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ह्वेल

सूची ह्वेल

एक ह्वेल और उसका बच्चा तिमि या ह्वेल (Whale) समुद्रों में रहने वाला एक स्तनधारी प्राणी है जिसे जीव-वैज्ञानिक वर्गीकरण के नज़रिए से सीटेशया के गण में शामिल किया जाता है। ह्वेल अक्सर भीमकाय आकार के होते हैं और सभी स्तनधारियों की तरह वे सांस केवल वायु में ले सकते हैं (यानि पानी में रहकर नहीं ले सकते)। व्हेलों के सिरों पर एक सांस लेने का छेद होता है और वह समय-समय पर पानी की सतह पर आकर इस से सांस खींचते हैं। नीली तिमि विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात जानवर है और यह हाथियों और प्राचीन डाइनोसौरों से कई गुना बड़ा आकार रखता है। नीली तिमि ३० मीटर (९८ फ़ुट) लम्बी और १८० टन का वज़न रख सकती है जबकि पिग्मी स्पर्म तिमि जैसी तिमि की छोटी प्रजातियाँ केवल ३.५ मीटर (११ फ़ुट) की ही होती है।, How Stuff Works, Accessed 2007-05-29 व्हेलें दुनिया भर के समुद्रों और महासागरों में बस्ती हैं और इनकी संख्या लाखों में अनुमानित है लेकिन २०वीं सदी में इनका औद्योगिक पैमाने पर शिकार होने से इनकी बहुत सी जातियों पर हमेशा के लिए विलुप्त होने का संकट मंडराने लगा था। उसके बाद बहुत से देशों में व्हेलों के शिकार पर पाबंदी लगाई जिस से इस ख़तरे से उभरने में कुछ मदद मिली है। .

26 संबंधों: ऊष्मा विनिमायक, चौपाये, टुण्ड्रा, तिमिगण, दक्षिणध्रुवीय महासागर, पृष्ठीय फ़िन, बाल, यूरोप, लावारिस क्षेत्र, शीर्षपाद, सार्वत्रिक वितरण, संघ (जीवविज्ञान), स्तनधारी, स्कॉट्लैण्ड, सूंस, हेपरिन, जगत (जीवविज्ञान), जीववैज्ञानिक वर्गीकरण, वर्ग (जीवविज्ञान), वंश (जीवविज्ञान), वॉयेजर द्वितीय, गण (जीवविज्ञान), कश्यप, कुल (जीवविज्ञान), क्रिल, अग्रसेन की बावली

ऊष्मा विनिमायक

नलिकाकार ताप विनिमायक. ऊष्मा विनिमायक (हीट इक्सचेंजर) एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रभावी ऊष्मा अंतरण के लिए बनाया गया एक उपकरण है। माध्यम एक ठोस दीवार से अलग हो सकता है, ताकि वे कभी आपस में ना मिलें, या वे सीधे संपर्क में हो सकें.

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चौपाये

चौपाये (Tetrapod) या चतुरपाद उन प्राणियों का महावर्ग है जो पृथ्वी पर चार पैरों पर चलने वाले सर्वप्रथम कशेरुकी (यानि रीढ़-वाले) प्राणियों के वंशज हैं। इसमें सारे वर्तमान और विलुप्त उभयचर (ऐम्फ़िबियन), सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल), पक्षी और कुछ विलुप्त मछलियाँ शामिल हैं। यह सभी आज से लगभग ३९ करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के डिवोनी कल्प में उत्पन्न हुई कुछ समुद्री लोब-फ़िन मछलियों से क्रम-विकसित हुए थे। चौपाये सब से पहले कब समुद्र से निकल कर ज़मीन पर फैलने लगे, इस बात को लेकर अनुसंधान व बहस जीवाश्मशास्त्रियों में जारी है। हालांकि वर्तमान में अधिकतर चौपाई जातियाँ धरती पर रहती हैं, पृथ्वी की पहली चौपाई जातियाँ सभी समुद्री थीं। उभयचर अभी-भी अर्ध-जलीय जीवन व्यतीत करते हैं और उनका आरम्भ पूर्णतः जल में रहने वाले मछली-रूपी बच्चें से होता है। लगभग ३४ करोड़ वर्ष पूर्व ऐम्नीओट (Amniotes) उत्पन्न हुये, जिनके शिशुओं का पोषण अंडों में या मादा के गर्भ में होता है। इन ऐम्नीओटों के वंशजों ने पानी में अंडे छोड़ने-वाले उभयचरों की अधिकतर जातियों को विलुप्त कर दिया हालांकि कुछ वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं। आगे चलकर यह ऐम्नीओट भी दो मुख्य शाखाओं में बंट गये। एक शाखा में छिपकलियाँ, डायनासोर, पक्षी और उनके सम्बन्धी उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी शाखा में स्तनधारी और उनके अब-विलुप्त सम्बन्धी विकसित हुए। जहाँ मछलियों में क्रम-विकास से चार-पाऊँ बनकर चौपाये बने थे, वहीं सर्प जैसे कुछ चौपायों में क्रम-विकास से ही यह पाऊँ ग़ायब हो गये। कुछ ऐसे भी चौपाये थे जो वापस समुद्री जीवन में चले गये, जिनमें ह्वेल शामिल है। फिर-भी जीववैज्ञानिक दृष्टि से चौपायों के सभी वंशज चौपाये ही समझे जाते हैं, चाहें उनके पाँव हो या नहीं और चाहे वे समुद्र में रहें या धरती पर। .

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टुण्ड्रा

भौतिक भूगोल में, टुण्ड्रा एक बायोम है जहां वृक्षों की वृद्धि कम तापमान और बढ़ने के अपेक्षाकृत छोटे मौसम के कारण प्रभावित होती है। टुंड्रा शब्द फिनिश भाषा से आया है जिसका अर्थ “ऊँची भूमि”, “वृक्षविहीन पर्वतीय रास्ता” होता है। टुंड्रा प्रदेशों के तीन प्रकार हैं: आर्कटिक टुंड्रा, अल्पाइन टुंड्रा और अंटार्कटिक टुंड्रा। टुंड्रा प्रदेशों की वनस्पति मुख्यत: बौनी झाड़ियां, दलदली पौधे, घास, काई और लाइकेन से मिलकर बनती है। कुछ टुंड्रा प्रदेशों में छितरे हुये वृक्ष उगते हैं। किसी टुंड्रा प्रदेश और जंगल के बीच की पारिस्थितिक सीमा वृक्ष रेखा कहलाती है। .

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तिमिगण

तिमिगण (अंग्रेज़ी: Cetacea, सीटेशिया) विश्व भर के सागरों में विस्तृत एक मांसाहारी, फ़िन-धारी, समुद्री स्तनधारी प्राणी जातियों का क्लेड (जीववैज्ञानिक समूह) है। यह ओडोन्टोसेटाए (Odontoceti, दंतदार तिमि, जिनमें डॉलफ़िन शामिल है), मिस्टीसेटाए (Mysticeti, बैलीन तिमि) और आर्केओसेटाए (Archaeoceti, जो आधुनिक तिमि के पूर्वज थे और जिसके सदस्य विलुप्त हो चुके हैं) नामक जीववैज्ञानिक गणों में विभाजित हैं। कुल मिलाकर इस क्लेड में ८९ जातियाँ ज्ञात हैं जिनमें से ७० से अधिक ओडोन्टोसेटाए गण के भाग हैं। आणविक अनुवांशिक अध्ययन के आधार पर पता लगा है कि यह जातियाँ सम-ऊँगली खुरदार जानवरों की सम्बन्धी हैं। दरियाई घोड़ा इनका सबसे समीपी जीवित सम्बन्धी है और यह ऊँट, सूअर और अन्य रोमन्थक से भी सम्बन्धित है और इसके पूर्वज लगभग ५ करोड़ वर्ष पूर्व उनसे क्रम-विकास की प्रक्रिया द्वारा धीरे-धीरे अलग होते चले गये। .

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दक्षिणध्रुवीय महासागर

दक्षिणध्रुवीय महासागर (हल्का नीला) दक्षिणध्रुवीय महासागर, जिसे दक्षिणी महासागर या अंटार्कटिक महासागर भी कहा जाता है, विश्व के सबसे दक्षिण में स्थित एक महासागर है। इसका विस्तार 60° दक्षिण अक्षांश से दक्षिण में है और यह संपूर्ण अंटार्कटिका महाद्वीप को घेरे हुये है (उत्तर दिशा से)। यह पाँच विशाल महासागरों मे से चौथा सबसे बड़ा महासागर है। इस महासागरीय क्षेत्र में उत्तर की ओर बहने वाला ठंडा अंटार्कटिक जल, गर्म उप-अंटार्कटिक जल से मिलता है। भूगोलविज्ञानियों में दक्षिणध्रुवीय महासागर की उत्तरी सीमा को लेकर मतभेद हैं यहाँ तक कि कुछ तो इसके अस्तित्व को ही नकारते हैं और इसे दक्षिणी प्रशांत महासागर, दक्षिणी अटलांटिक महासागर या हिन्द महासागर का दक्षिणी हिस्सा मानते हैं। कुछ भूगोलविज्ञानी अंटार्कटिक सम्मिलन को वह महासागरीय क्षेत्र मानते हैं जिसकी उत्तरी सीमा जो इसे अन्य महासागरों से पृथक करती हैं, 60वीं अक्षांश नहीं है, अपितु यह मौसमानुसार बदलती रहती हैं। अंतरराष्ट्रीय जल सर्वेक्षण संगठन ने अभी तक 60° दक्षिणी अक्षांश के दक्षिण में उपस्थित महासागरों से संबंधित अपनी 2000 परिभाषा की पुष्टि नहीं की है। इसकी सबसे ताजातरीन 1953 की महासागर परिभाषा में दक्षिणध्रुवीय महासागर का उल्लेख नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के मतानुसार, दक्षिणध्रुवीय महासागर ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी सिरे के ठीक नीचे से शुरु हो जाता है। हार्न अंतरीप के पास अंटार्कटिक महासागर की गहराई ९०० किमी है तो अफ्रीका के दक्षिण स्थित अमुलहस अंतरीप के समीप ३६०० किमी। अंटार्कटिक महासागर में अनेक प्लावी हिमशैल (आइसबर्ग) तैरते रहते हैं। कुछ हिमशैल तैरते-तैरते समीपस्थ अन्य महासागरों में भी चले जाते हैं। समुद्री खोजकर्ताओं ने इस सागर में एकाधिक ऐसे प्लावी हिमशैल भी देखे हैं जिनका क्षेत्रफल एक सौ वर्गमील से अधिक था। इनमें से कुछ हिमशैलों की मोटाई एक हजार फीट से भी अधिक थी। अंटार्कटिक महासागर के जल का, सतह पर, औसत तापमान २९.८° फारनहाइट रहता है और तल पर यह तापमान ३२° से ३५° फारनहाइट तक होता है। दक्षिण अमरीका तक पहुँचते-पहुँचते इस सागर की मुख्य धारा दो भागों में विभक्त हो जाती है। एक धारा अमरीका महाद्वीप के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर चली जाती है तो दूसरी पूरब की ओर हार्न अंतरीप से आगे बढ़ जाती है। इस क्षेत्र में छोटे-छोटे पौधे, पक्षी तथा अन्य जीव-जंतु पाए जाते हैं। ह्वेल मछली के शिकार के लिए भी यह महासागर महत्वपूर्ण माना जाता है और यहाँ से ह्वेल का काफी व्यापार होता है। .

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पृष्ठीय फ़िन

पृष्ठीय फ़िन (dorsal fin) कई जलीय प्राणियों की पीठ पर स्थित फ़िन होता है। अधिकांश मछलियों, तिमिगण (व्हेल, सूंस (डोल्फ़िन) और पोर्पोइस) और (विलुप्त) इक्थोयोसॉर जैसे प्राणियों की पीठ पर पृष्ठीय फ़िन होते है। किसी-किसी प्राणी में दो ऐसे फ़िन भी हो सकते हैं। pp.

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बाल

अपने सुन्दर बालों को पूरती हुई कन्या बाल (Hair) स्तनधारी प्राणियों के बाह्य चर्म का उद्वर्ध (outer growth) है। कीटों के शरीर पर जो तंतुमय उद्वर्ध होते हैं, उन्हें भी बाल कहते हैं। बाल कोमल से लेकर रुखड़ा, कड़ा (जैसे सूअर का) और नुकीला तक (जैसे साही का) होता है। प्रकृति ने ठंडे गर्म प्रभाव वाले क्षेत्रों में बसने बाले जीवों को बाल दिये हैं, जो जाडे की ॠतु में ठंड से रक्षा करते है और गर्मी में अधिक ताप से सिर की रक्षा करते हैं। जब शरीर से न सहने वाली गर्मी पडती है, तो शरीर से पसीना बहकर निकलता है, वह बालों के कारण गर्मी से जल्दी नहीं सूखता है, किसी कठोर वस्तु से अचानक हुए हमला से भी बाल बचाव करते है। बहुत से मानवेतर स्तनधारियों के शरीर पर मुलायम बाल पाये जाते हैं; इसे 'फर' कहते हैं। बाल की बनावट पक्षियों के परों या सरीसृप के शल्कों से बिल्कुल भिन्न होती है। स्तनधारियों में ह्वेल के शरीर पर सबसे कम बाल होता है। कुछ वयस्क ह्वेल के शरीर पर तो बाल बिल्कुल होता ही नहीं। मनुष्यों में सबसे घना बाल सिर पर होता है। बाल शरीर को सर्दी और गरमी से बचाता है। शरीर के अन्य भागों पर बड़े सूक्ष्म छोटे छोटे रोएँ होते है। पलकों, हथेली, तलवे तथा अँगुलियों और अँगूठों के नीचे के भाग पर बाल नहीं होते। प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों का शरीर झबरे बालों से ढँका रहता था। पर सभ्य मनुष्य के शरीर पर झबरे बाल नहीं होते। इसलिए वह वस्त्र धारण कर अपने शरीर की सर्दी और गरम से रक्षा करता है। मनुष्य के कुछ भागों में, हारमोन के स्राव बनने पर ही बाल उगते हैं, जैसे ओठों पर, काँखों में, लिंगोपरि भागों में इत्यादि। मनुष्यों के लिए बालों के अनेक उपयोग हैं। घोड़ों और बैलों के बाल गद्दों में भरे जाते हैं। कुछ बालों से वार्निश लेपने के बुरुश, दाँत साफ करने के बुरुश बनते हैं। छोटे-छोटे बाल सीमेंट में मिलाकर गृहनिर्माण में प्रयुक्त होते हैं। लंबे-लंबे बालों से कपड़े बुने जाते हैं। ऐसे कपड़े कोट बनाने में लाइनिंग के रूप में काम आते हैं। भेड़ों और कुछ बकरियों से ऊन प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग कंबलों और ऊनी वस्त्रों के निर्माण में होता है। ऊँटों और कुछ किस्म के खरगोशों के बाल से भी कपड़े बुने जाते हैं। कुछ पशुओं के बाल बड़े कोमल होते हैं और समूर (फर) के रूप में व्यवहृत होते हैं। .

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यूरोप

यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.

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लावारिस क्षेत्र

१९३१-१९३३ काल में नोर्वे ने पूर्वी ग्रीनलैंड को 'लावारिस क्षेत्र' बताते हुए उसपर क़ब्ज़ा कर लिया - बाद में इसपर उस समय के स्थाई अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने नोर्वे के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया, जिसपर नोर्वे ने इस क्षेत्र को छोड़ दिया लावारिस क्षेत्र, जिसे लातिनी भाषा में 'टेरा नलिस' (Terra nullis) कहते हैं, ऐसे भौगोलिक क्षेत्र को कहा जाता है जिसपर किसी राष्ट्र का अधिकार न हो। ऐसे क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करके उन्हें किसी देश का भाग बनाया जा सकता है हालांकि वर्तमान विश्व में अधिकतर ऐसे क्षेत्रों पर नियंत्रण करना अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा वर्जित है। उदाहरण के लिए सन् १९२० तक आर्कटिक महासागर में स्थित स्वालबार्ड द्वीप समूह एक लावारिस क्षेत्र था। यहाँ किसी भी देश का स्थाई क़ब्ज़ा नहीं था और केवल गर्मियों में व्हेल पकड़ने वाले कुछ मछुआरे यहाँ आया करते थे। ९ फ़रवरी १९२० में की गई स्वालबार्ड संधि के अंतर्गत इस लावारिस क्षेत्र को नोर्वे का हिस्सा बना दिया गया।, Anthony Aust, pp.

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शीर्षपाद

कुछ शीर्षपाद जन्तु शीर्षपाद या सेफैलोपोडा (Cephalopoda) अपृष्ठवंशी प्राणियों का एक सुसंगठित वर्ग जो केवल समुद्र ही में पाया जाता है। यह वर्ग मोलस्का (mollusca) संघ के अंतर्गत आता है। इस वर्ग के ज्ञात जीवित वंशों की संख्या लगभग १५० है। इस वर्ग के सुपरिचित उदाहरण अष्टभुज (octopus), स्क्विड (squid) तथा कटल फिश (cuttlefish) हैं। सेफैलोपोडा के विलुप्त प्राणियों की संख्या जीवितों की तुलना में अधिक है। इस वर्ग के अनेक प्राणी पुराजीवी (palaeozoic) तथा मध्यजीवी (mesozoic) समय में पाए जाते थे। विलुप्त प्राणियों के उल्लेखनीय उदाहरण ऐमोनाइट (Ammonite) तथा बेलेम्नाइट (Belemnite) हैं। सेफैलोपोडा की सामान्य रचनाएँ मोलस्का संघ के अन्य प्राणियों के सदृश ही होती हैं। इनका आंतरांग (visceral organs) लंबा और प्रावार (mantle) से ढका रहता है। कवच (shell) का स्राव (secretion) प्रावार द्वारा होता है। प्रावार और कवच के मध्य स्थान को प्रावार गुहा (mantle cavity) कहते हैं। इस गुहा में गिल्स (gills) लटकते रहते हैं। आहार नाल में विशेष प्रकार की रेतन जिह्वा (rasping tongue) या रैड्डला (redula) होता है। सेफोलोपोडा के सिर तथा पैर इतने सन्निकट होते हैं कि मुँह पैरों के मध्य स्थित होता है। पैरों के मुक्त सिरे कई उपांग (हाथ तथा स्पर्शक) बनाते हैं। अधिकांश जीवित प्राणियों में पंख (fins) तथा कवच होते हैं। इन प्राणियों के कवच या तो अल्प विकसित या ह्रसित होते हैं। इस वर्ग के प्राणियों का औसत आकार काफी बड़ा होता है। अर्किट्यूथिस (architeuthis) नामक वंश सबसे बड़ा जीवित अपृष्ठवंशी है। इस वंश के प्रिंसेप्स (princeps) नामक स्पेशीज की कुल लंबाई (स्पर्शक सहित) ५२ फुट है। सेफैलोपोडा, ह्वेल (whale), क्रस्टेशिआ (crustacea) तथा कुछ मछलियों द्वारा विशेष रूप से खाए जाते हैं। .

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सार्वत्रिक वितरण

जीव-भूगोल में, किसी वर्गक (टैक्सोन) के वितरण को, सार्वत्रिक वितरण तब कहा जाता है यदि, इसका जीव-भौगोलिक क्षेत्र विश्वव्यापी या विश्व के अधिकतर हिस्सों के उपयुक्त पर्यावासों में हो। उदाहरण के लिए, व्हेल का वितरण, सार्वत्रिक वितरण है, क्योंकि यह दुनिया के लगभग सभी महासागरों में पाई जाती है। अन्य उदाहरणों में मनुष्य, लाइकेन प्रजाति पार्मेलिया सुलकाटा और मोलस्क वंश माइटिलस शामिल हैं। सार्वत्रिक वितरण का कारण पर्यावरण सह्य-सीमाओं का व्यापक क्षेत्र, या विकास के लिए आवश्यक समय से अधिक तेजी से हुआ फैलाव हो सकता है। .

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संघ (जीवविज्ञान)

वर्ग आते हैं संघ (अंग्रेज़ी: phylum, फ़ायलम) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी वर्गों (क्लासों) से ऊपर और जगत (किंगडम) के नीचे आता है, यानि एक संघ में बहुत से वर्ग होते हैं और बहुत से संघों को एक जीववैज्ञानिक जगत में संगठित किया जाता है। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक संघ में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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स्कॉट्लैण्ड

स्काटलैंड यूनाइटेड किंगडम का एक देश है। यह ग्रेट ब्रिटेन का उत्तरी भाग है। यह पहाड़ी देश है जिसका क्षेत्रफल ७८,८५० वर्ग किमी है। यह इंगलैंड के उत्तर में स्थित है। यहां की राजधानी एडिनबरा है। ग्लासगो यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। स्कॉटलैण्ड की सीमा दक्षिण में इंग्लैंड से सटी है। इसके पूरब में उत्तरी सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में नॉर्थ चैनेल और आयरिश सागर हैं। मुख्य भूमि के अलावा स्कॉटलैण्ड के अन्तर्गत ७९० से भी अधिक द्वीप हैं। यूँ तो स्कॉटलैंड यूनाइटेड किंगडम के अधीन एक राज्य है लेकिन यहाँ का अपना मंत्रिमंडल है। यहाँ की मुद्रा का रंग और उस पर बने चित्र भी लंदन के पौंड से कुछ अलग है। लेकिन उनकी मान्यता और मूल्य दोनों ही पौंड के समान है। यहाँ घूमने और लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के लोग इंग्लैंड सरकार से थोड़े से खफा रहते हैं। .

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सूंस

सूंस। सूंस (डॉल्फिन) समुद्री स्तनधारी जीव हैं और तिमि तथा शिंशुमार के निकट संबंधी हैं। इनके १७ वंश और ४० प्रजातियां हैं। इनका आकार १.२ मी (४ फीट) एवं ४०० कि.ग्रा (माउई सूंस) से लेकर ९.५ मी (३० फीट) १० टन (ऑर्का या किलर व्हेल) तक हो सकता है। ये विश्व भर में पाई जाती हैं, खास तौर पर महाद्वीपीय जलसीमा के उथले सागरीय क्षेत्रों में। ये मांसाहारी होती हैं और छोटी मछलियों और विद्रूपों को खाती हैं। सीटेसियन गण में डेल्फिनिडि सबसे बड़ा और अपेक्षाकृत नवीन कुल है। सूंसो का प्रादुर्भाव पृथ्वी पर लगभग १ करोड़ वर्ष पहले मियोसीन काल के दौरान हुआ था। सूंस पृथ्वी के कुछ सबसे अधिक बुद्धिमान जीवों में से एक है और उनके अक्सर दोस्ताना व्यवहार और हमेशा खुश रहने की आदत ने उन्हें मानवो के बीच खासा लोकप्रिय बना दिया है। गंगा नदी में पायी जाने वाली सूंस को भारत सरकार ने भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है। .

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हेपरिन

हेपरिन (प्राचीन ग्रीक ηπαρ से (हेपर), यकृत), जिसे अखंडित हेपरिन के रूप में भी जाना जाता है, एक उच्च-सल्फेट ग्लाइकोसमिनोग्लाइकन, व्यापक रूप से एक थक्का-रोधी इंजेक्शन के रूप में प्रयोग किया जाता है और किसी भी ज्ञात जैविक अणु घनत्व से इसमें सबसे ज्यादा ऋणात्मक चार्ज है। इसका इस्तेमाल विभिन्न प्रयोगात्मक और चिकित्सा उपकरणों जैसे टेस्ट ट्यूब और गुर्दे की डायलिसिस मशीनों पर थक्का-रोधी आंतरिक सतह बनाने के लिए किया जाता है। फ़ार्मास्युटिकल ग्रेड हेपरिन को मांस के लिए वध किये जाने वाले जानवरों, जैसे शूकरीय (सुअर) आंत या गोजातीय (गाय) फेफड़े के म्युकोसल ऊतकों से प्राप्त किया जाता है। हालांकि चिकित्सा में इसका उपयोग मुख्य रूप से थक्कारोध के लिए किया जाता है, शरीर में इसकी वास्तविक क्रियात्मक भूमिका अस्पष्ट बनी हुई है, क्योंकि रक्त विरोधी स्कंदन को अधिकांशतः हेपरन सल्फेट प्रोटियोग्लाइकन्स द्वारा हासिल किया जाता है जिसे अंतःस्तरीय कोशिकाओं से प्राप्त किया जाता है। हेपरिन आम तौर पर मास्ट कोशिका के स्रावी बीजाणु के भीतर संग्रहीत रहता है और सिर्फ ऊतक चोट की जगहों पर वस्कुलेचर में जारी होता है। यह प्रस्तावित है कि थक्कारोध के बजाय, हेपरिन का मुख्य उद्देश्य ऐसी जगहों पर हमलावर बैक्टीरिया और अन्य बाह्य तत्वों से रक्षा करना है। इसके अलावा, यह व्यापक रूप से विभिन्न प्रजातियों में संरक्षित है, जिनमें शामिल हैं कुछ अकशेरुकी जीव जिनमें ऐसी ही समान रक्त जमाव प्रणाली नहीं है। .

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जगत (जीवविज्ञान)

संघ शामिल होते हैं जगत (अंग्रेज़ी: kingdom, किंगडम) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक ऊँची श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी संघों (फ़ायलमों) से ऊपर आती है, यानि एक जगत में बहुत से संघ होते हैं और बहुत से संघों को एक जीववैज्ञानिक जगत में संगठित किया जाता है।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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जीववैज्ञानिक वर्गीकरण

जीवजगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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वर्ग (जीवविज्ञान)

गण आते हैं वर्ग (अंग्रेज़ी: class, क्लास) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी गणों (ओर्डरों) से ऊपर और संघों (फ़ायलमों) के नीचे आती है, यानि एक वर्ग में बहुत से गण होते हैं और बहुत से वर्गों को एक फ़ायलम में संगठित किया जाता है। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक वर्ग में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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वंश (जीवविज्ञान)

एक कूबड़ वाला ड्रोमेडरी ऊँट और दो कूबड़ो वाला बैक्ट्रियाई ऊँट दो बिलकुल अलग जातियाँ (स्पीशीज़) हैं लेकिन दोनों कैमेलस​ (Camelus) वंश में आती हैं जातियाँ आती हैं वंश (लैटिन: genus, जीनस; बहुवाची: genera, जेनेरा) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक वंश में एक-दूसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों की जातियाँ आती हैं। ध्यान दें कि वंश वर्गीकरण के लिए मानकों को सख्ती से संहिताबद्ध नहीं किया गया है और इसलिए अलग अलग वर्गीकरण कर्ता वंशानुसार विभिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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वॉयेजर द्वितीय

वायेजर द्वितीय एक अमरीकी मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर १ से पहले २० अगस्त १९७७ को अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। यह काफी कुछ अपने पूर्व संस्करण यान वायेजर १ के समान ही था, किन्तु उससे अलग इसका यात्रा पथ कुछ धीमा है। इसे धीमा रखने का कारण था इसका पथ युरेनस और नेपचून तक पहुंचने के लिये अनुकूल बनाना। इसके पथ में जब शनि ग्रह आया, तब उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण यह युरेनस की ओर अग्रसर हुआ था और इस कारण यह भी वायेजर १ के समान ही बृहस्पति के चन्द्रमा टाईटन का अवलोकन नहीं कर पाया था। किन्तु फिर भी यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला प्रथम यान था। इसकी यात्रा में एक विशेष ग्रहीय परिस्थिति का लाभ उठाया गया था जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है। यह विशेष स्थिति प्रत्येक १७६ वर्ष पश्चात ही आती है। इस कारण इसकी ऊर्जा में बड़ी बचत हुई और इसने ग्रहों के गुरुत्व का प्रयोग किया था। .

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गण (जीवविज्ञान)

कुल आते हैं गण (अंग्रेज़ी: order, ऑर्डर; लातिनी: ordo, ओर्दो) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक गण में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के कुल आते हैं। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक कुल में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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कश्यप

आंध्र प्रदेश में कश्यप प्रतिमा वामन अवतार, ऋषि कश्यप एवं अदिति के पुत्र, महाराज बलि के दरबार में। कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। .

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कुल (जीवविज्ञान)

वंश आते हैं कुल (अंग्रेज़ी: family, फ़ैमिली; लातिनी: familia, फ़ामिलिया) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्राणियों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक कुल में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के वंश आते हैं। ध्यान दें कि हर प्राणी वंश में बहुत-सी भिन्न प्राणियों की जातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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क्रिल

क्रिल (Krill) छोटे आकार के क्रस्टेशिया प्राणी हैं जो विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं। समुद्रों में क्रिल खाद्य शृंखला की सबसे निचली श्रेणियों में होते हैं - क्रिल सूक्ष्मजीवी प्लवक (प्लैन्कटन) खाते हैं और फिर कई बड़े आकार के प्राणी क्रिलों को खाते हैं। .

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अग्रसेन की बावली

अग्रसेन की बावली अग्रसेन की बावली, एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल हैं जो नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित है।इस बावली में सीढ़ीनुमा कुएं में करीब 105 सीढ़ीयां हैं। 14वीं शताब्दी में महाराजा अग्रसेन ने इसे बनाया था। सन 2012 में भारतीय डाक अग्रसेन की बावली पर डाक टिकट जारी किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं। इस बावली का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है। अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली की बेहतरीन बावलियों में से एक है। क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का जीर्णोद्धार कराया। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अभी भी अच्छी स्थिति में हैं। जंतर मंतर के निकट, हेली रोड पर यह बावली मौजूद है। यहाँ पर नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग कभी तैराकी सीखने के लिए आते थे। बावली की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुग़लक़ तथा लोदी काल (13वी-16वी ईस्वी) से मेल खाती है। लाल बलुए पत्थर से बनी इस बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएँ तुग़लक़ और लोदी काल की तरफ़ संकेत कर रहे हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार इसे अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने बनवाया था। इमारत की मुख्य विशेषता है कि यह उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लम्बी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है। पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद है। यह एक ठोस ऊँचे चबूतरे पर किनारों की भूमिगत दालानों से युक्त है। इसके स्थापत्य में ‘व्हेल मछली की पीठ के समान’ छत, ‘चैत्य आकृति’ की नक़्क़ाशी युक्त चार खम्बों का संयुक्त स्तम्भ, चाप स्कन्ध में प्रयुक्त पदक अलंकरण इसको विशिष्टता प्रदान करता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तिमि, व्हेल, व्हेलों

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