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शृंगेरी शारदा पीठम

सूची शृंगेरी शारदा पीठम

शृंगेरी शारदा पीठ आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा ८वीं शताब्दी में भारतवर्ष में स्थापित हिन्दू धर्म की चार पीठों में से दक्षिण पीठ है। यह कर्नाटक राज्य के चिकमंगलुर जिले में तुंगा नदी के तीर पर स्थित है। शृंगेरी पीठ के आचार्यों में श्री सुरेश्वराचार्य, श्री अभिनव नृसिंह भारती, श्री सच्चिदानंद भारती, श्री चंद्रशेखर भारती, श्री भारतीतीर्थ आदि ने शृंगेरी को अत्यंत दर्शनीय बना दिया है। .

6 संबंधों: यजुर्वेद, शारदा मठ, शृंगेरी, सम्राट कृष्ण देव राय, सायण, गोविन्द भगवत्पाद

यजुर्वेद

यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।। भारत कोष पर देखें इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। यजुर्वेद में दो शाखा हैं: दक्षिण भारत में प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद और उत्तर भारत में प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा। जहां ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी वहीं यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई।। ब्रज डिस्कवरी कुछ लोगों के मतानुसार इसका रचनाकाल १४०० से १००० ई.पू.

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शारदा मठ

शारदा मठ सरस्वती का मंदिर है जिसे श्री नारायण गुरु ने केरल में वरकला के पास शिवगिरी नामक गाँव में बनाया था। गुरुदेव ने पूर्णिमा के अवसर पर, 1912 अप्रैल में, श्री शारदा मठ में माता सरस्वती देविजी का प्रतिष्टा किया। शारदा अभिषेक समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ॰ पालपु अपना करत्वय निभाया। महाकवि श्री कुमारन आशान सदस्य के सचिव थे। .

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शृंगेरी

शृंगेरी (कन्नड: ಶೃಂಗೇರಿ), कर्नाटक के चिकमंगलूर जिला का एक तालुका है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ कुछ दिन वास किया था और शृंगेरी तथा शारदा मठों की स्थापना की थी। शृंगेरी मठ प्रथम मठ है। यह आदि वेदान्त से संबंधित है। यह शहर तुंग नदी के तट पर स्थित है, व आठवीं शताब्दी में बसाया गया था। शृंगेरी विरूर स्टेशन से ९० किमी दूर तुंगभद्रा नदी के वामतट पर छोटा-सा ग्राम है। शृंगेरी का नाम यहाँ से १२ किमी दूर स्थित शृंगगिरि पर्वत के नाम पर ही पड़ा, जिसका अपभ्रंश 'शृंगेरी' है। यह शृंगी ऋषि का जन्मस्थल माना जाता है। शृंगेरी में एक छोटी पहाड़ी पर शृंगी ऋषि के पिता विभांडक का आश्रम भी बताया जाता है। .

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सम्राट कृष्ण देव राय

"सम्राट कृष्णदेव राय " दक्षिण भारत के प्रतापी सम्राटों में एक थे जिनके विजयनगर साम्राज्य की ख्याति विदेशों तक फैली हुई थी।माघ शुक्ल चतुर्दशी संवत् 1566 विक्रमी को विजयनगर साम्राज्य के सम्राट कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक भारत के इतिहास की एक अद्भुत घटना थी। इस घटना को दक्षिण भारत में स्वर्णिम युग का प्रारम्भ माना जाता है, क्योंकि उन्होंने दक्षिण भारत में बर्बर मुगल सुल्तानों की विस्तारवादी योजना को धूल चटाकर आदर्श हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी, जो आगे चलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य का प्रेरणा स्रोत बना। अद्भुत शौर्य और पराक्रम के प्रतीक सम्राट कृष्ण देव राय का मूल्यांकन करते हुए इतिहासकारों ने लिखा है कि इनके अन्दर हिन्दू जीवन आदर्शों के साथ ही सभी भारतीय सम्राटों के सद्गुणों का समन्वय था। इनके राज्य में विक्रमादित्य जैसी न्याय व्यवस्था थी, चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसी सुदृढ़ शासन व्यवस्था तथा श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य महान संत विद्यारण्य स्वामी की आकांक्षाओं एवं आचार्य चाणक्य के नीतिगत तत्वों का समावेश था। इसीलिए उनके सम्बन्ध में बाबर ने बाबरनामा में लिखा था कि काफिरों के राज्य विस्तार और सेना की ताकत की दृष्टि से विजयनगर साम्राज्य ही सबसे विशाल है। दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय और उत्तर भारत में राणा सांगा ही दो बड़े काफिर राजा हैं। वैसे तो सन् 1510 ई. में सम्राट कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक विजयनगर साम्राज्य के लिए एक नये जीवन का प्रारम्भ था किन्तु इसका उद्भव तो सन् 1336 ई. में ही हुआ था। कहते हैं कि विजय नगर साम्राज्य के प्रथम शासक हरिहर तथा उनके भाई बुक्काराय भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे और उन्हीं की प्रेरणा से अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना करना चाहते थे। हरिहर एक बार शिकार के लिए तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित वन क्षेत्र में गये, उनके साथ के शिकारी कुत्तों ने एक हिरन को दौड़ाया किन्तु हिरन ने डर कर भागने के बजाय शिकारी कुत्तों को ही पलट कर दौड़ा लिया। यह घटना बहुत ही विचित्र थी। घटना के बाद अचानक एक दिन हरिहर राय की भेंट महान संत स्वामी विधारण्य से हुयी और उन्होंने पूरा वृत्तान्त स्वामी जी को सुनाया। इस पर संत ने कहा कि यह भूमि शत्रु द्वारा अविजित और सर्वाधिक शक्तिशाली होगी। सन्त विधारण्य ने उस भूमि को बसाने और स्वयं भी वहीं रहने का निर्णय किया। यही स्थान विकसित होकर विजयनगर कहा गया। वास्तव में दक्षिण भारत के हिन्दु राजाओं की आपसी कटुता, अलाउद्दीन खिलजी के विस्तारवादी अभियानों तथा मोहम्मद तुगलक द्वारा भारत की राजधानी देवगिरि में बनाने के फैसलों ने स्वामी विद्यारण्य के हिन्दू ह्रदय को झकझोर दिया था, इसीलिए वे स्वयं एक शक्तिपीठ स्थापित करना चाहते थे। हरिहर राय के प्रयासों से विजयनगर राज्य बना और जिस प्रकार चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य थे, उसी प्रकार विजयनगर साम्राज्य के महामंत्री संत विद्यारण्य स्वामी और प्रथम शासक बने हरिहर राय। धीरे-धीरे हरिहर राय प्रथम का शासन कृष्णानदी के दक्षिण में भारत की अन्तिम सीमा तक फैल गया। शासक बदलते गये और हरिहर प्रथम के बाद बुक्काराय, हरिहर द्वितीय, देवराय प्रथम, देवराय द्वितीय, मल्लिकार्जुन और विरूपाक्ष के हाथों में शासन की बागडोर आयी, किन्तु दिल्ली सल्तनत से अलग होकर स्थापित बहमनी राज्य के मुगलशासकों से लगातार सीमाविस्तार हेतु संर्घष होता रहा। जिसमें विजयनगर साम्राज्य की सीमाऐं संकुचित हो गयीं। 1485ई.

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सायण

सायण या आचार्य सायण (चौदहवीं सदी, मृत्यु १३८७ इस्वी) वेदों के सर्वमान्य भाष्यकर्ता थे। सायण ने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है, परंतु इनकी कीर्ति का मेरुदंड वेदभाष्य ही है। इनसे पहले किसी का लिखा, चारों वेदों का भाष्य नहीं मिलता। ये २४ वर्षों तक विजयनगर साम्राज्य के सेनापति एवं अमात्य रहे (१३६४-१३८७ इस्वी)। योरोप के प्रारंभिक वैदिक विद्वान तथा आधुनिक भारत के श्री अरोबिंदो तथा श्रीराम शर्मा आचार्य भी इनके भाष्य के प्रशंसक रहे हैं। यास्क के वैदिक शब्दों के कोष लिखने के बाद सायण की टीका ही सर्वमान्य है। .

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गोविन्द भगवत्पाद

गोविन्द भगवत्पाद, आदि शंकराचार्य के गुरु थे। .

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श्रृंगेरी मठ, शृंगेरी पीठ, शृंगेरीपीठ

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