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एलसी परिपथ

सूची एलसी परिपथ

Lऔर C से बना परिपथ (बैण्डपास फिल्टर) LC परिपथ में प्रेरकत्व तथा संधारित्र होते हैं। इनको 'अनुनादी परिपथ' या 'टैंक परिपथ' या 'ट्युण्द परिपथ' भी कहते हैं। L और C मिलकर एक वैद्युत अनुनादी की तरह काम करते हैं (जो स्वरित्र का वैद्युत एनालॉग है)। LC का उपयोग किसी नियत आवृत्ति का वैद्युत संकेत उत्पन्न करने के लिया किया जाता है। इसके अलावा इसे किसी जटिल संकेत में से किसी निश्चित आवृत्ति के संकेत को चुनने (फिल्टर करने) के लिए भी काम में लाया जाता है। इस कारण LC परिपथ बहुत से एलेक्ट्रानिक युक्तियों में प्रयुक्त होते हैं, जैसे रेडियो में कंपित्र (आसिलेटर), फिल्टर, ट्यूनर और आवृत्ति मिश्रक (frequency mixers) के रूप में प्रयोग किया जाता है। LC परिपथ एक आदर्शीकृत परिपथ है जो इस मान्यता पर बनाया गया है कि इस परिपथ में प्रतिरोध अनुपस्थित या शून्य है और इस कारण ऊर्जा का ह्रास शून्य है। किन्तु किसी भी व्यावहारिक LC परिपथ में कुछ न कुछ ऊर्जा ह्रास अवश्य होगा। यद्यपि कोई भी परिपथ शुद्ध रूप में LC नहीं है फिर भी इस आदर्श परिपथ का अध्ययन समझ विकसित करने के लिए उपयोगी है। .

7 संबंधों: प्रतिबाधा, प्रेरकत्व, फिल्टर, संधारित्र, स्वरित्र, हर्ट्ज़, आर एल सी परिपथ

प्रतिबाधा

विद्युत के सन्दर्भ में, किसी परिपथ पर वोल्टता आरोपित करने पर उसमें धारा के प्रवाह के विरोध की माप का नाम प्रतिबाधा (impedance) है। संख्यात्मक मान की दृष्टि से किसी परिपथ की प्रतिबाधा उस परिपथ के सिरों के बीच समिश्र वोल्टता तथा समिश्र धारा के अनुपात के बराबर होती है। प्रतिबाधा को एसी के लिए प्रतिरोध के विस्तार के रूप में समझा जा सकता है। अर्थात् डीसी में जो भूमिका प्रतिरोध की है वही भूमिका एसी में प्रतिबाधा की है। प्रतिबाधा एक समिश्र संख्या है जिसका परिमाण (magnitude) और कला (phase) दोनों होते हैं। श्रेणी:विद्युत.

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प्रेरकत्व

विद्युतचुम्बकत्व एवं इलेक्ट्रॉनिक्स में, प्रेरकत्व (inductance) किसी विद्युत चालक का वह गुण है जिसके कारण इससे होकर प्रवाहित धारा के परिवर्तित होने पर इसके स्वयं सिरों पर तथा दूसरे चालकों के सिरों पर विद्युतवाहक बल उत्पन्न होता है। .

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फिल्टर

अलग-अलग क्षेत्रों में छनित्र या फिल्टर (Filter) के विभिन्न अर्थ होते हैं - .

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संधारित्र

विभिन्न प्रकार के आधुनिक संधारित्र समान्तर प्लेट संधारित्र का एक सरल रूप संधारित्र या कैपेसिटर (Capacitor), विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाला दो सिरों वाला एक प्रमुख अवयव है। यदि दो या दो से अधिक चालकों को एक विद्युत्रोधी माध्यम द्वारा अलग करके समीप रखा जाए, तो यह व्यवस्था संधारित्र कहलाती है। इन चालकों पर बराबर तथा विपरीत आवेश होते हैं। यदि संधारित्र को एक बैटरी से जोड़ा जाए, तो इसमें से धारा का प्रवाह नहीं होगा, परंतु इसकी प्लेटों पर बराबर मात्रा में घनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश संचय हो जाएँगे। विद्युत् संधारित्र का उपयोग विद्युत् आवेश, अथवा स्थिर वैद्युत उर्जा, का संचय करने के लिए तथा वैद्युत फिल्टर, स्नबर (शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी) आदि में होता है। संधारित्र में धातु की दो प्लेटें होतीं हैं जिनके बीच के स्थान में कोई कुचालक डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ (जैसे कागज, पॉलीथीन, माइका आदि) भरा होता है। संधारित्र के प्लेटों के बीच धारा का प्रवाह तभी होता है जब इसके दोनों प्लेटों के बीच का विभवान्तर समय के साथ बदले। इस कारण नियत डीसी विभवान्तर लगाने पर स्थायी अवस्था में संधारित्र में कोई धारा नहीं बहती। किन्तु संधारित्र के दोनो सिरों के बीच प्रत्यावर्ती विभवान्तर लगाने पर उसके प्लेटों पर संचित आवेश कम या अधिक होता रहता है जिसके कारण वाह्य परिपथ में धारा बहती है। संधारित्र से होकर डीसी धारा नही बह सकती। संधारित्र की धारा और उसके प्लेटों के बीच में विभवान्तर का सम्बन्ध निम्नांकित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ: .

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स्वरित्र

अनुनादी बक्से के उपर स्थापित '''स्वरित्र''' स्वरित्र (tuning fork) एक सरल युक्ति है जो मानक आवृत्ति की ध्वनि पैदा करने के काम आती है। संगीत के क्षेत्र में इसका उपयोग एक मानक पिच (pitch) उत्पादक के रूप में अन्य वाद्य यंत्रों को ट्यून करने में होती है। यह देखने में अंग्रेजी के यू आकार वाले फोर्क की तरह होता है। यह प्रायः इस्पात या किसी अन्य प्रत्यास्थ धातु का बना होता है। इसे किसी वस्तु के उपर ठोकने पर एक निश्चित आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति इसके फोर्कों की लम्बाई तथा फोर्कों के प्रत्यास्थता पर निर्भर करती है। .

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हर्ट्ज़

हर्ट्ज़ आवृत्ति की अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली (SI) की इकाई है। इस का अाधार है आवर्तन प्रति सैकिण्ड या साईकल प्रति सै.

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आर एल सी परिपथ

समान्तर क्रम में जुड़े हुए संधारित्र और प्रेरकत्व; दाहिनी तरफ का परिपथ बाईं तरफ के परिपथ का तुल्य परिपथ है। आरएलसी परिपथ (RLC circuit) से अभिप्राय उस परिपथ से है जो प्रतिरोध (R), प्रेरकत्व (L) तथा संधारित्र (C) के श्रेणीक्रम या समान्तरक्रम संयोजन (connection) से बना हो। यह संयोजन वास्तव में LC दोलित्र (आसिलेटर) की तरह का एक हार्मोनिक फिल्टर है जिसमें R की उपस्थिति दोलनों का क्षय (damp) करती है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि शुद्ध LC परिपथ, RLC परिपथ का एक विशेष रूप (या शुद्ध रूप) है जिसमें प्रतिरोध (या डम्पिंग) शून्य हो। यह परिपथ अत्यन्त उपयोगी है। दोलित्रों (oscillator circuit) में विविध प्रकार से इसका उपयोग होता है। रेडियो रिसिवरों और टेलीविजन में यह ट्यूनिंग (tuning) के काम आता है। RLC परिपथ को एलेक्ट्रॉनिक फिल्टर की भाँति प्रयोग किया जाता है और इससे बैण्ड-पास फिल्टर, बैण्ड-रिजेक्ट फिल्टर, लो-पास-फिल्टर या हाई-पास-फिल्टर बनाये जा सकते हैं। जब इसे ट्यूनिंग के काम में लिया जाता है तब यह बैण्ड-पास-फिल्टर की तरह काम करता है। R, L और C इन तीनो अवयवों को भिन्न-भिन्न प्रकार से जोड़कर परिपथ बनाये जाते हैं। इनमें से दो परिपथ सबसे सरल हैं - (1) RLC तीनो श्रेणीक्रम में जुड़े हों और (२) RLC तीनो समान्तरक्रम में जुड़े हों। इन दोनो परिपथों का विश्लेषण अपेक्षाकृत बहुत आसान है और बिना कम्युटर के भी आसानी से विश्लेषित किया जा सकता है। किन्तु RLC के कुछ ऐसे संयोजन (कम्बिनेशन) भी हैं जिनका बहुत ही अधिक व्यावहारिक महत्व है और वे विश्लेषण की दृष्टि से कठिन हैं। .

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