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सुरत शब्द योग

सूची सुरत शब्द योग

सुरत शब्द योग एक आंतरिक साधन या अभ्यास है जो संत मत और अन्य संबंधित आध्यात्मिक परंपराओं में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में 'सुरत' का अर्थ आत्मा, 'शब्द' का अर्थ ध्वनि और 'योग' का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को 'ध्वनि की धारा' या 'श्रव्य जीवन धारा' कहते हैं।.

7 संबंधों: डेविड सी. लेन, बाबा फकीर चंद, शिव दयाल सिंह, शिव ब्रत लाल, संत मत, हिन्दू मापन प्रणाली, हिन्दू काल गणना

डेविड सी. लेन

डेविड क्रिस्टोफर लेन का जन्म 29 अप्रैल 1956 में, बर्बैंक, कैलीफोर्निया में हुआ और वे वाल्नेट, कैलीफोर्निया के माऊंट सैन एंटोनियो कालेज में दर्शनशास्त्र और समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं। इन्हें अपनी पुस्तक 'द मेकिंग ऑफ अ स्पिरीचुअल मूवमेंट: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ पॉल ट्विचटेल एंड एकंकार' में एकंकार (En-Eckankar) को संप्रदाय के तौर पर और उसके संस्थापक को साहित्यिक चोरी के लिए पहचानने के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। भारत में इन्हें नए धार्मिक आंदोलनों विशेषकर राधास्वामी मत पर उनके शोध और भारत के आमूलपरिवर्तनवादी और सुरत शब्द योग के साधक और खोजी फकीर बाबा फकीर चंद को पाश्चात्य जगत में परिचित कराने के लिए भी जाना जाता है। लेन ने एक पुस्तक 'द अननोइंग सेज:लाइफ एंड वर्क ऑफ बाबा फकीर चंद' का संपादन और प्रकाशन किया। इस पुस्तक की भूमिका जो लेन ने लिखी है वह सुरत शब्द अभ्यासियों (योगियों) के आंतरिक अनुभवों के वैज्ञानिक पक्षों का वर्णन करती है और फकीर की बेबाक उक्तियों को समेटे हुए हैं। लेन ने सैन डीगो में यूनीवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया से डॉक्टरेट (पीएच. डी) और 'सोशियॉलॉजी ऑफ नॉलेज' में स्नात्कोत्तर डिग्री (एम ए) किया हुआ है। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'धार्मिक घटना-क्रिया-विज्ञान (दृश्यप्रपंचशास्त्र) और उसका इतिहास' में भी 'एम ए' किया हुआ है। इस समय ये कैलीफोर्निया स्टेट यूनीवर्सिटी में 'धार्मिक अध्ययन' के प्राध्यापक हैं और संप्रदायों सहित नए धार्मिक आंदोलनों के अध्ययन के विशेषज्ञ हैं। जन्म से रोमन कैथोलिक हैं। 1978 में राधास्वामी सत्संग ब्यास के बाबा सत्गुरु चरण सिंह से नामदान लिया। बाद में इनका हृदय परिवर्तन हुआ और इन्होंने सभी तो नहीं परंतु कुछ शिक्षाओं को त्याग दिया। अपने एक इंटरव्यू में लेन ने कई धार्मिक आंदोलनों के समर्थकों से मिल रही हत्या की धमकियों की भी बात की है। .

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बाबा फकीर चंद

बाबा फकीर चंद (१८ नवंबर, १८८६ - ११ सितंबर, १९८१) सुरत शब्द योग अर्थात मृत्यु अनुभव के सचेत और नियंत्रित अनुभव के साधक और भारतीय गुरु थे। वे संतमत के पहले गुरु थे जिन्होंने व्यक्ति में प्रकट होने वाले अलौकिक रूपों और उनकी निश्चितता के छा जाने वाले उस अनुभव के बारे में बात की जिसमें उस व्यक्ति को चैतन्य अवस्था में इसकी कोई जानकारी नहीं थी जिसका कहीं रूप प्रकट हुआ था। इसे अमरीका के कैलीफोर्निया में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ॰ डेविड सी. लेन ने नई शब्दावली 'चंदियन प्रभाव' के रूप में व्यक्त किया और उल्लेख किया। राधास्वामी मत सहित नए धार्मिक आंदोलनों के शोधकर्ता मार्क ज्यर्गंसमेयेर ने फकीर का साक्षात्कार लिया जिसने फकीर के अंतर्तम को उजागर किया। यह साक्षात्कार फकीर की आत्मकथा का अंश बना। .

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शिव दयाल सिंह

श्री शिव दयाल सिंह साहब (1861 - 1878) (परम पुरुश पुरन धनी हुजुर स्वामी जी महाराज) राधास्वामी मत की शिक्षाओं का प्रारंभ करने वाले पहले सन्त सतगुरु थे। उनका जन्म नाम सेठ शिव दयाल सिंह था। उनका जन्म 24 अगस्त 1818 में आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत में जन्माष्टमी के दिन हुआ। पाँच वर्ष की आयु में उन्हें पाठशाला भेजा गया जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी और गुरमुखी सीखी। उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया। उनके माता-पिता हाथरस, भारत के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे। छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ। उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं। शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए। वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई.

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शिव ब्रत लाल

शिव ब्रत लाल वर्मन का जन्म सन् 1860 ईस्वी में भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के भदोही ज़िला में हआ था। वे 'दाता दयाल' और महर्षि जी' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए.

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संत मत

लगभग 13 वीं सदी के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में “संत मत” एक ढीले ढंग से जुड़ा गुरुओं का एक सहयोगी समूह था जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली। धर्म ब्रह्म विज्ञान के तौर पर उनकी शिक्षाओं की विशेषता यह है कि वे अंतर्मुखी और प्रेम भक्ति के एक दैवीय सिद्धांत से जुड़े हैं और सामाजिक रूप से वे एक समतावादी गुणों वाले सिद्धांत से जुड़े हैं जो हिंदु धर्म की जाति प्रथा के विरुद्ध है और हिंदू - मुस्लिम के अंतर के भी विरुद्ध है।वुडहेड, लिंडा और फ्लेचर, पॉल.

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हिन्दू मापन प्रणाली

हिन्दू समय मापन (लघुगणकीय पैमाने पर) गणित और मापन के बीच घनिष्ट सम्बन्ध है। इसलिये आश्चर्य नहीं कि भारत में अति प्राचीन काल से दोनो का साथ-साथ विकास हुआ। लगभग सभी प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने अपने ग्रन्थों में मापन, मापन की इकाइयों एवं मापनयन्त्रों का वर्णन किया है। ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त के २२वें अध्याय का नाम 'यन्त्राध्याय' है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। .

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हिन्दू काल गणना

हिन्दू समय मापन, लघुगणकीय पैमाने पर प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं (मुख्यतः हिन्दू और जैन धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)। यह सभी सुरत शब्द योग में भी पढ़ाई जातीं हैं। इसके साथ साथ ही हिन्दू ग्रन्थों मॆं लम्बाई, भार, क्षेत्रफ़ल मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं.

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