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सरस्वती सम्मान

सूची सरस्वती सम्मान

Saraswathi samman 1.jpg सरस्वती सम्मान के.

28 संबंधों: डॉ. नैयर मसूद, ताऊस चमन की मैना, दलीप कौर टिवाणा, नालापत बालमणि अम्मा, नैयर मसूद, नीड़ का निर्माण फिर, परिक्रमा (डॉ. जगन्नाथ प्रसाद दास), भगीरथी, मनुभाई पाँचोली, मनोज दास, महेश एलकुंचवार, लक्ष्मीनंदन बोरा, शम्सुर्रहमान फारुकी, शंख घोष, श्रीधर भास्कर वर्णेकर, शेई शोमोए, सुनील गंगोपाध्याय, हरिभजन सिंह, हरिवंश राय बच्चन, जगन्नाथ प्रसाद दास, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, गोविन्द मिश्र, इंदिरा पार्थसारथी, कायाकल्प (लक्ष्मीनंदन बोरा), क्या भूलूं क्या याद करूँ, के के बिड़ला फाउंडेशन, के॰ अय्यप्प पणिक्कर

डॉ. नैयर मसूद

लखनऊ में १९३६ में जन्मे डॉ॰ मसूद उर्दू के जाने-माने साहित्यकार हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और इसके बाद इसी विश्वविद्यालय से १९५७ में फारसी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९६५ में उन्होंने उर्दू में और लखनऊ विश्वविद्यालय से फारसी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। मसूद ने २१ से अधिक पुस्तकों का लेखन, संपादन और प्रकाशन किया है और उर्दू तथा फारसी में उनके लगभग दो सौ से अधिक लेख प्रकाशित हुए हैं। डॉ॰ मसूद को उत्तर आधुनिक उर्दू तथा कथा साहित्य के प्रवर्तकों में से एक माना जाता है। उन्हें उर्दू अकादमी के कई पुरस्कारों और प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। ताऊस चमन की मैना उर्दू का लघु कथा संग्रह है, जिसमें परिवर्तन तथा अस्तित्व के ह्रास की तरफ बढ़ने के बारे में प्रभावशाली कल्पनाएँ की गई हैं। उन्हें २००७ में सरस्वती सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। .

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ताऊस चमन की मैना

ताऊस चमन की मैना डॉ॰ मसूद नैयर द्वारा रचित उर्दू कहानी संग्रह है। इसको बिड़ला फाउंडेशन द्वारा २००६ के सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रेणी:सरस्वती सम्मान से सम्मानित कृति श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत उर्दू भाषा की पुस्तकें.

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दलीप कौर टिवाणा

दलीप कौर टिवाणा सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए उनको 2004 में पद्मश्री सम्मान दिया गया था। उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। दलीप कौर टिवाणा ने भारत में ‘‘बढ़ते सांप्रदायिक तनाव’’ के खिलाफ अक्टूबर 2015 में पद्मश्री लौटाने का ऐलान किया। .

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नालापत बालमणि अम्मा

नालापत बालमणि अम्मा (मलयालम: എൻ. ബാലാമണിയമ്മ; 19 जुलाई 1909 – 29 सितम्बर 2004) भारत से मलयालम भाषा की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। अम्मा के साहित्य और जीवन पर गांधी जी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उनकी प्रमुख कृतियों में अम्मा, मुथास्सी, मज़्हुवींट कथाआदि हैं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। अपने पति वी॰एम॰ नायर के साथ मिलकर उन्होने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया। अम्मा मलयालम भाषा के प्रखर लेखक एन॰ नारायण मेनन की भांजी थी। उनसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा और उनकी लिखी पुस्तकों का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था। अपने मामा से प्राप्त प्रेरणा ने उन्हें एक कुशल कवयित्री बनने में मदद की। नालापत हाउस की आलमारियों से प्राप्त पुस्तक चयन के क्रम में उन्हें मलयालम भाषा के महान कवि वी॰ नारायण मेनन की पुस्तकों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी शैली और सृजनधर्मिता से वे इस तरह प्रभावित हुई कि देखते ही देखते वे अम्मा के प्रिय कवि बन गए। अँग्रेजी भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास उनकी सुपुत्री थीं, जिनके लेखन पर उनका खासा असर पड़ा था। अम्मा को मलयालम साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय मलयालम महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और 'एज्हुथाचन पुरस्कार' सहित कई उल्लेखनीय पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1987 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। वर्ष 2009, उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। .

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नैयर मसूद

नैयर मसूद सरस्वती सम्मान से सम्मानित उर्दू साहित्यकार थे। 23 जुलाई 2017 को उनका निधन हुआ। .

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नीड़ का निर्माण फिर

नीड़ का निर्माण फिर हरिवंश राय बच्चन की एक प्रसिद्ध कृति है।ये पद्यखंड श्री हरिवंशराय ‘बच्चन’ के सतरंगिनी नामक काव्य से है | यह उनकी आत्मकथा का दूसरा भाग है, जिसका प्रकाशन 1970 में हुआ। डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन को इसके लिए प्रथम सरस्वती सम्मान दिया गया था। ‘मधुशाला’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अंतर’, ‘निशा निमंत्रण’, ‘सतरंगिनी’ इत्यादि इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं | इनकी काव्य रचना ‘दो चट्टानों’ पर इन्हें साहित्य अकादमी की ओर से पुरस्कार प्रदान किया गया | सन् १९७६ में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया | उनकी आत्मकथा के चार खण्ड हैं-.

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परिक्रमा (डॉ. जगन्नाथ प्रसाद दास)

परिक्रमा डॉ॰ जगन्नाथ प्रसाद दास द्वारा रचित ओड़िया कृति है। इसको बिड़ला फाउंडेशन द्वारा २००६ के सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रेणी:सरस्वती सम्मान से सम्मानित कृति श्रेणी:ओड़िया साहित्य.

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भगीरथी

भगीरथी गोविंद चन्द्र पांडेय द्वारा रचित संस्कृत कविता संग्रह है। इसको बिड़ला फाउंडेशन द्वारा २००३ के सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रेणी:सरस्वती सम्मान से सम्मानित कृति.

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मनुभाई पाँचोली

मनुभाई पाँचोली सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। ये अपने उपनाम दर्शक़ से भी जाने जाते है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास साक्रेटीज़ के लिये उन्हें सन् १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (गुजराती) से सम्मानित किया गया। .

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मनोज दास

मनोज दास (जन्म) सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। उनकी कृतियाँ ओडिया और अंग्रेजी में हैं। .

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महेश एलकुंचवार

महेश एलकुंचवार सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। .

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लक्ष्मीनंदन बोरा

लक्ष्मीनंदन बोरा (जन्म १ मार्च १९३२) असमिया भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। भारत के असम राज्य में स्थित नौगाँव जिले के कुजिदह गाँव में जन्में लक्ष्मीनंदन बोरा जोरहाट के असम कृषि विश्वविद्यालय में कृषि एवं मौसम विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। उनकी कृति पाताल भैरवी को १९८८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। उन्हें बिरला फाउंडेशन द्वारा २००८ के सरस्वती सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें २००२ में प्रकाशित उपन्यास कायाकल्प के लिए दिया गया। वे अब तक ५६ पुस्तकें लिख चुके हैं, जिसमें उपन्यास, कहानी संग्रह, एकांकी, यात्रा वृत्तांत और जीवनी शामिल है। सरस्वती सम्मान से अलंकृत होने वाले वे पहले असमिया साहित्यकार हैं। .

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शम्सुर्रहमान फारुकी

शम्सुर्रहमान फारुकी सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार और उर्दू ज़बान व अदब के नामवर आलोचक हैं। उनको उर्दू आलोचना के टी.एस.एलियट के रूप में माना जाता है और उन्होंने साहित्यिक समीक्षा के नए मॉडल तैयार किए हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना तनक़ीदी अफ़कार के लिये उन्हें सन् १९८६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से सम्मानित किया गया। .

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शंख घोष

शंख घोष सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। .

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श्रीधर भास्कर वर्णेकर

डॉ श्रीधर भास्कर वार्णेकर (३१ जुलाई १९१८ - १० अप्रैल २०००) संस्कृत के विद्वान तथा राष्ट्रवादी कवि थे। उनका जन्म नागपुर में हुआ था। .

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शेई शोमोए

शेई शोमोए सुनील गंगोपाध्याय द्वारा रचित बांग्ला कृति है। इसको बिड़ला फाउंडेशन द्वारा २००४ के सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रेणी:सरस्वती सम्मान से सम्मानित कृति श्रेणी:बांग्ला साहित्य.

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सुनील गंगोपाध्याय

सुनील गंगोपाध्याय या सुनील गांगुली (সুনীল গঙ্গোপাধ্যায়), (7 सितम्बर 1934 – 23 अक्टूबर 2012) सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार थे। वो कवि और उपन्यासकार थे। .

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हरिभजन सिंह

हरिभजन सिंह (18 अगस्त 1920 - 21 अक्टूबर 2002) सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। हरिभजन सिंह का जन्म 18 अगस्त 1920 को असम के लुमडिंग ज़िले में हुआ था। बाल्यावस्था में ही वह अनाथ हो गये थे। पहले पिता की मौत हुई, फिर माँ की। .

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हरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (२७ नवम्बर १९०७ – १८ जनवरी २००३) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। .

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जगन्नाथ प्रसाद दास

जगन्नाथ प्रसाद दास (१९३६) ओड़िया के प्रसिद्ध कवि व नाटककार हैं। उनका पहला कविता संग्रह प्रथम पुरुष १९७१ में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने ओड़िया चित्रकला पर शोध किया है। उनके अन्य सबु मृत्यु जे जाहार, निर्जनता, सबा शेष लोक और असंगत नाटक प्रकाशित हुए हैं। १९१९ में आह्निक कविता संग्रह पर उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया है। .

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विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

डॉ॰ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (जन्म १९४०) प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार हैं और २०१३ से २०१७ तक की अवधि के लिए साहित्य अकादमी के अध्यक्ष हैं। वे गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली 'दस्तावेज' नामक साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका के संस्थापक-संपादक हैं। यह पत्रिका रचना और आलोचना की विशिष्ट पत्रिका है, जो 1978 से नियमित प्रकाशित हो रही है। सन् २०११ में उन्हें व्यास सम्मान प्रदान किया गया। .

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गोविन्द चन्द्र पाण्डेय

डॉ॰ गोविन्द चन्द्र पाण्डेय (30 जुलाई 1923 - 21 मई 2011) संस्कृत, लेटिन और हिब्रू आदि अनेक भाषाओँ के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के यशस्वी लेखक, हिन्दी कवि, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहबाद के सदस्य राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति और सन २०१० में पद्मश्री सम्मान प्राप्त, बीसवीं सदी के जाने-माने चिन्तक, इतिहासवेत्ता, सौन्दर्यशास्त्री और संस्कृतज्ञ थे। .

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गोविन्द मिश्र

गोविन्द मिश्र (जन्म- १ अगस्त १९३९) हिन्दी के जाने-माने कवि और लेखक हैं। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, भारतीय भाषा परिषद कलकत्ता, साहित्य अकादमी दिल्ली तथा व्यास सम्मान द्वारा गोविन्द मिश्र को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए सम्मानित किया जा चुका है। अभी तक उनके १० उपन्यास और १२ कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त यात्रा-वृत्तांत, बाल साहित्य, साहित्यिक निबंध और कविता-संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। अनेक विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाओं पर शोध हुए हैं। वे पाठ्यक्रम की पुस्तकों में शामिल किए गए हैं, रंगमंच पर उनकी रचनाओं का मंचन किया गया है और टीवी धारावाहिकों में भी उनकी रचनाओं पर चलचित्र प्रस्तुत किए गए हैं। .

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इंदिरा पार्थसारथी

इंदिरा पार्थसारथी सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। .

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कायाकल्प (लक्ष्मीनंदन बोरा)

कायाकल्प एक लक्ष्मीनंदन बोरा द्वारा रचित असमिया उपन्यास है। इसको बिड़ला फाउंडेशन द्वारा २००८ के सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रेणी:सरस्वती सम्मान से सम्मानित कृति श्रेणी:असमिया साहित्य श्रेणी:उपन्यास.

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क्या भूलूं क्या याद करूँ

क्या भूलूं क्या याद करूँ हरिवंश राय बच्चन की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिन्दी साहित्य की एक कालजयी कृति है। यह चार खण्डों में हैः 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ', नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर' और '"दशद्वार" से "सोपान" तक'। इसके लिए बच्चनजी को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार 'सरस्वती सम्मान' से सम्मनित भी किया जा चुका है। हिन्दी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊचा स्थान है। डॉ॰ धर्मवीर भारती ने इसे हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया है। डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है। डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।;आत्मकथा की प्रसिद्ध पंक्तियाँ .

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के के बिड़ला फाउंडेशन

के के बिड़ला फाउंडेशन की स्थापना सन् १९९१ में कृष्णकुमार बिड़ला ने की थी। इसका उद्देश्य साहित्य (विशेष रूप से हिन्दी साहित्य) और कलाओं के विकास को प्रोत्साहित करना है। इसके साथ ही यह शिक्षा एवं सामाजिक कार्य के क्षेत्र में भी काम करता है। इस फाउन्डेशन द्वारा कई पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं जिसमें से प्रमुख हैं-.

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के॰ अय्यप्प पणिक्कर

के॰ अय्यप्प पणिक्कर सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। .

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