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विधिक उपचार

सूची विधिक उपचार

विधिक उपचार या न्यायिक उपचार (legal remedy) वह साधन है जिसके द्वारा कोई न्यायालय, दीवानी मामलों में, कोई अधिकार देता है, कोई दण्ड (पेनाल्टी) लगाता है, या कोई अन्य आदेश देता है। राष्ट्रमण्डल देशों में (जिसमें भारत भी है), तथा अन्य सम्बन्धित देशों में (जैसे यूएसए) न्यायिक उपचार एवं साम्या उपचार (इक्विटेबल रेमेडी) में अन्तर है। .

5 संबंधों: परमादेश, मुकदमा, संवैधानिक उपचार, क्षतिपूर्ति, उत्प्रेषण

परमादेश

परमादेश और अन्य न्यायिक उपचार, भारत के संविधान में पाया जाता है। परमादेश (mandamus) एक न्यायिक उपचार है। आंग्लदेश में परमादेश न्यायालय के क्वींस बेंच डिवीजन द्वारा किसी अधिकारी, निगम अथवा नीचे की अदालतों के नाम जारी किया जाता है। इसमें इस बात की स्पष्ट आज्ञा होती है कि "प्रादेश में निर्दिष्ट कार्य का यथोचित संपादन किया जाए क्योंकि वही उसका (अधिकारी, निगम का, न्यायालय का) नियतकर्म अथवा कर्तव्य है।" 'mandamus' का अर्थ है "हमारा आदेश है।" प्रादेश में निर्दिष्ट आज्ञा किसी कार्य के लिए जाने अथवा उससे विरत होने से संबद्ध होती है। यह प्रादेश एक सामान्य वैधिक कर्तव्य के प्रवर्तन (enforcement) के लिए जारी किया जाता है और इसका प्रयोग प्रसंविदाजन्य कर्तव्यों (contractual obligations) के प्रवर्तन के लिए नहीं होता। इसका प्रयोग वहाँ भी नहीं किया जाता जहाँ इष्ट कार्य किसी अधिकारी के विवेक (discretion) पर निर्भर होता है। किंतु उस अवस्था में जब विवेकाधिकार किसी कर्तव्य के साथ संलग्न हो, न्यायालय उसके संपादन के लिए आदेश दे सकता है। किंबहुना, यदि अधिकारीविशेष अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय किन्हीं अनावश्यक विषयों पर ध्यान देता है अथव आवश्यक वस्तुओं पर ध्यान नहीं देता तो इन दशाओं में न्यायालय उक्त अधिकारी के आदेश को रद्द करते हुए उस विषय पर पुनर्विचार करने का आदेश दे सकता है। परमादेश उस अवस्था में भी जारी किया जाता है जब कोई अधिकारी अपनी कार्यसीमा का अतिक्रमण अथवा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है। यह प्रादेश न तो प्रकृत्या जारी किया जाता है और न आधिकारिक रूप से ही (neither as of right nor as of course)। यह उसी अवस्था में जारी किया जाता है जब वैध अधिकारों से युक्त व्यक्ति हलफनामे द्वारा संबलित याचिका में इसके जारी किए जाने के लिए उपयुक्त कारण सिद्ध करे। यह प्रादेश उस अवस्था में जारी नहीं किया जाता जब याचिकादाता के समक्ष कोई अन्य उपयुक्त तथा वैकल्पिक मार्ग हो। याचिकादाता के लिए यह भी प्रदर्शित करना आवश्यक है कि याचिका प्रस्तुत करने के पूर्व उसने उपयुक्त अधिकारी के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत कर अनुरोप के लिए प्रार्थना की थी तथा वह दावा या तो अस्वीकार कर दिया गया अथवा पर्याप्त समय व्यतीत हो जाने के बाद भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। इस नियम के पालन पर न्यायालय, उस अवस्था में विशेष बल नहीं देगा यदि वह समझे कि संबंधित अधिकारी से की गई अनुतोष (relief) की माँग का निष्फल होना अवश्यभावी है। .

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मुकदमा

कानून में मुकदमा एक नागरिक-क्रिया है जो किसी न्यायालय के समक्ष की जाती है। इसमें अभ्यर्थी (plaintiff) न्यायालय से विधिक उपचार या साम्या की याचना करता है। अभ्यर्थी की शिकायत पर एक या अधिक प्रतिवादी (defendant) अपनी सफाई देते हैं। यदि अभ्यर्थी सफल होता है तो न्यायालय उसे उसके अधिकारों को लागू कराने, क्षतिपुर्ति (damages) दिलवाने आदि का आदेश देता है। .

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संवैधानिक उपचार

मनुष्य को विधिप्रदत्त अनेक अधिकार प्राप्त हैं। मनुष्य जाति, समय समय पर, उन अधिकारों के प्रवर्तन के लिये अनेक विधिक उपायों (legal rights) की उद्भावना करती आई है। भारत में विधिक उपायों का स्थूल विभाजन दो श्रेणियों में किया जा सकता है -.

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क्षतिपूर्ति

क्षतिपूर्ति किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार से जब किसी को कुछ हानि पहुँचती है तब उसमें एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया यह जानने की होती है कि इसका उपचार क्या होगा? विधि का यह अंतर्निहित कर्तव्य है कि वह हानियों की पूर्ति करे। इस पूर्ति की कई रीतियाँ हैं। एक तो यह कि हानि उठानेवाले को कुछ मुद्राएँ देकर क्षतिपूति की जाय। अत: क्षतिपूति वह वस्तु है जिससे प्रतिवादी के कर्तव्योल्लंघन से हुई हानि की पूर्ति उसके ही द्वारा वादी को दी जानवाली एक निश्चित धनराशि से की जा सके। .

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उत्प्रेषण

उत्प्रेषणादेश या उत्प्रेषण (Certiorari; /ˌsɜrʃ(i)əˈrɛəraɪ/) किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय को दिया जाता है और निर्देशित किया जाता है कि अमुक निर्णय की सुनवाई (proceeding) को पुनरावलोकन के लिये भेजें। .

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