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हवन कुंड

सूची हवन कुंड

हवन कुंड अग्नि के द्वारा देवताओं को पहुंचाने वाले सोम के लिये हवन कुंड का प्रयोग किया जाता है। हवन कुंड को वेदी के अनुसार बनाया जाता है। एक वेदी का हवन कुंड रोजाना के भोजन को पकाने के काम में लिया जाता है। द्वि वेदी का हवन कुंड साधारण ब्राह्मण के द्वारा अपनी दैनिक हवनात्मक क्रिया के लिये प्रयोग किया जाता है। त्रिवेदीय हवन कुंड को सत रज और तम तीनो प्रकार की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये किया जाता है। चतुर्वेदीय हवन कुंड को धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति के निमित्त प्रयोग किया जाता है। हवन कुंड में वेदी का आकार वर्गाकार होता है और सीढियों के रूप में कार्य योजना के अनुसार चौडाई और ऊंचाई में बनाया जाता है। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

2 संबंधों: शनि (ज्योतिष), हवन

शनि (ज्योतिष)

बण्णंजी, उडुपी में शनि महाराज की २३ फ़ीट ऊंची प्रतिमा शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:। अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥ भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं। .

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हवन

हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं).

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