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डायलिसिस
रक्तापोहन की एक मशीन अपोहन (डायलिसिस) रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है। इस डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं। गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलसिस की आवश्यकता पड़ती है। स्वस्थ व्यक्ति में गुर्दे द्वारा जल और खनिज (सोडियम, पोटेशियम क्लोराइड, फॉस्फोरस सल्फेट) का सामंजस्य रखा जाता है। डायलसिस स्थायी और अस्थाई होती है। यदि अपोहन के रोगी के गुर्दे बदल कर नये गुर्दे लगाने हों, तो अपोहन की प्रक्रिया अस्थाई होती है। यदि रोगी के गुर्दे इस स्थिति में न हों कि उसे प्रत्यारोपित किया जाए, तो अपोहन अस्थायी होती है, जिसे आवधिक किया जाता है। ये आरंभ में एक माह से लेकर बाद में एक दिन और उससे भी कम होती जाती है। सामान्यतः दो तरह की अपोहन की जाती है,; उदरावरणीय अपोहन उदरावरणीय अपोहन घर में रोगी द्वारा अकेले या किसी की मदद से की जा सकती है। इसमें ग्लूकोज आधारित उदर समाधान में तकरीबन दो घंटे तक रहता है, उसके बाद उसे निकाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया में सर्जन रोगी के एब्डोमेन के अंदर टाइटेनियम प्लग लगा देता है। यह प्रक्रिया उनके लिए असरदार साबित नहीं होती, जिनका इम्यून सिस्टम सिकुड़ चुका है। इस प्रक्रिया में अपोहन प्रतिदिन नहीं करानी पड़ती। यह रक्तापोहन की तुलना में कम प्रभावी होती है।। पत्रिका.कॉम पर उदरावरणीय अपोहन घर पर ही किया जा सकता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रणाली दस वर्ष से अधिक समय से उपलब्ध है, किन्तु महंगी होने के कारण इसका प्रयोग नहीं किया जाता।। याहू जागरण। १९ जुलाई, २००९। देशब्म्धु.को.इन। ३१ अगस्त, २००९; रक्तापोहन रक्तापोहन प्रक्रिया का आरेख रक्तापोहन आम प्रक्रिया है, ज्यादातर रोगी इसी का प्रयोग करते हैं। इसमें रोगी के खून को डायलाइजर द्वारा पंप किया जाता है। इसमें खून साफ करने में तीन से चार घंटे लगते है। इसे सप्ताह में दो-तीन बार कराना पड़ता है। इसमें मशीन से रक्त को शुद्ध किया जाता है। उदरावरणीय अपोहन बेहतर सिद्ध हुआ है। यह निरंतर होने वाला अपोहन है, इसलिए इससे गुर्दे बेहतर तरीके से काम करती है। रू बिन ऎट ऑल द्वारा किए गए अघ्ययन से पता लग कि इसका प्रयोग करने वाले मरीजों का उपचार हीमो करने वालों के मुकाबले अधिक अच्छा हो रहा है। चॉइस कहलाने वाली यह अध्ययन चिकित्सा अमेरिकी संघ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। आठ वर्ष से कम आयु के मरीजों के लिए पीडी की सिफारिश की जाती है। भारत में लगभग सभी बड़े शहरों में अपोहन की सुविधा पर्याप्त उपलब्ध है। देश का सबसे बड़ा अपोहन केन्द्र चंडीगढ़ में संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में खुलने वाला है। इसमें वृक्कीय निवेश विफलता के प्रतीक्षा के मरीजों के अलावा पुरानी विफलता के मरीजों की भी अपोहन हो सकेगी। .
देखें एंटीकौयगुलांट और डायलिसिस
रक्तस्राव
अंगुली से रक्तस्राव रक्तस्राव (Bleeding या Haemorrhage) शब्द का अर्थ है रुधिरवाहिकाओं से रक्त का बाहर निकलना। जब तक रुधिरवाहिकाओं में दरार, या छिद्र न हो, तब तक रक्तस्राव का होना संभव नहीं है। चोट या रोग के कारण ही रुधिरवाहिकाओं में दरार या छिद्र होते हैं। चोट लगने पर तत्काल रक्तस्राव होना प्राथमिक रक्तस्राव कहलाता है और चोट लगने के कुछ काल पश्चात् रक्तस्राव होना गौण रक्तस्राव कहलाता है। यदि रक्त धमनी से बाहर निकलता है, तो यह धमनीय रक्तस्राव कहलाता है। इस रक्तस्राव का रंग चमकीला लाल होता है और यह हृदय के स्पंदन के समकालिक होता है। शिरा से बाहर निकलनेवाले रक्त का रंग कालिमा लिए लाल होता है और घाव से बहता है। केशिका (कैपिलरीज) से स्रावित होनेवाले रक्तस्राव का रंग उपर्युक्त दोनों स्रावों के रंग के बीच का होता है और त्वचा पर केवल छोटा सा लाल धब्बा पड़ जाता है। वमन, मूत्र तथा थूक में मिला हुआ रक्त निकल सकता है, या नाक से नक्सीर फूटने के कारण रक्तस्राव होता है। आमाशय या पक्वाशय में व्रण हो जाने पर रक्तस्राव होने लगता है। स्वयं रुधिरवाहिकाओं के रुग्ण होने पर एवं उच्च रक्तचाप के कारण धमनियों में दरार पड़ जाती है और रक्तस्राव होने लगता है। मस्तिष्क के ऊतकों से रक्तस्राव होने पर रक्तमूर्च्छा (apoplexy) हो जाती है। .