे बानी और बर्फ़ के होंगे और लाल लकीर वाले ग्रह लगभग पूरे लोहे के होंगे - इन दोनों के बीच में महापृथ्वियाँ मिलती हैं वरुण के आकारों की तुलना महापृथ्वी ऐसे ग़ैर-सौरीय ग्रह को कहा जाता है जो पृथ्वी से अधिक द्रव्यमान (मास) रखता हो लेकिन सौर मंडल के बृहस्पति और शनि जैसे गैस दानव ग्रहों से काफ़ी कम द्रव्यमान रखे।Valencia et al., Radius and structure models of the first super-Earth planet, September 2006, published in The Astrophysical Journal, February 2007 .
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सौर मण्डल
सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .
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सूर्य
सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.
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हंस तारामंडल
हंस तारामंडल हंस या सिग्नस (अंग्रेज़ी: Cygnus) तारामंडल हमारी आकाशगंगा क्षीरमार्ग (मिल्की वे) के चपटे चक्र में स्थित एक तारामंडल है। दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने जिन ४८ तारामंडलों की सूची बनाई थी यह उनमें से एक है और अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में भी यह शामिल है। इसे कभी-कभी उत्तरी शूल (उत्तरी क्रॉस) बुलाया जाता है। पुरानी खगोलशास्त्रिय पुस्तकों में इसे अक्सर एक हंस के रूप में दर्शाया जाता था। .
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वासयोग्य क्षेत्र
वासयोग्य क्षेत्र कहाँ है यह तारे पर निर्भर है (ऊपर-नीचे तारों का आकार है, दाएँ-बाएँ तारे से दूरी है) खगोलशास्त्र में किसी तारे का वासयोग्य क्षेत्र (habitable zone) उस तारे से उतनी दूरी का क्षेत्र होता है जहाँ पृथ्वी जैसा ग्रह अपनी सतह पर द्रव (लिक्विड) अवस्था में पानी रख पाए और वहाँ पर जीव जी सकें। अगर कोई ग्रह अपने तारे की परिक्रमा वासयोग्य क्षेत्र से ज़्यादा पास कर रहा है तो सम्भावना अधिक है के उसपर पानी उबल कर लगभग ख़त्म हो जाएगा और उस ग्रह के वातावरण का तापमान भी जीव-जंतुओं के लिए बहुत अधिक गरम होगा। अगर इसके विपरीत कोई ग्रह अपने तारे के वासयोग्य क्षेत्र से ज़्यादा दूरी पर होगा तो उस पर बहुत सर्दी होगी और अगर पानी मौजूद भी हुआ तो सख्त बर्फ़ में जमा हुआ होगा और तारे से मिलने वाला प्रकाश भी शायद इतना कमज़ोर होगा के उसकी उर्जा पौधे जैसे जीवों के लिया काफ़ी नहीं है। किसी तारे का वासयोग्य क्षेत्र उस तारे से कितनी दूरी पर है यह बात उस तारे पर निर्भर करती है। अगर तारा अधिक तेज़ी से विकिरण (रेडीएशन) देता है और बड़ा है, तो उसका वासयोग्य क्षेत्र किसी छोटे या अधिक ठन्डे तारे से अधिक दूरी पर होगा। .
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गुरुत्वाकर्षण
गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .
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केप्लर अंतरिक्ष यान
निर्मित होते हुआ कॅप्लर अंतरिक्ष यान कॅप्लर अंतरिक्ष यान (अंग्रेज़ी:Kepler spacecraft) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्थान, नासा, का एक अंतरिक्ष यान है, जिसका काम सूरज से अलग किंतु उसी तरह अन्य तारों के इर्द-गिर्द ऐसे ग़ैर-सौरीय ग्रहों को ढूंढना है जो पृथ्वी से मिलते-जुलते हों। कॅप्लर को ७ मार्च २००९ में रोकेट के ज़रिये अंतरिक्ष में भेजा गया था, जहाँ यह अब पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है और अन्य तारों पर अपनी नज़रें रखे हुए है। अनुमान है कि यह कम-से-कम ३.५ वर्ष तक अपना कार्य करेगा। .
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कॅप्लर-२२ तारा
कॅप्लर २२ के ग्रहीय मंडल की हमारे सौर मंडल के अंदरूनी भाग से तुलना कॅप्लर-२२ उर्फ़ कॅप्लर-२२ए (Kepler-22a) पृथ्वी से ६०० प्रकाश वर्ष दूर हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक G श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है। यह आकार में हमारे सूरज से ज़रा छोटा और तापमान में उस से ठंडा है। .
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