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होरमुज़ जलसन्धि

सूची होरमुज़ जलसन्धि

होरमुज़ जलडमरूमध्य (फ़ारसी:, तंगेह-ए-होरमुज़; अंग्रेज़ी: Strait of Hormuz) पश्चिम एशिया की एक प्रमुख जलसन्धि है जो ईरान के दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से अलग करता है। इसके दक्षिण में संयुक्त अरब अमीरात और ओमान का मुसन्दम नामक बहिक्षेत्र हैं। तेल के निर्यात की दृष्टि से यह जलडमरु बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इराक़, क़तर तथा ईरान जैसे देशों का तेल निर्यात यहीं से होता है। अपने सबसे कम चौड़े स्थान पर इसके दोनों तटों में ३९ किलोमीटर की दूरी है। .

5 संबंधों: ज़ाग्रोस पर्वत, ईरान में यूरोपीय हस्तक्षेप, ईरान का पठार, ओमान की खाड़ी, अफानासी निकितिन

ज़ाग्रोस पर्वत

ज़ाग्रोस पर्वत (फ़ारसी:, रिश्तेह कोह-ए-ज़ाग्रोस; अंग्रेज़ी: Zagros Mountains) ईरान और इराक़ की सबसे बड़ी पर्वतमाला है। यह पश्चिमोत्तरी ईरान से शुरू होकर दक्षिणपूर्वी दिशा में १,५०० किमी चलकर होरमुज़ जलसन्धि में अंत होती है। ईरानी पठार के पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी भाग पर विस्तृत यह शृंखला भौगोलिक रूप से यूरेशियाई तख़्ते और अरबी तख़्ते के टकराव से बनी थी। इसकी सबसे बुलंद चोटियाँ ४,४०९ मीटर (१४,४६५ फ़ुट) ऊँचा कोह-ए-देना (देना पर्वत) और ४,२०० मीटर (१३,७८० फ़ुट) ऊँचा ज़र्द कोह (पीला पर्वत) हैं, हालांकि अलग-अलग स्रोत इनकी ऊँचाइयाँ अलग-अलग बताते हैं।, pp.

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ईरान में यूरोपीय हस्तक्षेप

ईरान में यूरोपीय हस्तक्षेप सत्रहवीं से लेकर बीसवीं सदी तक के ऐसे घटनाक्रम को कहते हैं जिसमें किसी यूरोपीय देश ने ईरान की सत्ता पर कब्जा तो नहीं किया पर उसकी विदेश, व्यापार और सैनिक नीति में बहुत दख़ल डाला। औपनिवेशिक ताकत ब्रिटेन और रूस ने इसमें मुख्य सक्रिय भूमिका निभाई और फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका तथा स्वीडन भी इसमें शामिल रहा। ये सभी हस्तक्षेप और सरकार (शाह) के ये सब हो जाने देने वाली नीति को देखकर 1905-11 तथा 1979 में जनता का विद्रोह भड़का। इस दौरान कई बार ईरानी शासकों ने एक यूरोपीय शक्ति का सहयोग इस लिए लिया ताकि दूसरी शक्तियों से बचा जा सके। ब्रिटेन तथा रूस दोनों मध्य एशिया तथा अफ़ग़ानिस्तान पर एक दूसरे के डर से अधिकार चाहते थे। ब्रिटेन मध्य एशिया में फैल रहे रूसी साम्राज्य को भारत की तरफ बढ़ता क़दम की तरह देखते थे जबकि रूसी ब्रिटेन को मध्य एशिया में हस्तक्षेप करने से रोकना चाहते थे। अंग्रेज़ी में ब्रिटेन तथा रूस की इस औपनिवेशिक द्वंद्व को ग्रेट गेम के नाम से जाना जाता था जो द्वितीय विश्वयुद्ध तक ही चला। इस नाम को प्रथमतया प्रयुक्त करने का श्रेय आर्थर कॉनेली को जाता है जिसको बाद में रुडयार्ड किपलिंग ने अपने उपन्यास किम में इस्तेमाल किया। .

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ईरान का पठार

ईरान का पठार पश्चिमी एशिया और मध्य एशिया का एक भौगोलिक क्षेत्र है। यह पठार अरबी प्लेट और भारतीय प्लेट के बीच में स्थित यूरेशियाई प्लेट के एक कोने पर स्थित है। इसके पश्चिम में ज़ाग्रोस पर्वत, उत्तर में कैस्पियन सागर व कोपेत दाग़ (पर्वतमाला), पश्चिमोत्तर में आर्मेनियाई उच्चभूमि व कॉकस पर्वतमाला, दक्षिण में होरमुज़ जलसन्धि व फ़ारस की खाड़ी और पूर्व में सिन्धु नदी है। पश्चिमोत्तर में कैस्पियन सागर से लेकर दक्षिणपश्चिम में बलोचिस्तान तक ईरान का पठार लगभग २,००० किमी तक विस्तृत है। ईरान व अफ़्ग़ानिस्तान का अधिकतर भाग और पाकिस्तान का सिन्धु नदी से पश्चिम का भाग इसी पठार का हिस्सा है। पठार को एक चकोर के रूप में देखा जाये तो तबरेज़, शिराज़, पेशावर और क्वेटा उसके चार कोनों पर हैं और इसमें कुल मिलाकर ३७,००,००० वर्ग किमी क्षेत्रफल है। पठार कहलाये जाने के बावजूद इस पठार पर वास्तव में कई पर्वतमालाएँ हैं जिनका सबसे ऊँचा शिखर अल्बोर्ज़ पर्वतमाला का ५,६१० मीटर लम्बा दामावन्द पर्वत है और सब्से निचला बिन्दु मध्य ईरान में कर्मान नगर से पूर्व लूत द्रोणी में ३०० मीटर से नीचे स्थित है। .

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ओमान की खाड़ी

ओमान की खाड़ी (अंग्रेज़ी: Gulf of Oman), जिसे अरबी में ख़लीज उमान और फ़ारसी में ख़लीज-ए-मकरान कहते हैं, अरब सागर और होरमुज़ जलसन्धि के बीच स्थित एक जलडमरू है। यह होरमुज़ जलसन्धि के पार फ़ारस की खाड़ी से जुड़ता है। हालांकि इसे खाड़ी बुलाया जाता है, भौगोलिक रूप से यह वास्तव में एक जलडमरू है। इसके उत्तर में ईरान और पाकिस्तान का मकरान क्षेत्र है जबकि इसके दक्षिण में संयुक्त अरब अमीरात और ओमान स्थित हैं। फ़ारस की खाड़ी की तुलना में इसकी गहराई काफी अधिक है।, John E. Randall, pp.

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अफानासी निकितिन

अफ़नासिय निकीतिन का स्मारक अफानासी निकितिन (रूसी: Афанасий Никитин) - एक रुसी व्यापारी था जिसने १५वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की। वह लेखक के रूप में भी प्रसिद्ध है - उसकी पुस्तक "तीन समुद्र पार का सफरनामा" यह भारत के इतिहास का अहम सूत्र है। वास्को डि गामा से २५ वर्ष पूर्व भारत की धरती पर कदम रखने वाला पहला यूरोपीय अफ़नासी निकीतीन मूल रूप से रूस का रहने वाला था। वह सन् 1466 से 1475 के बीच लगभग तीन वर्ष तक भारत में रहा। निकीतीन रूस से चल कर जार्जिया, अरमेनिया, ईरान के रास्ते मुंबई पहुंचा था। सन् 1475 में वह अफ्रीका होता हुआ वापिस लौटा, लेकिन अपने घर त्वेर पहुंचने से पहले ही उसका निधन हो गया। निकीतीन द्वारा भारत-यात्रा पर लिखे संस्मरणों को १९वीं सदी में रूस के जाने-माने इतिहासविद् एन.एम.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

हारमुज जलसन्धि, होरमुज जलडमरुमध्य, होर्मुज, होर्मुज जलसन्धि, होर्मुज़ जलसन्धि

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