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सोमेश्वर तृतीय

सूची सोमेश्वर तृतीय

सोमेश्वर तृतीय (शासनकाल ११२६ - १३३८ ई) पश्चिमी चालुक्य शासक थे। वे विक्रमादित्य चतुर्थ एवं रानी चन्दलादेवी के पुत्र थे। वे साहित्य में अभिरुचि के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका मानसोल्लास नामक संस्कृत ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध है। सोमेश्वर तृतीय ने होयसला शासक विष्णुवर्धन के आक्रमण को विफल कर दिया। उन्होने 'त्रिभुवनमल्ल', 'भूलोकमल्ल' और 'सर्वाज्ञाभूप' आदि पदवियाँ ग्रहण की थी। श्रेणी:भारत के शासक.

4 संबंधों: प्रतीच्य चालुक्य, जगदेकमल्ल द्वितीय, वज्रमुष्टि, इडली

प्रतीच्य चालुक्य

प्रतीच्य चालुक्य पश्चिमी भारत का राजवंश था जिसने २१६ वर्ष राज किया। प्रतीच्य चालुक्य, c. 1121.

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जगदेकमल्ल द्वितीय

सोमेश्वर तृतीय के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र कल्याणी के सिंहासन पर बैठा। अभिलेखों में उसके नाम का निर्देश नहीं है। अपने विरुद (यश या प्रर्शसासुचक पदवी) 'जगदेकमल्ल' के नाम से ही उसका उल्लेख आता है अतएव उसे जगदेकमल्ल द्वितीय (1138-55 ई.) कहा गया है। उसके अन्य विरुद थे- प्रेमप्रताप, चक्रवर्तिन् और त्रिभुवनमल्ल। अपने पितामह विक्रमादित्य षष्ठ के समय में ही उसे शासन में विशेष महत्व का पद प्राप्त हो गया था। चालुक्य वंश की क्षीण होती हुई शक्ति का लाभ उठाकर विष्णुवर्धन् होयसल ने अपन राज्य का विस्तार धारवाड़ में बंकारपुर तक कर लिया था, फिर भी वह चालुक्यों की अधीनता स्वीकार करता था। उसने नरसिंह होयसल के साथ 1143 ई. के लगभग मालव पर आक्रमणकर जयवर्मन् के स्थान पर बल्लाल को सिंहासन पर बैठाया था। इसके अतिरिक्त लाट, गुर्जर, चोल, कलिंग और नोलंबपल्लव पर भी उसकी विजय का उल्लेख है लेकिन इसमें अतिशयोक्ति की संभावना अधिक है। जगदेकमल्ल को अपना अधिकार बनाए रखने में कई सेनानायकों और सामंतों से सहायता मिली थी। इनमें पेरमाडिदेव सिंद, बर्म्म दंडाधिप और केशिराज दंडाधीश के नाम उल्लेखनीय हैं। 1149 ई. के लगभग ही जगदेकमल्ल का छोटा भाई तैल तृतीय भी जगदेकमल्ल के साथ शासन में संयुक्त हो गया था। जगदेकमल्ल ने एक संवत् की स्थापना की थी किंतु स्वयं उसके राज्यकाल में ही उसका सदैव उपयोग नहीं होता था; उसके शासन के बाद वह शीघ्र ही समाप्त हो गया। "संगीतचूड़ामणि" जगदेकमल्ल द्वितीय की कृति थी। कर्णाटक भाषाभूषण, काव्यालोकन और वास्तुकोश का रचयिता नागवर्म द्वितीय उसका उपाध्याय था। 1146 से 1181 ई. तक के काल में कल्याणी पर कलचुरि लोगों का अधिकार रहा। किंतु 1163 में तैल द्वितीय की मृत्यु के बाद भी चालुक्यों ने अपना दावा नहीं छोड़ा। जगदेकमल्ल तृतीय इसी समय हुआ। उसके अभिलेखों की तिथि 1164 से 1183 तक है। कदाचित् वह तैल तृतीय का पुत्र था। संभवत: परिस्थिति के अनुकूल वह कभी कलचुरि नरेश का आधिपत्य स्वीकार करता था और कभी स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य करता था। उसके अभिलेख चितलदुर्ग, बेल्लारी और दूसरे जिलों से प्राप्त हुए हैं। एक अभिलेख में तो उसे कल्याण से राज्य करता हुआ कहा गया है। विजय पांड्य उसका सामंत था। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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वज्रमुष्टि

वज्रमुष्टि एक शस्त्र भी है और कुश्ती का एक प्रकार भी जिसमें इस हथियार का उपयोग किया जाता है। इस शस्त्र को इन्द्रमुष्टि भी कहते हैं। यह शस्त्र हाथी-दाँत का या भैंसे के सींग का बना होता है। बज्रमुष्टि का प्रथम उल्लेख चालुक्य राजा सोमेश्वर तृतीय (1124–1138) द्वारा रचित मानसोल्लास में मिलता है। किन्तु ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह शस्त्र मौर्यकाल से ही अस्तित्व में है। ज्येष्ठिमल्ल नामक कृष्णपूजक जाति वज्रमुष्टि तथा मल्लयुद्ध की कला का अभ्यास करने वाली प्रसिद्ध जाति थी। मल्लपुराण इसी जाति से सम्बन्धित है जिसकी रचना अनुमानतः १३वीं शताब्दी में हुई थी। .

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इडली

इडली (IPA), एक दक्षिण भारतीय व्यंजन है। यह श्वेत रंग की मुलायम और गुदगुदी, २-३ इंच के व्यास की होती है। यह चावल और उड़द की धुली दाल भिगो कर पीसे हुए, खमीर उठा कर बने हुए घोल से भाप में तैयार की जाती है। खमीर उठने के कारण बड़े स्टार्च अणु छोटे अणुओं में टूट जाते हैं, व पाचन क्रिया को सरल बनाते हैं। प्रायः उपाहार में परोसी जाने वाली इडली को जोड़े में नारियल की चटनी और सांभर के संग परोसा जाता है। इडली को विश्व के सर्वोच्च दस स्वास्थय वर्धक व्यंजनों में माना गया है। .

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सोमेश्वर ३

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