लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

सुन्नह्

सूची सुन्नह्

सुन्नत (अरबी سنة (एक वचन) سنن (बहुवचन): हज़रत मुहम्मद के प्रवचन, शिक्षा, मार्गदर्शन को सुन्नत कहते हैं। हज़रत मुहम्मद के काल में उनके अनुयायी या सहाबा को दिए गए मार्गदर्शन या ज्ञान को सुन्नह या सुन्नत (फ़ारसी और उर्दू शब्द) कहते हैं, जो सारे मुस्लिम जगत को अमल करने के लिए कहा गया। इस्लाम धर्म में क़ुरान और हदीस साबित पुस्तकें हैं। और इन्हीं की बुनियाद पर इस्लामीय न्याय शास्त्र बना है। सुन्नत का मतलब "मार्ग" या "जीवन शैली" या "जीवन विधी" के भी होते हैं, जिसे मुसल्मान अपने जीवन में अपनाता है। यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ "आसानी से बहना या सीधा चलने वाली राह "। सही तौर पर इसका अर्थ साफ़-सुथरा सीधा रास्ता है। .

6 संबंधों: बपतिस्मा, सहीह मुस्लिम, इस्लामी पवित्र पुस्तक, अबू हनीफ़ा, उद्देश्य संकल्प, १९५६ का पाकिस्तानी संविधान

बपतिस्मा

ईसाईयत में, बपतिस्मा (ग्रीक शब्द βαπτίζω baptizo से: "डुबोना", "प्रक्षालन करना", अर्थात् "धार्मिक स्नान") जल के प्रयोग के साथ किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को चर्च की सदस्यता प्रदान की जाती है। स्वयं ईसा मसीह का बपतिस्मा किया गया था। प्रारंभिक ईसाईयों में उम्मीदवार (अथवा "बपतिस्माधारी (Baptizand)") को पूरी तरह या आंशिक रूप से डुबोना बपतिस्मा का सामान्य रूप था। हालांकि बपतिस्मा-दाता जॉन (John the Baptist) द्वारा अपने बपतिस्मा के लिये एक गहरी नदी का प्रयोग निमज्जन का सुझाव दिया गया है, लेकिन ईसाई बपतिस्मा के संबंध में तीसरी शताब्दी और उसके बाद के चित्रात्मक तथा पुरातात्विक प्रमाण यह सूचित करते हैं कि सामान्य रूप से उम्मीदवार को पानी में खड़ा रखा जाता था और उसके शरीर के ऊपरी भाग पर जल छिड़का जाता था। बपतिस्मा के अब प्रयोग किये जाने वाले अन्य सामान्य रूपों में माथे पर तीन बार जल छिड़कना शामिल है। सोलहवीं सदी में हल्द्रिच ज़्विंगली (Huldrych Zwingli) द्वारा इसकी आवश्यकता को नकारे जाने तक बपतिस्मा को मोक्ष-प्राप्ति के लिये कुछ हद तक आवश्यक समझा जाता था। चर्च के प्रारंभिक इतिहास में शहादत को "खून से बपतिस्मा" के रूप में पहचाना जाता था, ताकि जिन शहीदों का बपतिस्मा जल के द्वारा न किया गया हो, उन्हें बचाया जा सके.

नई!!: सुन्नह् और बपतिस्मा · और देखें »

सहीह मुस्लिम

सहीह मुस्लिम (अरबी: صحيح مسلم, Ṣaḥīḥ मुस्लिम; पूर्ण शीर्षक: अल-मुसनद अल-सहीहु बी नक़लिल अदली) सुन्नी इस्लाम में * Category:सुन्नी हदीसों का संग्रह Category:9th-century Arabic books.

नई!!: सुन्नह् और सहीह मुस्लिम · और देखें »

इस्लामी पवित्र पुस्तक

मुस्लिम समुदाय के विश्वासों के आधार पर यह वह पुस्तक हैं जिनको अल्लाह ने अनेक पैगम्बरों पर अवतरण किया। मानव चरित्र में मानव कल्याण के लिए जब जब आवश्यकता हुई तब तब पैगम्बरों को भेजा और सन्मार्ग की शिक्षा दी। और इस शिक्षण के लिए आसमानी किताबें, सहीफे उतारे गए। इन्हीं किताबों के श्रंखला की आख़री कड़ी कुरआन है। और ये आख़री किताब कुरआन पिछले भेजे गए तमाम किताबों की तस्दीक करती है। वैसे इस्लाम में कुरआन पवित्र और अल्लाह का आख़री कलाम है, और कुरान ये भी तालीम देता है कि पिछले ग्रंथों की इज्ज़त करें। इस्लाम में, कुरआन में चर्चित चार किताबों को आसमानी किताबें माना जाता है। वे तौरात (जो मूसा पर प्रकट हुई), ज़बूर (जो दाउद पर प्रकट हुई), इंजील (जो ईसा मसीह पर प्रकट हुई) और कुरआन.

नई!!: सुन्नह् और इस्लामी पवित्र पुस्तक · और देखें »

अबू हनीफ़ा

नोमान इब्न साइत इब्न ज़ौता इब्न मरज़ुबान (फारसी : ابوحنیفه, अरबी : نعمان بن ثابت بن زوطا بن مرزبان), जो अबू हनीफ़ा (हनीफ़ा के पिता) के नाम से मशहूर हैं और इन्हें इसी नाम से भी जाना जाता है (जन्म: 699 ई. मृत्यु 767 ई / 80-150 हिजरी साल), अबू हनीफ़ा सुन्नी "हनफ़ी मसलक" (हनफ़ी स्कूल) इसलामी न्यायशास्त्र के संस्थापक थे। यह एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान थे। ज़ैदी शिया मुसलमानों में इन्हें प्रसिद्ध विद्वान के रूप में माना जाता है।  उन्हें अक्सर "महान इमाम" (ألإمام الأعظم, अल इमाम अल आज़म) कहा और माना जाता है। S. H. Nasr (1975), "The religious sciences", in R.N. Frye, The Cambridge History of Iran, Volume 4, Cambridge University Press.

नई!!: सुन्नह् और अबू हनीफ़ा · और देखें »

उद्देश्य संकल्प

उद्देश्य संकल्प(Objectives Resolution, ऑब्जेक्टिव्स् रेज़ोल्यूशन्; قرارداد مقاصد, क़रारदाद मक़ासद) एक संकल्प था जिसे पाकिस्तान की संविधान सभा ने 12 मार्च सन 1949 को पारित कर दिया। इस संकल्प 7 मार्च सन 1949 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने क़ौमी असेम्ब्ली(पाकिस्तान की विधायिका) में पेश की। इसे पाकिस्तानी रियासत व हुकूमत के नीती निर्देशक के रूप में पारित किया गया था। इसके अनुसार भविष्य में पाकिस्तान संविधान संरचना यूरोपीय शैली का कतई नहीं होगा, लेकिन इसके आधार इस्लामी लोकतंत्र और सिद्धांतों पर होगी। कहा जाता है कि इस बारे में पाकिस्तानियों ने भारतीयों की पैरवी की थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत की संविधान सभा में 13 दिसंबर 1946 में संकल्प लक्ष्य रखा था, जिसे सर्वसम्मति के साथ 22 जनवरी 1947 में स्वीकार कर लिया गया। इसमें दिये गए संकल्प पाकिस्तान को "कुरान और सुन्नत में दिये गए लोकतांत्रिक के आदर्शों" पर विकसित व खड़ा करने का संकल्प लेते हैं। साथ ही इसमें पाकिस्तान में मुसलमानों को कुरान और सुन्नत में दिये गए नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करने का अवसर देने की एवं अल्पसंख्यकों के धार्मिक, सामाजिक व अन्य वैध अधिकारों की रक्षा की भी बात की गई है। इसे कई माएनों में पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में मनाआ जाता है। साथ ही इसकी इस्लाम-प्रोत्साहक चरित्र के लिये, यह हमेशा से ही विवादास्पक भी रहा है और कई बार, गैर-मुसलमालों व कई बुद्धिजीवियों द्वारा इस्का विरोध होता रहा है। .

नई!!: सुन्नह् और उद्देश्य संकल्प · और देखें »

१९५६ का पाकिस्तानी संविधान

1956 का संविधान पाकिस्तान में मार्च 1956 से अक्टूबर 1958 तक लागू पाकिस्तान की सर्वोच्च विधि संहिता व संविधान थी, जिसे 1958 के तख्तापलट को बाद निलंबित कर दिया गया था। यह पाकिस्तान का पहला संविधान था। .

नई!!: सुन्नह् और १९५६ का पाकिस्तानी संविधान · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

सुन्नत, सुन्नह

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »