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सीहोर जिले में 22 जुलाई 2009 को पूर्ण सूर्यग्रहण

सूची सीहोर जिले में 22 जुलाई 2009 को पूर्ण सूर्यग्रहण

22 जुलाई के बाद पूरे 115 साल प्रतीक्षा करनी होगी पूर्ण सूर्य ग्रहण की --Subeerin ०७:३०, २ जुलाई २००९ (UTC) पंकज सुबीर 2जुलाई 2009 12;59 आने वाली 22 जुलाई को जो पूर्ण सूर्यग्रहण होने जा रहा है वो कई मामलों में अनोखा है। वर्तमान पीढ़ी के लिये इसे न भूतो न भविष्यति कहा जा सकता है। क्योंकि मध्यप्रदेश के जिन क्षेत्रों में ये पूर्ण सूर्यग्रहण दिखाई देगा उनमें इससे पूर्व के दो सौ सालों के इतिहास में कभी खग्रास सूर्यग्रहण नहीं दिखाई दिया है। साथ ही ये भी कि आने वाल एक सौ पन्द्रह सालों में भी अब कोई संभावना नहीं है। भारत में सूर्य ग्रहणों के इतिहास पर एक शोध पुस्तक पर कार्य कर रहे सीहोर के युवा साहित्यकार पंकज सुबीर के अनुसार मध्यप्रदेश का वो इलाका जहां पर ये सूर्य ग्रहण खग्रास रूप में दिखाई देगा वहां पर ऐसा पिछले ज्ञात इतिहास में दो सौ वर्षों में नहीं हुआ है। यदि पिछले 200 सालों के इतिहास पर नार डालें तो 1800 से लेकर आज तक भारत में कुल ग्यारह खग्रास सूर्यग्रहण दिखाई दिये हैं। 17 जुलाई 1814, 19 नवम्बर 1816, 21 दिसम्बर 1843, 18 अगस्त 1868, 12 दिसम्बर 1871, 22 जनवरी 1898, 21 अगस्त 1914, 30 जून 1954, 16 फ़रवरी 1980, 24 अक्टूबर 1995 तथा 11 अगस्त 1999 ये 1800 से लेकर अब तक भारत में दिखाई दिये पूर्ण सूर्यग्रहण हैं। इन सारे सूर्यग्रहणों में से केवल 1898, 1995 तथा 1999 में ही ऐसा हुआ था कि पूर्ण सूर्यग्रहण की पट्टी मध्यप्रदेश को छूकर गुजरी थी लेकिन तीनों ही अवसरों पर ये पट्टी मध्यप्रदेश के बीच से होकर नहीं गुजरी थी बल्कि एक सिरे को छूते हुए गुजर गई थी। 22 जनवरी 1898 को खग्रास सूर्यग्रहण की पट्टी उस क्षेत्र से गुजरी थी जो अब छत्तीसगढ़ है। 24 अक्टूबर 1995 को खग्रास सूर्य ग्रहण में चंद्रमा की पूर्ण छाया भिंड और मुरैना को छूती हुई गुजरी थी वहीं 11 अगस्त 1999 को ये बड़वानी छाबुआ को छूती हुई निकली थी। किन्तु इस बार अर्थात 22 जुलाई 2009 को पूर्ण सूर्यग्रहण की लगभग ढाई सौ किलोमीटर चौड़ी पट्टी पूरे मध्यप्रदेश के बीचों बीच से होकर निकल रही है तथ ा खरगौन, खंडवा, धार, इन्दौर, उौन, देवास, सीहोर, भोपाल, हरदा, होशंगाबाद, खंडवा, सागर, शहडोल, दमोह, रीवा, सतना जैसे क्षेत्रों से होकर चंद्रमा की छाया सूर्य को पूरी तरह से अपनी ओट में लिये हुए गुजरेगी। चंद्रमा की ये छाया जिस लगभग ढाई सौ किलोमीटर चौड़ी पट्टी से होकर निकलेगी उसको तीन भागों में बांटा गया है। पट्टी का दोनों तरफ का सबसे बाहरी किनारा जहां केवल एक मिनिट के लिये ये नजारा दिखाई देगा, उसके अंदर का क्षेत्र जहां पर दो मिनिट के लिये ये नजारा दिखेगा और सबसे अंदर केन्द्रीय लाइन जिसके आसपास के इलाकों में ये अद्भुत खगोलीय घटना पूरे तीन मिनिट तक दिखाई देगी। श्री पंकज सुबीर के अनुसार सीहोर, भोपाल, इन्दौर, रीवा, सतना, होशंगाबाद, दमोह सूर्यग्रहण की इसी सबसे अंदरूनी पट्टी पर हैं। वहीं उौन देवास, खंडवा जबलपुर जैसे क्षेत्र बाहर की पट्टी पर हैं। इस कारण से सीहोर, भोपाल, इन्दौर, रीवा जैसे इलाकों का वैज्ञानिक महत्व अधिक है। उसमें भी कटनी के मुरवारा का अपना अलग महत्व है क्योंकि वो चंद्रमा की परछांई के बिल्कुल केन्द्र में रहेगा। अर्थात पृथ्वी से होकर जो चंद्रमा की परछांई निकलेगी उसका ठीक केन्द्र बिंदू जिन इलाकों से निकलेगा उनमें मुरवारा भी शामिल है। मुरवारा से होकर सेन्ट्रल लाइन ऑफ इकलिप्स (ग्रहण की केंद्रीय रेखा) गुजरेगी। इस केन्द्रीय रेखा पर गुजरात का सूरत शहर भी है। ग्रहण में इस केन्द्रीय रेखा का भी वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये अपना महत्व होता है। मध्यप्रदेश के लिये ये ग्रहण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि चंद्रमा की पूर्ण छाया लगभग समूचे मध्यप्रदेश के बीच से होकर निकल रही है। और भोपाल, इंदौर, उौन, सीहोर जैसे जो इलाके खग्रास सूर्यग्रहण के साक्षी बनने जा रहे हैं वे उससे पहले के ज्ञात इतिहास में 1800 से लेकर अभी तक इस खगोलीय घटना से अछूते रहे हैं। हां 1995 तथा 1999 में काफी पास से होकर ये छाया निकली थी। श्री सुबीर के अनुसार इसके बाद मध्यप्रदेश के इन क्षेत्रों को लगभग 115 साल की प्रतीक्षा फिर से करनी होगी इस अनूठी घटना का साक्षी बनने के लिये। क्योंकि इसके बाद 14 मई 2124 को लगभग इसी क्षेत्र से होकर पूर्ण सूर्यग्रहण की पट्टी गुजरेगी। हालंकि इस पूर्ण सूर्यग्रहण के बाद भारत में 20 मार्च 2034 तथा 3 जून 2114 को भी पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देगा लेकिन 2034 में वो केवल कश्मीर के कुछ इलाकों तक सीमित रहेगा वहीं 2114 में राजस्थान यूपी और बंगाल में दिखाई देगा। इस प्रकार से ये सूर्यग्रहण मध्यप्रदेश के निवासियों के लिये न भूतो न भविष्यति होने जा रहा है क्योंकि पिछले दो सौ सालों में इन इलाकों में पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं दिखाई दिया है और आने वाले 115 सालों तक फिर से कोई संभावना नहीं है। अरब सागर में गुजरात से प्रारँभ होकर चंद्रमा की छाया सूर्य को पूरी तरह से अपने पीछे छुपाये हुए मध्यप्रदेश से होते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार से होते हुए चीन की तरफ निकल जायेगी। इस अनोखी खगोलीय को देखने के रास्ते में जो सबसे बड़ी अड़चन आ रही है वो है मौसम की, क्योंकि 22 जुलाई को बरसात का मौसम होने के कारण बादल रहने की संभवना रहेगी। जो भी हो लेकिन 22 जुलाई का दिन मध्यप्रदेश के निवासियों के लिये तो खास है ही। गूलरपुरा गांव पर होगा चांद की छाया का केन्द्र, सूर्य और चांद होंगें एकाकार लाड़कुई और चकल्दी के बीच से होकर गुजरेगी खग्रास सूर्य ग्रहण की केन्द्रीय रेखा आने वाली 22 जुलाई को लगने वाला सूर्य ग्रहण सीहोर जिले के लिये कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला तो ये कि सीहोर के ज्ञात इतिहास में ये पहला खग्रास सूर्य ग्रहण है जोकि पूरे सीहोर जिले में दिखाई देगा दूसरा ये कि इसके बाद इस सदी में कोई भी पूर्ण सूर्य ग्रहण इस इलाके में नहीं दिखाई देगा। 22 जुलाई के ग्रहण की केन्द्रीय रेखा जिसको वैज्ञानिक भाषा में सेण्ट्रल लाइन ऑफ इकलिप्स कहा जाता है वो जिले के नसरुल्लागंज क्षेत्र से होकर गुजरेगी। गूलरपुरा गांव का वैज्ञानिक महत्व अधिक इसलिये है क्योंकि ये गांव ग्रहण के केन्द्र में रहेगा। सीहोर के युवा साहित्यकार पंकज सुबीर के अनुसार 22 जुलाई को जिले में दिखाई देने वाले पूर्ण सूर्यग्रहण को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है। इसलिये भी क्योंकि पिछले दो सौ सालों के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि जिले में से होकर ग्रहण की केन्द्रीय रेखा निकल रही है। और उसीके कारण पूरे जिले में पूर्ण सूर्यग्रहण दिखाई देगा। सूर्यग्रहण के दौरान एक पूरी चौड़ी पट्टी में खग्रास सूर्यग्रहण दिखाई देता है। इस बार ये पट्टी लगभग ढाईसौ किलोमीटर चौड़ी पट्टी है। इस पट्टी की केन्द्रीय रेखा भी होती है जिस पर ग्रहण की अवधि अधिक समय होती है। इस बार सीहोर जिला पूरी तरह से तो उस ढाई सौ किलोमीटर चौड़ी पट्टी में है ही लेकिन खास बात ये है कि सेण्ट्रल लाइन ऑफ इकलिप्स (ग्रहण की केन्द्रीय रेखा) भी जिले से होकर निकल रही है। गूलरपुरा के ठीक ऊपर से होकर ये केन्द्रीय रेखा निकल रही है। गूलरपुरा का वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व इसलिये अधिक है क्योंकि सारे वैज्ञानिक प्रयोग इसी केन्द्रीय रेखा पर किये जाते हैं। जिले में लगने वाले पूर्ण सूर्यग्रहण पर शोध पत्र तैयार कर रहे साहित्यकार पंकज सुबीर के अनुसार इस बार ग्रहण की केन्द्रीय रेखा हमारे जिले से होकर निकल रही है। ये केन्द्रीय रेखा खातेगांव तथा कन्नौद के ठीक बीच से होकर नसरुल्लागंज तहसील में सीप नदी के पास सूआपानी गांव से प्रवेश करेगी। इस केन्द्रीय रेखा के ठीक नीचे जो गांव पड़ रहा है वो लाड़कुई से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव गूलरपुरा है। इसके बाद ग्रहण की केन्द्रीय रेखा लाड़कूई तथा नसरुल्लागंज मार्ग को लाड़कुई से लगभग 3.5 किलोमीटर दूर पर क्रास करेगी, ये स्थान भी ग्रहण की केन्द्रीय रेखा के ठीक नीचे आ रहा है। इसके बाद ये ग्रहण की केन्द्रीय रेखा आगे की ओर बढ़ जायेगी तथा चकल्दी गांव से कुछ दूरी से होकर निकलेगी, इसके बाद कोलार नदी के ठीक पास से होती हुई रायसेन जिले में प्रवेश कर जायेगी। ग्रहण की ये केन्द्रीय रेखा सीहोर जिले की दक्षिणी सीमा तय करने वाली नर्मदा नदी के समानांतर होकर जिले से निकलेगी। इस प्रकार नसरुल्लागंज तहसील का वैज्ञानिक महत्व ग्रहण के दौरान सबसे अधिक रहेगा क्योंकि ग्रहण की केन्द्रीय रेखा इसी क्षेत्र से होकर निकलेगी। हालंकि पूरा का पूरा सीहोर जिला खग्रास सूर्य ग्रहण का साक्षी बनने जा रहा है पूर्ण सूर्यग्रहण जिस ढाई सौ किलोमीटर चौड़ी पट्टी पर दिखाई देगा उसका सबसे अंदर का हिस्सा अर्थात केन्द्रीय रेखा के दोनों ओर के लगभग साठ-साठ किलोमीटर के हिस्से में पूरा सीहोर जिला आ रहा है अत: खग्रास ग्रहण पूरे जिले में दिखाई देगा। लेकिन फिर भी यदि ग्रहण की केन्द्रीय रेखा से दूरी की बात की जाये तो नसरुल्लागंज से लगभग आठ किलोमीटर, रेहटी से 6 किलोमीटर, सीहोर से 30 किलोमीटर, इछावर से 20, बुदनी से 10 तथा आष्टा से 25 किलोमीटर की दूरी इस रेखा की रहेगी। सबसे नजदीक रहेगा लाड़कुई जो केवल साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर रहेगा। शामपुर, भादाकुई, चकल्दी, कोलार ये वो गांव हैं जो कि इस रेखा के नजदीक रहेंगें। किन्तु सबसे चर्चित होगा गूलरपुरा जिसके ठीक ऊपर से चंद्रमा की छाया का केन्द्र गुजरेगा। क्या होती है ग्रहण की केन्द्रीय रेखा: चंद्रमा की परछांई पृथ्वी पर वृत्ताकार रूप में पड़ती है। इस वृत्त का जो केन्द्र बिन्दु होता है वो जैसे जैसे परछांई आगे बढ़ती है वैसे वैसे सरल रेखा में आगे बढ़ता है। ये सरल रेखा ही कहलाती है ग्रहण की केन्द्रीय रेखा (सेण्ट्रल लाइन ऑफ इकलिप्स)। इस बार भी जब चंद्रमा की परछांई गुजरात से होकर मध्यप्रदेश से होती हुई उत्तर पूर्व को बढ़ेगी तो परछांई का केन्द्र बिंदु वैज्ञानिको के आकर्षण का केंद्र रहेगा और सीहोर जिले के दक्षिणी भाग में ये केंद्र सीप नदी, गूलरपुरा, से होता हुआ कोलार नदी तथा पर्वतीय क्षेत्र से गुजरेगा। क्या महत्व है केन्द्रीय रेखा का: पंकज सुबीर के अनुसार ग्रहण की केन्द्रीय रेखा पर ग्रहण की अवधि कुछ अधिक भी होती है तथा चूंकि ये छाया का केन्द्र होता है अत: यहां पर ग्रहण बिल्कुल पूर्ण होता है। वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये सेण्ट्रल लाइन ऑफ इकलिप्स को सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि चंद्रमा की परछांई और सूर्य का केन्द्र यहां पर एकाकार हो जाता है। गूलरपुरा जहां से होकर छाया का केन्द्र निकलेगा वो सड़क मार्ग से केवल दो किलोमीटर होने के कारण पहुंच में भी है अत: वैज्ञानिकों का जमावड़ा यहां हो सकता है। यही स्थिति लाड़कुई से 3.5 किलोमीटर पर नसरुल्लागंज मार्ग की भी है। ये दोनो ही स्थान वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये सबसे अच्छे स्थान हैं। कहां है गूलरपुरा: लाड़कुई से नसरुल्लागंज जाने वाले मार्ग पर लगभग साढ़े चार किलोमीटर की दूरी पर दांये हाथ पर गूलरपुरा जाने वाला मार्ग जाता है जहां से दो किलोमीटर की दूरी नसरुल्लागंज तहसील का गांव गूलरपुरा, पर स्थित है। वैज्ञानिक भाषा में ये गांव 22.779357 डिग्री उत्तर अक्षांश तथा 77.238473 पूर्व देशांश पर स्थित है। 22 जुलाई को सीहोर में सुबह हो जायेगा अंधेरा, दो बार होगी सुबह आने वाली 22जुलाई को भारत से होकर पूर्ण सूर्यग्रहण का पथ गुजरेगा। इस पथ के बिल्कुल बीच में आ रहा है सीहोर। इसका मतलब ये है कि आने वाली 22 जुलाई को सीहोर में दिन के समय ही अंधेरा हो जायेगा और सूर्य चांद की परछांई के पीछे छिप जायेगा। इससे पूर्व 16 फ़रवरी 1980 तथा 24 अक्?टूबर 1995 को सीहोर क्षेत्र सूर्यग्रहण की पट्टी में तो नहीं आया था लेकिन वो पट्टी सीहोर के बहुत पास से होकर निकली थी तथा उसके कारण दिन में ही रात हो गई थी। 22 जुलाई 2009 को सीहोर क्षेत्र भी साक्षी बनने जा रहा है उस अद्भुत घटना जिसे खग्रास सूर्यग्रहण कहा जाता है। दरअसल इस बार सीहोर क्षेत्र से होकर पूर्ण सूर्यग्रहण की पट्टी गुज़र रही है। भारत में सूरत बडोदरा इंदौर भोपाल से होते हुए ये पट्टी इलाहाबाद वाराणसी पटना दार्जिलिंग से होते हुए गुजरेगी। पिछली बार के दो पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सीहोर इस पट्टी में नहीं था किन्तु वो पट्टी सीहोर के बहुत नजदीक से होकर निकली थी इसलिये उन दोनाें ही सूर्यग्रहण के समय भी दिन में अंधेरा छाने की स्थिति निर्मित हो गई थी। इस बारे तो लगभग तीन मिनिट के लिये पूरे क्षेत्र में अंधकार छा जायेगा क्याेंकि उस समय चंद्रमा की परछांई इन क्षेत्रों को ढंक लेगी। भारत में ये सूर्यग्रहण प्रात: 5 बजकर 28 मिनिट पर प्रारंभ होगा तथा 7 बजकर 40 मिनिट तब भारत से होकर चंद्रमा की छाया गुजरेगी। सीहोर जिस क्षेत्र में आ रहा है उसमें लगभग 3 मिनिट तथा 38 सेकेंड तक ये सूर्यग्रहण दिखाई देगा। ये सूर्यग्रहण लम्बी अवधि का सूर्य ग्रहण है। 22 जुलाई को सुबह सूरज उगने के कुछ ही देर पश्चात चंद्रमा, सूरज और पृथ्?वी के बीच आ जायेगा और सुबह होने के कुछ ही देर पश्?चात फिर से रात हो जायेगी। कुछ देर बाद फिर से सूर्य निकलेगा तथा फिर से सुबह हो जायेगी। इस प्रकार 22 जुलाई को सीहोर वासी दो बार सुबह होने की अनोखी घटना के साक्षी बनेंगें। ये इस सदी का सबसे लंबी अवधि का खग्रास सूर्य ग्रहण होगा। खग्रास सूर्य ग्रहण पुष्य नक्षत्र व कर्क राशि में होगा। ग्रहण का स्पर्श सुबह 5.23 बजे होगा। ग्रहण का मोक्ष 7.26 पर होगा। 22 जुलाई को होने वाला यह सूर्य ग्रहण पृथ्वी पर 240 किमी की एक पट्टी क्षेत्र में पूर्ण रूप से देखा जा सकेगा। सूर्य पर चंद्रमा की पूर्णछाया की शुरुआत भारत से होगी। बाद में यह छाया नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार व चीन जापान आदि देशाें तक सूर्य पर पडेगी। सूर्य ग्रहण के दौरान ही मंगल, बुध, बृहस्पति व शु ग्रह भी दिखाई देंगे। सूर्य से 9 डिग्री पूर्व में बुध ग्रह ओर 41 डिग्री पश्चिम में शु ग्रह को देखा जा सकेगा। मंगल ग्रह शु के पश्चिम में ठीक बगल में होगा। बृहस्पति पश्चिम में नीचे की ओर देखा जा सकेगा। इनके अलावा प्रोकीयान, सीरियस, बेटलगेस, रिगेल और सिपेला तारे भी दिखेंगे। ग्रहण के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 22जुलाई को बडी संख्या में देश व विदेश के वैज्ञानिक प्रभावित जिलाें में जुटेंगे अत: उम्मीद है कि सीहोर में भी उस दिन देश विदेश के वैज्ञानिकाें का जमावडा हो सकता है। क्?याेंकि इंदौर से लेकर भोपाल तक की वो पट्टी चंद्रमा की छाया के ठीक केन्?द्र में आ रही है जिस पर सीहोर स्थित है। 22 जुलाई को होने वाला पूर्ण सूर्य ग्रहण सूरत, इंदौर, सीहोर, भोपाल, जबलपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना को मिलाने वाली पट्टी पर दिखायी देगा। 22 जुलाई को पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सीहोर में सूर्य का आकार डायमंड रिंग के रूप में दिखेगा। उक्त पट्टी से बाहर के जिलाें में केवल आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखायी देगा। क्या है सूर्य ग्रहण--सूर्य ग्रहण पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की वह खगोलीय स्थिति है जिसमें पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्रमा आ जाता है। चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर आने से रोक देता है नतीजा दिन के वक्त अंधेरा छा जाता है। देश में इससे पहले 16फरवरी 1980, 24अक्टूबर 1995, 11 अगस्त 1999 को पूर्ण सूर्यग्रहण दिखायी दिया था। किन्?तु उस समय सीहोर पूर्ण सूर्य ग्रहण की पट्टी में न होकर आंशिक सूर्यग्रहण की पट्टी पर था। 16 फ़रवरी 1980 को पूर्ण सूर्यग्रहण की पट्टी सीहोर के सबसे पास से होकर निकली थी। 24 अक्?टूबर 1995 को जब एक बार फिर पूर्ण सूर्य ग्रहण भारत मे

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