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अलेक्ज़ैंडर कन्निघम

सूची अलेक्ज़ैंडर कन्निघम

सर अलेक्ज़ैंडर कनिंघम (Sir Alexander Cunningham KCIE; २३ जनवरी, १८१४-१८ नवंबर, १८९३) ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर थे जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनको भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का जनक माना जाता है। इनके दोनों भ्राता फ्रैन्सिस कनिंघम एवं जोसफ कनिंघम भी अपने योगदानों के लिए ब्रिटिश भारत में प्रसिद्ध हुए थे। भारत में अंग्रेजी सेना में कई उच्च पदों पर रहे और १८६१ ई. में मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्हें इनके योगदानों के लिए २० मई, १८७० को ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में १८७८ में इन्हें ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर से भी सम्मानित किया गया। १८८७ में इन्हें नाइट कमांडर ऑफ इंडियन एंपायर घोषित किया गया। जन्म इंग्लैंड में सन् १८१४ ई में हुआ था। अपने सेवाकाल के प्रारंभ से ही भारतीय इतिहास में इनकी काफी रुचि थी और इन्होंने भारतीय विद्या के विख्यात शोधक जेम्स प्रिंसेप की, प्राचीन सिक्कों के लेखों और खरोष्ठी लिपि के पढ़ने में पर्याप्त सहायता की थी। मेजर किट्टो को भी, जो प्राचीन भारतीय स्थानों की खोज का काम सरकार की ओर से कर रहे थे, इन्होंने अपना मूल्यवान् सहयोग दिया। १८७२ ई. में कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षक बनाया गया और कुछ ही वर्ष पश्चात् उनकी नियुक्ति (उत्तर भारत के) पुरातत्व-सर्वेक्षण-विभाग के महानिदेशक के रूप में हो गई। इस पद पर वे १८८५ तक रहे। पुरातत्व विभाग के उच्च पदों पर रहते हुए कनिंघम ने भारत के प्राचीन विस्मृत इतिहास के विषय में काफी जानकारी संसार के सामने रखी। प्राचीन स्थानों की खोज और अभिलेखों एवं सिक्कों के संग्रहण द्वारा उन्होंने भारतीय अतीत के इतिहास की शोध के लिए मूल्यवान् सामग्री जुटाई और विद्वानों के लए इस दिशा में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कनिंघम के इस महत्वपूर्ण और परिश्रमसाध्य कार्य का विवरण पुरातत्व विषयक रिपोर्टो के रूप में, २३ जिल्दों में, छपा जिसकी उपादेयता आज प्राय: एक शताब्दी पश्चात् भी पूर्ववत् ही है। कनिंघम ने प्राचीन भारत में आनेवाले यूनानी और चीनी पर्यटकों के भारतविषयक वर्णनों का अनुवाद तथा संपादन भी बड़ी विद्वता तथा कुशलता से किया है। चीनी यात्री युवानच्वांग (७वीं सदी ई.) के पर्यटनवृत्त का उनका सपांदन, विशेषकर प्राचीन स्थानों का अभिज्ञान, अभी तक बहुत प्रामाणिक माना जाता है। १८७१ ई.में उन्होंने 'भारत का प्राचीन भूगोल' (एंशेंट ज्योग्रैफ़ी ऑव इंडिया) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी जिसका महत्व आज तक कम नहीं हुआ है। इस शोधग्रंथ में उन्होंने प्राचीन स्थानों का जो अभिज्ञान किया था वह अधिकांश में ठीक साबित हुआ, यद्यपि उनके समकालीन तथा अनुवर्ती कई विद्वानों ने उसके विषय में अनेक शंकाएँ उठाई थीं। उदाहरणार्थ, कौशांबी के अभिज्ञान के बारे में कनिंघम का मत था कि यह नगरी उसी स्थान पर बसी थी जहाँ वर्तमान कौसम (जिला इलाहाबाद) है, यही मत आज पुरातत्व की खोजों के प्रकाश में सर्वमान्य हो चुका है। किंतु इस विषय में वर्षो तक विद्वानों का कनिंघम के साथ मतभेद चलता रहा था और अंत में वर्तमान काल में जब कनिंघम का मत ही ठीक निकला तब उनकी अनोखी सूझ-बूझ की सभी विद्वानों को प्रशंसा करनी पड़ी है। .

16 संबंधों: ऐतिहासिक भूगोल, पुरातत्वशास्त्र, भारत का इतिहास, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, जेम्स प्रिंसेप, खरोष्ठी, इतिहास, अभियन्ता, १८ नवम्बर, १८१४, १८७०, १८७८, १८८७, १८९३, २० मई, २३ जनवरी

ऐतिहासिक भूगोल

ऐतिहासिक भूगोल किसी स्थान अथवा क्षेत्र की भूतकालीन भौगोलिक दशाओं का या फिर समय के साथ वहाँ के बदलते भूगोल का अध्ययन है। यह अपने अध्ययन क्षेत्र के सभी मानवीय और भौतिक पहलुओं का अध्ययन किसी पिछली काल-अवाधि के सन्दर्भ में करता है या फिर समय के साथ उस क्षेत्र के भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन का अध्ययन करता है। बहुत सारे भूगोलवेत्ता किसी स्थान का इस सन्दर्भ में अध्ययन करते हैं कि कैसे वहाँ के लोगों ने अपने पर्यावरण के साथ अंतर्क्रियायें कीं और किस प्रकार इन क्रियाओं के परिणामस्वरूप उस स्थान के भूदृश्यों का उद्भव और विकास हुआ। आज के परिप्रेक्ष्य में भूगोल की इस शाखा का जो रूप दिखाई पड़ता है उसका सर्वप्रथम प्रतिनिधित्व करने वाली रचनाओं में हेरोडोटस के उन वर्णनों को माना जा सकता है जिनमें उन्होंने नील नदी के डेल्टाई क्षेत्रों के विकास का वर्णन किया है, हालाँकि तब ऐतिहासिक भूगोल जैसी कोई शब्दावली नहीं बनी थी। आधुनिक रूप में इसका विकास जर्मनी में फिलिप क्लूवर के साथ शुरू माना जाता है जिन्होंने जर्मनी का ऐतिहासिक भूगोल लिखकर इस शाखा का प्रतिपादक बनने का श्रेय हासिल किया। १९७५ में जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल ज्याग्रफी के पहले अंक के साथ ही इसके विषय क्षेत्र और अध्ययनकर्ताओं के समूह जो एक व्यापक विस्तार मिला। अमेरिका में इस शाखा को सबसे अधिक बल कार्ल सॉअर के सांस्कृतिक भूगोल के अध्ययन से मिला जिसके द्वारा उन्होंने सांस्कृतिक भूदृश्यों के ऐतिहासिक विकास के अध्ययन को प्रेरित किया। हालाँकि अब वर्तमान समय में इसमें कई अन्य थीम शामिल हो चुकी हैं जिनमें पर्यावरण का ऐतिहासिक अध्ययन और पर्यावरणीय ज्ञान के ऐतिहासिक अध्ययन को भी शामिल किया जाता है। अब ऐतिहासिक भूगोल रुपी भूगोल की यह शाखा इतिहास, पर्यावरणीय इतिहास और ऐतिहासिक पारिस्थितिकी इत्यादि शाखाओं से काफ़ी करीब मानी जा सकती है। .

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पुरातत्वशास्त्र

पुरातत्वशास्त्र (archeology) वह विज्ञान है जो पुरानी चीज़ों का अध्ययन व विश्लेषण करके मानव-संस्कृति के विकासक्रम को समझने एवं उसकी व्याख्या करने का कार्य करता है। यह विज्ञान प्राचीन काल के अवशेषों और सामग्री के उत्खनन के विश्लेषण के आधार पर अतीत के मानव-समाज का सांस्कृतिक-वैज्ञानिक अध्ययन करता है। इसके लिये पूर्वजों द्वारा छोड़े गये पुराने वास्तुशिल्प, औज़ारों, युक्तियों, जैविक-तथ्यों और भू-रूपों आदि का अध्ययन किया जाता है। संस्कृत के शब्द' पुरातन' से बना 'पुरातत्व' यूनानी शब्द 'अर्कियोलोजिया'(ἀρχαιολογία), से निर्मित 'आर्कियोलोजी' शब्द का हिन्दी तर्जुमा और पर्याय है। पुरातत्व विज्ञान मुख्य रूप से मनुष्यों द्वारा छोड़े गए पर्यावरण डेटा एवं भौतिक संस्कृति जैसे कि कलाकृतियां, वास्तुकला एवं सांस्कृतिक परिदृश्य आदि कि पुनप्राप्ति एवं विश्लेषण द्वारा अतीतकालीन मानव गतिविधि का अध्ययन है। चूंकि पुरातत्व विज्ञान विभिन्न प्रक्रियाओं का प्रयोग करता है, इसे विज्ञान और विज्ञानेतर विषय, दोनों माना जा सकता है। अमेरिका में इसे मानवशास्त्र का भाग माना जाता है यद्यपि यूरोप में इसे एक भिन्न अनुशासन का दर्जा प्राप्त है। पुरातत्व विज्ञान चार लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका में पत्थर के औज़ारों के विकास से लेकर हाल के दशकों तक (पुरततक जीवाश्म विज्ञान नहीं है) का अध्ययन करता है। पुरातत्व विज्ञान सबसे उपयोगी है प्रागैतिहासिक समाज के बारे में जानने के लिए, जब इतिहासकारों द्वारा अध्ययन के लिए कोई भी लिखित अभिलेख न हो। यह मनुष्यों के कुल इतिहास का ९९% है, पाषाण काल से किसी भी समाज में अक्षरज्ञान के आगमन तक। पुरातत्व विज्ञान के कई लक्ष्य हैं मानक विकास से लेकर सांस्कृतिक विकास और सांस्कृतिक इतिहास तक। पुरातत्त्व विज्ञान में अतीत के बारे में जानने के लिए सर्वेक्षण, उत्खनन और अंततः एकत्र किये गए आंकड़ों का विश्लेषण शामिल है। व्यापक दायरे में पुरातत्व विज्ञान पार अनुशासनिक शोध जैसे यह मानव विज्ञान, इतिहास, कला इतिहास, क्लासिक्स, मानव जाति विज्ञान, भूगोल, भूविज्ञान, भाषा विज्ञान, लाक्षणिकता, भौतिक विज्ञान, सूचना विज्ञान, रसायन विज्ञान, सांख्यिकी, paleoecology, जीवाश्म विज्ञान, paleozoology, paleoethnobotany और paleobotany पर निर्भर करता है। .

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार के संस्कृति विभाग के अन्तर्गत एक सरकारी एजेंसी है, जो कि पुरातत्व अध्ययन और सांस्कृतिक स्मारकों के अनुरक्षण के लिये उत्तरदायी होती है। इसकी वेबसाइट के अनुसार, ए.एस.

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जेम्स प्रिंसेप

जेम्स प्रिंसेप ईस्ट इण्डिया कम्पनी में एक अधिकारी के पद पर नियुक्त थे। उन्होंने 1838 ई. में सर्वप्रथम ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। इन लिपियों का उपयोग सबसे आरम्भिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है। प्रिसेंप को यह जानकारी प्राप्त हुई कि अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी (प्रियदर्शी) अर्थात सुन्दर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा गया है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम सम्राट अशोक भी लिखा हुआ था। .

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खरोष्ठी

तारिम द्रोणी में मिला खरोष्ठी में लिखा एक काग़ज़ का टुकड़ा (दूसरी से पाँचवी सदी ईसवी) सिंधु घाटी की चित्रलिपि को छोड़ कर, खरोष्ठी भारत की दो प्राचीनतम लिपियों में से एक है। यह दाएँ से बाएँ को लिखी जाती थी। सम्राट अशोक ने शाहबाजगढ़ी और मनसेहरा के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में ही लिखवाए हैं। इसके प्रचलन की देश और कालपरक सीमाएँ ब्राह्मी की अपेक्षा संकुचित रहीं और बिना किसी प्रतिनिधि लिपि को जन्म दिए ही देश से इसका लोप भी हो गया। ब्राह्मी जैसी दूसरी परिष्कृत लिपि की विद्यमानता अथवा देश की बाएँ से दाहिने लिखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति संभवत: इस लिपि के विलुप्त होने का कारण रहा हो। .

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इतिहास

बोधिसत्व पद्मपनी, अजंता, भारत। इतिहास(History) का प्रयोग विशेषत: दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा। इतिहास शब्द (इति + ह + आस; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "यह निश्चय था"। ग्रीस के लोग इतिहास के लिए "हिस्तरी" (history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्तरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।Whitney, W. D. (1889).

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अभियन्ता

अभियंता (इंजिनीयर) वह व्यक्ति है जिसे अभियाँत्रिकी की एक या एक से अधिक शाखाओं में प्रशिक्षण प्राप्त हो अथवा जो कि व्यावसायिक रूप से अभियाँत्रिकी सम्बन्धित कार्य कर रहा हो। कभी कभी इन्हे यंत्रवेत्ता भी कहा जाता है | यद्यपि अभियंता एक शुद्ध हिन्दी शब्द है लेकिन बोलचाल की भाषा मे इसके स्थान पर अंग्रेजी भाषा के इंजीनियर (Engineer) शब्द का प्रयोग अधिक होता है। एक अभियंता का मुख्य कार्य होता है समस्याओं का समाधान करना। इसके लिये उन्हें प्राय: उच्च शिक्षा में पाये हुए अपने प्रशिक्षण और तकनीक का अनुप्रयोग करना पड़ता है। अधिकतर अभियंता अभियाँत्रिकी की किसी एक शाखा में प्रशिक्षण तथा शिक्षा प्राप्त होते हैं। .

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१८ नवम्बर

१८ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२२वॉ (लीप वर्ष मे ३२३ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ४३ दिन बाकी है। .

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१८१४

1814 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८७०

१८७० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८७८

1878 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८८७

1887 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८९३

1893 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२० मई

20 मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 140वॉ (लीप वर्ष मे 141 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 225 दिन बाकी है। .

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२३ जनवरी

23 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 23वॉ दिन है। साल मे अभी और 342 दिन बाकी है (लीप वर्ष मे 343)। .

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