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वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद

सूची वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद भारत का सबसे बड़ा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान एवं विकास संबंधी संस्थान है। इसकी स्थापना १९४२ में हुई थी। इसकी ३९ प्रयोगशालाएं एवं ५० फील्ड स्टेशन भारत पर्यन्त फैले हुए हैं। इसमें १७,००० से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। आधिकारिक जालस्थल हालांकि इसकी वित्त प्रबंध भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा होता है, फिर भी ये एक स्वायत्त संस्था है। इसका पंजीकरण भारतीय सोसायटी पंजीकरण धारा १८६० के अंतर्गत हुआ है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं/संस्थानों का एक बहुस्थानिक नेटवर्क है जिसका मैंडेट विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त अनुसंधान तथा उसके परिणामों के उपयोग पर बल देते हुए अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं प्रारंभ करना है। वतर्मान में ३९ अनुसंधान संस्थान हैं जिनमें पाँच क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएं शामिल हैं। इनमें से कुछेक संस्थानों ने अपने अनुसंधान क्रियाकलापों को और गति प्रदान करने के लिए प्रायोगिक, सर्वेक्षण क्षेत्रीय केन्द्रों की भी स्थापना की है तथा वतर्मान में 16 प्रयोगशालाओं से सम्बद्ध ऐसे 39 केन्द्र कायर्रत हैं। सीएसआईआर की गिनती विश्‍व में इस प्रकार के 2740 संस्‍थानों में 81वें स्‍थान पर होती है।(सितंबर २०१४) .

39 संबंधों: दाराशा नौशेरवां वाडिया, परमवीर सिंह आहूजा, पारम्परिक ज्ञान का आंकिक संग्रहालय, भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान, भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, मुस्तानसिर बार्मा, यलवर्ती नायुदम्मा, राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला, राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, त्रिची, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, भारत, राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशालाएं, राजीव दीक्षित, रिजोरिन, लखनऊ, शान्ति स्वरूप भटनागर, शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की सूची, शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार, समीर ब्रह्मचारी, संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै, सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान, हरिकृष्ण जैन, विज्ञान प्रगति, विज्ञान संचार, खनिज एवं पदार्थ प्रौद्योगिकी संस्थान, ग्रामीण प्रौद्योगिकी, आत्माराम, केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान, केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान, केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीरी), केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान, केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन, केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान, कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र

दाराशा नौशेरवां वाडिया

प्रोफेसर दाराशा नौशेरवां वाडिया (Darashaw Nosherwan Wadia FRS; 25 अक्तूबर 1883 – 15 जून 1969) भारत के अग्रगण्य भूवैज्ञानिक थे। वे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में कार्य करने वाले पहले कुछ वैज्ञानिकों में शामिल थे। वे हिमालय की स्तरिकी पर विशेष कार्य के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्होने भारत में भूवैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसंधान स्थापित करने में सहायता की। उनकी स्मृति में 'हिमालयी भूविज्ञान संस्थान' का नाम बदलकर १९७६ में 'वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्‍थान' कर दिया गया। उनके द्वारा रचित १९१९ में पहली बार प्रकाशित 'भारत का भूविज्ञान' (Geology of India) अब भी प्रयोग में बना हुआ है। .

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परमवीर सिंह आहूजा

परमवीर सिंह आहूजा भारत की वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक हैं। .

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पारम्परिक ज्ञान का आंकिक संग्रहालय

पारम्परिक ज्ञान का आंकिक संग्रहालय या 'ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी' भारत के परम्परागत ज्ञान का आंकिक संग्रहालय है। इसमें मुख्यत: औषधीय पौधों एवं औषधियों के निर्माण की विधि का संग्रह है। सम्प्रति यह अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी, स्पेनी आदि भाषाओं में उपलब्ध है। .

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भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान

भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान (Indian Institute of Chemical Biology (IICB)) भारत की उन बड़ी प्रयोगशालाओं में से एक है, जिसने अपनी स्थापना के समय से ही संक्रामक रोगों, खासकर लिशमैनियासिस एवं कॉलरा पर बुनियादी अनुसंधान कार्य करने हेतु बहु-अनुशासनिक सघन प्रयास किया है और साथ ही रोगों कि परीक्षण, इम्युनोप्रोफिलैक्सिस एवं केमो थेरापी के लिए प्रौद्योगिकी का विकास किया है। इस संस्थान की स्थापना जैवचिकित्सीय अनुसंधान के लिए भारत में प्रथम गैर सरकारी केंद्र के रूप में 1935 में हुई थी और 1956 में इसे सीएसआईआर के संरक्षण में शामिल किया गया। आज भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान राष्ट्रीय महत्व के रोगों और वैश्‍विक हित की जैविक समस्याओं पर अनुसंधान कर रहा है। इसके वैज्ञानिक स्टाफ सदस्य रसायन, जैवरसायन, कोशिका जीवविज्ञान, आणविक जीवविज्ञान, तंन्निका जीवविज्ञान और प्रतिरक्षाविज्ञान सहित विभिन्न प्रकार कि क्षेत्रों में विशेष ज्ञान रखते हैं। उनकी यह विशेषज्ञता उत्पादक अंतर-अनुशादसनिक अंतक्रिया को बढ़ावा देती है। तंत्रिका जीवविज्ञान समूह मेरूदंडी जीवों के मस्तिष्क के विकास और साथ ही मानव गतिशीलता विकृति के जेनेसिस पर अनुसंधान करने में संलग्न है। प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त जैवसक्रिय उपादान और रासायनिक दृष्टि से संश्लेषीकृत नए अणुओं की खोज सक्षम औषधियों के रूप में की जा रही है। जिन अन्य क्षेत्रों में कार्य किए जा रहे हैं वे हैं गैस्ट्रिक हाइपर एसिडिटी एवं अल्सर, मांसपेशीय डिस्ट्रोफी एवं उससे संबंधित विकृति, बृहदाणविक (मैक्रोमोलेक्युलर् संरचना कार्य विश्लेषण, लक्षित औषधि संवितरण पद्धति का विकास, शुक्राणु जीवविज्ञान और प्रोटीन रसायन तथा एंजाइमिकी। .

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भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ

भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आई.आई.टी.आर.), लखनऊ वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की संघटक प्रयोगशाला है। इसकी स्थापना 1965 में हुई। इसका "शहर परिसर" महात्मा गाँधी मार्ग और "घेरू परिसर" लखनऊ-कानपुर राजमार्ग पर 17-18 वें किलोमीटर के मध्य स्थित है। आई.आई.टी.आर.

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मुस्तानसिर बार्मा

पद्म श्री डॉ॰ मुस्तानसिर बार्मा सांख्यिकीय भौतिकी के क्षेत्र में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिक हैं। वो टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक हैं। .

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यलवर्ती नायुदम्मा

यलवर्ती नायुदम्मा (तेलुगु: యలవర్తి నాయుడమ్మ) http://idrinfo.idrc.ca/Archive/ReportsINTRA/pdfs/v14n3-4e/67124.pdf (१० सितम्बर १९२२ - २३ जून १९८५) भारत के राशायन अभियन्ता और वैज्ञानिक थे जिनका एयर इंडिया फ़्लाइट 182 (एम्परर कनिष्क बॉम्बिंग) में निधन हुआ।"".

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राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला

एन ए एल सारस - भारत में निर्मित प्रथम नागरिक बहुउद्देश्यीय विमान राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला एन ए एल भारत की दूसरी सबसे बड़ी एयरोस्पेस कंपनी है। यह वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा १९५९ मे दिल्ली में स्थापित किया गया था और इसका मुख्यालय १९६० में बंगलौर ले जाया गया। यह फर्म एचएएल, डीआरडीओ और इसरो के साथ मिलकर काम करती है और असैनिक विमानों के विकास के लिये जिम्मेदार है। एनएएल एक उच्च प्रौद्योगिकी उन्मुख संस्था है जो एयरोस्पेस और संबंधित उन्नत विषयों पर ध्यान केंद्रित करती है। यह मूल रूप से राष्ट्रीय वैमानिकी प्रयोगशाला के रूप में शुरू किया था और बाद मे नाम बदलकर राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला कर दिया गया जो इसकी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में भागीदारी, अपने बहुविधा गतिविधियों और ग्लोबल पोजीशनिंग क्षेत्र मे अनुसंधान को प्रतिबिंबित करती है। यह भारत की अकेली असैनिक एयरोस्पेस प्रयोगशाला है जिसकी उच्च स्तरीय क्षमता और उसके वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। एनएएल मे १३०० कर्मचारी है जिसमे ३५० पूर्ण रूप से अनुसंधान और विकास के लिये है। एनएएल नीलकंठन पवन सुरंग केन्द्र और एक कम्प्यूटरीकृत थकान परीक्षण जैसी सुविधाओ से सुसज्जित है। एनएएल मे एयरोस्पेस विफलताओं और दुर्घटनाओं की जांच के लिए सुविधाएं हैं। .

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राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला

राष्ट्रीय मैटलर्जी प्रयोगशाला, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की भारत में फैली ३८ प्रयोगशालाओं में से एक है। इस प्रयोगशाला की आधारशिला २१ नवम्बर १९४६ को भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य द्वारा रखी गयी थी। प्रयोगशाला का उद्घाट्न २६ नवम्बर १९५० को पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया था। यह जमशेदपुर के बर्मामाइन्स क्षेत्र में स्थित है। .

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राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान

राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI नीरी) सीएसआईआर का एक उपक्रम है। यह नागपुर में स्थित है। यह पर्यावरण विज्ञान एवं इंजीनियरी से सम्बन्धित अनुसंधान एवं एवं व्यावहारिक सुझाव देता है।; नीरी की दृष्टि - सतत पोषणीय विकास (संपोषित विकास) हेतु पर्यावरण विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में नेतृत्व। .

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राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, त्रिची

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, तिरुचिरापल्ली (एनआईटीटी), जो पहले रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज, तिरुचिरापल्ली था, भारत के तिरुचिरापल्ली शहर में स्थित एक सार्वजनिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय है। इस संस्थान की स्थापना 1964 में देश की तकनीकी जनशक्ति की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए की गयी थी। आज यह भारत के 18 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है और इसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में मान्यता दी जाती है। संस्थान में लगभग 3,400 छात्र विभिन्न पूर्वस्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में नामांकित हैं। एनआईटीटी को नियमित रूप से देश के शीर्ष 15 इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्थान दिया जाता रहा है। यह संस्थान तिरुचिरापल्ली के बाहरी इलाके में एक परिसर पर स्थित है। अधिकांश छात्र परिसर के आवासीय हॉस्टलों में रहते हैं। यहाँ 35 से अधिक ऐसे छात्र समूह हैं जो विभिन्न गतिविधियों और रुचियों को पूरा करने में जुटे हुए हैं। संस्थान वार्षिक सांस्कृतिक और तकनीकी समारोहों का भी आयोजन करता है जो देश और विदेश के प्रतिभागियों को आकर्षित करता है। .

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राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, भारत

राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, भारत में नई दिल्ली में स्थित देश की मापन्मानक प्रयोगशाला है। ये भारत में एस आई इकाइयों का अनुरक्षण तथा राष्ट्रीय भार तथा माप के मानकों का कैलीब्रेशन करती है। इस प्रयोगशाला की स्थापना वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अधीन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वाआ ४ जनवरी, १९४७ को हुई थी। डॉ॰ के एस कृष्णन इस प्रयोगशाला के प्रथम निदेशक थे। प्रयोगशाला की मुख्य इमारत औपचारिक तौर पर भारत के उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा २१ जनवरी, १९५० को आरंभ की गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा प्रयोगशाला की रजत जयंती का उद्घाटन २३ दिसम्बर १९७५ को किया गया था। लगभग हरेक आधुनिकीकरण हुए राष्ट्र में एक राष्ट्रीय मेट्रोलॉजिकल संस्थान होता है, जो मापन मानक की देखरेख करता है। भारत में ये उत्तरदायित्व राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला को मिला हुआ है। प्रयोगशाला में अनुसंधान कार्य भी होते हैं। इसके द्वारा प्रतिपादित एक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान गतिविधि में भारतीय चुनाव में प्रयोग की जाने वाली स्याही के लिये रासायनिक सूत्र ढूंढना है, जिससे कि चुनावों में फर्जी मतदान एवं धोखाधड़ी आदि से बचाव हो सके। ये स्याही मैसूर पेंट्स एण्ड वार्निश वर्क्स लि.

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राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला

राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला पुणे स्थित भारत की सरकारी प्रयोगशाला है। एन.सी.एल नाम से प्रचलित इस प्रयोगशाला की स्थापना 6 अप्रैल 1947 में हुई थी। 3 जनवरी 1950 को पं जवाहरलाल नेहरु ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था। यहां के प्रथम निदेशक डॉ॰जे.डब्ल्यु.मैक्बेन (1950-52) थे। ये प्रयोगशाला वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अधीन आती है। यहां पी.एचडी के लगभग 300 लोग कार्यरत हैं।- आधिकाआरिक जालस्थल .

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राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography) भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक प्रयोगशाला है। इसका मुख्यालय गोवा में स्थित है तथा मुम्बई, कोच्चि एवं विशाखापट्टनम में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं। इसकी स्थापना १ जनवरी सन् १९६६ को हुई थी। इसका मुख्य ध्येय उत्तरी हिन्द महासागर के विशिष्ट समुद्रवैज्ञानिक पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करना है। .

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राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ में स्थित एक संस्थान है। यह सीएसआईआर के अंतर्गत है, एवं आधुनिक जीवविज्ञान एवं टैक्सोनॉमी के क्षेत्रों से जुड़ा है। इसके निदेशक डॉ॰ राकेश तूली हैं। संस्थान के वैज्ञानिकों ने बोगनवेलिया की एक नयी प्रजाति विकसित की है, जिसका नाम लोस बानोस वैरियेगाता- जयंती रखा है। यह संस्थान भारत की अग्रणी राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में से एक है जो कि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, के अन्तर्गत लखनऊ में कार्यरत है। यह संस्थान 'राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान' के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत कार्यरत था, जिसे 13 अप्रैल, 1953 को वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् ने अधिग्रहीत कर लिया। उस समय से यह संस्थान वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में परम्परागत अनुसंधान करता आ रहा है। समय के साथ इसमें नये-नये विषयों पर अनुसंधान कार्य किये गये, जिनमें पर्यावरण संबंधित व आनुवांशिक अध्ययन प्रमुख थे। अनुसंधान के बढ़ते महत्व व बदलते स्वरूप को ध्यान में रखकर 25 अक्टूबर, 1978 को इसका नाम बदलकर 'राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान' किया गया। वर्तमान में संस्थान के पास लगभग 63 एकड़ भूमि पर वनस्पति उद्यान है जिसमें संस्थान की प्रयोगशालायें स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त बंथरा में लगभग 260 एकड़ भूमि अनुसंधान हेतु उपलब्ध है जहाँ पर अनेक प्रयोग किये जा रहे हैं। संस्थान की छवि वर्तमान में एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थान के रूप में है जिसके द्वारा प्रतिवर्ष अनेक उत्पाद विकसित किये जा रहे हैं तथा इनको विभिन्न उद्योग घरानों द्वारा व्यावसायिक स्तर पर बनाया जा रहा है। संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न पुष्प प्रजातियाँ व गुलाल आज घर-घर में लोकप्रिय हैं। .

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राष्ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशालाएं

राष्‍ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशालाएं (अंग्रेज़ी:नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज़, एनएएल) वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद का एक संघटक है, जो वैमानिकी एवं सम्‍बद्ध क्षेत्र में भारत का सर्वश्रेष्‍ठ नागर अनुसंधान एवं विकास संस्‍थापन है एनएएल की स्‍थापना 1959 में दिल्‍ली में हुई थी फिर 1960 में इसे बेंगलूर लाया गया। एनएएल का मुख्‍य उद्देश्‍य है सुदृढ विज्ञान द्वारा वांतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा उडा़न यानों के अभिकल्‍प एवं निर्माण में इनका प्रयोगात्‍मक प्रयोग सामान्‍य औद्योगिक अनुप्रयोगों में आधारभूत वांतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करना भी एनएएल का उद्देश्‍य है। 1959 में जब एनएएल की स्‍थापना हुई (1993 तक राष्‍ट्रीय वैमानिकी प्रयोगशालाएं कहता था) वैमानिकी क्षेत्र में उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान एवं विकास और राष्‍ट्रीय वांतरिक्ष कार्यक्रमों केलिए अत्‍याधुनिक सुवधिाएं उपलब्‍ध कराना ही इसका प्रमुख उद्देश्‍य था जैसे अपने दृश्‍य वक्‍तव्‍य में दर्शाया है, एनएएल का मुख्‍य उद्देश्‍य है सुदृढ विज्ञान द्वारा वांतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा उडा़न यानों के अभिकल्‍प एवं निर्माण में इनका प्रयोगात्‍मक प्रयोग सामान्‍य औद्योगिक अनुप्रयोगों में आधारभूत वांतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करना भी एनएएल का उद्देश्‍य है। वांतरिक्ष क्षेत्र में एनएएल का कार्य पूर्ण व्‍यापी है कुछ ही सालों में, एनएएल ने भारतीय वांतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए महत्‍वपूर्ण योगदान प्रदान किया है, कभी कभी इन कार्यक्रमों के लिए राष्‍ट्रीय एजेण्‍डा भी बना दिया है पिछले दशक के दौरान एनएएल ने नागर क्षेत्र हेतु छोटे व मध्‍यम आकारवाले वायुयान के अभिकल्‍प एवं विकास पर किए गए प्रयासों में भी अग्र रहा है। .

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राजीव दीक्षित

राजीव दीक्षित (30 नवम्बर 1967 - 30 नवम्बर 2010) एक भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे।.

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रिजोरिन

रिजोरिन सीएसआईआर तथा मुक्त स्रोत औषधि अनुसंधान पहल परियोजना के समन्वित प्रयासों से निर्मित एक क्षयरोग रोधी दवा है। इसका निर्माण पूर्व में प्रयुक्त औषधि रिफैम्पैसिन के मूल लवण में काली मिर्च (पिपेरिन) का सत्त्व मिलाकर किया गया है। यह पूर्ववर्ती औषधि से अधिक दक्ष, सस्ती तथा अल्पावधि में क्षयरोग से निजात दिलाने में उपयोगी है। इसका रोगी की प्रतिरोधक क्षमता पर विपरीत प्रभाव कम से कम पड़ता है तथा स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया तीव्र रहती है। .

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लखनऊ

लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .

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शान्ति स्वरूप भटनागर

सर शांति स्वरूप भटनागर, OBE, FRS (२१ फरवरी १८९४ – १ जनवरी १९५५) जाने माने भारतीय वैज्ञानिक थे। इनका जन्म शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इनके पिता परमेश्वरी सहाय भटनागर की मृत्यु तब हो गयी थी, जब ये केवल आठ महीने के ही थे। इनका बचपन अपने ननिहाल में ही बीता। इनके नाना एक इंजीनियर थे, जिनसे इन्हें विज्ञान और अभियांत्रिकी में रुचि जागी। इन्हें यांत्रिक खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और तारयुक्त टेलीफोन बनाने का शौक रहा। इन्हें अपने ननिहाल से कविता का शौक भी मिला और इनका उर्दु एकांकी करामाती प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया था। भारत में स्नातकोत्तर डिग्री पूर्ण करने के उपरांत, शोध फ़ैलोशिप पर, ये इंगलैंड गये। इन्होंने युनिवर्सिटी कालेज, लंदन से १९२१ में, रसायन शास्त्र के प्रोफ़ैसर फ़्रेड्रिक जी डोन्नान की देख रेख में, विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटने के बाद, उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रोफ़ैसर पद हेतु आमंत्रण मिला। सन १९४१ में ब्रिटिश सरकार द्वारा इनकी शोध के लिये, इन्हें नाइटहुड से सम्मानित किया गया। १८ मार्च १९४३ को इन्हें फ़ैलो आफ़ रायल सोसायटी चुना गया। इनके शोध विषय में एमल्ज़न, कोलाय्ड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र थे। परन्तु इनके मूल योगदान चुम्बकीय-रासायनिकी के क्षेत्र में थे। इन्होंने चुम्बकत्व को रासायनिक क्रियाओं को अधिक जानने के लिये औजार के रूप में प्रयोग किया था। इन्होंने प्रो॰ आर.एन.माथुर के साथ भटनागर-माथुर इन्टरफ़ेयरेन्स संतुलन का प्रतिपादन किया था, जिसे बाद में एक ब्रिटिश कम्पनी द्वारा उत्पादन में प्रयोग भी किया गया। इन्होंने एक सुन्दर कुलगीत नामक विश्वविद्यालय गीत की रचना भी की थी। इसका प्रयोग विश्वविद्यालय में कार्यक्रमों के पहले होता आया है। भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू वैज्ञानिक प्रसार के प्रबल समर्थक थे। १९४७ में, भारतीय स्वतंत्रता के उपरांत, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना, श्री भटनागर की अध्यक्षता में की गयी। इन्हें सी.एस.आई.आर का प्रथम महा-निदेशक बनाया गया। इन्हें शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है व भारत में अनेकों बड़ी रासायनिक प्रयोगशालाओं के स्थापन हेतु स्मरण किया जाता है। इन्होंने भारत में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित कीं, जिनमें प्रमुख इस प्रकार से हैं.

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शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की सूची

शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार भारत में सर्वोच्च बहुआयामी विज्ञान पुरस्कारों में से एक है। इसकी स्थापना १९५८ में इसके संस्थापक निदेशक शान्ति स्वरूप भटनागर के सम्मान में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा की गई थी। .

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शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार

शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार वार्षिक रूप से वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर) द्वारा उल्लेखनीय एवं असाधारण अनुसंधान, अपलाइड या मूलभूत श्रेणी के जीववैज्ञानिक, रासायनिक, पार्थिव, पर्यावरणीय, सागरीय एवं ग्रहीय, अभियांत्रिक, गणितीय, चिकित्सा एवं भौतिक विज्ञान के क्षेत्रों में दिये जाते हैं। इस पुरस्कार का उद्देश्य विज्ञाण एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय एवं असाधारण भारतीय प्रतिभाके धनियों को उजागर करना है। यह पुरस्कार सी एस आई आर के प्रथम एवं संस्थापक निदेशक सर शांति स्वरूप भटनागर के सम्माण में दिया जाता है। .

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समीर ब्रह्मचारी

समीर कुमार ब्रह्मचारी (जन्म: 1 जनवरी 1952) भारत की वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक रह चुके हैं। .

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संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै

संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र (Structuarl engineering Research Centre) भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) द्वारा स्थापित एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। यह चेन्नै में स्थित है। यहाँ संरचना एवं संरचनात्मक घटकों के विश्लेषण, अभिकल्प एवं परीक्षण के लिए उत्तम सुविधाएँ मौजूद हैं। इस केन्द्र की सेवाओं से केन्द्र और राज्य सरकार, निजी संस्थान एवं उपक्रम विस्तृत रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। एस.ई.आर.सी के वैज्ञानिक अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समितियों में काम करते हैं और संरचनात्मक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस केन्द्र ने अपना नाम प्रतिष्ठित किया है। स.ई.आर.सी अभी हाल ही में ISO 9001:2008 गुणवत्ता संस्थान का प्रमाणन प्राप्त किया है। .

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सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान

सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Microbial Technology (इमटैक/IMTECH)) चण्डीगढ़ में स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारत की 38 राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाओं में से एक है और इसकी सबसे नवीनतम प्रयोगशाला है। इसकी स्थापना १९८४ में की गयी थी। यह संस्‍थान लगभग 47 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें से प्रयोगशालाऍं 22 एकड़ क्षेत्र में और आवासीय परिसर 25 एकड़ क्षेत्र में है। .

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हरिकृष्ण जैन

हरिकृष्ण जैन (जन्म २८ मई १९३०) भारतीय कायटोजेनेटिक्स के विशेषज्ञ है। वे केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक रह चुके है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने, जो भारत की सर्वोच्च विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अनुसंधान एवं विकास संबंधी संस्थान है, इन्हे १९६६ में जीव विज्ञान श्रेणी का शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार प्रदान किया। इन्हे भारत सरकार ने १९८१ में चौथे उच्चतम नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानीत किया। .

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विज्ञान प्रगति

विज्ञान प्रगति हिन्दी की एक विज्ञान पत्रिका है। विज्ञान प्रगति ने हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया है। .

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विज्ञान संचार

विज्ञान संचार (Science communication) का सामान्य अर्थ संचार-माध्यमों के द्वारा गैर-वैज्ञानिक समाज को विज्ञान के विविध पहलुओं एवं विषयों के बारे में सूचना देना है। कभी-कभी यह काम व्यावसायिक वैज्ञानिकों द्वारा भी किया जाता है। (तब इसे 'विज्ञान का लोकीकरण' कहा जाता है।)। विज्ञान संचार अपने-आप में एक पेशेवर क्षेत्र बन चुका है। .

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खनिज एवं पदार्थ प्रौद्योगिकी संस्थान

खनिज एवं पदार्थ प्रौद्योगिकी संस्‍थान (Institute of Minerals & Materials Technology / आइ एम एम टी) वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्‍ली की एक प्रमुख स्‍थापना है। इसकी स्‍थापना १९६४ में की गयी थी। पहले इसका नाम 'क्षे‍त्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला' था। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं सतत् उपयोग पर विशेष बल देते हुए प्रक्रम एवं उत्‍पाद विकास हेतु अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों में आधारभूत सहयोग प्रदान करना इस प्रयोगशाला की विशिष्‍टता है। इस प्रयोगशाला में खनन एवं खनिज/जैव-खनिज संसाधन, धातु निष्‍कर्षण एवं पदार्थ अभिलक्षण, प्रकम अभियांत्रिकी, औद्योगिक अपशिष्‍ट प्रबंधन, पर्यावरण मॉनीटरन एवं नियंत्रण, समुद्री एवं वन उत्‍पाद विकास, सगंध एवं औषधीय वनस्‍पति के उपयोग एवं सामाजिक विकास के लिए उपयुक्‍त प्रौद्योगिकी हेतु प्रौद्योगिकी उन्‍मुख कार्यक्रमों के संचालन की सुविज्ञता है। .

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ग्रामीण प्रौद्योगिकी

ग्रामीण प्रौद्योगिकी उन प्रौद्योगिकियों को कहते हैं, जिनका संबंध मुख्यतः ग्रामीण जनता से होता है। गाँवों के लिए उपयोगी प्रौद्योगिकियों की सूची बहुत बड़ी है जिसमें से कुछ ये हैं- टिकाऊ जैविक खेती, जल संसाधन का प्रबन्धन, कृषि पर आधारित ग्रामीण सूक्ष्म-उद्योग, विकेन्द्रित ग्रामीण ऊर्जा प्रणाली, सस्ती निर्माण प्रौद्योगिकी आदि। .

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आत्माराम

डॉ आत्माराम (१२ अक्टुबर, १९०८ - ६ फ़रवरी १९८३) भारत के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। उनकी स्मृति में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा 'आत्माराम पुरस्कार' दिया जाता है। चश्मे के काँच के निर्माण में उनका उल्लेखनीय योगदान था। वे केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान के निदेशक रहे तथा २१ अगस्त १९६६ को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक का पद संभाला। .

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केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान

केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (Central Salt and Marine Chemicals Research Institute) वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक प्रयोगशाला है। यह भावनगर में स्थित है। इसकी स्थापना १९५६ में की गयी थी। संस्थान का उद्देश्य है - दीर्घद्दष्टा प्रायोंजकों एवम्‌ सहयोगीओं की साझेदारी में, भारत की तटीय बंजर जमीन, समुद्री जल, समुद्री शैवाल, सौर शक्ति तथा सिलिकेटस के प्रभावी उपयोग के लिये अन्वेषण करना तथा ज्ञान अर्जित करना। संस्थान इस क्षेत्र के तथा अन्य क्षेत्रो के उद्योगों एवम्‌ संस्थानों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जैव विज्ञान, रसायण रुपांतरण, प्रक्रिया अभियांत्रिकी, पर्यावरण नियंत्रण, पृथक्करण विज्ञान तथा विश्लेषण में भी अपना सामर्थ्य सिद्ध करेगा। यह संस्थान देश में उत्कृष्ट कार्यप्रदर्शन कर रही अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में से एक है। संस्थान ने विशेष वैज्ञानिक उत्साह द्वारा कुछ उत्कृष्ट प्रोद्योगिकियाँ तथा संस्थान के मुख्य अधिदेश अंतर्गत कई स्वीकृत पेटन्ट की उपलब्धि हांसिल की है। वर्ष 2011 के प्रारंभ में, 150 वैज्ञानिक तथा तकनीकी कर्मचारियों के साथ लगभग 360 कर्मचारी इसके वेतनपत्र पर हैं साथ ही 250 अनुसंधान छात्रों, परियोजना सहायकों उनके डॉक्टरेट कार्यक्रम कर रहे हैं। .

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केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान

केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (अंग्रेज़ी: सेन्ट्रल फ़ूड रिसर्स इंस्टीट्यूट) कर्नाटक राज्य में मैसूर में स्थित एक संस्थान है। केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान (सी.एफ.टी.आर.आई), मैसूर (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की एक संघटक प्रयोगशाला) सन्‌ 1950 में संस्थापकों की दूरदर्शिता और खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च अनंसुधान एवं विकास कार्य के प्रति समर्पित उत्साही वैज्ञानिकों के नेटवर्क के कारण अस्तित्व में आयाI संस्थान की सस्ती परन्तु प्रभावशाली प्रौद्योगिकियों का विकास, देशी कच्चे माल का उपयुक्त एवं प्रभावपूर्ण उपयोग, जैव प्रौद्योगिकियाँ, विशेषकर एकीकृत प्रविधियों का विकास, संपूर्ण प्रौद्योगिकी के लिए उच्च स्तरीय अनुसंधान प्रयास, खाद्य सुरक्षा, सभी वर्गों की जनता के लिए पोषण इत्यादि विषयों की ओर विशेष रूझान रहा है I संस्थान को अपने अनुसंधान एवं विकास कार्य बढाने और वैश्वीकरण से टक्कर के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा बाह्यत: निधिक कई परियोजनाओं से बड़ा लाभ प्राप्त हुआ है। खाद्य उद्योग में बढ़ती पूँजी निवेश के साथ देश में प्रस्तुत परिदृश्य बड़ा उत्साहवर्धक है जिसका शहरी बजार में पर्यावरणानुकूल प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के लिए, विशेष रूप से पारंपरिक खाद्यों के लिए शीघ्र गति से विस्तार हो रहा है I इंस्टिच्यूट ऑफ फूड़ टेकनालजिस्ट्‌स (यू एस ए), संयुक्त राष्ट्र विश्र्वविद्यालय (टोकियो), यूरोपीय आर्थिक आयोग (बेल्जियम), नेशनल साइन्स फाउण्डेशन (यूएसए) जैसे कई और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के जरिए पोषित मानव संसाधन विकास एवं अ. & वि.

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केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान

केन्‍द्रीय सड़क अनुसंधान संस्‍थान (Central Road Research Institute / CRRI) की स्‍थापना भारत की एक प्रमुख राष्‍ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में 1948 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक अंगभूत प्रयोगशाला के रूप में की गई I संस्‍थान की स्‍थापना का उद्देश्‍य सड़कों तथा हवाई पट्टियों का अभिकल्‍प, निर्माण एवं रखरखाव, बडे़ तथा मध्‍यम शहरों की यातायात तथा परिवहन आयोजना, विभिन्‍न क्षेत्रों में सड़कों का प्रबन्‍ध, मार्जिनल सामग्री का सुधार, सड़क निर्माण में औद्योगिक अपशिष्‍ट की उपयोगिता, भू स्‍खलन नियंत्रण, भू सुधार पर्यावरणीय प्रदूषण तथा सड़क यातायात सुरक्षा पर अनुसंधान तथा विकास परियोजनाओं पर कार्य करना है I संस्‍थान भारत तथा विदेशों में विभिन्‍न उपयोगकर्ता संगठनों को तकनीकी तथा परामर्श सेवाएं प्रदान करता है I संस्‍थान सड़क तथा रन-वे परियोजनाओं के कार्य निष्‍पादित करने के लिए 1962 से जन समूह तक अनुसंधान तथा विकास उप‍लब्धियों के प्रचार प्रसार के लिए राष्‍ट्रीय तथा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों/पुनर्ग्रहण शिक्षण पाठ्यक्रमों को आयोजित करने का सामर्थ्‍य रखता है I महामार्ग अभियांत्रिकी के क्षेत्रों में मानव संसाधन की क्षमता बनाने के लिए संस्‍थान के पास राष्‍ट्रीय तथा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आयोजित करने की क्षमता है I सीएसआईआर केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) की स्थापना भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक घटक प्रयोगशाला के रूप में सन् 1952 में दिल्ली में की गई। संस्थान राजमार्ग और सड़क परिवहन प्रौद्योगिकी के प्रमुख क्षेत्रों में व्यवसाय को उच्च गुणवत्ता और विश्व स्तर पर स्वीकार्य अनुसंधान और परामर्श सेवाएं प्रदान करता है। संस्थान के पांच अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र तथा चार अवसंरचना तकनीकी सहायता क्षेत्र है। सीएसआईआर - सीआरआरआई एक आईएसओ 9001 प्रमाणपत्र प्राप्त संस्थान है। संस्थान में अनुसंधान और विकास क्षेत्रों में सड़क और सड़क परिवहन के सभी पहलुओं पर अनुसंधान और विकास कार्य संपन्न किए जाते हैं। इनकी गतिविधियों को पाँच प्रमुख क्षेत्रों में समूहीकृत कर सकते हैं, जैसे कुटिटम अभियांत्रिकी और सामग्री, भूतकनीकी अभियांत्रिकी, सेतु और संरचनाएं, यातायात और परिवहन योजना, सड़क विकास योजना एवं प्रबंधन। संस्थान प्रायोजित और अनुबंध अनुसंधान कार्य करता है और सभी सरकारी और निजी क्षेत्र के संगठनों के लिए परामर्श सेवाएं प्रदान करता है। .

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केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीरी)

केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (Central Electronics Engineering Research Institute / सीरी), पिलानी, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक संघटक प्रयोगशाला है जिसकी स्थापना सन् 1953 में हुई थी। वास्तविक अनुसंधान एवं विकास कार्य वर्ष 1958 के अंतिम भाग से आरंभ हुआ। यह संस्थान मुख्यत: अर्धचालक युक्तियों, इलेक्ट्रोनिक प्रणालियों और इलेक्ट्रोनिक नलिकाओं के क्षेत्र में शोध् एवं विकास में कार्यरत है। अनेक परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आरंभ से ही आधारभूत सुविधाएँ, विशिष्‍ट जनशक्ति एवं विशेषज्ञता के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। पिलानी में मुख्यालय के साथ-साथ चेन्‍नै में इसका क्षेत्रीय केन्द्र है जो कि सी.एस.आई.आर काम्‍प्‍लेक्स के परिसर में कार्यरत है। इस क्षेत्रीय केन्द्र में मुख्यत: कागज एवं खाद्य पदार्थ प्रक्रमण सम्बन्धी शोध एवं विकास कार्य चल रहा है। .

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केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान

केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्‍थान (सीजीसीआरआई) भारत की कांच एवं सिरामिक से सम्बन्धित अनुसंधान की प्रमुख प्रयोगशाला है। यह पश्चिम बंगाल के यादवपुर (जादवपुर) में स्थित है। यह वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत है। इसका उद्देश्य कांच, सिरामिकी एवं संबन्धित पदार्थों के क्षेत्र में वैज्ञानिक-औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास करना है ताकि देश की जनता को अधिकतम आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक लाभ मिल सके। आरंभिक चरण में देश में उपलब्‍ध खनिज संसाधनों का पता लगाना एवं विशेष उत्पादों के विकास में उनका उपयोग करना ही मुख्‍य उद्देश्‍य था। इस संस्‍थान ने सन् 1944 में सीमित रूप में काम करना आरंभ तो कर दिया था परंतु औपचारिक रूप से इसका उद्घाटन 26 अगस्‍त 1950 को किया गया। आरंभिक समय में यह सेन्‍ट्रल ग्‍लास एण्‍ड सिलिकेट रिसर्च इंस्‍टट्यूट के नाम से बना था और यह संस्‍थान वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुससंधान परिषद के अंतर्गत आरंभ की गई सबसे पहली चार प्रस्‍तावित प्रयोगशालाओंमें से एक है। अन्‍य तीन प्रयोगशालाएं हैं एन.सी.एल.-पुणे, एन.पी.एल-नई दिल्‍ली एवं सीएफआरआई-धनबाद। .

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केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन

केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआइओ), वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआइआर), नई दिल्ली के अधीन कार्यरत एक राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला है। सीएसआइओ, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक उपकरणों के अनुसंधान, परिकल्पना तथा विकास में कार्यरत एक प्रमुख राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। चण्डीगढ़ के सैक्टर 30 में स्थित सीएसआइओ लगभग 120 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है। सीएसआइओ परिसर में कार्यालय भवन, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाएं, इण्डो-स्विस प्रशिक्षण केन्द्र इत्यादि तथा एक आवासीय कालोनी है। सीएसआइओ की स्थापना योजना आयोग द्वारा स्थापित एक समिति की सिफारिशों पर 30 अक्तूबर, 1959 में की गई। प्रारंभ में इसका कार्यालय नई दिल्ली में सीएसआइआर भवन में था, जो वर्ष 1962 में चण्डीगढ़ में स्थानांतरित हुआ। कर्मशालाओं सहित चार मंजिला भवन का उद्घाटन दिसंबर, 1967 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.

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केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान

केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (अंग्रेजी -Central Institute of Mining and Fuel Research) धनबाद, झारखण्ड में स्थित है। यह भारत की वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक अंगीभूत प्रयोगशाला है। यह खनन से खपत तक अर्थात सम्पूर्ण कोयला ऊर्जा श्रृंखला को अनुसंधान व विकास से संबंधित निवेश उपलब्ध कराने के लिए समर्पित है। सीएफआरआई (केंद्रीय ईंधन अनुसंधान संस्थान) तथा सीएमआरआई (केंद्रीय खनन अनुसंधान संस्थान) के एकीकरण के बाद सीआईएमएफआर (केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान) का गठन हुआ। राँची, बिलासपुर (मध्य प्रदेश), नागपुर व रुड़की में इस संस्थान के यूनिट हैं। http://www.cmriindia.nic.in/hindi/hindex.html .

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कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र

कोशिकीय व आण्विक जीवविज्ञान केंद्र (सी.सी.एम.बी.), भारत भर में फैली सी एस आई आर की विविध प्रयोगशालाओं में से एक है। यह आन्ध्र प्रदेश की राजधानी, हैदराबाद में स्थित है और जीवविज्ञान के आधुनिक और महत्वपूर्ण क्षेत्रों को समर्पित प्रयोगशाला है। वर्ष 1987 में, 26 नवम्बर के दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित की गई थी। इसे सी.एस.आई.आर की एक पूर्ण विकसित राष्ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में वर्ष 1982 में ही मान्यता प्राप्त हो गयी थी, लेकिन अपने आरंभ के कुछ वर्षों में यह आई.आई.सी.टी, (पूर्व नाम आर.आर.एल.) प्रयोगशाला परिसर से काम करती रही। उसी समय, आई.आई.सी.टी के निकट, उसी प्रयोगशाला के परिसर में, इस केन्द्र के अपने भवनों का निर्माण आरंभ हुआ। वर्ष 1987 तक आते-आते अनेक लोगों के अथक और अद्भुत प्रयासों की सहायता से यह केन्द्र अपने लिए सभी सुविधाओं से युक्त एक सुन्दर परिसर को जुटा सका। आज इस केन्द्र को जीव विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। प्रमुखत: यह केन्द्र आज जीव विज्ञान के नवीनतम क्षेत्रों के शोधकार्य एवं उनके अनुप्रयोग को ढूँढने के प्रयासों में जुटा हुआ है। इसके क्रिया-कलापों में आधारभूत शोध कार्य से लेकर समाज-उपयोगी तथा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े शोधकार्य तक सम्मिलित हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद्, सी एस आई आर, सीएसआईआर

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