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स्कन्दगुप्त

सूची स्कन्दगुप्त

स्कन्दगुप्तकालीन मुद्रा जिस पर स्कन्दगुप्त का चित्र अंकित है। स्कन्दगुप्त प्राचीन भारत में तीसरी से पाँचवीं सदी तक शासन करने वाले गुप्त राजवंश के आठवें राजा थे। इनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो वर्तमान समय में पटना के रूप में बिहार की राजधानी है। स्कन्दगुप्त ने जितने वर्षों तक शासन किया उतने वर्षों तक युद्ध किया। भारत की बर्बर हूणों से रक्षा करने का श्रेय स्कन्दगुप्त को जाता है। हूण मध्य एशिया में निवास करने वाले बर्बर कबीलाई लोग थे। उन्होंने हिन्दु कुश पार कर गन्धार पर अधिकार कर लिया और फिर महान गुप्त साम्राज्य पर धावा बोला। परंतु वीर स्कन्दगुप्त ने उनका सफल प्रतिरोध कर उन्हें खदेड़ दिया। हूणों के अतिरिक्त उसने पुष्यमित्रों को भी विभिन्न संघर्षों में पराजित किया। पुष्यमित्रों को परास्त कर अपने नेतृत्व की योग्यता और शौर्य को सिद्ध कर स्कन्दगुप्त ने विक्रमादित्य कि उपाधि धारण की.

14 संबंधों: चंद्रगोमिन्‌, पुरुगुप्त, प्राचीन भारत, भारतीय नैयायिक, भितरी, भीतरी (गाँव), राम गोपाल बजाज, रामगुप्त, रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख, जयशंकर प्रसाद, वसुबन्धु, गिरनार, गुप्त राजवंश, २१ नवम्बर

चंद्रगोमिन्‌

चंद्रगोमिन्‌ प्रसिद्ध बौद्ध वैयाकरण थे। वे 'चांद्र व्याकरण' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के प्रवर्तक माने जाते र्हे। इनके अन्य प्रसिद्ध नाम थे 'चंद्र' और 'चंद्राचार्य'। इनका समय जयादित्य और वामन की 'काशिका' (वृत्तिसूत्र, समय 650 ई. के आसपास) तथा भर्तृहरि (या हरि) के 'वाक्यपदीय' से निश्चित रूप में पूर्ववर्ती है। काशिकासूत्रवृत्ति में इनके अनेक नियमसूत्र बिना नामोल्लेख के गृहीत हैं। वाक्य पदीय में बताया गया है कि पंतजलि को शिष्यपरंपरा में जो व्याकरण नष्टभ्रष्ट हो गया था उसे चंद्राचार्यादि ने अनेक शाखाओं में पुन-प्रणीत किया (य: पंतजलिशिष्येभ्यो भ्रष्टो व्याकरणागम:। सनीतो बहुशाखत्वं चंद्राचार्यादिभि: पुन: 2/489)। चांद्र व्याकरण में उद्घृत उदाहरण 'अजयद् गुप्तो हूणान्‌' के सन्दर्भवैशिष्ट्य से सूचित है कि गुप्त (स्कंदगुप्त 465 ई. अथवा यशोवर्मा 544 ई.) सम्राट् की विजयघटना ग्रंथकार चंद्राचार्य के जीवनकाल में ही घटित हुई थी। अत: सामान्य रूप से चंद्रगोमिन्‌ का समय 470 ई. के आसपास माना जाता है। इनका सर्वप्रथम नामोल्लेख संभवत: 'वाक्यपदीय' में है। .

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पुरुगुप्त

पुरुगुप्त (शसन: ४६७-४७३ ई) गुप्त वंश का एक सम्राट था जो उत्तर भारत में शासन करता था। ये गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम का अपनी सम्राज्ञी अनन्तदेवी से उत्पन्न पुत्र था। यह अपने सौतेले भ्राता स्कन्दगुप्त का उत्तराधिकारी बना। पुरुगुप्त के अभी तक कोई शिलालेख, प्रशस्तियाम प्राप्त नहीं हुई हैं। इनको इनके पौत्र कुमारगुप्त तृतीय की रजत-कांस्य मुहर एवं इनके पुत्रों नरसिंहगुप्त एवं बुद्धगुप्त द्वारा बनवाए गए नालंदा की मृत्तिका पट्टिकाओं के द्वारा जाना जाता है। सारनाथ के बुद्ध की छवि के शिलालेख के अनुसार ये माना जाता है कि पुरुगुप्त से कुमारगुप्त तृतीय उत्तराधिकारी बना। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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भारतीय नैयायिक

न्याय दर्शन के विद्वान नैयायिक कहलाते हैं। ब्राह्मण न्याय (वैदिक न्याय), जैन न्याय और बौद्ध न्याय के अत्यंत सुप्रसिद्ध नैयायिक विद्वानों में निम्नलिखित हैं: .

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भितरी

भितरी ग्राम में स्थित सम्राट स्कंदगुप्त का ऐतिहासिक स्तंभलेख भीतरी एक ग्राम है जो उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में सैदपुर से उत्तर-पूर्व की ओर लगभग ८ किमी की दूरी पर स्थित है। ग्राम से बाहर चुनार के लाल पत्थर से निर्मित एक स्तंभ खड़ा है जिसपर गुप्त शासकों की यशस्वी परंपरा के गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त का अभिलेख उत्कीर्ण है। यद्यपि लेख समय की मार से घिस गया है, पत्थर यत्र तत्र टूट गया है तथा बाईं ओर ऊपर से नीचे तक एक दरार सी है तथापि संपूर्ण लेख मूल स्तंभ पर पूर्णतया स्पष्ट है तथा उसका ऐतिहासिक स्वरूप सुरक्षित सा है। लेख की भाषा संस्कृत है। छठीं पंक्ति के मध्य तक गद्य में है, शेष पद्य में। लेख पर कोई तिथि अकित नहीं है। इसका उद्देश्य शार्ग्ङिन विष्णु की प्रतिमा की स्थापना का अभिलेखन तथा उस ग्राम को, जिसमें स्तंभ खड़ा है, विष्णु को समर्पित करना है। लेख में इस ग्राम के नाम का उल्लेख नहीं है। भीतरी का स्तंभलेख ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। उसमें गुप्त सम्राज्य पर पुष्पमित्रों तथा हूणों के बर्बर आक्रमण का संकेत है। लेख के अनुसार पुष्पमित्रों ने अपना कोष औरश् अपनी सेना बहुत बढ़ा ली थी और सम्राट कुमारगुप्त की मरणासन्नावस्था में उन्होंने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया। युवराज स्कंदगुप्त ने सेना का सफल नेतृत्व किया। उसने युद्धक्षेत्र में पृथ्वीतल पर शयन किया। पुष्पमित्रों को परास्त कर पिता कुमारगुप्त की मृत्यु के अनंतर स्कंदगुप्त ने अपनी विजय का संदेश साश्रुनेता माता को उसी प्रकार सुनाया जिस प्रकार कृष्ण ने शत्रुओं के मारकर देवकी को सुनाया था। हूणों की जिस बर्बरता ने रोमन साम्राज्य को चूर चूर कर दिया था वह एक बार यशस्वी स्कंदगुप्त की चोट से थम गई। स्कंदगुप्त की भुजाओं के हूणों के साथ समर में टकरा जाने से भयंकर आवर्त बन गया, धरा काँप गई। स्कंदगुप्त ने उन्हें पराजित किया। परंतु अनवरत हूण आक्रमणों से गुप्त साम्राज्य के जोड़ जोड़ हिल उठे और अंत में साम्राज्य की विशाल अट्टालिका अपनी ही विशालता के खंडहरों में खो गई। .

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भीतरी (गाँव)

भीतरी ग्राम का एक चित्र्। भीतरी, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में सैदपुर से उत्तर-पूर्व की ओर लगभग पाँच मील की दूरी पर स्थित ग्राम है। ग्राम से बाहर चुनार के लाल पत्थर से निर्मित एक स्तंभ खड़ा है जिसपर गुप्त शासकों की यशस्वी परंपरा के गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त का अभिलेख उत्कीर्ण है। यद्यपि लेख ऋतुघृष्ट है, पत्थर यत्र तत्र टूट गया है तथा बाईं ओर ऊपर से नीचे तक एक दरार सी है तथापि संपूर्ण लेख मूल स्तंभ पर पूर्णतया स्पष्ट है तथा उसका ऐतिहासिक स्वरूप सुरक्षित सा है। लेख की भाषा संस्कृत है। छठीं पंक्ति के मध्य तक गद्य में है, शेष पद्य में। लेख पर कोई तिथि अकित नहीं है। इसका उद्देश्य शार्ग्ङिन विष्णु की प्रतिमा की स्थापना का अभिलेखन तथा उस ग्राम को, जिसमें स्तंभ खड़ा है, विष्णु को समर्पित करना है। लेख में इस ग्राम के नाम का उल्लेख नहीं है। भीतरी का स्तंभलेख ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। उसमें गुप्त सम्राज्य पर पुष्पमित्रों तथा हूणों के बर्बर आक्रमण का संकेत है। लेख के अनुसार पुष्पमित्रों ने अपना कोष और अपनी सेना बहुत बढ़ा ली थी और सम्राट कुमारगुप्त की मरणासन्नावस्था में उन्होंने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया। युवराज स्कंदगुप्त ने सेना का सफल नेतृत्व किया। उसने युद्धक्षेत्र में पृथ्वीतल पर शयन किया। पुष्पमित्रों को परास्त कर पिता कुमारगुप्त की मृत्यु के अनंतर स्कंदगुप्त ने अपनी विजय का संदेश साश्रुनेता माता को उसी प्रकार सुनाया जिस प्रकार कृष्ण ने शत्रुओं के मारकर देवकी को सुनाया था। हूणों की जिस बर्बरता ने रोमन साम्राज्य को चूर चूर कर दिया था वह एक बार यशस्वी स्कंदगुप्त की चोट से थम गई। स्कंदगुप्त की भुजाओं के हूणों के साथ समर में टकरा जाने से भयंकर आवर्त बन गया, धरा काँप गई। स्कंदगुप्त ने उन्हें पराजित किया। परंतु अनवरत हूण आक्रमणों से गुप्त साम्राज्य के जोड़ जोड़ हिल उठे और अंत में साम्राज्य की विशाल अट्टालिका अपनी ही विशालता के खंडहरों में खो गई। .

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राम गोपाल बजाज

राम गोपाल बजाज-भारतीय रंगमंच निदेशक, हिन्दी फिल्म अभिनेता और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व निदेशक है। राम गोपाल बजाज को 1996 में थिएटर में उनके योगदान के लिए पद्मश्री और 2003 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ऊन्होने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के साथ कई नाटकों का निर्देशन किया। सूर्य की अन्तिम किरण से, सूर्य की पहली किरण तक (1974), जयशंकर प्रसाद की स्कंदगुप्त(1977), केदे हेयात (1989),मोहन राकेश का आश़ाड् का एक दिन (1992) प्रमुख है। राम गोपाल बजाज ने गिरीश कर्नाड के रक्त् कल्याण (Taledanda) का हिन्दी अनुवाद भी किया है। जिसका निर्देशन इब्राहीम अलकाजी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (१९९२) और अरविन्द गौड़ ने अस्मिता नाट्य संस्था (१९९५) के लिये किया। उन्होंने उत्सव (1984) और गोधूलि (1977) जैसी कला फिल्मों में एक सहायक निर्देशक के रूप मैं काम भी किया और बाद में मासूम (1983), मिर्च मसाला (1985), चांदनी (1989) परजानिया, गुरु जैसी फिल्मों मैं काम किया। वह वर्तमान में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, नई दिल्ली की अकादमिक परिषद के एक सदस्य है। .

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रामगुप्त

यह प्राचीन भारत में तीसरी से पाँचवीं सदी तक शासन करने वाले गुप्त राजवंश का राजा था। इनकी राजधानी पाटलीपुत्र थी जो वर्तमान समय में पटना के रूप में बिहार की राजधानी है। यह कुमार गुप्त का बड़ा पुत्र एवं प्रसिद्ध गुप्त सासक स्कंदगुप्त का बड़ा भाई था। .

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रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख

रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख पश्चिमी छत्रप नरेश रुद्रदमन द्वारा लिखवाया गया शिलालेख है। यह शिलालेख गिरनार पर्वतों पर है जो जूनागढ़ के निकट स्थित है। यह १३०-से १५० ई॰ के मध्य लिखा गया था। जूनागढ़ शिलाओं पर अशोक के १४ शिलालेख तथा स्कन्दगुप्त के शिलालेख भी है। रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख उच्च कोटि के संस्कृत गद्य का स्वरूप प्रकट करता है जिसमें सुबन्धु, दण्डी और बाण की गद्यशैली का पूर्वरूप देखा जा सकता है। इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है। इसमें दीर्घ समासों का भी प्रयोग देखते बनता है। अलंकृत शैली, नादात्मकता इसकी अन्य विशेषताएँ है। इस शिलालेख में एक बहुत बड़े सरोवर के निर्माण की बात कही है। इस क्षेत्र में पानी की कमी है। यह कार्य भी जनहित के लिए प्रशंसनीय प्रयास है। .

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जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .

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वसुबन्धु

वसुबन्धु बौद्ध नैयायिक थे। वे असंग के कनिष्ठ भ्राता थे। वसुबन्धु पहले हीनयानी वैभाषिकवेत्ता थे, बाद में असंग की प्रेरणा से इन्होंने महायान मत स्वीकार किया था। योगाचार के सिद्धांतों पर इनके अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। ये उच्चकोटि की प्रतिभा से संपन्न महान नैयायिक थे। "तर्कशास्त्र" नामक इनका ग्रंथ बौद्ध न्याय का बेजोड़ ग्रंथ माना जाता है। अपने जीवन का लंबा भाग इन्होंने शाकल, कौशांबी और अयोध्या में बिताया था। ये कुमारगुप्त, स्कंदगुप्त और बालादित्य के समकालिक थे। 490 ई. के लगभग 80 वर्ष की अवस्था में इनका देहांत हुआ था। .

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गिरनार

भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले स्थित पहाड़ियाँ गिरनार नाम से जानी जाती हैं। यह जैनों का सिद्ध क्षेत्र है यहाँ से नारायण श्री कृष्ण के सबसे बड़े भ्राता तीर्थंकर भगवन देवादिदेव 1008 नेमीनाथ भगवान ने मोक्ष प्राप्त किया जिनके पाँचवी टोंक पर चरण है यह अहमदाबाद से 327 किलोमीटर की दूरी पर जूनागढ़ के १० मील पूर्व भवनाथ में स्थित हैं। यह एक पवित्र स्थान है जो जैन एवं हिंदू घर्माबलंबियों दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। हरे-भरे गिर वन के बीच पर्वत-शृंखला धार्मिक गतिविधि के केंद्र के रूप में कार्य करती है। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 3,500 फुट है पर चोटियों की संख्या अधिक है। इनमें जैन तीर्थंकर नेमिनाथ, अंबामाता, गोरखनाथ, औघड़ सीखर, गुरू दत्तात्रेय और कालका प्रमुख हैं। सर्वोच्च चोटी 3,666 फुट ऊँची है। .

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गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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२१ नवम्बर

२१ नवम्बर ग्रीगोरी पंचाग का ३२५वां (लीप वर्ष में ३२६वां) दिन है। इसके बाद वर्षान्त तक ४० दिन और बचते हैं। .

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