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सत्येन्द्रनाथ बोस

सूची सत्येन्द्रनाथ बोस

सत्येन्द्रनाथ बोस (१ जनवरी १८९४ - ४ फ़रवरी १९७४) भारतीय गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री हैं। भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं - बोसान और फर्मियान। इनमे से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही हैं। .

सामग्री की तालिका

  1. 18 संबंधों: पद्म विभूषण, पद्म विभूषण धारकों की सूची, पश्चिम बंगाल, प्रफुल्ल चन्द्र राय, प्रमुख बंगालियों की सूची, पूर्णिमा सिन्हा, बाळासाहेब गंगाधर खेर, बिग बैंग सिद्धांत, बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी, बोस-आइंस्टाइन संघनन, बोसॉन, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारतीय गणितज्ञों की सूची, भौतिक विज्ञानी, भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास, मेघनाद साहा, विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और उनके अविष्कारों का संक्षिप्त वर्णन, क्वाण्टम सांख्यिकी

पद्म विभूषण

पद्म विभूषण सम्मान भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला दूसरा उच्च नागरिक सम्मान है, जो देश के लिये असैनिक क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान के लिये दिया जाता है। यह सम्मान भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है। इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में की गयी थी। भारत रत्‍न के बाद यह दूसरा प्रतिष्ठित सम्मान है। पद्म विभूषण के बाद तीसरा नागरिक सम्मान पद्म भूषण है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारियों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं। श्रेणी:सम्मान श्रेणी:पद्म विभूषण.

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और पद्म विभूषण

पद्म विभूषण धारकों की सूची

यह भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से अलंकृत किए गए लोगों की सूची है: .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और पद्म विभूषण धारकों की सूची

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) (बंगाली: পশ্চিমবঙ্গ) भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक राज्य है। इसके पड़ोस में नेपाल, सिक्किम, भूटान, असम, बांग्लादेश, ओडिशा, झारखंड और बिहार हैं। इसकी राजधानी कोलकाता है। इस राज्य मे 23 ज़िले है। यहां की मुख्य भाषा बांग्ला है। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और पश्चिम बंगाल

प्रफुल्ल चन्द्र राय

डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय (2 अगस्त 1861 -- 16 जून 1944) भारत के महान रसायनज्ञ, उद्यमी तथा महान शिक्षक थे। आचार्य राय केवल आधुनिक रसायन शास्त्र के प्रथम भारतीय प्रवक्ता (प्रोफेसर) ही नहीं थे बल्कि उन्होंने ही इस देश में रसायन उद्योग की नींव भी डाली थी। 'सादा जीवन उच्च विचार' वाले उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने कहा था, "शुद्ध भारतीय परिधान में आवेष्टित इस सरल व्यक्ति को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वह एक महान वैज्ञानिक हो सकता है।" आचार्य राय की प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि उनकी आत्मकथा "लाइफ एण्ड एक्सपीरियेंसेस ऑफ बंगाली केमिस्ट" (एक बंगाली रसायनज्ञ का जीवन एवं अनुभव) के प्रकाशित होने पर अतिप्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका "नेचर" ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए लिखा था कि "लिपिबद्ध करने के लिए संभवत: प्रफुल्ल चंद्र राय से अधिक विशिष्ट जीवन चरित्र किसी और का हो ही नहीं सकता।" आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय भारत में केवल रसायन शास्त्र ही नहीं, आधुनिक विज्ञान के भी प्रस्तोता थे। वे भारतवासियों के लिए सदैव वंदनीय रहेंगे। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और प्रफुल्ल चन्द्र राय

प्रमुख बंगालियों की सूची

प्रमुख बाग्लाभाषी व्यक्तियों की सूची .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और प्रमुख बंगालियों की सूची

पूर्णिमा सिन्हा

पूर्णिमा सिन्हा एक भारतीय भौतिक विज्ञानी थी। वह भौतिक विज्ञान में डॉक्टरेट प्राप्त करने वाली पहली बंगाली महिला थी। उनका जन्म १२ अक्टूबर १९२७ को हुआ था। वह डॉ.

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और पूर्णिमा सिन्हा

बाळासाहेब गंगाधर खेर

बाळासाहेब गंगाधर खेर (२४ अगस्त १८८८ - ८ मार्च १९५७) बॉम्बे राज्य के पहले मुख्यमन्त्री थे (१५ अगस्त १९४७ से २१ अप्रैल १९५२ तक)। तब बॉम्बे राज्य में वर्तमान के महाराष्ट्र और गुजरात राज्य शामिल थे। १९५४ में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और बाळासाहेब गंगाधर खेर

बिग बैंग सिद्धांत

महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार, यह ब्रह्मांड अति सघन और ऊष्म अवस्था से विस्तृत हुआ है और अब तक इसका विस्तार चालू है। एक सामान्य धारणा के अनुसार अंतरिक्ष स्वयं भी अपनी आकाशगंगाओं सहित विस्तृत होता जा रहा है। ऊपर दर्शित चित्र ब्रह्माण्ड के एक सपाट भाग के विस्तार का कलात्मक दृश्य है। ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं।।अमर उजाला।। श्य़ामरत्न पाठक, तारा भौतिकविद, जिसके अनुसार से लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में था।।बीबीसी हिन्दी।। बीबीसी संवाददाता, लंदन:ममता गुप्ता और महबूब ख़ान उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई अवधारणा अस्तित्व में नहीं थी।।हिन्दुस्तान लाइव।।२७ अक्टूबर, २००९ महाविस्फोट सिद्धांत के अनुसार लगभग १३.७ अरब वर्ष पूर्व इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गर्म द्रव्य बन चुका था। १.४ सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे और ब्रह्मांड अब कुछ ठंडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व बनने लगे थे। महाविस्फोट सिद्धान्त के आरंभ का इतिहास आधुनिक भौतिकी में जॉर्ज लिमेत्री ने लिखा हुआ है। लिमेत्री एक रोमन कैथोलिक पादरी थे और साथ ही वैज्ञानिक भी। उनका यह सिद्धान्त अल्बर्ट आइंसटीन के प्रसिद्ध सामान्य सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आधारित था। महाविस्फोट सिद्धांत दो मुख्य धारणाओं पर आधारित होता है। पहला भौतिक नियम और दूसरा ब्रह्माण्डीय सिद्धांत। ब्रह्माण्डीय सिद्वांत के मुताबिक ब्रह्मांड सजातीय और समदैशिक (आइसोट्रॉपिक) होता है। १९६४ में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्गस ने महाविस्फोट के बाद एक सेकेंड के अरबें भाग में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत प्रतिपादित किया था, जो भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था। इसे बाद में 'हिग्गस-बोसोन' के नाम से जाना गया। इस सिद्धांत ने जहां ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों पर से पर्दा उठाया, वहीं उसके स्वरूप को परिभाषित करने में भी मदद की।। दैट्स हिन्दी॥।१० सितंबर, २००८। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और बिग बैंग सिद्धांत

बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी

बसु-आइंस्टीन वक्र (ऊपर वाला) तथा फर्मी-डिरैक वक्र (नीचे वाला) क्वांटम सांख्यिकी तथा सांख्यिकीय भौतिकी में अविलगनीय (indistinguishable) कणों का संचय केवल दो विविक्त ऊर्जा प्रावस्थाओं (discrete energy states) में रह रकता है। इसमें से एक का नाम बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी (Bose–Einstein statistics) है। लेजर तथा घर्षणहीन अतितरल हिलियम के व्यवहार इसी सांख्यिकी के परिणाम हैं। इस व्यवहार का सिद्धान्त १९२४-२५ में सत्येन्द्र नाथ बसु और अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया था। 'अविलगनीय कणों' से मतलब उन कणों से है जिनकी ऊर्जा अवस्थाएँ बिल्कुल समान हों। यह सांख्यिकी उन्ही कणों पर लागू होती है जो जो पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के अनुसार नहीं चलते, अर्थात् अनेकों कण एक साथ एक ही 'क्वांटम स्टेट' में रह सकते हैं। ऐसे कणों का चक्रण (स्पिन) का मान पूर्णांक होता है तथा उन्हें बोसॉन (bosons) कहते हैं। यह सांख्यिकी १९२० में सत्येन्द्रनाथ बोस द्वारा प्रतिपादित की गयी थी और फोटानों के सांख्यिकीय व्यवहार को बताने के लिये थी। इसे सन् १९२४ में आइंस्टीन ने सामान्यीकृत किया जो कणों पर भी लागू होती है। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी

बोस-आइंस्टाइन संघनन

क्वाण्टम फेज ट्रांजीशन बोस-आइंस्टाइन द्राव या बोस-आइंस्टाइन संघनित (Bose–Einstein condensate (BEC)) पदार्थ की एक अवस्था जिसमें बोसॉन की तनु गैस को परम शून्य (0 K या −273.15 °C) के बहुत निकट के ताप तक ठण्डा कर दिया जाता है। इस स्थिति में अधिसंख्य बोसॉन निम्नतम क्वाण्टम अवस्था में होते हैं और क्वाण्टम प्रभाव स्थूल पैमाने पर भी दिखने लगते हैं। इन प्रभावों को 'स्थूल क्वाण्टम परिघटना' (macroscopic quantum phenomena) कहते हैं। पदार्थ की इस अवस्था की सबसे पहले भविष्यवाणी 1924-25 में सत्येन्द्रनाथ बोस ने की थी। किन्तु बाद में किये गये प्रयोगों से जटिल अन्तरक्रिया का पता चला। श्रेणी:पदार्थ श्रेणी:विचित्र पदार्थ.

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और बोस-आइंस्टाइन संघनन

बोसॉन

बोसॉन (Boson):- वे कण जो बोस-आइंस्टीन साँख्यिकी का पालन करते है और जिनकी प्रचक्रण (०,१,२,---) होती है, बोसॉन कहलाते है। मूलभूत बलो को संजोकर रखने वाले सभी उर्जा वाहक कण (फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन) बोसॉन होते है। वे संयोजित कण जिनमे फर्मिऑन की संख्या सम होती है, बोसॉन कहलाते है, उदाहरण - मेसॉन। किसी भी परमाणु का नाभिक फर्मिऑन है अथवा बोसॉन, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें मौजूद प्रोटॉन व न्यूट्रॉन का योग सम है अथवा विषम। शीत हीलियम, जिसकी श्यानता (viscosity) शून्य होती है, का विचित्र व्यवहार होता है कि यह अपने में आरपार आ जा सकता है। इसका यह व्यवहार बोसॉनिक गुण के कारण होता है, चूंकि इसका नाभिक बोसॉन होता है और पॉली एक्सक्ल्युसन सिद्धान्त का पालन करने बाध्य नहीं होता इसलीए यह अपने में आरपार गुजर सकता है। भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं - बोसॉन और फर्मियान। इनमे से बोसॉन सत्येन्द्र नाथ बसु के नाम पर ही हैं। श्रेणी:भौतिकी * श्रेणी:क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत श्रेणी:परमाणु भौतिकी श्रेणी:संघनित द्रव्य भौतिकी.

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और बोसॉन

भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारतीय गणितज्ञों की सूची

सिन्धु सरस्वती सभ्यता से आधुनिक काल तक भारतीय गणित के विकास का कालक्रम नीचे दिया गया है। सरस्वती-सिन्धु परम्परा के उद्गम का अनुमान अभी तक ७००० ई पू का माना जाता है। पुरातत्व से हमें नगर व्यवस्था, वास्तु शास्त्र आदि के प्रमाण मिलते हैं, इससे गणित का अनुमान किया जा सकता है। यजुर्वेद में बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन है। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और भारतीय गणितज्ञों की सूची

भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और भौतिक विज्ञानी

भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास

प्रकाश वैद्युत प्रभाव, आइंस्टाइन ब्राउनी गति, आइंस्टाइन नाभिक की खोज अतिचालकता द्रव्य तरंगें (Matter waves) मंदाकिनी Galaxies फोटॉनों के कण-प्रकृति की पुष्टि न्यूट्रॉन की खोज तारों में ऊर्जा-उत्पादन की प्रक्रिया समझी गई म्यूआन न्यूट्रिनो पाया गया सौर न्यूट्रिनो प्रश्न (problem) मिला पल्सर (Pulsars या neutron stars) की खोज चार्म्ड क्वार्क (Charmed quark) का पता चला श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:इतिहास ru:Хронология открытий человечества.

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास

मेघनाद साहा

मेघनाद साहा (६ अक्टूबर १८९३ - १६ फरवरी, १९५६) सुप्रसिद्ध भारतीय खगोलविज्ञानी (एस्ट्रोफिजिसिस्ट्) थे। वे साहा समीकरण के प्रतिपादन के लिये प्रसिद्ध हैं। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। उनकी अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने भारत के राष्ट्रीय शक पंचांग का भी संशोधन किया, जो २२ मार्च १९५७ (१ चैत्र १८७९ शक) से लागू किया गया। इन्होंने साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान तथा इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स नामक दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना की। .

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और मेघनाद साहा

विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और उनके अविष्कारों का संक्षिप्त वर्णन

अंग्रेज भौतिकविद विलियम हेनरी ब्रेग (१८६२-१९४२) और उनके पुत्र विलियम लॉरेन्स ब्रेग ने खोज की कि जब क्ष-किरण क्रिस्टल में से होकर गुजरती है तो वो फोटोग्रफिक फिल्म पर बिन्दुओ की विशिष्ट प्रतिकृति बनाती है। यह प्रतिकृति क्रिस्टल के भीतर मौजुद परमाणुओ कि विशिष्ट व्यवस्था को दर्शाती है। श्रेणी:वैज्ञानिक.

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क्वाण्टम सांख्यिकी

भौतिकी में मुख्य रूप से तीन प्रकार की सांख्यिकी का उपयोग होता है। चिरसमत सांख्यिकी (मैक्सबेल- बोल्ट्जमैन सांख्यिकी), बोस-आइंस्टाइन और फर्मी- डिरैक सांख्यिकी। दूसरे और तीसरे प्रकार का सम्मिलित रूप में क्वांटम सांख्यिकी (Quantum Statistics) भी कहते हैं, क्योंकि इनमें हम क्वांटम सिद्धांत के द्धारा जटिल समुदायों के गुणधर्मो का अध्ययन करते हैं। क्वांटम सांख्यिकी के आविष्कार के पूर्व चिरसंमत (classical) सांख्यिकी से ही यह कार्य लिया जाता था और इसमें पर्याप्त सफलता भी मिलती थी। परंतु कालांतर में प्रकाशविद्युत प्रभाव न्यून ताप पर विशेष ऊष्मा, काली वस्तु का विकिरण (black body radiation) विषयक कुछ ऐसे आविष्कार हुए जिनको चिरसंतम भौतिकी भली प्रकार से समझा नही सकी। इस प्रकार क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ। क्वांटम सांख्यिकी का आविष्कार भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एस.

देखें सत्येन्द्रनाथ बोस और क्वाण्टम सांख्यिकी

SN Bose, सत्येन्द्र नाथ बसु, सत्येंद्र नाथ बसु, सत्येंद्रनाथ बोस के रूप में भी जाना जाता है।