लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

शैक्षिक मनोविज्ञान

सूची शैक्षिक मनोविज्ञान

गिनतारा, अमूर्त वस्तुओं वस्तुओं को मूर्त बनाकर गणित की मूलभूत बातें सिखाने की युक्ति है। शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अनुशासन आदि को मनोविज्ञान ने प्रभावित किया है। बिना मनोविज्ञान की सहायता के शिक्षा प्रक्रिया सुचारू रूप से नहीं चल सकती। शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने में प्रयासरत है। .

17 संबंधों: एडवर्ड थार्नडाइक, नैदानिक मनोविज्ञान, प्रकृतिवाद (दर्शन), मन, मनोविज्ञान, लिव वाइगोत्सकी, शिक्षा, शिक्षा दर्शन, शिक्षाशास्त्र, शैक्षणिक विषयों की सूची, शैक्षिक समाजशास्त्र, शैक्षिक अनुसंधान, संरचनावाद (मनोविज्ञान), विभेदक मनोविज्ञान, व्यावहारिक मनोविज्ञान, व्यवहारवाद, गेस्टाल्ट मनोविज्ञान

एडवर्ड थार्नडाइक

एडवर्ड थार्नडाइक (31 अगस्त 1874 – 9 अगस्त 1949)। एडवर्ड थार्नडाइक (Edward Lee Thorndike) (31 अगस्त 1874 – 9 अगस्त 1949) यूएसए के मनोवैज्ञानिक एवं थे जिहोने लगभग अपना पूरा जीवन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शिक्षक महाविद्यालय में बिताया। 'पशु व्यवहार' एवं 'सीखने की प्रक्रिया' पर उनका कार्य के आधार पर ही आधुनिक शैक्षिक मनोविज्ञान की वैज्ञानिक नीव पड़ी। उन्होने औद्योगिक समस्याओं के समाधान की दिशा में भी कार्य किया (जैसे कर्मचारी परीक्षा एवं परीक्षण)। वे मनोवैज्ञानिक कॉर्पोरेशन के बोर्ड के सदस्य थे तथा सन् १९१२ में अमेरिकन मनोवैज्ञानिक संघ (American Psychological Association) के अध्यक्ष भी रहे। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और एडवर्ड थार्नडाइक · और देखें »

नैदानिक मनोविज्ञान

नैदानिक मनोविज्ञान, मनोवैज्ञानिक आधार वाले संकट या दुष्क्रियता से बचाव तथा राहत प्रदान करने या व्यक्तिपरक स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने वाला एक एकीकृत विज्ञान, सिद्धांत तथा नैदानिक ज्ञान है।अमेरिकन साइकोलॉजीकल एसोसिएशन, 12 डिवीजन, प्लांटे, थॉमस.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और नैदानिक मनोविज्ञान · और देखें »

प्रकृतिवाद (दर्शन)

प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राक्रितिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते। यूनानी दार्शनिक थेल्स (६४० ईसापूर्व-५५० इसापूर्व) का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस (४६०-३७० ईसापूर्व) ने किया। प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और प्रकृतिवाद (दर्शन) · और देखें »

मन

मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है।Dictionary.com, "mind": "1.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और मन · और देखें »

मनोविज्ञान

मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन (Sensation), अवधान (attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और मनोविज्ञान · और देखें »

लिव वाइगोत्सकी

लिव सिमनोविच वाइगोत्सकी (Лев Семёнович Вы́готский or Выго́тский, जन्मनाम: Лев Симхович Выгодский; 1896 - 1934) सोवियत संघ के मनोवैज्ञानिक थे तथा वाइगोत्स्की मण्डल के नेता थे। उन्होने मानव के सांस्कृतिक तथा जैव-सामाजिक विकास का सिद्धान्त दिया जिसे सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान कहा जाता है। उनका मुख्य कार्यक्षेत्र विकास मनोविज्ञान था। उन्होने बच्चों में उच्च संज्ञानात्मक कार्यों के विकास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया। अपने करीअर के आरम्भिक काल में उनका तर्क था कि तर्क-शक्ति का विकास चिह्नों एवं प्रतीकों के माध्यम से होता है। वाइगोत्स्की का सामाजिक दृषिटकोण संज्ञानात्मक विकास का एक प्रगतिशील विश्लेषण प्रस्तुत करता है। वस्तुत: वाइगोत्सकी ने बालक के संज्ञानात्मक विकास में समाज एवं उसके सांस्कृतिक संबन्धों के बीच संवाद को एक महत्त्वपूर्ण आयाम घोषित किया। ज़ाँ प्याज़े की तरह वाइगोत्स्की भी यह मानते थे कि बच्चे ज्ञान का निर्माण करते हैं। किन्तु इनके अनुसार संज्ञानात्मक विकास एकाकी नहीं हो सकता, यह भाषा-विकास, सामाजिक-विकास, यहाँ तक कि शारीरिक-विकास के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में होता है। वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए एक विकासात्मक उपागम की आवश्यकता है जो कि इसका शुरू से परीक्षण करे तथा विभिन्न रूपों में हुए परिवर्तन को ठीक से पहचान पाए। इस प्रकार एक विशिष्ट मानसिक कार्य जैसे- आत्म-भाषा को विकासात्मक प्रक्रियाओं के रूप में मूल्यांकित किया जाए, न कि एकाकी रूप से। वाइगोत्सकी के अनुसार संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए उन औजारों का परीक्षण अति आवश्यक है जो संज्ञानात्मक विकास में मध्यस्थता करते हैं तथा उसे रूप प्रदान करते हैं। इसी के आधार पर वे यह भी मानते हैं कि भाषा संज्ञानात्मक विकास का महत्त्वपूर्ण औजार है। इनके अनुसार आरमिभक बाल्यकाल में ही बच्चा अपने कार्यों के नियोजन एवं समस्या समाधान में भाषा का औजार की तरह उपयोग करने लग जाता है। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और लिव वाइगोत्सकी · और देखें »

शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और शिक्षा · और देखें »

शिक्षा दर्शन

गाँधीजी महान शिक्षा-दार्शनिक भी थे। शिक्षा और दर्शन में गहरा सम्बन्ध है। अनेकों महान शिक्षाशास्त्री स्वयं महान दार्शनिक भी रहे हैं। इस सह-सम्बन्ध से दर्शन और शिक्षा दोनों का हित सम्पादित हुआ है। शैक्षिक समस्या के प्रत्येक क्षेत्र में उस विषय के दार्शनिक आधार की आवश्यकता अनुभव की जाती है। फिहते अपनी पुस्तक "एड्रेसेज टु दि जर्मन नेशन" में शिक्षा तथा दर्शन के अन्योन्याश्रय का समर्थन करते हुए लिखते हैं - "दर्शन के अभाव में ‘शिक्षण-कला’ कभी भी पूर्ण स्पष्टता नहीं प्राप्त कर सकती। दोनों के बीच एक अन्योन्य क्रिया चलती रहती है और एक के बिना दूसरा अपूर्ण तथा अनुपयोगी है।" डिवी शिक्षा तथा दर्शन के संबंध को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि दर्शन की जो सबसे गहन परिभाषा हो सकती है, यह है कि "दर्शन शिक्षा-विषयक सिद्धान्त का अत्यधिक सामान्यीकृत रूप है।" दर्शन जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा उपाय प्रस्तुत करती है। दर्शन पर शिक्षा की निर्भरता इतनी स्पष्ट और कहीं नहीं दिखाई देती जितनी कि पाठ्यक्रम संबंधी समस्याओं के संबंध में। विशिष्ट पाठ्यक्रमीय समस्याओं के समाधान के लिए दर्शन की आवश्यकता होती है। पाठ्यक्रम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ प्रश्न उपयुक्त पाठ्यपुस्तकों के चुनाव का है और इसमें भी दर्शन सन्निहित है। जो बात पाठ्यक्रम के संबंध में है, वही बात शिक्षण-विधि के संबंध में कही जा सकती है। लक्ष्य विधि का निर्धारण करते हैं, जबकि मानवीय लक्ष्य दर्शन का विषय हैं। शिक्षा के अन्य अंगों की तरह अनुशासन के विषय में भी दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्यालय के अनुशासन निर्धारण में राजनीतिक कारणों से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण कारण मनुष्य की प्रकृति के संबंध में हमारी अवधारणा होती है। प्रकृतिवादी दार्शनिक नैतिक सहज प्रवृत्तियों की वैधता को अस्वीकार करता है। अतः बालक की जन्मजात सहज प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति के लिए छोड़ देता है; प्रयोजनवादी भी इस प्रकार के मापदण्ड को अस्वीकार करके बालक व्यवहार को सामाजिक मान्यता के आधार पर नियंत्रित करने में विश्वास करता है; दूसरी ओर आदर्शवादी नैतिक आदर्शों के सर्वोपरि प्रभाव को स्वीकार किए बिना मानव व्यवहार की व्याख्या अपूर्ण मानता है, इसलिए वह इसे अपना कर्त्तव्य मानता है कि बालक द्वारा इन नैतिक आधारों को मान्यता दिलवाई जाये तथा इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वह शनैःशनैः इन्हें अपने आचरण में उतार सके। शिक्षा का क्या प्रयोजन है और मानव जीवन के मूल उद्देश्य से इसका क्या संबंध है, यही शिक्षा दर्शन का विजिज्ञास्य प्रश्न है। चीन के दार्शनिक मानव को नीतिशास्त्र में दीक्षित कर उसे राज्य का विश्वासपात्र सेवक बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते थे। प्राचीन भारत में सांसारिक अभ्युदय और पारलौकिक कर्मकांड तथा लौकिक विषयों का बोध होता था और परा विद्या से नि:श्रेयस की प्राप्ति ही विद्या के उद्देश्य थे। अपरा विद्या से अध्यात्म तथा रात्पर तत्व का ज्ञान होता था। परा विद्या मानव की विमुक्ति का साधन मान जाती थी। गुरुकुलों और आचार्यकुलों में अंतेवासियों के लिये ब्रह्मचर्य, तप, सत्य व्रत आदि श्रेयों की प्राप्ति परमाभीष्ट थी और तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय प्राकृतिक विषयों के सम्यक् ज्ञान के अतिरिक्त नैष्ठिक शीलपूर्ण जीवन के महान उपस्तंभक थे। भारतीय शिक्षा दर्शन का आध्यात्मिक धरातल विनय, नियम, आश्रममर्यादा आदि पर सदियों तक अवलंबित रहा। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और शिक्षा दर्शन · और देखें »

शिक्षाशास्त्र

दक्षिण भारत के एक गाँव में शिक्षण शिक्षण-कार्य की प्रक्रिया का विधिवत अध्ययन शिक्षाशास्त्र या शिक्षणशास्त्र (Pedagogy) कहलाता है। इसमें अध्यापन की शैली या नीतियों का अध्ययन किया जाता है। शिक्षक अध्यापन कार्य करता है तो वह इस बात का ध्यान रखता है कि अधिगमकर्ता को अधिक से अधिक समझ में आवे। शिक्षा एक सजीव गतिशील प्रक्रिया है। इसमें अध्यापक और शिक्षार्थी के मध्य अन्त:क्रिया होती रहती है और सम्पूर्ण अन्त:क्रिया किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षाशास्त्र के आधार पर एक दूसरे के व्यक्तित्व से लाभान्वित और प्रभावित होते रहते हैं और यह प्रभाव किसी विशिष्‍ट दिशा की और स्पष्ट रूप से अभिमुख होता है। बदलते समय के साथ सम्पूर्ण शिक्षा-चक्र गतिशील है। उसकी गति किस दिशा में हो रही है? कौन प्रभावित हो रहा है? इस दिशा का लक्ष्य निर्धारण शिक्षाशास्त्र करता है। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और शिक्षाशास्त्र · और देखें »

शैक्षणिक विषयों की सूची

यहाँ शैक्षणिक विषय (academic discipline) से मतलब ज्ञान की किसी शाखा से है जिसका अध्ययन महाविद्यालय स्तर या विश्वविद्यालय स्तर पर किया जाता है या जिन पर शोध कार्य किया जाता है। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और शैक्षणिक विषयों की सूची · और देखें »

शैक्षिक समाजशास्त्र

शैक्षिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की वह शाखा है जो शिक्षा तथा समाजशास्त्र का समन्वित रूप है। शैक्षिक समाजशास्त्र इस बात पर बल देता है कि समाजशास्त्र के उद्देश्यों को शैक्षिक प्रक्रिया के द्वारा प्राप्त किया जाये। शैक्षिक समाजशास्त्र सामाजिक विकास और उन्नति के लिए उन सभी सामाजिक प्रतिक्रियाओं एवं सामाजिक अन्तः-प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है, जिनको जाने बिना शिक्षा के स्वरूप एवं समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। संक्षेप में शैक्षिक समाजशास्त्र वह विज्ञान है, जो शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली प्रक्रियाओं, जन समूहों, संस्थाओं तथा समितियों का अध्यन करता है। जार्ज पेनी (E. George Payne) को शैक्षिक समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक ‘दि प्रिन्सिपिल्स ऑफ एजूकेशनल सोशियोलाजी’ में कहा है कि शिक्षा का सामूहिक जीवन पर तथा सामूहिक जीवन का शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है। उसने यह भी बताया कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए उस पर पड़ने वाली सामाजिक शक्तियों के प्रभाव का अध्ययन करना अति आवश्यक है। जार्ज पेनी के अलावा जॉन डीवी, मूर, फ्रेडरिक लीप्ले, डंकन, कोल, मैकाइवर, मेरिल, डेविस, डोलार्ड, दुूर्खीम, क्लार्क आदि विद्वानों ने शैक्षिक समाजशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। जान डीवी ने अपनी पुस्तक ‘स्कूल तथा समाज’ एवं ‘जनतन्त्र और शिक्षा’ में शैक्षिक समाजशास्त्र के महत्व को स्वीकार करते हुए शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया माना है। समाजशास्त्री मुख्य रूप से शिक्षा पर सामाजिक परिस्थितियों के प्रभाव, शिक्षा की प्रकृति और सामाजिक परिवर्तनों में शिक्षा की भूमिका आदि पर प्रकाश डालते हैं। अन्य शब्दों में, समाज के कौन से पहलू (सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक) शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, का अध्ययन किया जाता है। असल में किसी भी समाज की संरचना, उसकी जरूरतें, उसमें उपलब्ध अलग-अलग तरह के स्रोत ही उस समाज की शिक्षा की नीति की आधारभूमि तय करते हैं। एस॰सी॰ दुबे ने 'शिक्षा और समाज का भविष्य' में लिखा है- शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया कहते हुए हम शिक्षा के सामाजिक आधार को निम्न बिन्दुओं में समझ सकते हैं-.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और शैक्षिक समाजशास्त्र · और देखें »

शैक्षिक अनुसंधान

शैक्षिक अनुसंधान (Educational research) छात्र अध्ययन, शिक्षण विधियों, शिक्षक प्रशिक्षण और कक्षा गतिकी जैसे विभिन्न पहलुओं के मुल्यांकन को सन्दर्भित करने वाली विधियों को कहा जाता है। शैक्षिक अनुसंधान से तात्पर्य उस अनुसंधान से होता है जो शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता है। उसका उद्देश्य शिक्षा के विभिन्न पहलुओं, आयामों, प्रक्रियाओं आदि के विषय में नवीन ज्ञान का सृजन, वर्तमान ज्ञान की सत्यता का परीक्षण, उसका विकास एवं भावी योजनाओं की दिशाओं का निर्धारण करना होता है। टैंवर्स ने शिक्षा-अनुसंधान को एक ऐसी क्रिया माना है जिसका उद्देश्य शिक्षा-संबंधी विषयों पर खोज करके ज्ञान का विकास एवं संगठन करना होता है। विशेष रूप से छात्रों के उन व्यवहारों के विषय में ज्ञान एकत्र करना, जिनका विकास किया जाना शिक्षा का धर्म समझा जाता है, शिक्षा-अनुसंधान में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। ट्रैवर्स के अनुसार, शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के विषय में संगठित वैज्ञानिक ज्ञान-पुंज का विकास अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि उसी के आधार पर शिक्षक के लिए यह निर्धारित करना संभव होता है कि छात्रों में वांछनीय व्यवहारों के विकास हेतु किस प्रकार की शिक्षण एवं अधिगम परिस्थितियों का निर्माण करना आवश्यक होगा। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और शैक्षिक अनुसंधान · और देखें »

संरचनावाद (मनोविज्ञान)

मनोविज्ञान में संरचनावाद (Structuralism in psychology) या संरचनात्मक मनोविज्ञान (structural psychology), विल्हेम वुन्ट तथा एडवर्ड ब्रडफोर्ड टिचनर द्वारा विकसित एक चेतना सिद्धान्त (theory of consciousness) है। मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से अलग करके क्रमबद्ध अध्ययन करने का श्रेय संरचनावाद को जाता है, जिसके प्रवर्तक विलियम बुण्ट (1832-1920) तथा ई.बी.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और संरचनावाद (मनोविज्ञान) · और देखें »

विभेदक मनोविज्ञान

विभेदक मनोविज्ञान (Differential psychology) मनोविज्ञान की एक शाखा है जो व्यक्तियों के व्यवहार की विभिन्नताओं एवं उन भिन्नताओं के कारणों का अध्ययन करती है। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और विभेदक मनोविज्ञान · और देखें »

व्यावहारिक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान् मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का विभिन्न मानवीय समस्याओं के सुलझाने में प्रयोग करना व्यावहारिक मनोविज्ञान (Applied psychology) के क्षेत्र में आता है। व्यावहारिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का ही एक पहलू है। हैपनर के अनुसार, ‘‘व्यावहारिक मनोविज्ञान के लक्ष्य मानव क्रियाओं का वर्णन, भविष्य कथन और मानव क्रियाओं पर नियंत्रण है जिससे हम अपने जीवन को बुद्धिमता पूर्वक समझ सकें और निर्देशित कर सकें तथा दूसरे के जीवन को प्रभावित कर सकें।’’ जिस तरह विज्ञान के सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों पहलू होते हो उसी प्रकार मनोविज्ञान में सैद्धांतिक के साथ-साथ व्यावहारिक पहलू भी है। .

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और व्यावहारिक मनोविज्ञान · और देखें »

व्यवहारवाद

व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) के अनुसार मनोविज्ञान केवल तभी सच्ची वैज्ञानिकता का वाहक हो सकता है जब वह अपने अध्ययन का आधार व्यक्ति की मांसपेशीय और ग्रंथिमूलक अनुक्रियाओं को बनाये। मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में जे.बी. वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी। उन दिनों मनोवैज्ञानिकों से माँग की जा रही थी कि वे आत्म-विश्लेषण की तकनीक विकसित करें। वाटसन का कहना था कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी भीतरी और निजी अनुभूतियों पर आधारित नहीं होता। वह अपने माहौल से निर्देशित होता है। मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए किसी बाह्य उत्प्रेरक के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया का प्रेक्षण करना ही काफ़ी है। वाटसन के इस सूत्रीकरण के बाद व्यवहारवाद अमेरिकी मनोविज्ञान में प्रमुखता प्राप्त करता चला गया। एडवर्ड हुदरी, क्लार्क हुल और बी.एफ़.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और व्यवहारवाद · और देखें »

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान

गेस्ताल्त के सिद्धान्त द्वारा रचना, ग्राफिक डिजाइन (गेस्ताल्त शैक्षिक कार्यक्रम, २०११) गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt psychology) की स्थापना जर्मनी में मैक्स बरदाईमर (Max Wertheimer) द्वारा 1912 ई0 में की गयी। इस सम्प्रदाय (स्कूल) के विकास में दो अन्य मनोवैज्ञानिकों, कर्ट कौफ्का (1887-1941) तथा ओल्फगैंग कोहलर (1887-1967) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस स्कूल की स्थापना वुण्ट व टिचनर की आणुविक विचारधारा के विरोध में हुआ था। इस सम्प्रदाय का मुख्य बल व्यवहार में सम्पूर्णता के अध्ययन पर है। इस स्कूल में 'अंश' की अपेक्षा 'सम्पूर्ण' पर बल देते हुये बताया कि यद्यपि सभी अंश मिलकर सम्पूर्णता का निर्माण करते हैं, परन्तु सम्पूर्णता की विशेषताएं अंश की विशेषताओं से भिन्न होती हैं। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने इसे गेस्टाल्ट की संज्ञा दी जिसका अर्थ 'प्रारूप', 'आकार' या 'आकृति' बताया। इस स्कूल द्वारा प्रत्यक्षण के क्षेत्र में प्रयोगात्मक शोध किए गए हैं जिससे प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का नक्शा ही बदल गया। प्रत्यक्षण के अतिरिक्त इन मनोवैज्ञानिकों ने सीखना, चिंतन तथा स्मृति के क्षेत्र में काफी योगदान दिया जिसने शिक्षा मनोविज्ञान को अत्यधिक प्रभावित किया। श्रेणी:मनोविज्ञान.

नई!!: शैक्षिक मनोविज्ञान और गेस्टाल्ट मनोविज्ञान · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षात्मक मनोविज्ञान

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »