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5 संबंधों: ललित निबंध, संस्मरण, हिन्दी पुस्तकों की सूची/प, हिन्दी ललित निबन्धकार, २२ नवम्बर।
ललित निबंध
ललित निबंध निबंध का एक प्रकार है। ललित निबन्ध विधा की उपस्थिति का अभास आधुनिक काल और गद्य विधा के आरम्भ के साथ ही मिलने लगता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, सरदार पूर्ण सिंह, चन्द्रधर्शर्मा गुलेरी, बालमुकुन्द गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी आदि के निबन्धों में इस विधा के पूर्वाभास दिखाई पडने लगते हैं, लेकिन एक व्यवस्थित और महत्वपूर्ण विधा के रूप में इसकी पहचान पहले-पहल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबन्धों में दिखाई पडती है। ‘अशोक के फूल’, ‘कुटज ’और ‘कल्पलता’ संकलनों के निबंध पहले-पहल इस विधा के प्रतिदर्श बने। अतः उनके ये निबन्ध ही इस विधा के वास्तविक प्रस्थान विन्दु हैं। आगे चलकर कुबेर नाथ राय, विद्या निवास मिश्र, विवेकी राय, परिचय दास आदि निबन्धकारों ने इसे और समृद्ध किया। .
देखें विवेकी राय और ललित निबंध
संस्मरण
स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनायें संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनका साहित्यिक महत्त्व स्वीकारा गया है। .
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हिन्दी पुस्तकों की सूची/प
* पंच परमेश्वर - प्रेम चन्द्र.
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हिन्दी ललित निबन्धकार
ललितनिबंध निबंध का एक प्रकार है। ललित निबन्ध विधा की उपस्थिति का अभास आधुनिक काल और गद्य विधा के आरम्भ के साथ ही मिलने लगता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, सरदार पूर्ण सिंह, चन्द्रधर्शर्मा गुलेरी, बालमुकुन्द गुप्त, पुन्न्नलाल पदुमलाल बक्शी आदि के निबन्धों में इस विधा के पूर्वाभास दिखाई पडने लगते हैं, लेकिन एक व्यवस्थित और महत्वपूर्ण विधा के रूप में इसकी पहचान पहले-पहल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबन्धों में दिखाई पडती है। ‘अशोक के फूल’, ‘कुटज ’और ‘कल्पलता’ संकलनों के निबंध पहले-पहल इस विधा के प्रतिदर्श बने। अतः उनके ये निबन्ध ही इस विधा के वास्तविक प्रस्थान विन्दु हैं। आगे चलकर कुबेर नाथ राय, विद्या निवास मिश्र, विवेकी राय, परिचय दास आदि निबन्धकारों ने इसे और समृद्ध किया। .
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२२ नवम्बर
२२ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२६वॉ (लीप वर्ष मे ३२७ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ३९ दिन बाकी हैं। .
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