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अप्रमा

सूची अप्रमा

प्रमा से विपरीत अनुभव को 'अप्रमा' कहते हैं अर्थात्‌ किसी वस्तु में किसी गुण का अनुभव जिसमें वह गुण विद्यमान ही नहीं रहता। न्यायमत में ज्ञान दो प्रकार का होता है। संस्कार मात्र से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान 'स्मृति' कहलाता है तथा स्मृति से भिन्न ज्ञान 'अनुभव' कहा जाता हैं। यह 'अनुभव' दो प्रकार का होता है- यथार्थ अनुभव तथा अयथार्थ अनुभव। जो वस्तु जैसी हो उसका उसी रूप में अनुभव होना यथार्थ अनुभव है (यथाभूतोऽर्थो यस्मिन्‌ स)। घट का घट रूप में अनुभव होना यथार्थ कहलाएगा। यथार्थ अनुभव की ही दूसरा नाम 'प्रमा' हैं। 'अयं घट:' (यह घड़ा है) इस प्रमा में हमारे अनुभव का विषय है घट (विशेष्य) जिसमें 'घटत्व' द्वारा सूचित विशेषण की सत्ता वर्तमान रहती है तथा यही घटत्व घट ज्ञान का विशिष्ट चिह्न है। और इसीलिए इसे 'प्रकार' कहते हैं। जब घटत्व से विशिष्ट घट का अनुभव यही होता है कि वह कोई घटत्च से युक्त घट है, तब यह प्रमा होती है- घटत्ववद् घटविशेष्यक-घटत्वप्रकारक अनुभव। प्रमा से विपरीत अनुभव को 'अप्रमा' कहते हैं अर्थात्‌ किसी वस्तु में किसी गुण का अनुभव जिसमें वह गुण विद्यमान ही नहीं रहता। रजत में 'रजतत्व' का ज्ञान अप्रमा है। प्रमा के दृष्टांत में 'घटत्व' घट का विशेषण है और घट ज्ञान का प्रकार हैं। फलत: 'विशेषण' किसी भैतिक द्रव्य का गुण होता है, परंतु 'प्रकार' ज्ञान का गुण होता हैं। श्रेणी:भारतीय दर्शन श्रेणी:न्याय दर्शन श्रेणी:चित्र जोड़ें.

1 संबंध: न्यायशास्त्र

न्यायशास्त्र

लॉ के फिलोज़ोफर्स पूछते है "कानून क्या है?"और "यह क्या हो सकता है?" न्यायशास्त्र कानून (विधि) का सिद्धांत और दर्शन है। न्यायशास्त्र के विद्वान अथवा कानूनी दार्शनिक, विधि (कानून) की प्रवृति, कानूनी तर्क, कानूनी प्रणालियां एवं कानूनी संस्थानों का गहन ज्ञान पाने की उम्मीद रखते हैं। आधुनिक न्यायशास्त्र की शुरुआत 18वीं सदी में हुई और प्राकृतिक कानून, नागरिक कानून तथा राष्ट्रों के कानून के सिद्धांतों पर सर्वप्रथम अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया। साधारण अथवा सामान्य न्यायशास्त्र को प्रश्नों के प्रकार के द्वारा उन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है अथवा इन प्रश्नों के सर्वोत्तम उत्तर कैसे दिए जायं इस बारे में न्यायशास्त्र के सिद्धांतों अथवा विचारधाराओं के स्कूलों दोनों ही तरीकों से पता लगाकर जिनकी चर्चा विद्वान करना चाहते हैं। कानून का समकालीन दर्शन, जो सामान्य न्यायशास्त्र से संबंधित हैं, समस्याओं की चर्चा मोटे तौर पर दो वर्गों में करता है:शाइनर, "कानून के दार्शनिक", कैंब्रिज डिक्शनरी ऑफ़ फिलोज़ोफी.

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