सामग्री की तालिका
11 संबंधों: तीतर, पक्षी, बतख, मत्स्य, मुर्गी, सरीसृप, स्तनधारी, होमो सेपियन्स, अण्डा, अंडे की ज़र्दी, उभयचर।
तीतर
तीतर फ़ॅसिअनिडी कुल के पक्षी हैं जिसे अंग्रेज़ी में आम भाषा में फ़ीज़ेन्ट कहते हैं। भारत की भाषाओं में फ़्रैंकोलिन और पार्ट्रिज में कोई भेद नहीं है और इन दोनों को तीतर ही कहा जाता है। विश्व भर में इसकी कई प्रजातियाँ हैं और इनमें से कुछ प्रजातियाँ सिर्फ़ भारत में ही पाई जाती हैं। .
देखें अण्डा (खाद्य) और तीतर
पक्षी
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देखें अण्डा (खाद्य) और पक्षी
बतख
नर मंडेरियाई बतख बतख ऐनाटीडे प्रजातियों के पक्षियों का एक आम नाम है जिसमे कलहंस और हंस भी शामिल है। बतख कई अन्य सह प्रजातियों व परिवारों में बाटी हुई है पर फिर भी यह मोनोफेलटिक (एक आम पैतृक प्रजातियों के सभी सन्तान के समूह) नहीं कहलाई जाती। जैसे की हंस और कलहंस इस प्रजाति में होकर भी बतख नहीं कहलाते। बतख ज्यादातर जलीय पक्षियों की तुलना में छोटे होते हैं व दोने ताजा और समुद्री पानी में पायी जाती है। बतखे कई बार इन जैसे ही दिखने वाली या सम्बंधित पक्षियों से जो की इसी प्रकार से विचरण करते हैं जसी की लूंस, ग्रेबेस, कूटस आदि से ब्रह्मित की जाती है। .
देखें अण्डा (खाद्य) और बतख
मत्स्य
मत्स्य के निम्नलिखित अर्थ हैं.
देखें अण्डा (खाद्य) और मत्स्य
मुर्गी
मुर्गा मुर्गी मुर्गी (पुलिंग: मुर्गा) एक पक्षी श्रेणी का मेरूदंडी प्राणी है। .
देखें अण्डा (खाद्य) और मुर्गी
सरीसृप
सरीसृप (Reptiles) प्राणी-जगत का एक समूह है जो कि पृथ्वी पर सरक कर चलते हैं। इसके अन्तर्गत साँप, छिपकली,मेंढक, मगरमच्छ आदि आते हैं। .
देखें अण्डा (खाद्य) और सरीसृप
स्तनधारी
यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.
देखें अण्डा (खाद्य) और स्तनधारी
होमो सेपियन्स
होमो सेपियन्स/आधुनिक मानव स्तनपायी सर्वाहारी प्रधान जंतुओं की एक जाति, जो बात करने, अमूर्त्त सोचने, ऊर्ध्व चलने तथा परिश्रम के साधन बनाने योग्य है। मनुष्य की तात्विक प्रवीणताएँ हैं: तापीय संसाधन के द्वारा खाना बनाना और कपडों का उपयोग। मनुष्य प्राणी जगत का सर्वाधिक विकसित जीव है। जैव विवर्तन के फलस्वरूप मनुष्य ने जीव के सर्वोत्तम गुणों को पाया है। मनुष्य अपने साथ-साथ प्राकृतिक परिवेश को भी अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है। अपने इसी गुण के कारण हम मनुष्यों नें प्रकृति के साथ काफी खिलवाड़ किया है। आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले, सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे। होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का निएंडरथल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवत: उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है। .
देखें अण्डा (खाद्य) और होमो सेपियन्स
अण्डा
विभिन्न पक्षियों के अण्डे मुर्गी का अंडा (बायें) तथा बटेर का अण्डा (दायें) अण्डा गोल या अण्डाकार जीवित वस्तु है जो बहुत से प्राणियों के मादा द्वारा पैदा की जाती है। अधिकांश जानवरों के अंडों के ऊपर एक कठोर आवरण होता है जो अण्डे की सुरक्षा करता है। यद्यपि अण्डा जीवधारियों द्वारा अपनी संताने पैदा करने का मार्ग है, किन्तु अण्डा खाने के काम भी आता है। पोषक तत्वों की दृष्टि से इसमें प्रोटीन एवं चोलाइन भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। .
देखें अण्डा (खाद्य) और अण्डा
अंडे की ज़र्दी
फ्लॉपी अंडे का सफेद से घिरा हुआ एक अखण्ड जर्दी अंडे की ज़र्दी अंडे का वह भाग होता है जो विकसित होते हुए भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। अंडे की ज़र्दी वाला भाग, अंडे के सफ़ेद भाग से एक या दो घुमावदार तंतुओं से जुड़ा रहता है जो चैलेज़े (chalazae) नामक ऊतकों द्वारा बने होते हैं, (इसका अन्य नाम एल्ब्युमेन या ग्लेर /ग्लैयर होता है).
देखें अण्डा (खाद्य) और अंडे की ज़र्दी
उभयचर
उभयचर वर्ग (Amphibia / एंफ़िबिया) पृष्ठवंशीय प्राणियों का एक बहुत महत्वपूर्ण वर्ग है जो जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार मत्स्य और सरीसृप वर्गों के बीच की श्रेणी में आता है। इस वर्ग के कुछ जंतु सदा जल पर तथा कुछ जल और थल दोनों पर रहते हैं। ये अनियततापी जंतु हैं। इस वर्ग में ३००० जाति पाए जाते हैं। शरीर पर शल्क, बाल या पंख नहीं होते हैं, परंतु इनकी त्वचा अधिक ग्रंथिमय होने के कारण चिकनी होती है। मेंढक इस वर्ग का एक प्रमुख प्राणि है। यह पृष्ठवंशियों का प्रथम वर्ग है, जिसने जल के बाहर रहने का प्रयास किया था। फलस्वरूप नई परिस्थितियों के अनुकूल इनकी रचना में प्रधानतया तीन प्रकार के अंतर हुए- (१) इनका शारीरिक ढाँचा जल में तैरने के अतिरिक्त थल पर भी रहने के योग्य हुआ। (२) क्लोम दरारों के स्थान पर फेफड़ों का उत्पादन हुआ तथा रक्तपरिवहन में भी संबंधित परिवर्तन हुए। (३) ज्ञानेंद्रियों में यथायोग्य परिवर्तन हुए, जिससे ये प्राणी जल तथा थल दोनों परिस्थितियों का ज्ञान कर सकें। .
देखें अण्डा (खाद्य) और उभयचर