सामग्री की तालिका
10 संबंधों: दमिश्क, फ़िलिस्तीनी राज्यक्षेत्र, यहूदी, यीशु, लिपि, सामी भाषाएँ, सीरिया, ईसाई धर्म, इब्रानी भाषा, अशोक।
दमिश्क
दमिश्क (अरबी: دمشق उच्चारण: दिमश्क़) सीरिया की राजधानी और सीरिया का सबसे बड़ा नगर है। देश के दक्षिण-पश्चिमी कोने में, लेबनॉन की सीमा के निकट बसा ये शहर ऐतिहासिक है, आज इसकी जनसंख्या ४५ लाख है। दमिश्क विश्व के प्राचीनतम नगरों में गिना जाता है और जहाँ आज भी लोग रह रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि दमिश्क में ८००० से १०००० ईसा पूर्व में लोगो ने रहना प्रारंभ कर दिया था। दमिश्क लेवेंट और अरब दुनिया का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र है। 2009 तक शहर की अनुमानित आबादी 1,711,000 थी। दक्षिण-पश्चिमी सीरिया में स्थित, दमिश्क 1,711,000 के साथ के बड़े महानगरीय क्षेत्र का केंद्र भी है। अंतर्देशीय समुद्र तल से 680 मीटर (2,230 फीट) के पठार पर भूमध्यसागरीय तट का किनारा, दमिश्क छाया प्रभाव के कारण अर्ध शुष्क जलवायु का अनुभव करता है। बरदा नदी दमिश्क से होकर बहती है। दमिश्क दूसरी सहस्राब्दी में बसाया गया था दमिश्क उमायाद खिलाफ़त की राजधानी 661 ईस्वी से 750 ईस्वी तक रहा था। अब्बासी खिलाफत की जीत के बाद, इस्लामी शक्ति की 7राजधानी बगदाद चली गई। दमिश्क ने अब्बासीद युग में राजनीतिक गिरावट देखी, केवल अय्यूबिद और मामलुक काल में महत्वपूर्ण महत्व हासिल करने के लिए। आज, यह केंद्र सरकार और सभी सरकारी मंत्रालयों की सीट है। .
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फ़िलिस्तीनी राज्यक्षेत्र
फ़िलिस्तीन का ध्वज फ़िलिस्तीन (अरबी: فلسطين) दुनिया का एक राज्यक्षेत्र है। यह इस क्षेत्र का नाम है जो लेबनान और मिस्र के बीच था के अधिकांश हिस्से पर इसराइल के राज्य की स्थापना की गई है। १९४८ से पहले सभी क्षेत्र फ़िलिस्तीन कहलाता था। जो खिलाफ़त उस्मानिया में स्थापित रहा लेकिन बाद में अंग्रेजों और फ़्रांसीसियों ने इस पर कब्जा कर लिया। १९४८ में यहाँ के अधिकांश क्षेत्र पर इस्राइली राज्य की स्थापना की गई। इसका राजधानी बैतुल मुक़द्दस था पर १९६७ में इसराइल ने कब्जा कर लिया। बैतुल मुक़द्दस को इस्राइली येरुशलम कहते हैं और यह शहर यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों तीनों के पास पवित्र है। मुसलमानों का क़िबला प्रथम यही है। .
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यहूदी
यहूदी जाति 'यहूदी' का मौलिक अर्थ है- येरूशलेम के आसपास के 'यूदा' नामक प्रदेशें का निवासी। यह प्रदेश याकूब के पुत्र यूदा के वंश को मिला था। बाइबिल में 'यहूदी' के निम्नलिखित अर्थ मिलते हैं- याकूब का पुत्र यहूदा, उनका वंश, उनकर प्रदेश, कई अन्य व्यक्तियों के नाम। यूदा प्रदेश (Kingdom of Juda) के निवासी प्राचीन इजरायल के मुख्य ऐतिहासिक प्रतिनिधि बन गए थे, इस कारण समस्त इजरायली जाति के लिये यहूदी शब्द का प्रयोग होने लगा। इस जाति का मूल पुरूष अब्राहम थे, अत: वे 'इब्रानी' भी कहलाते हैं। याकूब का दूसरा नाम था इजरायल, इस कारण 'इब्रानी' और 'यहूदी' के अतिरक्ति उन्हें 'इजरायली' भी कहा जाता है। यहूदी धर्म को मानने वालों को यहूदी (en:Jew) कहा जाता है। यहूदियों का निवास स्थान पारंपरिक रूप से पश्चिम एशिया में आज के इसरायल को माना जाता है जिसका जन्म १९४७ के बाद हुआ। मध्यकाल में ये यूरोप के कई क्षेत्रों में रहने लगे जहाँ से उन्हें उन्नीसवीं सदी में निर्वासन झेलना पड़ा और धीरे-धीरे विस्थापित होकर वे आज मुख्यतः इसरायल तथा अमेरिका में रहते हैं। इसरायल को छोड़कर सभी देशों में वे एक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में रहते हैं। इन्का मुख्य काम व्यापार है। यहूदी धर्म को इसाई और इस्लाम धर्म का पूर्ववर्ती कहा जा सकता है। इन तीनों धर्मों को संयुक्त रूप से 'इब्राहिमी धर्म' भी कहते हैं। अल्लाह ने यहूदियों के बारे में पवित्र कुरान में कहा "ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये (भी तो सोचो) कि हमने तुमको सारे जहाँन के लोगों से बढ़ा दिया" (Sura 2-47) "और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखू़बी जानते हो जो शम्बे (सनीचर) के दिन अपनी हद से गुज़र गए (कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ (और वह बन्दर हो गए)" (Sura2-65) "फिर तुममें से थोड़े आदमियों के सिवा (सब के सब) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले.और (वह वक़्त याद करो) जब हमने तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) से अहद लिया था कि आपस में खू़रेजि़याँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना तो तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो .(कि हाँ ऐसा हुआ था) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो (और लुत्फ़ तो ये हैं कि) अगर वही लोग क़ैदी बनकर तम्हारे पास (मदद माँगने) आए तो उनको तावान देकर छुड़ा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या तुम (किताबे खु़दा की) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो बस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि जि़न्दगी भर की रूसवाई हो और (आखि़रकार) क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खु़दा उससे ग़ाफि़ल नहीं है" (Sura 2-83,84,85) "और तुम्हारे पास मूसा तो वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ ही चुके थे फिर भी तुमने उनके बाद बछड़े को खु़दा बना ही लिया और उससे तुम अपने ही ऊपर ज़ुल्म करने वाले थे"(Sura2-92) "बनी इसराईल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंनं तुम को दी हैं और ये कि मैंने तुमको सारे जहाँन पर फज़ीलत दी " (Sura 2-122) "बेशक हम ने तौरेत नाजि़ल की जिसमें (लोगों की) हिदायत और नूर (ईमान) है उसी के मुताबिक़ ख़ुदा के फ़रमाबरदार बन्दे (अम्बियाए बनी इसराईल) यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले और उलेमाए (यहूद) भी किताबे ख़ुदा से (हुक्म देते थे) जिसके वह मुहाफि़ज़ बनाए गए थे और वह उसके गवाह भी थे बस (ऐ मुसलमानों) तुम लोगों से (ज़रा भी) न डरो (बल्कि) मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले में (दुनिया की दौलत जो दर हक़ीक़त बहुत थोड़ी क़ीमत है) न लो और (समझ लो कि) जो ख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुयी (किताब) के मुताबिक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग काफि़र हैं" (Sura 5-44) "(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुम्हें ख़ुदा के नज़दीक सज़ा में इससे कहीं बदतर ऐब बता दॅू (अच्छा लो सुनो) जिसपर ख़ुदा ने लानत की हो और उस पर ग़ज़ब ढाया हो और उनमें से किसी को (मसख़ करके) बन्दर और (किसी को) सूअर बना दिया हो और (ख़ुदा को छोड़कर) शैतान की परस्तिश की हो बस ये लोग दरजे में कहीं बदतर और राहे रास्त से भटक के सबसे ज़्यादा दूर जा पहँचे हैं " (Sura 5-60) "यहूद तो कहते हैं कि अज़ीज़ ख़़ुदा के बेटे हैं और नुसैरा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) ख़़ुदा के बेटे हैं ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफि़रों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं ख़़ुद उनको क़त्ल (तहस नहस) करके (देखो तो) कहाँ से कहाँ भटके जा रहे हैं" (Sura 9-30) "ऐ बनी इसराइल हमने तुमको तुम्हारे दुश्मन (के पंजे) से छुड़ाया और तुम से (कोहेतूर) के दाहिने तरफ का वायदा किया और हम ही ने तुम पर मन व सलवा नाजि़ल किया.और (फ़रमाया) कि हमने जो पाक व पाक़ीज़ा रोज़ी तुम्हें दे रखी है उसमें से खाओ (पियो) और उसमें (किसी कि़स्म की) शरारत न करो वरना तुम पर मेरा अज़ाब नाजि़ल हो जाएगा और (याद रखो कि) जिस पर मेरा ग़ज़ब नाजि़ल हुआ तो वह यक़ीनन गुमराह (हलाक) हुआ " (Sura 20-80,81) "और हमने बनी इसराईल को किताब (तौरेत) और हुकूमत और नबूवत अता की और उन्हें उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं और उनको सारे जहाँन पर फ़ज़ीलत दी.और उनको दीन की खुली हुई दलीलें इनायत की तो उन लोगों ने इल्म आ चुकने के बाद बस आपस की जि़द में एक दूसरे से एख़्तेलाफ़ किया कि ये लोग जिन बातों से एख़्तेलाफ़ कर रहें हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उनमें फैसला कर देगा" (Sura 45-16,17) .
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यीशु
एक मोजेक यीशु या यीशु मसीहईसा, यीशु और मसीह नाम हेतु पूरी चर्चा इस लेख के वार्ता पृष्ठ पर है। प्रचलित मान्यता के विरुद्ध, ईसा एक इस्लामी शब्दावली है, व "यीशु" सही ईसाई शब्दावली है। तथा मसीह एक उपादि है। विस्तृत चर्चा वार्ता पृष्ठ पर देखें। (इब्रानी:येशुआ; अन्य नाम:ईसा मसीह, जीसस क्राइस्ट), जिन्हें नासरत का यीशु भी कहा जाता है, ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं। ईसाई लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक परमेश्वर का तृतीय सदस्य मानते हैं। ईसा की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम (ख़ास तौर पर चार शुभसन्देशों: मत्ती, लूका, युहन्ना, मर्कुस पौलुस का पत्रिया, पत्रस का चिट्ठियां, याकूब का चिट्ठियां, दुनिया के अंत में होने वाले चीजों का विवरण देने वाली प्रकाशित वाक्य) में दिये गये हैं। यीशु मसीह को इस्लाम में ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के भी महानतम पैग़म्बरों में से एक माना जाता है। .
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लिपि
लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ होता है किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं। किसी एक भाषा को उसकी सामान्य लिपि से दूसरी लिपि में लिखना, इस तरह कि वास्तविक अनुवाद न हुआ हो, इसे लिप्यन्तरण कहते हैं। चीनी लिपि (चित्रलिपि) यद्यपि संसार भर में प्रयोग हो रही भाषाओं की संख्या अब भी हजारों में है, तथापि इस समय इन भाषाओं को लिखने के लिये केवल लगभग दो दर्जन लिपियों का ही प्रयोग हो रहा है। और भी गहराई में जाने पर पता चलता है कि संसार में केवल तीन प्रकार की ही मूल लिपियाँ (या लिपि परिवार) है-.
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सामी भाषाएँ
प्राचीन काल की सामी भाषाओँ का फैलाव सामी भाषाएँ या सॅमॅटिक भाषाएँ २७ करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओँ का एक भाषा परिवार है जो स्वयं सामी-हामी भाषा-परिवार की एक उपशाखा है। यह भाषाएँ मध्य पूर्व, उत्तर अफ़्रीका और अफ़्रीका के सींग के क्षेत्रों में बोली जाती हैं। सब से अधिक बोली जाने वाली सामी भाषा अरबी है, जिसे २० करोड़ से अधिक लोग अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। इसके आलावा अम्हारिक (२.७ करोड़), तिग्रिन्या (६७ लाख), इब्रानी (५० लाख) और आरामाईक (२२ लाख) कुछ अन्य प्रचलित सामी भाषाएँ हैं।, Anatole Lyovin, Oxford University Press US, 1997, ISBN 978-0-19-508116-9 सामी भाषाओं को इतिहास में बहुत ही जल्दी लिखित रूप में देखा गया था। सन् ३००० ईसापूर्व में सुमेर सभ्यता द्वारा विकसित अंकन लिपि (क्यूनीफ़ॉर्म) का प्रयोग एब्लाई और अक्कादी भाषाओँ के लिए आरम्भ हो गया जो सामी भाषाएँ थीं। सामी भाषाएँ अब इब्रानी, सीरियाई, अरबी और गेएज़ लिपि में लिखी जाती हैं। इनमें अक्सर स्वरों को प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि अधिकतर सामी भाषाओं में अर्थ व्यंजनों से ही आता है। हिन्द-यूरोपीय भाषाओँ (जैसे कि हिन्दी) और सामी भाषाओं में एक बड़ा अंतर यह है कि हिन्द-यूरोपीय भाषाओं में ज़्यादातर हर शब्द की एक जड़ होती है जिसके आगे-पीछे अक्षर जोड़कर उसका अर्थ परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए 'लिख' जड़ में अक्षर जोड़कर 'लिखाई', 'लिखो', 'लिखना', 'लिखा', इत्यादि बनते हैं। सामी भाषाओं में जड़े आम तौर पर तीन व्यंजनों का समूह होती हैं जिनके बीच में स्वर भरकर उनका अर्थ परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए अरबी में: किताब (पुस्तक), कुतुब (पुस्तकें), कातिब (लेखक), कुत्ताब (कई लेखक), कतबा (उसने लिखा), याकतुबू (वह लिखता है)। इसमें क-त-ब के व्यंजनों के बीच में स्वर बदलकर मतलब बदले जा रहें हैं।, Nizar Y.
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सीरिया
सीरिया ('''سوريّة'''. or), आधिकारिक रूप से सीरियाई अरब गणराज्य (अरबी: الجمهورية العربية السورية), दक्षिण-पश्चिम एशिया का एक राष्ट्र है। इसके पश्चिम में लेबनॉन तथा भूमध्यसागर, दक्षिण-पश्चिम में इजराइल, दक्षिण में ज़ॉर्डन, पूरब में इराक़ तथा उत्तर में तुर्की है। इसराइल तथा इराक़ के बीच स्थित होने के कारण यह मध्य-पूर्व का एक महत्वपूर्ण देश है। इसकी राजधानी दमास्कस है जो उमय्यद ख़िलाफ़त तथा मामलुक साम्राज्य की राजधानी रह चुका है। अप्रैल 1946 में फ्रांस से स्वाधीनता मिलने के बाद यहाँ के शासन में बाथ पार्टी का प्रभुत्व रहा है। 1963 से यहाँ आपातकाल लागू है जिसके कारण 1970 के बाद से यहाँ के शासक असद परिवार के लोग होते हैं। .
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ईसाई धर्म
'''ईद्भास/क्रॉस''' - यह ईसाई धर्म का निशान है ईसाई धर्म (अन्य प्रचलित नाम:मसीही धर्म व क्रिश्चियन धर्म) एक इब्राहीमीChristianity's status as monotheistic is affirmed in, amongst other sources, the Catholic Encyclopedia (article ""); William F.
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इब्रानी भाषा
हिब्रूभाषी क्षेत्र हिब्रू (עִבְרִית, Ivrit) सामी-हामी भाषा-परिवार की सामी शाखा में आने वाली एक भाषा है। ये इस्राइल की मुख्य- और राष्ट्रभाषा है। इसका पुरातन रूप बिब्लिकल हिब्रू यहूदी धर्म की धर्मभाषा है और बाइबिल का पुराना नियम इसी में लिखा गया था। ये हिब्रू लिपि में लिखी जाती है ये दायें से बायें पढ़ी और लिखी जाती है। पश्चिम के विश्वविद्यालयों में आजकल इब्रानी का अध्ययन अपेक्षाकृत लोकप्रिय है। प्रथम महायुद्ध के बाद फिलिस्तीन (यहूदियों का इज़रायल नामक नया राज्य) की राजभाषा आधुनिक इब्रानी है। सन् १९२५ई.
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अशोक
चक्रवर्ती सम्राट अशोक (ईसा पूर्व ३०४ से ईसा पूर्व २३२) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। उनका राजकाल ईसा पूर्व २६९ से २३२ प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अखंड भारत पर राज्य किया है तथा उनका मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान तक पहुँच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का संपूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शिर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ कहाँ जाता है, जिसका अर्थ है - ‘सम्राटों का सम्राट’, और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध धर्म धर्म का प्रचार किया। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी एन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है। जीवन के उत्तरार्ध में सम्राट अशोक भगवान बुद्ध की मानवतावादी शिक्षाओं से प्रभावित होकर बौद्ध हो गये और उन्ही की स्मृति में उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - में मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैंड, चीन इन देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे। सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे। शिलालेख सुरु करने वाला पहला शासक अशोक ही था, .
देखें आरामाईक और अशोक
आरमेइक, आरमेइक भाषा, अरामी के रूप में भी जाना जाता है।