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अपराजित

सूची अपराजित

अपराजिता था एक आठवीं सदी दिगम्बर साधु है। .

3 संबंधों: दिगम्बर साधु, श्वेताम्बर, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰

दिगम्बर साधु

आचार्य विद्यासागर, एक प्रमुख दिगम्बर मुनि दिगम्बर साधु जिन्हें मुनि भी कहा जाता है सभी परिग्रहों का त्याग कर कठिन साधना करते है। दिगम्बर मुनि अगर विधि मिले तो दिन में एक बार भोजन और तरल पदार्थ ग्रहण करते है। वह केवल पिच्छि, कमण्डल और शास्त्र रखते है। इन्हें निर्ग्रंथ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है " बिना किसी बंधन के"। .

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श्वेताम्बर

जैन दर्शन शाश्वत सत्य पर आधारित है। समय के साथ ये सत्य अदृश्य हो जाते है और फिर सर्वग्य या केवलग्यानी द्वारा प्रकट होते है। प्रम्परा से इस अवसर्पिणी काल मे भगवान (ऋषभ or रिषभ) प्रथम तीर्थन्कर हुए, उनके बाद भगवान पार्श्व (877-777 BCE) तथा (महावीर) (599-527 BCE) हुए.

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आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰

१० और १३ अंकों वाले आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ संख्यांक के अलग-अलग हिस्सों से किताब के बारे में अलग-अलग जानकारी मिलती है अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्यांक, जिसे आम तौर पर आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ ("इन्टर्नैशनल स्टैन्डर्ड बुक नम्बर" या ISBN) संख्यांक कहा जाता है हर किताब को उसका अपना अनूठा संख्यांक (सीरियल नम्बर) देने की विधि है। इस संख्यांक के ज़रिये विश्व में छपी किसी भी किताब को खोजा जा सकता है और उसके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पहले यह केवल उत्तर अमेरिका, यूरोप और जापान में प्रचलित था, लेकिन अब धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैल गया है। आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ संख्यांक में १० अंक हुआ करते थे, लेकिन २००७ के बाद से १३ अंक होते हैं। .

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