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शैलचित्र

सूची शैलचित्र

चित्रांकन और रेंखांकन मनुष्य जाति की सबसे प्राचीन कलाएं हैं। आदि मानव गुफाओं की दीवारों का प्रयोग कैनवास के रूप में किया करता था। उसने रेखांकन और चित्रांकन शायद अपने प्रतिवेश को चित्रित करने अथवा अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का दृश्य रिकार्ड करने के लिए भी किया हो। गुफाओं की चट्टानों पर अपने इतिहास को चित्रित करने का उसका प्रयास शायद वैसा ही था जैसेकि हम अपनी दैनिक डायरी लिखते हैं। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि पाषाणयुग (वह समय जबकि वह पत्थर के हथियारों का प्रयोग करता था) का मनुष्य गुफाओं में रहता था और शिलाओं के इन आश्रय स्थलों का प्रयोग वर्षा, बिजली, ठंड और चमचमाती गर्मी से अपनी रक्षा करने के लिए किया करता था। वे यह भी मानते हैं और उन्होंने यह प्रमाणित करने के साक्ष्य भी ढूंढ लिए हैं कि गुफाओं में रहने वाले ये लोग लंबे, बलवान थे और प्राकृतिक खतरों से निबटने और साथ ही विशालकाय जंगली गैंडे, डायनोसोर अथवा जंगली सूअरों के समूह के बीच अपने जीवन की दौड़ दौड़ते रहने के लिए उसके पास अनेक वहशियों की तुलना में कहीं अच्छे दिमाग होते थे। रेनडियर, जंगली घोड़े, सांड अथवा भैंसे का शिकार करते-करते कभी-कभी वह आसपास रहने वाले भालुओं, शेरों तथा अन्य जंगली पशुओं का ग्रास बन जाता था। हां, इन आदि मानवों के पास कुछ उत्तम चित्र रेखांकित और चित्रांकित करने का समय रहता था। सारे वि में अनेक गुफाओं का दीवारें जिन पशुओं का कन्दरावासी शिकार किया करते थे, उनके बारीकी से उत्कीर्ण और रंगे हुए चित्रों से भरी हुई हैं। ये लोग मानवीय आकृतियों, अन्य मानवीय क्रियाकलापों, ज्यामिति के डिजाइनों और प्रतीकों के चित्र भी बनाते थे। वैज्ञानिकों ने प्राचीन गुफा आश्रय स्थलों की खोज करके मनुष्य के प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध में बहुत कुछ जान लिया है। ये वैज्ञानिक प्राचीन काल की दलदल और नमीदार दीवारों की रेत के कारण दफन हुए शवों की खुदाई करते हैं और गहरी खुदाई करने पर उन्हें हड्डियों और हथियारों की एक और परत मिलती है, जो और भी प्राचीन मनुष्यों का परिचय देती है। इन परतों में उन्हें उन पशुओं के अवशेष (अस्थियां) भी मिलते हैं जिनका अब इन पृथ्वी पर कोई नामों-निशान नहीं बच रहा है। इन अवशेषों और मनुष्यों ने गुफाओं की दीवारों पर जो चित्र बनाए थे उनके सहारे अध्यवसायी वैज्ञानिक उस युग के मनुष्य की कहानी को कण-कण करके जोड़ते हैं और प्रकाश में लाते हैं। आदिम मानव ने शिला पर अपनी कला के कई निशान छोड़े हैं जो कि कच्चे कोयले से खींची गई आकृतियों अथवा हेमेटाइट नामक पत्थऱ से तैयार किए गए अथवा पौधों से निकाले गए रंग से बनाए गए चित्रों अथवा पत्थर पर उत्कीर्ण नक्काशी के रूप में मौजूद हैं। कच्चे कोयले अथवा रंगों से बनाए गए चित्र (चित्रलेख) पिक्टोग्राफ कहलाते हैं जबकि अपघर्षित चित्र (प्राचीन मनुष्य इन अर्थों में कुशाग्र बुद्धि था कि वह आकृतियों की बहि:रेखाएं खींचता था और दूसरे पत्थर से चित्रांकन किए हुए हिस्से से मिटा देता था, जिससे कि वह चित्रांकनों के लिए पृष्ठभूमि के रूप में प्रयुक्त पत्थर पर आकृतियां उभार सकें) (शीलोत्कीर्णन) पैट्रोग्लिफ कहलाते हैं। श्रेणी:आदिकाल श्रेणी:चित्र शैली.

2 संबंधों: पचमढ़ी, होशंगाबाद

पचमढ़ी

पचमढ़ी की पांडव गुफ़ाएँमध्यप्रदेश के एकमात्र पर्वतीय स्थल होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी समुद्र तल से १,०६७ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। यहाँ घने जंगल, कलकल करते जलप्रपात और तालाब हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का भाग होने के कारण यहाँ आसपास बहुत घने जंगल हैं। यहाँ के जंगलों में शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू, भैंसा तथा कई अन्य जंगली जानवर मिलते हैं। यहाँ की गुफाएँ पुरातात्विक महत्व की हैं क्योंकि यहाँ गुफाओं में शैलचित्र भी मिले हैं। .

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होशंगाबाद

होशंगाबाद भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। होशंगाबाद जिला मुख्यालय है। होशंगाबाद की स्थापना मांडू (मालवा) के द्वितीय राजा सुल्तान हुशंगशाह गौरी द्वारा पन्द्रहवी शताब्दी के आरंभ में की गई थी। होशंगाबाद नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। इसके किनारे पर सतपुड़ा पर्वत स्थित है। नर्मदा नदी जिले की उत्तरी सीमा के साथ-साथ बहती है। नर्मदा की सहायक नदी दूधी है जोकि होशंगाबाद जिले की उत्तरी पूर्वी सीमा बनाती है। होशंगाबाद में प्रतिभूति कागज कारखाना है जिसमें भारतीय रुपया छापने के लिए कागज बनाया जाता है। यहाँ एक केन्द्रीय विद्यालय भी है जिसका पूरा नाम केन्द्रीय विद्यालय प्रतिभूति कागज कारखाना होशंगाबाद है। होशंगाबाद के पास प्राचीन पहाड़ियाँ हैं जिन्हें "पहाड़िया" कहा जाता है। इन पहाड़ियों में कुछ गुफायें हैं जिनमें शैलचित्र जिन्हें राक पेंटिंग भी कहते हैं उकेरे गये हैं। ये राक पेंटि्ग्स आदि मानव द्वारा निर्मित हैं। हजारों साल से खुले आसमान के नीचे रहने के बाद भी ये पेंटिंग्स अभी भी मिटी नहीं हैं। नर्मदा नदी का प्रसिद्ध सेठानी घाट होशंगाबाद में ही है। होशंगाबाद में एक प्राचीन गुरुकुल है। .

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