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6 संबंधों: शुकनासोपदेश, समुद्र मन्थन, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, वारुणी (बहुविकल्पी), कालकूट, उच्चैःश्रवा।
शुकनासोपदेश
शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश), कादम्बरी का ही एक अंश है। गीता की तरह शुकनासोपदेश का भी स्वतंत्र महत्व है। यह एक ऐसा उपदेशात्मक ग्रंथ है जिसमें जीवन दर्शन का एक भी पक्ष बाणभट्ट की दृष्टि से ओझल नहीं हो सका। इसमें राजा तारापीड का नीतिनिपुण एवं अनुभवी मन्त्री शुकनास राजकुमामार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्य भाव से उपदेश देते हैं और रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों से सावधान रहने की शिक्षा देते हैं। यह प्रत्येक युवक के लिए उपादेय उपदेश है। चन्द्रापीड को दिये गये शुकनासोपदेश में कवि की प्रतिभा का चरमोत्कर्ष परिलक्षित होता है। कवि की लेखनी भावोद्रेक में बहती हुर्इ सी प्रतीत होती है। शुकनासोपदेश में ऐसा प्रतीत होता है मानो सरस्वती साक्षात मूर्तिमती होकर बोल रही हैं। इसमें बाणभट्ट की शब्दचातुरी प्रदर्शित हुई है। शुकनासोपदेश का नायक राजकुमार चन्द्रापीड है, जो सत्व, शौर्य और आर्जव भावों से युक्त है। शुकनास एक अनुभवी मन्त्री हैं जो चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्यभाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में सुलभ रूप, यौवन, प्रभुता एवं ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों के विषय में सावधान कर देना उचित समझते हैं। इसे युवावस्था में प्रवेश कर रहे समस्त युवकों को प्रदत्त ‘दीक्षान्त भाषण’ कहा जा सकता है। 'शुकनासोपदेश', कादम्बरी का प्रवेशद्वार माना जाता है। इसमें लक्ष्मी की ब्याजस्तुति ब्याज निन्दा का अत्यन्त मनोरम वर्णन है। ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ इस उक्ति को चरितार्थ करने वाला यह साहित्य है। इसके अध्ययन से काव्यात्मक तत्व का तो ज्ञान होता ही है, साथ में तत्कालीन सामाजिक ज्ञान भी प्राप्त होता है। लक्ष्मी के बारे में शुकनासोपदेश का एक अंश देखिये- .
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समुद्र मन्थन
अंगकोर वाट में समुद्र मंथन का भित्ति चित्र। समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हपौराणिक katha है। यह कथा भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण में आती है। .
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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द
हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .
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वारुणी (बहुविकल्पी)
वारुणी का सामान्य अर्थ मदिरा है। हिन्दू कथाओं में समुद्र मन्थन में निकले १४ रत्नों में से एक और वरुण की पत्नी माना जाता है। इसका निम्नलिखित आर्थों में प्रयोग होता है.
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कालकूट
कालकूट अथवा हलाहल हिन्दू मिथकों में वर्णित वह विष है जो समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर से निकला था। .
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उच्चैःश्रवा
उच्चैःश्रवा हिन्दू मिथकों में वर्णित समुद्र मन्थन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक था। पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह सफ़ेद रंग का और सात मुख वाला घोडा था जो देवताओं (इन्द्र) को प्राप्त हुआ। गीता में कृष्ण ने श्रेष्ठतम वस्तुओं से अपनी तुलना के क्रम में अपने को अश्वों में उच्चैःश्रवा बताया है। कुमारसंभवम् में कालिदास, इसे इन्द्र से तारकासुर द्वारा छीन लिये जाने का वर्णन करते हैं। .
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