संस्कृत साहित्य ही क्या, सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में प्रकृति चित्रण की विशेष परम्परा रही है और हिन्दी साहित्य (विशेषतः हिन्दी काव्य) भी प्रकृति चित्रण से भरा पड़ा है। यह अकारण नहीं है। प्रकृति और मानव का सम्बन्ध उतना ही पुराना है जितना कि सृष्टि के उद्भव और विकास का इतिहास। प्रकृति की गोद में ही प्रथम मानव शिशु ने आँखे खोली थी, उसी के गोद में खेलकर बड़ा हुआ है। इसीलिए मानव और प्रकृति के इस अटूट सम्बन्ध की अभिव्यक्ति धर्म, दर्शन, साहित्य और कला में चिरकाल से होती रही है। साहित्य मानव जीवन का प्रतिबिम्ब है, अतः उस प्रतिबिम्ब में उसकी सहचरी प्रकृति का प्रतिविम्बित होना स्वाभाविक है। काव्य में प्रकृति का वर्णन कई प्रकार से किया जाता है जैसे - आलंबन, उद्दीपन, उपमान, पृष्ठभूमि, प्रतीक, अलंकार, उपदेश, दूती, बिम्ब-प्रतिबिम्ब, मानवीकरण, रहस्य तथा मानव-भावनाओं का आरोप आदि। केशव ने अपनी कविप्रिया में वर्ण विषयों का उल्लेख निम्न प्रकार किया है: .
0 संबंधों।