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वर्णात्मक नीतिशास्त्र

सूची वर्णात्मक नीतिशास्त्र

वर्णात्मक नीतिशास्त्र (descriptive ethics), जिसे तुलनात्मक नीतिशास्त्र (comparative ethics) भी कहा जाता हैं, नैतिकता के बारे में लोगो की आस्थाओं का अध्ययन हैं। वर्णात्मक नीतिशास्त्र निर्देशात्मक या मानदण्डक नीतिशास्त्र से अलग हैं, जो उन नीतिशास्त्रीय सिद्धान्तों का अध्ययन करता हैं, जो ये निर्देशित करते हैं कि लोगों को कैसे कार्य करना चाहिये। और, वर्णात्मक नीतिशास्त्र मेटा-नीतिशास्त्र से भी अलग हैं, जो इसका अध्ययन करता हैं कि नीतिशास्त्रीय शब्द और सिद्धान्त असल में किसे सन्दर्भित करते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में माने हुएँ निम्न प्रश्नों के उदाहरण, क्षेत्रों के बीच के अन्तर को दर्शाते हैं.

2 संबंधों: नीतिशास्त्र, मानदण्डक नीतिशास्त्र

नीतिशास्त्र

नीतिशास्त्र (ethics) जिसे व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान और आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शन की एक शाखा हैं। यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं। नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं.

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मानदण्डक नीतिशास्त्र

मानदण्डक नीतिशास्त्र (Normative ethics) नीतिशास्त्रीय कार्य का अध्ययन हैं। यह दार्शनिक नीतिशास्त्र की शाखा हैं, जो उन प्रश्नों को जाँचती हैं, जिनका उद्गम यह सोचते वक़्त होता हैं कि नैतिक तौर पर किसी को कैसे कार्य करना चाहियें। इसकी व्युपत्ति मानदण्डक से हुई, जिसका सम्बन्ध किसी आदर्श मानक या मॉडल से हैं, या उस पर आधारित हैं, जो, कोई चीज़ करने का सामान्य या उचित तरीका माना जाता हो। मानदण्डक नीतिशास्त्र अधिनीतिशास्त्र (मेटा-ऍथिक्स, meta-ethics) से अलग हैं, क्योंकि वह कार्यों के सही या गलत होने के मानकों का परीक्षण करता हैं, जबकि मेटा-नीतिशास्त्र नैतिक भाषा और नैतिक तथ्यों के तत्वमीमांसा के अर्थ का अध्ययन करता हैं। मानदण्डक नीतिशास्त्र वर्णात्मक नीतिशास्त्र से भी भिन्न हैं, क्योंकि पश्चात्काथित लोगों की नैतिक आस्थाओं की अनुभवसिद्ध जाँच हैं। अन्य शब्दों में, वर्णात्मक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध यह निर्धारित करने से हैं कि किस अनुपात के लोग मानते हैं कि हत्या सदैव गलत हैं, जबकि मानदण्डक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध इस बात से हैं कि क्या यह मान्यता रखनी गलत हैं। अतः, कभी-कभी मानदण्डक नीतिशास्त्र को वर्णात्मक के बजाय निर्देशात्मक कहा जाता हैं। हालांकि, मेटा-नीतिशास्त्रीय दृष्टि के कुछ संस्करणों में जिन्हें नैतिक यथार्थवाद कहा जाता हैं, नैतिक तथ्य एक ही वक़्त पर, दोनों वर्णात्मक और निर्देशात्मक होते हैं। ज़्यादातर परम्परागत नैतिक सिद्धांत उन सिद्धान्तों पर आधारित हैं जो निर्धारित करते हैं कि कोई कार्य सही या गलत हैं या नहीं। इस शैली में, क्लासिकी सिद्धान्तों में उपयोगितावाद, काण्टीयवाद और कुछ संविदीयवाद के रूप शामिल हैं। यह सिद्धान्त मुश्किल नैतिक निर्णयों का समाधान करने हेतु मुख्यतः नैतिक सिद्धान्तों का व्यापक उपयोग प्रदान करते हैं। .

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