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संधारित्र

सूची संधारित्र

विभिन्न प्रकार के आधुनिक संधारित्र समान्तर प्लेट संधारित्र का एक सरल रूप संधारित्र या कैपेसिटर (Capacitor), विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाला दो सिरों वाला एक प्रमुख अवयव है। यदि दो या दो से अधिक चालकों को एक विद्युत्रोधी माध्यम द्वारा अलग करके समीप रखा जाए, तो यह व्यवस्था संधारित्र कहलाती है। इन चालकों पर बराबर तथा विपरीत आवेश होते हैं। यदि संधारित्र को एक बैटरी से जोड़ा जाए, तो इसमें से धारा का प्रवाह नहीं होगा, परंतु इसकी प्लेटों पर बराबर मात्रा में घनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश संचय हो जाएँगे। विद्युत् संधारित्र का उपयोग विद्युत् आवेश, अथवा स्थिर वैद्युत उर्जा, का संचय करने के लिए तथा वैद्युत फिल्टर, स्नबर (शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी) आदि में होता है। संधारित्र में धातु की दो प्लेटें होतीं हैं जिनके बीच के स्थान में कोई कुचालक डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ (जैसे कागज, पॉलीथीन, माइका आदि) भरा होता है। संधारित्र के प्लेटों के बीच धारा का प्रवाह तभी होता है जब इसके दोनों प्लेटों के बीच का विभवान्तर समय के साथ बदले। इस कारण नियत डीसी विभवान्तर लगाने पर स्थायी अवस्था में संधारित्र में कोई धारा नहीं बहती। किन्तु संधारित्र के दोनो सिरों के बीच प्रत्यावर्ती विभवान्तर लगाने पर उसके प्लेटों पर संचित आवेश कम या अधिक होता रहता है जिसके कारण वाह्य परिपथ में धारा बहती है। संधारित्र से होकर डीसी धारा नही बह सकती। संधारित्र की धारा और उसके प्लेटों के बीच में विभवान्तर का सम्बन्ध निम्नांकित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ: .

सामग्री की तालिका

  1. 48 संबंधों: ऊर्जा, ऊर्जा भण्डारण, एलसी परिपथ, डीसी से डीसी परिवर्तक, दिष्टकारी, धारिता, निष्क्रिय घटक, परावैद्युत, प्रेरक, फैरड, भौतिक विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली, मशीन सारावली, मापन एवं जाँच के एलेक्ट्रानिक उपकरण, माइक्रोफोन, मोबाइल फ़ोन, यंत्र, रैखिक परिपथ, रैंडम एक्सैस मैमोरी, लाउडस्पीकर, शक्ति मॉसफेट, शक्ति गुणांक, संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण), स्पर्श पटल, सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी, हेनरी कैवेंडिश, जनरल इलेक्ट्रिक, जाइरेटर, विद्युत अपघट्य संधारित्र, विद्युत्मापी, विद्युतीय प्रतीक, विभिन्न प्रकार के संधारित्र, वैद्युत बैलास्ट, वैद्युत अवयव, वोल्टता गुणक, ओम का नियम, आर एल सी परिपथ, आईपॉड, इलैक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रानिक परिपथ, इलेक्ट्रानिक अवयवों का वर्ण संकेतन, इलेक्ट्रॉनिक अवयव, कौल्पिट दोलित्र, कॉकरॉफ्ट-वाल्टन जनित्र, अतिसंधारित्र, अनुरूप फिल्टर, अन्तर्वाह धारा, अबाधित विद्युत आपूर्ति, 555 टाइमर आईसी

ऊर्जा

दीप्तिमान (प्रकाश) ऊर्जा छोड़ता हैं। भौतिकी में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते हैं। ऊँचाई से गिरते हुए जल में ऊर्जा है क्योंकि उससे एक पहिये को घुमाया जा सकता है जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। .

देखें संधारित्र और ऊर्जा

ऊर्जा भण्डारण

बाँध बनाकर वर्षा-जल को ऊंचे स्थान पर ही रोक लिया जाता है।इस जल की स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में और फिर विद्युत ऊर्जा में बदलकर सूदूर स्थानों पर प्रेषित कर दिया जाता है। किसी प्रकार की ऊर्जा को भविष्य में उपयोग करने के उद्देश्य से संचित करना ऊर्जा भण्डारण (Energy storage) कहलाता है। ऊर्जा को संचित करने वाली युक्तियों को ऊर्जा संचायक (accumulator) कहते हैं। ऊर्जा विविध रूपों में रह सकती है, जैसे विकिरण, रासायनिक ऊर्जा, गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा, वैद्युत स्थितिज ऊर्जा, वैद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा (अधिक ताप पर किसी वस्तु को रखना), गुप्त ऊष्मा तथा गतिज ऊर्जा। कुछ प्रकार की ऊर्जाओं को भण्डारित करना अपेक्षाकृत सरल तथा कम खर्चीला कार्य है जबकि अन्य को भण्डारित करना अपेक्षाकृत कठिन। इसलिये ऊर्जा भण्डारण के लिये ऊर्जा को उस रूप में बदल लिया जाता है जिसमें भण्डारित करना आसान हो और जिससे आसानी से दूसरे रूप में ऊर्जा को परिवर्तित किया जा सके। भारी मात्रा में ऊर्जा के भण्डारण के लिये पम्पित जल (pumped hydro) सबसे उपयुक्त है। इसी लिये विश्व की सम्पूर्ण संचित ऊर्जा का ९९% ऊर्जा इसी रूप में संचित की जाती है। कुछ प्रकार की ऊर्जा भण्डारण कम समय के लिये ही सम्भव होता है जबकि कुछ प्रकार के ऊर्जा भण्डारण उसकी अपेक्षा बहुत अधिक समय के लिये भी किया जा सकता है। .

देखें संधारित्र और ऊर्जा भण्डारण

एलसी परिपथ

Lऔर C से बना परिपथ (बैण्डपास फिल्टर) LC परिपथ में प्रेरकत्व तथा संधारित्र होते हैं। इनको 'अनुनादी परिपथ' या 'टैंक परिपथ' या 'ट्युण्द परिपथ' भी कहते हैं। L और C मिलकर एक वैद्युत अनुनादी की तरह काम करते हैं (जो स्वरित्र का वैद्युत एनालॉग है)। LC का उपयोग किसी नियत आवृत्ति का वैद्युत संकेत उत्पन्न करने के लिया किया जाता है। इसके अलावा इसे किसी जटिल संकेत में से किसी निश्चित आवृत्ति के संकेत को चुनने (फिल्टर करने) के लिए भी काम में लाया जाता है। इस कारण LC परिपथ बहुत से एलेक्ट्रानिक युक्तियों में प्रयुक्त होते हैं, जैसे रेडियो में कंपित्र (आसिलेटर), फिल्टर, ट्यूनर और आवृत्ति मिश्रक (frequency mixers) के रूप में प्रयोग किया जाता है। LC परिपथ एक आदर्शीकृत परिपथ है जो इस मान्यता पर बनाया गया है कि इस परिपथ में प्रतिरोध अनुपस्थित या शून्य है और इस कारण ऊर्जा का ह्रास शून्य है। किन्तु किसी भी व्यावहारिक LC परिपथ में कुछ न कुछ ऊर्जा ह्रास अवश्य होगा। यद्यपि कोई भी परिपथ शुद्ध रूप में LC नहीं है फिर भी इस आदर्श परिपथ का अध्ययन समझ विकसित करने के लिए उपयोगी है। .

देखें संधारित्र और एलसी परिपथ

डीसी से डीसी परिवर्तक

डीसी से डीसी परिवर्तक (DC-to-DC converter) उस एलेक्ट्रानिक परिपथ को कहते है जो किसी डीसी वोल्टता को किसी दूसरी डीसी वोल्टता में बदलता है, जैसे ३०० वोल्ट डीसी से १२ वोल्ट डीसी। .

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दिष्टकारी

दिष्टकारी या ऋजुकारी या रेक्टिफायर (rectifier) ऐसी युक्ति है जो आवर्ती धारा (alternating current या AC) को दिष्टधारा (DC) में बदलने का कार्य करती है। अर्थात रेक्टिफायर, ए.सी.

देखें संधारित्र और दिष्टकारी

धारिता

thumb किसी चालक की वैद्युत धारिता (कैपेसिटी या कैपेसिटेंस), उस चालक की वैद्युत आवेश का संग्रहण करने की क्षमता की माप होती है। जब किसी चालक को आवेश दिया जाता है तो उसका वैद्युत विभव आवेश के अनुपात में बढता जाता है। यदि किसी चालक को q आवेश देने पर उसके विभव में V वृद्धि हो, तो जहाँ C एक नियतांक है जिसका मान चालक के आकार, समीपवर्ती माध्यम तथा पास में अन्य चालकोँ की उपस्थिति पर निर्भर करता है। इस नियतांक को 'वैद्युत धारिता' कहते हैँ। ऊपर के समीकरण q .

देखें संधारित्र और धारिता

निष्क्रिय घटक

निष्क्रियता किसी इंजीनियरी प्रणाली का एक गुण है, जिसका प्रयोग सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरी और नियंत्रण प्रणालियों में किया जाता है। क्षेत्र के आधार पर एक निष्क्रिय घटक (passive compnent) वह है जो उर्जा का उपभोग तो करता है पर इसका उत्पादन नहीं करता, या यह वो घटक हैं जो शक्ति प्रवर्धन (power gain) मे अक्षम होते हैं। जो घटक निष्क्रिय नहीं होते, सक्रिय घटक (Active components) कहलाते हैं। पूरी तरह से निष्क्रिय घटकों से बना एक इलेक्ट्रॉनिक परिपथ, निष्क्रिय परिपथ कहलाता है (और इसके गुण एक निष्क्रिय घटक के समान ही होते हैं)।;निष्क्रिय घटक - प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड आदि; सक्रिय घटक - ट्रांजिस्टर, मॉसफेट, टेट्रोड, पेन्टोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर आदि .

देखें संधारित्र और निष्क्रिय घटक

परावैद्युत

विद्युत क्षेत्र लगाने पर परावैद्युत पदार्थ का ध्रुवण (पोलराइजेशन) उन कुचालक पदार्थों को परावैद्युत (dielectric) कहते हैं जिनके अन्दर विद्युत क्षेत्र पैदा करने पर (या जिन्हें विद्युत क्षेत्र में रखने पर) वे ध्रुवित हो जाते हैं। कुचालक (इंसुलेटर) से आशय उन सभी पदार्थों से है जिनकी प्रतिरोधकता अधिक (या विद्युत चालकता कम) होती है किन्तु परावैद्युत पदार्थ वे हैं जो कुचालक होने के साथ-साथ पर्याप्त मात्रा में ध्रुवण का गुण भी प्रदर्शित करते हैं। किसी पदार्थ के ध्रुवण की मात्रा को उसके परावैद्युत स्थिरांक (dielectric constant) या परावैद्युतांक से मापा जाता है। परावैद्युत पदार्थों का एक प्रमुख उपयोग संधारित्र की प्लेटों के बीच में किया जाता है ताकि समान आकार में अधिक धारिता मिले। पॉलीप्रोपीलीन एक परावैद्युत पदार्थ है। .

देखें संधारित्र और परावैद्युत

प्रेरक

प्रेरकत्व का प्रतीक कुछ छोटे आकार-प्रकार के प्रेरकत्व अपेक्षाकृत बड़ा प्रेरकत्व जो पावर सप्लाइयों में प्रयुक्त होते हैं। प्रेरक या इंडक्टर (inductor) एक वैद्युत अवयव है जिसमें कोई विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में उर्जा का भंडारण करता है। प्रेरक द्वारा चुम्बकीय उर्जा के भंडारण की क्षमता को इसका प्रेरकत्व (inductance) कहा जाता है और इसे मापने की इकाई हेनरी है। प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं। .

देखें संधारित्र और प्रेरक

फैरड

फैरड (Farad; संकेत F) धारिता की इकाई है। यह नाम अंग्रेज भौतिकशास्त्री माइकल फैराडे के नाम पर पड़ा है। फैराड बहुत बड़ी इकाई है। अतः व्यवहार में माइक्रोफैराड, नैनोफैराड और पिकोफैराड आदि ही अधिक प्रयुक्त होते हैं। | .

देखें संधारित्र और फैरड

भौतिक विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली

(abscissa) किसी ग्राफ पर किसी बिन्दु की Y-अक्ष से लम्बवत दूरी; इसे X-निर्देशांक भी कहते हैं। प्रति-कण (antiparticle) A counterpart of a subatomic particle having opposite properties (except for equal mass)। द्वारक (aperture) Any opening through which radiation may pass.

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मशीन सारावली

उन युक्तियों को मशीन (Machine) कहते हैं जो कोई उपयोगी कार्य करती हैं या करने में मदद करतीं हैं। सभी मशीनें प्राय: उर्जा लेकर (निवेश) कार्य करतीं हैं। नीचे मशीनों की सारावली दी गयी है जो मशीनों एवं उनसे सम्बन्धित उपविषयों पर एक विहंगम दृष्टि प्रस्तुत करती है। .

देखें संधारित्र और मशीन सारावली

मापन एवं जाँच के एलेक्ट्रानिक उपकरण

एक डिजिटल ऑसिलोस्कोप विद्युत एवं एलेक्ट्रानिक कार्य के लिये बहुत से उपकरण लगते हैं जो मापन, जाँच, सिगनल पैदा करने (संकेत-जनक), सिगनल का स्वरूप देखने आदि के काम आते हैं। .

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माइक्रोफोन

एक माइक्रोफोन (जिसे बोलचाल की भाषा में Mic या Mike कहा जाता है) एक ध्वनिक-से-वैद्युत ट्रांसड्यूसर (en:Transducer) या संवेदक होता है, जो ध्वनि को विद्युतीय संकेत में रूपांतरित करता है। 1876 में, एमिली बर्लिनर (en:Emile Berliner) ने पहले माइक्रोफोन का आविष्कार किया, जिसका प्रयोग टेलीफोन स्वर ट्रांसमीटर के रूप में किया गया। माइक्रोफोनों का प्रयोग अनेक अनुप्रयोगों, जैसे टेलीफोन, टेप रिकार्डर, कराओके प्रणालियों, श्रवण-सहायता यंत्रों, चलचित्रों के निर्माण, सजीव तथा रिकार्ड की गई श्राव्य इंजीनियरिंग, FRS रेडियो, मेगाफोन, रेडियो व टेलीविजन प्रसारण और कम्प्यूटरों में आवाज़ रिकार्ड करने, स्वर की पहचान करने, VoIP तथा कुछ गैर-ध्वनिक उद्देश्यों, जैसे अल्ट्रासॉनिक परीक्षण या दस्तक संवेदकों के रूप में किया जाता है। शॉक माउंट वाला एक न्यूमन U87 कंडेंसर माइक्रोफोन वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश माइक्रोफोन यांत्रिक कंपन से एक विद्युतीय आवेश संकेत उत्पन्न करने के लिये एक विद्युतचुंबकीय प्रवर्तन (गतिज माइक्रोफोन), धारिता परिवर्तन (दाहिनी ओर चित्रित संघनित्र माइक्रोफोन), पाइज़ोविद्युतीय निर्माण (Piezoelectric Generation) या प्रकाश अधिमिश्रण का प्रयोग करते हैं। .

देखें संधारित्र और माइक्रोफोन

मोबाइल फ़ोन

अनु-फ्लिप मोबाइल फोन के कई उदाहरण. मोबाइल फ़ोन या मोबाइल (इसे सेलफोन और हाथफोन भी बुलाया जाता है, या सेल फोन, सेलुलर फोन, सेल, वायरलेस फोन, सेलुलर टेलीफोन, मोबाइल टेलीफोन या सेल टेलीफोन) एक लंबी दूरी का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे विशेष बेस स्टेशनों के एक नेटवर्क के आधार पर मोबाइल आवाज या डेटा संचार के लिए उपयोग करते हैं इन्हें सेल साइटों के रूप में जाना जाता है। मोबाइल फोन, टेलीफोन, के मानक आवाज कार्य के अलावा वर्तमान मोबाइल फोन कई अतिरिक्त सेवाओं और उपसाधन का समर्थन कर सकते हैं, जैसे की पाठ संदेश के लिए SMS, ईमेल, इंटरनेट के उपयोग के लिए पैकेट स्विचिंग, गेमिंग, ब्लूटूथ, इन्फ़रा रेड, वीडियो रिकॉर्डर के साथ कैमरे और तस्वीरें और वीडियो भेजने और प्राप्त करने के लिए MMS, MP3 प्लेयर, रेडियो और GPS.

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यंत्र

जेम्स अल्बर्ट बोनसैक द्वारा सन् १८८० में विकसित मशीन; यह मशीन प्रति घण्टे लगभग २०० सिगरेट बनाती थी। कोई भी युक्ति जो उर्जा लेकर कुछ कार्यकलाप करती है उसे यंत्र या मशीन (machine) कहते हैं। सरल मशीन वह युक्ति है जो लगाये जाने वाले बल का परिमाण या दिशा को बदल दे किन्तु स्वयं कोई उर्जा खपत न करे। .

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रैखिक परिपथ

रैखिक परिपथ (linear circuit) वह परिपथ है जिसमें f आवृत्ति का साइनवक्रीय (साइनस्वायडल) इनपुट वोल्टेज लगाने पर उसके सभी वोल्टेज तथा धाराएँ भी f आवृत्ति की साइनवक्रीय होती हैं। हाँ, यह आवश्यक नहीं है कि सभी वोल्टेज और धारायें इनपुट के फेज में ही हों।.

देखें संधारित्र और रैखिक परिपथ

रैंडम एक्सैस मैमोरी

राइटेबल अस्थिर यादृच्छिक अभिगम मेमोरी का उदाहरण: तुल्यकालिक गतिशील रैम (RAM) मॉड्यूल, जो शुरू में व्यक्तिगत कंप्यूटरों, कार्यस्थलों और सर्वरों में मुख्य मेमोरी के रूप प्रयुक्त होता था। यादृच्छिक-अभिगम स्मृति (याभिस्मृति) (आमतौर पर अपने आदिवर्णिक शब्द, रैम (RAM) द्वारा जानी जाती है), कंप्यूटर डाटा संग्रहण का एक रूप है। आज यह एकीकृत परिपथ का रूप धारण करती है जो संग्रहीत डाटा को किसी भी क्रम में, अर्थात् जो इच्छा हो, यादृच्छिक) अभिगमित होने की अनुमति प्रदान करता है। शब्द यादृच्छिक इस प्रकार इस तथ्य को संदर्भित करता है कि डाटा का कोई भी हिस्सा अपनी भौतिक स्थिति और चाहे यह डाटा के पिछले हिस्से से संबंधित हो या न हो, इन सबकी परवाह किए बगैर निर्धारित समय में वापस आ सकता है। यह सिस्टम बस के साथ की आवृति पर काम करती है तो SDRAM कहलाती है जो आजकल कम्पयूटरों में सबसे अधिक प्रयुक्त होती है। इसकी इसके विपरीत, भंडारण उपकरण जैसे चुंबकीय डिस्क और प्रकाशीय डिस्क, रिकॉर्डिंग माध्यम या पठनीय सिरे की भौतिक गति पर निर्भर करते हैं। इन उपकरणों में, गति में डाटा स्थानांतरण से अधिक समय लगता है और अगली विषय-वस्तु की भौतिक स्थिति के आधार पर पुनर्प्राप्ति समय बदलता रहता है। शब्द रैम (RAM) अक्सर अस्थिर या वोलाटाइल प्रकार की मेमोरी (जैसे डीरैम (DRAM) मेमोरी मॉड्यूल) से संबंधित होता है जहां बिजली का संचालन बंद हो जाने पर सूचना खो जाती है। अधिकतर रोम (ROM) और नोर-फ़्लैश (NOR-Flash) कहे जाने वाले एक प्रकार के फ़्लैश मेमोरी सहित कई अन्य प्रकार की मेमोरी रैम (RAM) भी है। RAM दो प्रकार की होती है। static RAM aur daynemic RAM होती है। .

देखें संधारित्र और रैंडम एक्सैस मैमोरी

लाउडस्पीकर

एक सस्ता, कम विश्वस्तता 3½ इंच स्पीकर, आमतौर पर छोटे रेडियो में पाया जाता है। एक चतुर्मार्गी, उच्च विश्वस्तता लाउडस्पीकर सिस्टम.

देखें संधारित्र और लाउडस्पीकर

शक्ति मॉसफेट

पॉवर मॉसफेट: ये दोनो ही मॉसफेट १२० वोल्ट और ३० अम्पीयर सतत धारा ले सकने में सक्षम हैं। शक्ति मॉसफेट या 'पॉवर मॉसफेट' (Power MOSFET) विशेष प्रकार के मॉसफेट होते हैं जो अपेक्षाकृत अधिक विद्युत शक्ति संभाल सकते हैं। अर्थात ये अधिक वोल्टता या अधिक धारा या अधिक वोल्टता और धारा को हैंडिल करने में सक्षम होते हैं। आईजीबीटी, एससीआर आदि अन्य पावर-एलेक्ट्रानिक युक्तियों की अपेक्षा इन्हें उपयोग में लाने का मुख्य लाभ यह है कि इन्हें अधिक आवृत्ति पर चालू-बन्द (ON/OFF) किया जा सकता है। शक्ति-परिपथों को जितनी अधिक आवृत्ति पर चलाया जाता है, उनमें लगने वाले प्रेरकत्व, ट्रांसफॉर्मर, संधारित्र आदि का आकार उतने ही छोटे होते हैं। शक्ति मॉसफेट विशेषतः कम वोल्टता पर काम करना हो तो पॉवर मॉसफेट के उपयोग से दक्षता अधिक मिलती है। अधिक वोल्टता वाले पॉवर मॉसफेटों की चालू अवस्था का प्रतिरोध (ON resistance) अधिक होता है जिसके कारण इनके उपयोग से अधिक शक्ति क्षय होता है और कम दक्षता प्राप्त होती है। इसी कारण शक्ति मॉसफेट कम वोल्टता (२०० वोल्ट से कम) पर सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला स्विच है। शक्ति मॉसफेट के कार्य करने का तरिका वही है जो कम शक्ति पर काम करने वाले मॉसफेट का है। जब सन् १९७० दशक के आखिरी दिनों में आईसी निर्माण के लिये CMOS तकनीक का विकास हुआ तो मॉसफेट का जन्म हुआ। .

देखें संधारित्र और शक्ति मॉसफेट

शक्ति गुणांक

एसी विद्युत शक्ति पर काम कर रहे किसी उद्भार (लोड) द्वारा लिये गये वास्तविक शक्ति (Real power) तथा आभासी शक्ति (Apparent power) के अनुपात को शक्ति गुणक या शक्ति गुणांक (Power factor) कहते हैं। शक्ति गुणांक का संख्यात्मक मान शून्य और १ के बीच में होता है। शक्ति गुणक .

देखें संधारित्र और शक्ति गुणांक

संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण)

फ्रिज की संघनन कुण्डली संघनित्र (condenser) एक यांत्रिक युक्ति है जो गैस या वाष्प को ठण्डा करके द्रव में बदल देती है। संघनित्र कई जगह प्रयोग किये जाते हैं। उर्जा संयत्रों में इनका प्रयोग टर्बाइन से निकलने वाले भाप को संघनित करने के लिये किया जाता है। शीतलन संयंत्रों (refrigeration plants) में अमोनिया एवं फ्लोरीनेटड हाइड्रोकार्बनों जैसे शीतलक वाष्पों को संघनित करने के काम आता है। पेट्रोलियम एवं अन्य रासायनिक उद्योगों में हाइड्रोकार्बनों एवं अन्य रसायनों के वाष्पों को संघनित करने के लिये काम में लिया जाता है। .

देखें संधारित्र और संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण)

स्पर्श पटल

निन्टेण्डो का टचस्क्रीन (निचला फलक) कंप्यूटर। स्पर्श-पटल (अंग्रेज़ी: टचस्क्रीन) एक ऐसी विद्युतीय दृश्य प्रादर्शी है जो प्रादर्श क्षेत्र में किसी स्पर्श की उपस्थिति और अवस्थिति की पहचान करने में सक्षम होती है। आसान शब्दों में स्पर्श-पटल एक ऐसा पटल या मॉनीटर होता है, जिसमें स्पर्श के माध्यम से भी डाटा भरा जा सकता है, और ऐसा करने में किसी कुंजीपटल की आवश्यकता नहीं होती। ये पटल उस निश्चित क्षेत्र में स्पर्श और उसकी स्थिति (स्थान) का ज्ञान कर लेने में सक्षम होता है। प्रायः ये शब्द पटल पर अंगुली या हाथ के स्पर्श के लिये भी प्रयोग किया जाता है। ये पटल अन्य निष्क्रिय वस्तुओं जैसे पेन आदि को भी पहचान लेता है। कंप्यूटर पर इसकी मदद से वह सारे काम हो सकते हैं जिनको करने के लिए एक माउस की आवश्यकता पड़ती है।|हिन्दुस्तान लाइव। ३ फ़रवरी २०१० प्रतिदिन विकसित हो रही स्पर्श-पटल प्रौद्योगिकी ने मोबाइल, कंप्यूटर, टैबलेट पीसी, पर्सनल मल्टीमीडिया प्लेयर, गेमिंग कंसोल में इसका प्रयोग काफी बढ़ा दिया है। कुछ आईफोन और उसके बाद आए आईपैड और कई पर्सनल कंप्यूटर निर्माता कंपनियों ने स्पर्श-पटल इंटरफेस तकनीक का आरंभ कर दिया है। माइक्रोसॉफ्ट का प्रोटोटाइप सरफेस कंप्यूटर एक टैबलेट पीसी है जो अंगुली के स्पर्श का उत्तर तो देगा ही साथ ही हाथ के प्राकृतिक संचालन के आधार पर भी काम करेगा। माइक्रोसॉफ्ट इसकी वस्तु पहचान (ऑब्जेक्ट रिकॉग्निशन) तकनीक पर काम कर रहा है। .

देखें संधारित्र और स्पर्श पटल

सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी

सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी (Microelectronics) इलेक्ट्रॉनिकी का एक उपक्षेत्र है। यह अत्यन्त सूक्ष्म आकार के एलेक्ट्रॉनिक अवयवों के अध्ययन एवं उनके विनिर्माण से संबन्धित है। प्रायः (किन्तु हमेशा नहीं) यह आकार माइक्रोमीटर के तुल्य आकार का या इससे छोटा होता है। युक्तियाँ अर्धचालकों से बनायी जाती हैं। आजकल एलेक्ट्रॉनिक डिजाइन में काम आने वाले बहुत से अवयव जैसे ट्रांजिस्टर, संधारित्र, प्रेरकत्व, प्रतिरोध तथा डायोड आदि सूक्ष्मएलेक्ट्रानिक रूप उपलब्ध हैं। .

देखें संधारित्र और सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी

हेनरी कैवेंडिश

हेनरी कैवेंडिश (10 अक्टूबर 1731 - 24 फ़रवरी 1810) एक ब्रिटिश प्राकृतिक दार्शनिक, वैज्ञानिक, और एक महत्वपूर्ण प्रायोगिक और सैद्धांतिक रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी था। कैवेंडिश उसकी हाइड्रोजन की खोज या जिन्हें वह "ज्वलनशील हवा" कहा करते थे के लिए विख्यात है।Cavendish, Henry (1766).

देखें संधारित्र और हेनरी कैवेंडिश

जनरल इलेक्ट्रिक

जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी, या GE, न्यूयॉर्क राज्य में निगमित एक बहुराष्ट्रीय अमेरिकी प्रौद्योगिकी और सेवा समूह है। 2009 में, फोर्ब्स ने GE को दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी के रूप में स्थान दिया। दुनिया भर में कंपनी के 323,000 कर्मचारी हैं। .

देखें संधारित्र और जनरल इलेक्ट्रिक

जाइरेटर

जाइरेटर का प्रतीक (टेलिगन द्वारा प्रस्तावित) परिभ्रमित्र या जाइरेटर एक पैसिव, रैखिक, ह्रासरहित, द्वि-पोर्ट विद्युत नेटवर्क अवयव है जिसे १९४८ में बर्नार्ड डी एच टेलिगन ने प्रस्तावित किया था। चार परम्परागत अवयवों (प्रतिरोध, संधारित्र, प्रेरकत्व, तथा ट्रान्सफॉर्मर) से यह इस मामले में भिन्न है कि जाइरेटर एक अव्युत्क्रम अवयव है। जाइरेटर की सहायता से उन दो या अधिक पोर्ट वाली युक्तियों का भी प्रत्यक्षीकरण (रियलाइजेशन) किया जा सकता है जिनको केवल चार परम्परागत अवयवों द्वारा नहीं बनाया जा सकता। उदाहरण के लिये, जाइरेटर की सहायता से सर्कुलेटर और आइसोलेटर का प्रत्यक्षीकरण सम्भव है। ट्रान्जिस्टर और ऑप-ऐम्प का उपयोग करते हुए फीडबैक लगाकर जाइरेटर परिपथ बनाया जा सकता है। .

देखें संधारित्र और जाइरेटर

विद्युत अपघट्य संधारित्र

प्रायः उपयोग में आने वाले टैंटलम एलेक्ट्रोलाइटिक संधारित्र तथा अलुमिनियम एलेक्ट्रोलाइटिक संधारित्र विद्युत अपघट्य संधारित्र' (electrolytic capacitor) संधारित्र का एक प्रकार है जिसके दोनो प्लेटों के बीच कोई समुचित विद्युत अपघट्य (electrolyte) का प्रयोग किया जाता है। विद्युत अपघट्य के प्रयोग के कारण विद्युत अपघट्य संधारित्र की धारिता समान आकार के अन्य संधारित्रों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। इस तरह के संधारित्र अपेक्षाकृत अधिक धारा तथा कम आवृत्ति के विद्युत परिपथों में उपयोग में लाये जाते हैं। अधिक आवृत्ति की स्थिति में ये उपयोगी नहीं होते। विद्युत अपघट्य संधारित्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -.

देखें संधारित्र और विद्युत अपघट्य संधारित्र

विद्युत्मापी

विद्युत्मापी विद्युत आवेश या विभवान्तर मापने वाला विद्युत उपकरण है। यह कई तरह का होता है। आधुनिक विद्युत्मापी निर्वात नलिका पर या ठोस अवस्था एलेक्ट्रॉनिक युक्तियों पर आधारित होते हैं और १ फेम्टोअम्पीयर तक की धारा भी मापने में सक्षम हैं। विद्युत्दर्शी भी समान सिद्धान्तों पर कार्य करता है किन्तु अधिक सरल उपकरण है किन्तु यह केवल आवेश या विभवान्तर के सापेक्ष परिमाण का ज्ञान देता है।by .

देखें संधारित्र और विद्युत्मापी

विद्युतीय प्रतीक

बहुधा प्रयुक्त विद्युतीय प्रतीक विद्युत अभियांत्रिकी तथा इलेक्ट्रॉनिकी में किसी परिपथ के चित्रमय प्रदर्शन के लिये उस परिपथ में प्रयुक्त विभिन्न अवयवों (जैसे तार, बैटरी, डायोड, प्रतिरोध आदि के लिये मानक प्रतीक उपयोग किये जाते हैं। आजकल लगभग सभी देशों में लगभग एक समान प्रतीक प्रयोग किये जा रहे हैं। किसी अवयव का प्रतीक काफी सीमा तक उस अवयव के किसी प्रमुख गुणधर्म को चित्रित करता है। .

देखें संधारित्र और विद्युतीय प्रतीक

विभिन्न प्रकार के संधारित्र

विभिन्न प्रकार के नियत मान वाले संधारित्र संधारित्रों का वर्गीकरण प्राय: उनके निर्माण में प्रयुक्त डाइएलेक्ट्रिक पदार्थ के आधार पर किया जाता है। डाइएलेक्ट्रिक भी दो प्रकार के होते हैं - बल्क कुचालक (Bulk insulators) एवं धातु-आक्साइड के फिल्म (इन्हें 'विद्युत-अपघट्य संधारित्र' भी कहते हैं)। इसी प्रकार, संधारित्र नियत मान वाले (fixed) हो सकते हैं या परिवर्ती मान वाले (variable).

देखें संधारित्र और विभिन्न प्रकार के संधारित्र

वैद्युत बैलास्ट

बैलास्ट के रूप में प्रेरकत्व (चोक) का पारम्परिक उपयोग A -- ट्यूब, B -- २३० वोल्ट ए सी, C -- स्टार्टर, E -- संधारित्र, F -- फिलामेण्ट, G -- चोक (बैलास्ट) सी एफ एल का इलेक्त्रानिक बैलास्ट ट्यूबलाइट के बैलास्ट का परिपथ - यह उच्च आवृत्ति की ए सी उत्पन्न करने वाला इन्वर्टर है। किसी वैद्युत परिपथ में धारा को एक सीमा में बनाये रखने के लिये जो युक्ति प्रयोग की जाती है उसे वैद्युत बैलास्ट (electrical ballast) कहते हैं। ट्यूब लाइट को चालू करने तथा उसकी धारा को असीमित होने से रोकने के लिये उसके श्रेणीक्रम में एक प्रेरकत्व लगाया जाने वाला 'चोक' इसका प्रमुख उदाहरण है। इसको न लगाया जाय तो ट्यूब से बहुत अधिक धारा बहेगी जिसके अनेकों हानिकारक प्रभाव होंगे। ध्यान रखने योग्य बात है कि ट्यूब का एक विशेष गुण है कि उसमें धारा बढ़ने पर उसका वोल्टेज कम होता है अर्थात यह ऋणात्मक प्रतिरोध प्रदर्शित करता है। वैद्युत बैलास्ट तरह-तरह की डिजाइन के होते हैं। उदाहरण के लिये एक श्रेणीक्रम में लगाया गया प्रतिरोध, प्रेरकत्व या संधारित्र एक सरल बैलास्ट के रूप में काम कर सकता है। दूसरी तरफ जटिल डिजाइन वाले एलेक्ट्रानिक बैलास्ट हैं जिनमें जटिल पॉवर एलेक्त्रानिक्स लगी होती है। श्रेणी:वैद्युत युक्ति.

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वैद्युत अवयव

वैद्युत अवयव (Electrical components) वैद्युत अवयवयों (electrical elements) की संकल्पना (कांसेप्ट) वैद्युत नेटवर्कों के विश्लेषण में प्रयुक्त होती है। इसको वास्तविक 'वैद्युत अवयव' अथवा वास्तविक एलेक्ट्रॉनिक अवयव के बजाय 'आदर्श वैद्युत अवयव' समझना चाहिये। किसी भी वैद्युत नेटवर्क को मॉडल करने के लिये उसे विद्युत के सरलतम् अवयव के नेटवर्क के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। ध्यान देने की बात है कि व्यावहारिक/भौतिक रूप से 'विद्युत अवयवों' का कोई अस्तित्व नहीं है। इनकी संकल्पना कुछ विद्युत के आदर्श, सरलीकृत अवयवों के रूप में की गयी है। एक या कुछ वैद्युत अवयवों की सहायता से किसी भी भौतिक (फिजिकल) एलेक्ट्रॉनिक अवयव को निरुपित किया जा सकता है। .

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वोल्टता गुणक

पूर्ण-तरंग कॉक्रॉफ्ट-वाल्टन वोल्टता गुणक 'विलार्ड कास्केड' वोल्टता गुणक का आउटपुट वोल्टेज: ध्यान दें कि आउटपुट वोल्टता धीरे-धीरे इनपुट वोल्टता के लगभग दो गुना होने जा रही है। वोल्टता गुणक (voltage multiplier) एक विशेष विद्युत परिपथ है जो कम वोल्टता के एसी को अपेक्षाकृत अधिक वोल्टता के डीसी में बदलने का काम करता है। इसमें प्रायः डायोड और संधारित्र का प्रयोग होता है। इनका उपयोग उच्च वोल्टता (हजारों किलोवोल्ट) पैदा करने के लिये किया जाता है जो मुख्यतः उच्च ऊर्जा भौतिकी के प्रयोगों के लिये या तड़ित-सुरक्षा से सम्बन्धित उपकरणों के परीक्षण के लिये लगती है। जो वोल्टता गुणक ए.सी.

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ओम का नियम

जॉर्ज साइमन ओम प्रतिरोध ''R'', के साथ ''V'' विभवान्तर का स्रोत लगाने पर उसमें विद्युत धारा, ''I '' प्रवाहित होती है। ये तीनों राशियाँ ओम के नियम का पालन करती हैं, अर्थात ''V .

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आर एल सी परिपथ

समान्तर क्रम में जुड़े हुए संधारित्र और प्रेरकत्व; दाहिनी तरफ का परिपथ बाईं तरफ के परिपथ का तुल्य परिपथ है। आरएलसी परिपथ (RLC circuit) से अभिप्राय उस परिपथ से है जो प्रतिरोध (R), प्रेरकत्व (L) तथा संधारित्र (C) के श्रेणीक्रम या समान्तरक्रम संयोजन (connection) से बना हो। यह संयोजन वास्तव में LC दोलित्र (आसिलेटर) की तरह का एक हार्मोनिक फिल्टर है जिसमें R की उपस्थिति दोलनों का क्षय (damp) करती है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि शुद्ध LC परिपथ, RLC परिपथ का एक विशेष रूप (या शुद्ध रूप) है जिसमें प्रतिरोध (या डम्पिंग) शून्य हो। यह परिपथ अत्यन्त उपयोगी है। दोलित्रों (oscillator circuit) में विविध प्रकार से इसका उपयोग होता है। रेडियो रिसिवरों और टेलीविजन में यह ट्यूनिंग (tuning) के काम आता है। RLC परिपथ को एलेक्ट्रॉनिक फिल्टर की भाँति प्रयोग किया जाता है और इससे बैण्ड-पास फिल्टर, बैण्ड-रिजेक्ट फिल्टर, लो-पास-फिल्टर या हाई-पास-फिल्टर बनाये जा सकते हैं। जब इसे ट्यूनिंग के काम में लिया जाता है तब यह बैण्ड-पास-फिल्टर की तरह काम करता है। R, L और C इन तीनो अवयवों को भिन्न-भिन्न प्रकार से जोड़कर परिपथ बनाये जाते हैं। इनमें से दो परिपथ सबसे सरल हैं - (1) RLC तीनो श्रेणीक्रम में जुड़े हों और (२) RLC तीनो समान्तरक्रम में जुड़े हों। इन दोनो परिपथों का विश्लेषण अपेक्षाकृत बहुत आसान है और बिना कम्युटर के भी आसानी से विश्लेषित किया जा सकता है। किन्तु RLC के कुछ ऐसे संयोजन (कम्बिनेशन) भी हैं जिनका बहुत ही अधिक व्यावहारिक महत्व है और वे विश्लेषण की दृष्टि से कठिन हैं। .

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आईपॉड

आइपॉड एप्पल इंक (Apple Inc) द्वारा डिजाइन और विपणन किया जाने वाला एक लोकप्रिय पोर्टेबल मीडिया प्लेयर (portable media player) ब्रांड है। यह२३ अक्टूबर (October 23), २००१ को लॉन्च किया गया। वर्तमान उत्पाद श्रृंखला में हार्ड ड्राइव आधारित आइपॉड क्लासिक (iPod Classic), टचस्क्रीन आइपॉड टच (आइपॉड टच), वीडियो-सक्षम आइपॉड नैनो (iPod Nano), स्क्रीन रहित आईपॉड शफल (iPod Shuffle) और आईफोन (iPhone) शामिल हैं। पूर्व उत्पादों में कॉम्पैक्ट आइपॉड मिनी (iPod Mini) और आइपॉड फ़ोटो (iPod Photo) (मुख्य आइपॉड क्लासिक लाइन के एकीकृत होने से), एक आंतरिक हार्ड ड्राइव (hard drive) पर आइपॉड क्लासिक मॉडल स्टोर मीडिया (media) शामिल है, जबकि अन्य सभी मॉडलों अपने छोटे आकार को सक्षम करने के लिए फ्लैश मेमोरी (flash memory) का उपयोग करतें हैं (विच्छिन्न मिनी ने माइक्रो ड्राइव (Microdrive) लघु हार्ड ड्राइव का इस्तेमाल किया। आइपॉड टच को छोड़कर, अन्य कई डिजिटल संगीत खिलाड़ियों, आईपोड को बाह्य आंकड़ा भंडारण यंत्रों (data storage devices) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। भंडारण क्षमता मॉडल से बदलती है। एप्पल धुन (iTunes) सॉफ्टवेयर को एप्पल मेकिनटोश और माइक्रोसॉफ्ट विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ संस्करणों का उपयोग करने वाले कंप्यूटर से संगीत का हस्तांतरण devices में करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वे उपयोगकर्ता जो एप्पल सॉफ्टवेयर के उपयोग को नहीं चुनते यां जिनके कंप्यूटर में आई धुनें नहीं चल सकतीं, आई धुनों के कई अनावृत स्रोत विकल्प भी उपलब्ध हैं। आई धुनें और इसके विकल्प फोटो, वीडियो, गेमें, संपर्क जानकारी, e-mail सेटिंग्स, वेब बुकमार्क्स और कैलेंडर को आइपॉड मॉडल की उन विशेषताओं का समर्थन करने के लिए हस्तांतरण कर सकते हैं। एप्पल इसकी तकनीकी क्षमता के अतिरिक्त, आई पोड लाइन के अद्वितीय उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस (user interface) तथा इसके उपयोग में आसानी पर दयां केंद्रित करता है। जैसे कि सितम्बर 2007 में, इसको इतिहास का सबसे अधिक बिकने वाला डिजिटल ऑडियो प्लेयर (digital audio player) की श्रृंखला में लाने के लिए, 150 मिलियन से अधिक आई पोड दुनिया भर में बेचे गए थे। .

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इलैक्ट्रॉनिक्स

तल पर जुड़ने वाले (सरफेस माउंट) एलेक्ट्रानिक अवयव विज्ञान के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स या इलेक्ट्रॉनिकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वह क्षेत्र है जो विभिन्न प्रकार के माध्यमों (निर्वात, गैस, धातु, अर्धचालक, नैनो-संरचना आदि) से होकर आवेश (मुख्यतः इलेक्ट्रॉन) के प्रवाह एवं उन पर आधारित युक्तिओं का अध्ययन करता है। प्रौद्योगिकी के रूप में इलेक्ट्रॉनिकी वह क्षेत्र है जो विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों (प्रतिरोध, संधारित्र, इन्डक्टर, इलेक्ट्रॉन ट्यूब, डायोड, ट्रान्जिस्टर, एकीकृत परिपथ (IC) आदि) का प्रयोग करके उपयुक्त विद्युत परिपथ का निर्माण करने एवं उनके द्वारा विद्युत संकेतों को वांछित तरीके से बदलने (manipulation) से संबंधित है। इसमें तरह-तरह की युक्तियों का अध्ययन, उनमें सुधार तथा नयी युक्तियों का निर्माण आदि भी शामिल है। ऐतिहासिक रूप से इलेक्ट्रॉनिकी एवं वैद्युत प्रौद्योगिकी का क्षेत्र समान रहा है और दोनो को एक दूसरे से अलग नही माना जाता था। किन्तु अब नयी-नयी युक्तियों, परिपथों एवं उनके द्वारा सम्पादित कार्यों में अत्यधिक विस्तार हो जाने से एलेक्ट्रानिक्स को वैद्युत प्रौद्योगिकी से अलग शाखा के रूप में पढाया जाने लगा है। इस दृष्टि से अधिक विद्युत-शक्ति से सम्बन्धित क्षेत्रों (पावर सिस्टम, विद्युत मशीनरी, पावर इलेक्ट्रॉनिकी आदि) को विद्युत प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत माना जाता है जबकि कम विद्युत शक्ति एवं विद्युत संकेतों के भांति-भातिं के परिवर्तनों (प्रवर्धन, फिल्टरिंग, मॉड्युलेश, एनालाग से डिजिटल कन्वर्शन आदि) से सम्बन्धित क्षेत्र को इलेक्ट्रॉनिकी कहा जाता है। .

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इलेक्ट्रानिक परिपथ

घरों के पंखे, बल्ब आदि की शक्ति नियंत्रित करने वाला परिपथ; इसमें ट्रायक का उपयोग किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (electronic circuit) वह परिपथ है जिसमें प्रतिरोधक, संधारित्र, ट्रांजिस्टर, प्रेरकत्व, डायोड आदि तार से या बोर्ड पर बने चालक मार्गों से जुड़े हों। इसके मुख्य दो प्रकार हैं- एनालाग परिपथ और डिजिटल परिपथ। जिस परिप्थ में एनालॉग और डिजिटल दोनों का मिश्रण होता है उसे मिश्रि परिपथ (मिक्स्ड सर्किट) या संकर परिपथ (हाइब्रिड सर्किट) कहते हैं। श्रेणी:विद्युत परिपथ *.

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इलेक्ट्रानिक अवयवों का वर्ण संकेतन

१०० किलोओम तथा ५% टॉलरेंस वाले प्रतिरोधक का वर्ण संकेतन वर्ण संकेतन (color coding) का प्रयोग प्रतिरोधक तथा कुछ अन्य इलेक्ट्रानिक अवयवों का मान या रेटिंग दर्शाने के लिए किया जाता है। इस संकेतन का विकास १९२० के दशक में रेडियो मैनुफैक्चरर्स एशोसिएशन द्वारा किया गया था। इसे EIA-RS-279 के नाम से प्रकाशित किया गया था। वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय मानक IEC 60062 है। छोटे इलेक्ट्रानिक अवयवों का मान एवं रेटिंग को संख्या के रूप में सीधे लिखने के बजाय वर्ण-संकेतों के रूप में लिखने के कुछ लाभ हैं, जैसे बहुत छोटी संख्याओं के रूप में लिखने की कठिनाई तथा उसे पढ़ पाने की कठिनाई। किन्तु इसकी कुछ हानियाँ भी हैं, जैसे वर्णांध व्यक्ति के लिये वर्ण संकेत पढ़ना कठिन है। .

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इलेक्ट्रॉनिक अवयव

कुछ प्रमुख '''इलेक्ट्रॉनिक अवयव''' जिन विभिन्न अवयवों का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (जैसे- आसिलेटर, प्रवर्धक, पॉवर सप्लाई आदि) बनाये जाते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक अवयव (electronic component) कहते हैं इलेक्ट्रॉनिक अवयव दो सिरे वाले, तीन सिरों वाले या इससे अधिक सिरों वाले होते हैं जिन्हें सोल्डर करके या किसी अन्य विधि से (जैसे स्क्रू से कसकर) परिपथ में जोड़ा जाता है। प्रतिरोधक, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड, ट्रांजिस्टर (या बीजेटी), मॉसफेट, आईजीबीटी, एससीआर, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर एवं अन्य एकीकृत परिपथ आदि प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक अवयव हैं। प्रमुख एलेक्ट्रॉनिक अवयवों के प्रतीक .

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कौल्पिट दोलित्र

कौल्पिट दोलित्र (Colpitts oscillator) कुण्डली-संधारित्र से निर्मित इलेक्ट्रॉनिक दोलक है जो निश्चित आवृति की के दोलन जनित करने के लिए संधारित्र और प्रेरक के संयोजन से बनता है। इसका आविष्कार १९१८ में अमेरिकी अभियंता एड्विन एच॰ कौल्पिट ने किया। कौल्पिट दोलित्र का विशिष्ठ गुणधर्म यह है कि इसमें सक्रीय परिपथ का पुनर्निवेश प्रेरक के साथ श्रेणी क्रम में जुड़े दो संधारित्रों से निर्मित विभव विभाजाक द्वारा दिया जाता है। .

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कॉकरॉफ्ट-वाल्टन जनित्र

लंदन के नेशनल साइंस म्यूजियम में रखा कॉक्रॉफ्ट-वाल्टन वोल्टेज मल्टिप्लायर। इसका निर्माण सन् १९३७ में किया गया था। कॉक्रॉफ्ट-वाल्टन वोल्टेज गुणित्र परमाणु बम के निर्माण में सहायक कई कण त्वरकों के अभिन्न भाग बने। पूर्ण तरंग काकरॉफ्ट-वाल्टन वोल्टता गुणित्र का विद्युत परिपथ कॉकरॉफ्ट-वाल्टन जनित्र (Cockcroft–Walton generator) या, कॉकरॉफ्ट-वाल्टन वोल्टता गुणित्र उच्च वोल्टता उत्पन्न करने वाली एक विद्युत परिपथ है। इसका आविष्कार जॉन डगलस कॉकरॉफ्त और ईटीएस वाल्टन ने सन् १९३२ में सर्वप्रथम इस परिपथ का उपयोग रैखिक कण त्वरक बनाने में किया था। इसके लिये उन्हें सन् १९५१ में नोबेल पुरस्कार भी मिला। यह परिपथ केवल डायोड एवं संधारित्र का उपयोग करता है। सैकड़ों किलोवोल्ट का विभवान्तर पैदा करने के लिये यह परिपथ बहुतयत में प्रयोग किया जाता है। इस परिपथ को 'गुणित्र' (मल्टिप्लायर) इसलिये कहते हैं क्योंकि कम (एसी) इन्पुट वोल्टेज को बढ़ाकर यह कई गुना कर देता है। इसका आउटपुट डीसी होता है। आउटपुट वोल्टता, इनपुट वोल्टता के कितने गुना होगी - यह इस परिपथ में प्रयुक्त गुणित्र चरणों (मल्टिप्लायर स्टेजेजे) की संख्या पर निर्भर करता है। .

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अतिसंधारित्र

अतिसंधारित्र (supercapacitor (SC)) वे संधारित्र हैं जिनकी धारिता अन्य प्रकार के संधारित्रों की तुलना में बहुत अधिक होती है। अपने इस गुण के कारण इनका उपयोग वहाँ होता है जिसकी ऊर्जा-आवश्यकताएँ विद्युत अपघट्य संधारित्र से अधिक किन्तु तथा पुनर्भरणीय बैटरी से कम होतीं है। अतिसंधारित्र अपेक्षाकृत बहुत कम वोल्टेज तक ही आवेशित किये जा सकते है (अथवा उनकी वोल्टता धारण की सीमा कम होती है।) विद्युत-अपघट्य संधारित्रों की तुलना में अतिसंधारित्रों की (प्रति आयतन, या प्रति किलोग्राम) ऊर्जा-संग्रह की क्षमता सामान्यतः १० से १०० गुना तक अधिक होती है। इसके अलावा वे पुनर्भरणीय बैटरी की तुलना में बहुत तेज गति से आवेशित एवं अनावेशित किये जा सकते हैं और उनकी तुलना में बहुत अधिक बार आवेशित-अनावेशित किये जा सकते हैं। .

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अनुरूप फिल्टर

अनुरूप फिल्टर या एनालॉग फिल्टर (Analogue filters) इलेक्ट्रानिकी में प्रयुक्त होने वाले संकेत प्रसंस्करण के मूलभूत अवयव हैं। .

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अन्तर्वाह धारा

२३०वोल्ट, ६० वोल्ट-अम्पीयर के एक ट्रान्सफॉर्मर की अन्तर्वाह धारा का ग्राफ: यह धारा दस-पन्द्रह सायकिल तक बनी रहती है तथा इसमें डीसी कम्पोनेन्ट भी होता है। ट्रान्सफॉर्मर, स्विच मोड पॉवर सप्लाई, विद्युत मोटर, प्रकाश बल्ब आदि विद्युत उपकरण चालू करते ही जो धारा लेते हैं वह उनके द्वारा सामान्य अवस्था में ली जाने वाली धारा से बहुत अधिक (दस-बीस गुना) हो सकती है। इस अत्यधिक धारा को अन्तर्वाह धारा (inrush current) कहते हैं। यह धारा कुछ मिलीसेकेण्ड से लेकर कुछ सेकेण्ड तक बहती है जो अलग अलग लोड के लिए अलग अलग होती है। इस धारा को रोकने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। इसके अलावा फ्यूज और परिपथ विच्छेदक इस प्रकार की रेटिंग के चुने जाते हैं ताकि उनसे होकर कुछ देर (जैसे, १ सेकेण्ड तक) बहुत अधिक धारा भी बहे (और फिर कम हो जाय) तो भी वे ट्रिप न हों। .

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अबाधित विद्युत आपूर्ति

अबाधित विद्युत आपूर्ति (अंग्रेज़ी:Uninterruptible power supply) या यूपीएस एक ऐसा उपकरण होता है जो विद्युत से चलने वाले किसी उपकरण को उस स्थिति में भी सीमित समय के लिये विद्युत की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करता है जब आपूर्ति के मुख्य स्रोत (मेन्स) से विद्युत आपूति उपलब्ध नहीं होती। यूपीएस कई प्रकार के बनाये जाते हैं और सीमित समय के लिये आपूर्ति उपलब्ध कराने के अलावा ये कुछ और भी काम कर सकते हैं - जैसे वोल्टता-नियंत्रण, आवृत्ति-नियंत्रण, शक्ति गुणांक वर्धन एवं उसकी गुणवत्ता को बेहतर करके उपकरण को देना, आदि। यूपीएस में उर्जा-संचय करने का कोई एक साधन होता है, जैसे बैटरी, तेज गति से चालित फ्लाईह्वील, आवेशित किया हुआ संधारित्र या एक अतिचालक कुण्डली में प्रवाहित अत्यधिक धारा। यूपीएस, सहायक ऊर्जा-स्रोत जैसे- स्टैण्ड-बाई जनरेटर आदि से इस मामले में भिन्न हैं कि विद्युत जाने पर वे सम्बन्धित उपकरण को मिलने वाली विद्युत में नगण्य समय के लिये व्यवधान करते हैं जिससे उस उपकरण के काम में बाधा या रूकावट नहीं आती।|हिन्दुस्तान लाइव। २७ जनवरी २०१०। पूनम जैन यूपीएस का उपयोग कम्प्यूटरों, आंकड़ा केन्द्र, संचार उपकरणों, आदि के साथ प्राय: किया जाता है जहाँ कि विद्युत जाने से कोई दुर्घटना हो सकती है; महत्त्वपूर्ण आंकड़े नष्ट होने का डर हो; व्यापार का नुकसान आदि हो सकता हो। .

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555 टाइमर आईसी

सिग्नेटिक्स द्वारा निर्मित ८-पिन वाली '''NE555''' 555 टाइमर आईसी (555 Timer IC) अत्यन्त लोकप्रिय टाइमर आईसी है। इसे भांति-भांति के टाइमर, पल्स उत्पादन, एवं आसिलेटर अनुप्रयोगों में काम में लाया जाता है। इस आईसी की डिजाइन सन १९७० में प्रस्तावित की गयी थी। .

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कैपेसिटर के रूप में भी जाना जाता है।