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विज्ञान संचार

सूची विज्ञान संचार

विज्ञान संचार (Science communication) का सामान्य अर्थ संचार-माध्यमों के द्वारा गैर-वैज्ञानिक समाज को विज्ञान के विविध पहलुओं एवं विषयों के बारे में सूचना देना है। कभी-कभी यह काम व्यावसायिक वैज्ञानिकों द्वारा भी किया जाता है। (तब इसे 'विज्ञान का लोकीकरण' कहा जाता है।)। विज्ञान संचार अपने-आप में एक पेशेवर क्षेत्र बन चुका है। .

सामग्री की तालिका

  1. 7 संबंधों: निस्केयर, जनता और विज्ञान चेतना, विज्ञान पत्रकारिता, विज्ञान परिषद् प्रयाग, वैज्ञानिक लेखन, कलिंग पुरस्कार, अरविन्द गुप्ता

निस्केयर

राष्ट्रीय विज्ञान संचार तथा सूचना स्रोत संस्थान राष्ट्रीय विज्ञान संचार तथा सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर), राष्ट्रीय विज्ञान संचार संस्थान तथा भारतीय राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रश्वेखन केन्द्र (इंसडॉक) के दिनांक 30 सितम्बर 2002 को हुए विलय के पश्चात अस्तित्व में आया। निस्कॉम तथा इंसडॉक दोनों ही वैज्ञानिनक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के प्रमुखख संस्थान थे जो वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक सूचना (एस एंड टी) के प्रलेखन तथा प्रचार/प्रसार के लिये समर्पित थे। .

देखें विज्ञान संचार और निस्केयर

जनता और विज्ञान चेतना

जन सामान्य में विज्ञान, तकनीकी तथा नवोन्वेष को बढावा देने के लिये एक समग्र चिन्तन की आवश्यकता होती है। इसके अन्तर्गत बहुत से कार्य निहित हैं, जिनमें से प्रमुख हैं.

देखें विज्ञान संचार और जनता और विज्ञान चेतना

विज्ञान पत्रकारिता

विज्ञान पत्रकारिता वह पत्रकारिता है जो वैज्ञानिक विषयों से सम्बन्धित समाचार तथा फीचर आम जनता तक पहुँचाने का कार्य करती है। इस पत्रकारिता में वैज्ञानिकों, पत्रकारों तथा आम जनता के बीच अन्तःक्रिया (interaction) होती है। .

देखें विज्ञान संचार और विज्ञान पत्रकारिता

विज्ञान परिषद् प्रयाग

विज्ञान परिषद् प्रयाग, इलाहाबाद में स्थित है और यह विज्ञान जनव्यापीकरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली भारत की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। विज्ञान परिषद् की स्थापना सन् १९१३ ई.

देखें विज्ञान संचार और विज्ञान परिषद् प्रयाग

वैज्ञानिक लेखन

वैज्ञानिक लेखन (Scientific writing) से अभिप्राय 'विज्ञान के लिये लिखना' है। विज्ञान लेखन का अर्थ है, विज्ञान, आयुर्विज्ञान, प्रौद्योगिकी के बारे में सामान्य जनता के पढ़ने के लिये लिखना। वैज्ञानिक लेखन पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, लोकप्रिय पुस्तकों, संग्रहालय की दीवारों, टीवी और रेडियो कार्यक्रमों तथा इन्टरनेट आदि माध्यमों पर प्रकाशित हो सकता है। .

देखें विज्ञान संचार और वैज्ञानिक लेखन

कलिंग पुरस्कार

कलिंग पुरस्कार विज्ञान संचार के क्षेत्र में किसी बड़े योगदान के लिए दिया जाता है। ऐसा काम जो आम लोगों की समझ में विज्ञान को आसान कर सके, विज्ञान-संचार के अन्तर्गत आता है। विजेता को दस हजार स्टर्लिंग पाउंड और यूनेस्को का अलबर्ट आईनस्टीन रजत-पदक प्रदान किया जाता है। अब विजेता को रूचि राम साहनी चेयर भी प्रदान की जाती है जिसे भारत सरकार ने कलिंग पुरस्कार की पचासवीं जयंती पर संकल्पित किया है। यह पुरस्कार द्विवार्षिक है और विश्व विज्ञान दिवस पर १० नवम्बर को प्रदान किया जाता है। उड़ीसा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने एक युगद्रष्टा की भूमिका अपनाते हुए इस पुरस्कार के लिए यूनेस्को को मुक्त हस्त से १९५२ मे ही एक बड़ी धनराशि दान कर दी थी। वे भारत के कलिंग फाउण्डेशन ट्रस्ट के संस्थापक थे। इसी से यह पुरस्कार आरम्भ हुआ। भारत से अभी तक इस सम्मान से सम्मानित लोगों की सूची निम्नवत है - 1963 - जगजीत सिंह 1991 - नरेंद्र के सहगल 1996 - जयंत नार्लीकर 1997 - डी बाला सुब्रमन्यियन 2009 - प्रोफेसर यशपाल .

देखें विज्ञान संचार और कलिंग पुरस्कार

अरविन्द गुप्ता

अपने द्वारा निर्मित एक खिलौने के साथ अरविन्द गुप्ता अरविन्द गुप्ता भारत के खिलौना अन्वेषक एवं विज्ञान प्रसारक हैं। वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के पूर्वछात्र हैं तथा गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति हैं। वे पहले टेल्को में कार्यरत थे। पिछले पच्चीस सालों से वे पुणे के इन्टर यूनिवर्सिटी सेन्टर फ़ॉर एस्ट्रोनॉमी एन्ड एस्ट्रोफ़िज़िक्स नामक बच्चों को विज्ञान सिखाने को समर्पित एक अद्वितीय केन्द्र में काम कर रहे हैं। वे अध्यापक हैं, इंजीनियर हैं, खिलौने बनाते हैं, किताबों से प्रेम करते हैं और अनुवादक हैं। उन्होने १५० से अधिक पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया है। बच्‍चों के लिए सस्‍ते और विज्ञान की समझ को पुख्‍ता करने वाले खिलौने बनाने का उन्‍हें जुनून रहा है। इन खिलौनों को बनाने की कई किताबें उन्‍होंने लिखी हैं। इन खिलौनों को बनाने और काम करने की तरकीबें उनकी साइट पर मौजूद हैं। कुछ उपयोगी फिल्‍में भी हैं। इसके साथ ही बच्‍चों के लिए विभिन्‍न्‍ा भाषाओं में प्रकाशित चुनिंदा पुस्‍तकों को सबके सामने लाने का उनका एक अभियान रहा है। बहुत सारी किताबें उन्‍होंने स्‍वयं भी संपादित की हैं। हिन्‍दी में बच्‍चों के लिए और शिक्षा और विकास से जुड़े मुद्दों पर लगभग चार सौ किताबें पीडीएफ के रूप में उनकी साइट पर मौजूद हैं। इसके अतिरिक्‍त मराठी और अंग्रेजी की किताबें भी हैं। उनका और अधिक विस्‍तृत परिचय यहां देखा जा सकता है। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया है - "पच्चीस साल पहले मैंने पाया कि अगर बच्चों को कोई वैज्ञानिक नियम किसी खिलौने के भीतर नज़र आता है तो वे उसे बेहतर समझ पाते हैं।" इस लीक पर चलते हुए अरविन्द गुप्ता ने विज्ञान सीखने की प्रक्रिया को मनोरंजक बनाने का सतत कार्य किया है। .

देखें विज्ञान संचार और अरविन्द गुप्ता