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वादविद्या

सूची वादविद्या

प्राचीन भारत में औपचारिक रूप से वाद-विवाद करने की बड़ी गौरवपूर्ण परम्परा थी। कभी-कभी ये वाद-विवाद राजाओं के संरक्षण में किये जाते थे जिनका उद्देश्य विभिन्न धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक विषयों की समीक्षा करना होता था। इससे सम्बन्धित विद्या वादविद्या कहलाती थी। वादविद्या से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों की रचना हुई थी। इसी प्रकार के वाद-विवादों से ही न्याय (भारतीय तर्कशास्त्र) की भारतीय परम्परा का जन्म हुआ। .

1 संबंध: शास्त्रार्थ

शास्त्रार्थ

प्राचीन भारत में दार्शनिक एवं धार्मिक वाद-विवाद, चर्चा या प्रश्नोत्तर को शास्त्रार्थ (शास्त्र + अर्थ) कहते थे। इसमें दो या अधिक व्यक्ति किसी गूढ़ विषय के असली अर्थ पर चर्चा करते थे। किसी विषय के सम्बन्ध में सत्य और असत्य के निर्णय हेतु परोपकार के लिए जो वाद-विवाद होता है उसे शास्त्रार्थ कहते हैं। शास्त्रार्थ का शाब्दिक अर्थ तो शास्त्र का अर्थ है, वस्तुतः मूल ज्ञान का स्रोत शास्त्र ही होने से प्रत्येक विषय के लिए निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए शास्त्र का ही आश्रय लेना होता है अतः इस वाद-विवाद को शास्त्रार्थ कहते हैं जिसमे तर्क,प्रमाण और युक्तियों के आश्रय से सत्यासत्य निर्णय होता है | शास्त्रार्थ और डिबेट (debate) में बहुत अन्तर है। शास्त्रार्थ विशेष नियमों के अंतर्गत होता है,अर्थात ऐसे नियम जिनसे सत्य और असत्य का निर्णय होने में आसानी हो सके इसके विपरीत डिबेट में ऐसे पूर्ण नियम नहीं होते | शास्त्रार्थ में महर्षि गौतम कृत न्यायदर्शन द्वारा प्रतिपादित विधि ही प्रामाणिक है | .

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