आवरण छपाई आवरण मुद्रण या आवरण छपाई या 'स्क्रीन प्रिंटिंग' मुद्रण की एक तकनीक है। इस तकनीक में किसी बुने हुई जाली (जैसे कोई कपड़ा) पर इमल्सन लगाकर स्टेंसिल तैयार की जाती है जिसे आवरण या स्क्रीन कहते हैं। जिस तल पर छपाई करनी होती है उसके ऊपर इस आवरण को ररखकर स्याही या रंग पोता जाता है जिससे उस तल पर वांछित चित्र या अक्षर छप जाते हैं। इस विधि से टी-शर्ट, पोस्टर, स्टिकर, विनाइल, लकड़ी तथा अन्य तलों पर छपाई की जाती है। वस्तुतः आवरण मुद्रण भी स्टेंसिल द्वारा छपाई करता है। अन्तर केवल यह है कि इस तकनीक में स्टेंसिल किसी धातु की चादर पर न बनाकर किसी सछिद्र पतले पदार्थ से बनायी जाती है, जैसे कपड़ा, तार की महीन जाली आदि। दूसरा अन्तर यह है कि इसमें सछिद्र पदार्थ का कोई भाग काटकर हटाया नहीं जाता बल्कि जिस भाग से हम चाहते हैं कि स्याही/रंग पार न जा पाये, उस भाग को उचित पदार्थ से भर या ढक दिया जाता है। जिस भाग से स्याही का प्रवेश नहीं होने देना चाहते हैं, प्रायः उस भाग को भरने के लिए एक इमल्सन का प्रयोग किया जाता है जो पराबंगनी प्रकाश पड़ने पर कड़ा (तथा पानी में अघुलनशील) हो जाता है। शेष भाग पर पोता गया इमल्सन पानी के सम्पर्क में आकर धुल जाता है। इस प्रकार सछिद्र पदार्थ के कुछ भाग में स्याही पार होने के लिए छेद उपस्थित होते हैं जबकि शेष भाग के छेद भर दिए जाते हैं। इस छपाई को सिल्कस्क्रीन छपाई, सेरीग्राफी (serigraphy) या सेरीग्राफ छपाई भी कहते हैं। चूंकि एक बार में एक ही रंग का प्रयोग किया जा सकता है, अतः बहरंगी छपाई के लिए बहुत से स्क्रीन बनाने पड़ते हैं और उन्हें बारी-बारी से लगाकर अलग-अलग रंग पोते जाते हैं। .
'हीरक सूत्र' नामक पुस्तक सबसे पहले ८६८ ई में चीन में छपी थी एक मास्टर फॉर्म या टेम्प्लेट का उपयोग करके किसी टेक्स्ट या/और छबि (इमेज) की अनेक प्रतियाँ बनाना मुद्रण या छपाई (प्रिंटिंग) कहलाता है। मुद्रण का इतिहास कम से कम तेरह-चौदह सौ वर्ष पुराना है। आधुनिक छपाई प्रायः कागज पर स्याही से मुद्रण मशीन के द्वारा की जाती है। इसके अलावा धातुओं पर, प्लास्टिक पर, वस्त्रों पर तथा अन्य मिश्रित पदार्थों पर भी छपाई की जाती है। कपड़ा या कागज आदि पर एक स्याही-युक्त सतह रखकर उसपर दाब डाला जाता है जिससे स्याहीयुक्त सतह पर बनी छवि उल्टे रूप में कागज या कपड़े पर छप जाती है। .