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वन्दे मातरम्

सूची वन्दे मातरम्

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय वन्दे मातरम् (बाँग्ला: বন্দে মাতরম) अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था। .

41 संबंधों: चित्तरंजन दास, झण्डा गीत, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, देशभक्ति गीत, देशी प्रेस अधिनियम, पुरुषोत्तम दास टंडन, बंग-भंग, बंगदर्शन, बंगाली साहित्य, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, भारत, भारत माता की जय, भारतमाता, भारतीय राष्ट्रवाद, भीखाजी कामा, मातंगिनी हाजरा, यदुनाथ भट्टाचार्य, राम प्रसाद 'बिस्मिल', राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रघुवीर नारायण, रक्षाबन्धन, लाला हरदयाल, शिवराम महादेव परांजपे, सन्यासी विद्रोह, सरफरोशी की तमन्ना, सारे जहाँ से अच्छा, सुब्रह्मण्य भारती, स्वदेशी आन्दोलन, जन गण मन, जय भारत जननीय तनुजते, वन्दे मातरम का इतिहास, वन्दे मातरम्, खुदीराम बोस, आनन्द मठ, आमार शोनार बांग्ला, कभी खुशी कभी ग़म, कायस्थ पाठशाला, प्रयाग, कोलकाता, कोलकाता ध्वज, अनुशीलन समिति, उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम

चित्तरंजन दास

देशबंधु चित्तरंजन दास देशबंधु चित्तरंजनदास (1870-1925 ई.) सुप्रसिद्ध भारतीय नेता, राजनीतिज्ञ, वकील, कवि तथा पत्रकार थे। उनके पिता का नाम श्री भुवनमोहन दास था, जो सॉलीसिटर थे और बँगला में कविता भी करते थे। सन्‌ 1890 ई. में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्‌.

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झण्डा गीत

भारत के झण्डा गीत की रचना श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' ने की थी। 7 पद वाले इस मूल गीत से बाद में कांग्रेस नें तीन पद (पद संख्या 1, 6 व 7) को संशोधित करके ‘झण्डागीत’ के रूप में मान्यता दी। यह गीत न केवल राष्ट्रीय गीत घोषित हुआ बल्कि अनेक नौजवानों और नवयुवतियों के लिये देश पर मर मिटने हेतु प्रेरणा का स्रोत भी बना। .

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ठाकुर प्यारेलाल सिंह

ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार तथा सहकारिता आंदोलन के प्रणेता थे। उनका जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान ग्राम में हुआ। पिता का नाम दीनदयाल सिंह तथा माता का नाम नर्मदा देवी था। आपकी शिक्षा राजनांदगांव तथा रायपुर में हुई। नागपुर तथा जबलपुर में आपने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाल्यकाल से ही आप मेधावी तथा राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत थे। 1906 में बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार आरंभ किया और विद्यार्थियों को संगठित कर जुलूस के समय वन्देमातरम् का नारा लगवाते थे। 1909 में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। 1920 में राजनांदगांव में मिल-मालिकों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसमें मजदूरों की जीत हुई। आपने स्थानीय आंदोलनों और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जन-सामान्य को जागृत किया। 1925 से आप रायपुर में निवास करने लगे। आपने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों में पिकेटिंग, हिन्दू-मुस्लिम एकता, नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान जैसे अनेक कार्यो का संचालन किया। देश सेवा करते हुए आप अनेक बार जेल गए। मनोबल तोड़ने के लिए आपके घर छापा मारकर सारा सामान कुर्क कर दिया गया, परन्तु आप नहीं डिगे। राजनैतिक झंझावातों के बीच 1937 में रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए। 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए आपके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना हुई। प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण एवं अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी आप सक्रिय रहे। वैचारिक मतभेदों के कारण सत्ता पक्ष को छोड़कर आप आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर पार्टी में शामिल हुए। 1952 में रायपुर से विधानसभा के लिए चुने गए तथा विरोधी दल के नेता बने। विनोबा भावे के भूदान एवं सर्वोदय आंदोलन को आपने छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूदान यात्रा के समय अस्वस्थ हो जाने से आपका निधन हो गया। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान स्थापित किया है। .

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देशभक्ति गीत

देशभक्त देश गीत गा रहे हैं। देशभक्ति गीत ऐसे गीत हैं जिनमें राष्ट्रीयता की भावना का रस निहित हो। प्रायः देश पर विकट समस्या आने पर या राष्ट्रीय सुधारों के लिये इन गीतों का प्रयोग किया जाता है। इससे देशवासियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत होती है। राजनीति, खेल, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम और राष्ट्र पर आधारित चलचित्र इत्यादि में इन गीतों का प्रयोग आम बात है। कई भारतीय कवियों ने देशभक्ति गीतों की रचना की है। सुमित्रानंदन पंत की जय जन भारत, कवि प्रदीप की ऐ मेरे वतन के लोगों, तथा गिरिजाकुमार माथुर की हम होंगे कामयाब उपकार (मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हिरा मोती) इत्यादि प्रचलित हैं। .

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देशी प्रेस अधिनियम

अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में सन् १८७८ में देशी प्रेस अधिनियम (Vernacular Press Act) पारित किया गया ताकि भारतीय भाषाओं के पत्र-पत्रिकाओं पर और कड़ा नियंत्रण रखा जा सके। उस समय लॉर्ड लिट्टन भारत का गवर्नर जनरल और वाइसराय था। इस अधिनियम में पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी सामग्री छापने पर कड़ी कार्वाई का प्रावधान था जिससे जनता में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष पनपने की सम्भावना हो। वस्तुतः यह कानून भाषाई समाचार-पत्रों को दबाने के लिए लाया गया था। देशी प्रेस अधिनियम पारित होने के अगले दिन ही कोलकाता से बंगला में प्रकाशित अमृत बाजार पत्रिका ने अपने को 'अंग्रेजी दैनिक' पत्र बना दिया। इसके सम्पादक शिषिर कुमार घोष थे। इस अधिनियम के अन्तर्गत सैकड़ों देशी पत्र-पत्रिकाएँ ज़प्त कर ली गयीं। प्रेसों में ताले डाल दिए गए। स्वदेशवासियों में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए साहित्यकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (1838-1894) ‘आनन्द मठ’ का वन्देमातरम् लेकर आए जो ब्रिटिश शासकों के कोप का कारण बना। मुसलमानों को उकसाकर ‘आनन्दमठ’ की ढेरों प्रतियाँ जला दी गईं (एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका: रमेशचन्द्र दत्त)। वर्नाकुलर प्रेस एक्ट बहुत बदनाम हुआ तथा इंग्लैंड में सत्ता परिवर्तन के बाद १८८१ में रद्द कर दिया गया और १८६७ वाले पुराने कानून को ही जारी रखा गया। श्रेणी:भारत के अधिनियम श्रेणी:भारत का इतिहास.

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पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

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बंग-भंग

सन् १९०५ में लार्ड कर्जन ने मुस्लिम बहुल वाले प्रान्त का सृजन करने के उद्देश्य से भारत के बंगाल को दो भागों में बाँट दिया। इतिहास में इसे बंगभंग के नाम से जाना जाता है। यह अंग्रेजों की "फूट डालो - राज करो" वाली नीति का ही एक अंग था। अत: इसके विरोध में १९०८ ई. में सम्पूर्ण देश में `बंग-भंग' आन्दोलन शुरु हो गया। .

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बंगदर्शन

बंगदर्शन एक बांग्ला की मासिक साहित्यिक पत्रिका थी जिसे बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने सन् १८७२ में प्रकाशित करना आरम्भ किया। अप्रैल, सन् १८७६ तक वे ही इस पत्रिका के सम्पादक रहे। इसकी अधिकांश रचनाएँ वे स्वयं लिखते थे। वन्दे मातरम् सबसे पहले इसी पत्रिका में छपा था, बाद में आनन्द मठ में आया। श्रेणी:ऐतिहासिक पत्र-पत्रिकाएँ.

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बंगाली साहित्य

बँगला भाषा का साहित्य स्थूल रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है - 1.

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बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (बंगाली: বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়) (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है। आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत माता की जय

भारत माता की जय भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला नारा था। 'भारत माता' का उल्लेख किरन चन्द्र बन्दोपाध्याय के नाटक में सर्वप्रथम आया था जो की सन् १८७३ में खेला गया था भारत भूमि को जीवन का पालन करने वाली माता के रूप में रूपायित कर उसकी मुक्ति के लिए की गई कोशिशों में उसकी संतानों ने इस नारे का बार बार प्रयोग किया। भारत माता की विजय का उद्घोष करने वाली यह उक्ति स्वाधीनता संग्राम के सिपाहियों में नए उत्साह का संचार करती थी। आज भी इस नारे का प्रयोग राष्ट्रप्रेम या राष्ट्र निर्माण से जुड़े अवसरों, कार्यक्रमों एवं आंदोलनों में किया जाता है। .

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भारतमाता

'''भारतमाता की कांस्य मूर्ति''' भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारतमाता या 'भारतम्बा' कहा जाता है। भारतमाता को प्राय: केसरिया या नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में भगवा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है। भारत में भारतमाता के बहुत से मन्दिर हैं। काशी का भारतमाता मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध है जिसका उद्घाटन सन् १९३६ में स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। हरिद्वार का भारतमाता मन्दिर भी बहुत प्रसिद्ध है। .

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भारतीय राष्ट्रवाद

२६५ ईसापूर्व में मौर्य साम्राज्य भारतीय ध्वज (तिरंगा) मराठा साम्राज्य का ध्वज राष्ट्र की परिभाषा एक ऐसे जन समूह के रूप में की जा सकती है जो कि एक भौगोलिक सीमाओं में एक निश्चित देश में रहता हो, समान परम्परा, समान हितों तथा समान भावनाओं से बँधा हो और जिसमें एकता के सूत्र में बाँधने की उत्सुकता तथा समान राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाएँ पाई जाती हों। राष्ट्रवाद के निर्णायक तत्वों मे राष्ट्रीयता की भावना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रीयता की भावना किसी राष्ट्र के सदस्यों में पायी जानेवाली सामुदायिक भावना है जो उनका संगठन सुदृढ़ करती है। भारत में अंग्रेजों के शासनकाल मे राष्ट्रीयता की भावना का विशेषरूप से विकास हुआ, इस विकास में विशिष्ट बौद्धिक वर्ग का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से एक ऐसे विशिष्ट वर्ग का निर्माण हुआ जो स्वतन्त्रता को मूल अधिकार समझता था और जिसमें अपने देश को अन्य पाश्चात्य देशों के समकक्ष लाने की प्रेरणा थी। पाश्चात्य देशों का इतिहास पढ़कर उसमें राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि भारत के प्राचीन इतिहास से नई पीढ़ी को राष्ट्रवादी प्रेरणा नहीं मिली है किन्तु आधुनिक काल में नवोदित राष्ट्रवाद अधिकतर अंग्रेजी शिक्षा का परिणाम है। देश में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त किए हुए नवोदित विशिष्ट वर्ग ने ही राष्ट्रीयता का झण्डा उठाया। .

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भीखाजी कामा

श्रीमती भीखाजी जी रूस्तम कामा श्रीमती भीखाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) (24 सितंबर 1861-13 अगस्त 1936) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए सुविख्यात हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है। उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित "वन्देमातरम्" पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा कि - ‘‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।’’ उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया कि - ‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।’’ यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में ‘वन्देमातरम्’ अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रहीं। धनी परिवार में जन्म लेने के बावजूद इस साहसी महिला ने आदर्श और दृढ़ संकल्प के बल पर निरापद तथा सुखी जीवनवाले वातावरण को तिलांजलि दे दी और शक्ति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचे साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों से उपजे खतरों तथा कठिनाइयों का सामना किया। श्रीमती कामा का बहुत बड़ा योगदान साम्राज्यवाद के विरुद्ध विश्व जनमत जाग्रत करना तथा विदेशी शासन से मुक्ति के लिए भारत की इच्छा को दावे के साथ प्रस्तुत करना था। भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए उन्होंने लंबी अवधि तक निर्वासित जीवन बिताया था। तथ्यों के मुताबिक भीकाजी हालांकि अहिंसा में विश्वास रखती थीं लेकिन उन्होंने अन्यायपूर्ण हिंसा के विरोध का आह्वान भी किया था। उन्होंने स्वराज के लिए आवाज उठाई और नारा दिया− आगे बढ़ो, हम भारत के लिए हैं और भारत भारतीयों के लिए है। .

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मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा (19 अक्टूबर 1870) भारत की क्रान्तिकारी थीं। उन्हें 'गाँधी बुढ़ी' के नाम से जाना जाता था। मातंगिनी हाजरा का जन्म पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण 12 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया। इस पर भी दुर्भाग्य उनके पीछे पड़ा रहा। छह वर्ष बाद वह निःसन्तान ही विधवा हो गयीं। पति की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र उससे बहुत घृणा करता था। अतः मातंगिनी एक अलग झोपड़ी में रहकर मजदूरी से जीवनयापन करने लगीं। गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने के कारण वे पूरे गाँव में माँ के समान पूज्य हो गयीं। 1932 में गान्धी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वाधीनता आन्दोलन चला। वन्देमातरम् का घोष करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते थे। जब ऐसा एक जुलूस मातंगिनी के घर के पास से निकला, तो उसने बंगाली परम्परा के अनुसार शंख ध्वनि से उसका स्वागत किया और जुलूस के साथ चल दी। तामलुक के कृष्णगंज बाजार में पहुँचकर एक सभा हुई। वहाँ मातंगिनी ने सबके साथ स्वाधीनता संग्राम में तन, मन, धन से संघर्ष करने की शपथ ली। मातंगिनी को अफीम की लत थी; पर अब इसके बदले उनके सिर पर स्वाधीनता का नशा सवार हो गया। 17 जनवरी, 1933 को ‘करबन्दी आन्दोलन’ को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गर्वनर एण्डरसन तामलुक आये, तो उनके विरोध में प्रदर्शन हुआ। वीरांगना मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झण्डा लिये डटी थीं। वह ब्रिटिश शासन के विरोध में नारे लगाते हुई दरबार तक पहुँच गयीं। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और छह माह का सश्रम कारावास देकर मुर्शिदाबाद जेल में बन्द कर दिया। 1935 में तामलुक क्षेत्र भीषण बाढ़ के कारण हैजा और चेचक की चपेट में आ गया। मातंगिनी अपनी जान की चिन्ता किये बिना राहत कार्य में जुट गयीं। 1942 में जब ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ ने जोर पकड़ा, तो मातंगिनी उसमें कूद पड़ीं। आठ सितम्बर को तामलुक में हुए एक प्रदर्शन में पुलिस की गोली से तीन स्वाधीनता सेनानी मारे गये। लोगों ने इसके विरोध में 29 सितम्बर को और भी बड़ी रैली निकालने का निश्चय किया। इसके लिये मातंगिनी ने गाँव-गाँव में घूमकर रैली के लिए 5,000 लोगों को तैयार किया। सब दोपहर में सरकारी डाक बंगले पर पहुँच गये। तभी पुलिस की बन्दूकें गरज उठीं। मातंगिनी एक चबूतरे पर खड़ी होकर नारे लगवा रही थीं। एक गोली उनके बायें हाथ में लगी। उन्होंने तिरंगे झण्डे को गिरने से पहले ही दूसरे हाथ में ले लिया। तभी दूसरी गोली उनके दाहिने हाथ में और तीसरी उनके माथे पर लगी। मातंगिनी की मृत देह वहीं लुढ़क गयी। इस बलिदान से पूरे क्षेत्र में इतना जोश उमड़ा कि दस दिन के अन्दर ही लोगों ने अंग्रेजों को खदेड़कर वहाँ स्वाधीन सरकार स्थापित कर दी, जिसने 21 महीने तक काम किया। दिसम्बर, 1974 में भारत की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गान्धी ने अपने प्रवास के समय तामलुक में मांतगिनी हाजरा की मूर्ति का अनावरण कर उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। .

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यदुनाथ भट्टाचार्य

यदुनाथ भट्टाचार्य (जदुनाथ भट्टाचार्य) विष्णुपुर घराने के प्रसिद्ध स्ंगीतकार थे। वे 'जदु बट्ट' नाम से प्रसिद्ध हैं। वन्दे मातरम् की धुन उन्होने ही तैयार की थी। यदुनाथ भट्टाचार्य का जन्म १८४० ई में हुआ था। वे विष्णुपुर नगर के कडकुली क्षेत्र के निवासी थे। उनके पिता श्री मधुसूदन भट्टाचार्य गायक एवं वादक थे। उन्होने मृदंग और सितार घर पर ही सीख लिया। बाद में उन्होने संगीत की शिक्षा रामशंकर भट्टाचार्य और गंगानारायण भट्टाचार्य से ग्रहण की। वे दोनों संगीतकार विष्णुपुर राजाओं के दरबारी संगीतज्ञ थे। यदुनाथ भट्टाचार्य, रवीन्द्रनाथ ठाकुर के स्ंगीत के गुरु थे। पंचकोट के राजाओं ने उन्हें 'रंगनाथ' की पदवी से विभूषित किया जबकि त्रिपुरा के महाराजा ने उन्हें 'तनराज' की पदवी प्रदान की थी। वे ध्रुपद के महान कलाकार माने जाते हैं। उन्होने कई गीतों की रचना की है। यदुनाथ भट्टाचार्य का देहान्त ४० वर्ष की अल्पायु में ही हो गया। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी

राजेन्द्र लाहिडी की दुर्लभ फोटो राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी (अंग्रेजी:Rajendra Nath Lahiri, बाँग्ला:রাজেন্দ্র নাথ লাহিড়ী, जन्म:१९०१-मृत्यु:१९२७) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी थे। युवा क्रान्तिकारी लाहिड़ी की प्रसिद्धि काकोरी काण्ड के एक प्रमुख अभियुक्त के रूप में हैं। .

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रघुवीर नारायण

रघुवीर नारायण (३१ अक्टूबर १८८४ - १ जनवरी १९५५) हिन्दी साहित्यकार तथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे। उनके द्वारा रचित 'बटोहिया' नामक भोजपुरी राष्टीय गीत को पूर्वी भारत में “वन्दे मातरम्” के बराबर सम्मान मिला। जन-जागरण गीत की तरह गाया जाने वाला यह गीत पूर्वी लोकधुन में लिखा गाया है। .

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रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)- इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)" .

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लाला हरदयाल

लाला हरदयाल (१४ अक्टूबर १८८४, दिल्ली -४ मार्च १९३९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया। इसके लिये उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की। काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मई, सन् १९२७ में लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। इसके बाद सन् १९३८ में पुन: प्रयास करने पर अनुमति भी मिली परन्तु भारत लौटते हुए रास्ते में ही ४ मार्च १९३९ को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया। .

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शिवराम महादेव परांजपे

शिवराम महादेव परांजपे (1864-1929 ई.) मराठी के प्रतिभाशाली साहित्यकार, वक्ता, पत्रकार और ध्येयनिष्ठ राजनीतिज्ञ थे। उन्होने 'काल' नामक साप्ताहिक द्वारा महाराष्ट्र में ब्रितानी शासन के विरुद्ध जनचेतना के निर्माण में सफलता पायी। .

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सन्यासी विद्रोह

अट्ठारहवीँ शती के अन्तिम वर्षों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध तत्कालीन भारत के कुछ भागों में सन्यासियों ने बडे ही उग्र आन्दोलन किये थे जिसे इतिहास में सन्यासी विद्रोह कहा जाता है। यह आन्दोलन अधिकांशतः उस समय ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त में हुआ था। बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का सन १८८२ में रचित उपन्यास आनन्द मठ इसी विद्रोह की घटना पर आधारित है। देशभक्ति से परिपूर्ण कालजयी रचना वन्दे मातरम् इसी उपन्यास की उपज है जो आगे चलकर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का मूलमन्त्र बनी। .

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सरफरोशी की तमन्ना

सरफरोशी की तमन्ना को मशहूर करने वाले पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल'का चित्र सरफरोशी की तमन्ना भारतीय क्रान्तिकारी बिस्मिल अज़ीमाबादी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध देशभक्तिपूर्ण गजल है जिसमें उन्होंने आत्मोत्सर्ग की भावना को व्यक्त किया था। उनकी यह तमन्ना क्रान्तिकारियों का मन्त्र बन गयी थी यह गजल उर्दू छ्न्द बहरे-रमल में लिखी गई है जिसका अर्कान (छन्द-सूत्र) है: "फाइलातुन, फाइलातुन, फाइलातुन, फाइलुन"। हिन्दी में यदि इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाये तो यह परिवर्तित अष्टपदीय गीतिका छन्द के अन्तर्गत आती है इस छन्द का सूत्र है: "राजभा गा, राजभा गा, राजभा गा, राजभा"। मैनपुरी षडयन्त्र व काकोरी काण्ड में शामिल होने वाले भारत के एक महान क्रान्तिकारी नेता रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने न सिर्फ इसे लिखा बल्कि मुकदमे के दौरान अदालत में अपने साथियों के साथ सामूहिक रूप से गाकर लोकप्रिय भी बनाया।'बिस्मिल' ने इसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के नौजवान स्वतन्त्रता सेनानियों के लिये सम्बोधि-गीत के रूप में लिखा था। 'बिस्मिल' की शहादत के बाद इसे स्वतन्त्रता सेनानियों की नौजवान पीढ़ी जैसे शहीद भगत सिंह तथा चन्द्रशेखर आजाद आदि के साथ भी जोड़ा जाता रहा है। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित वन्दे मातरम जैसे सुप्रसिद्ध गीत के बाद बिस्मिल अज़ीमाबादी की यह अमर रचना, जिसे गाते हुए न जाने कितने ही देशभक्त फाँसी के तख्ते पर झूल गये, उसके वास्तविक इतिहास सहित नीचे दी जा रही है। .

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सारे जहाँ से अच्छा

सारे जहाँ से अच्छा या तराना-ए-हिन्दी उर्दू भाषा में लिखी गई देशप्रेम की एक ग़ज़ल है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश राज के विरोध का प्रतीक बनी और जिसे आज भी देश-भक्ति के गीत के रूप में भारत में गाया जाता है। इसे अनौपचारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्राप्त है। इस गीत को प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल ने १९०५ में लिखा था और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाया था। यह इक़बाल की रचना बंग-ए-दारा में शामिल है। उस समय इक़बाल लाहौर के सरकारी कालेज में व्याख्याता थे। उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया। इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई। यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में लिखी गई है और अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है। १९५० के दशक में सितार-वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुर-बद्ध किया। जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने इस गीत की पहली पंक्ति कही। .

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सुब्रह्मण्य भारती

सुब्रह्मण्य भारती (சுப்பிரமணிய பாரதி, ११ दिसम्बर १८८२ - ११ सितम्बर १९२१) एक तमिल कवि थे। उनको 'महाकवि भरतियार' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। वह एक कवि होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार तथा उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मध्य एकता के सेतु समान थे। .

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स्वदेशी आन्दोलन

१९३० के दशक का पोस्टर जिसमें गाँधीजी को जेल के अन्दर चरखा कातते हुए दिखाया गया है, और लिखा है- ''चरखा और स्वदेशी पर ध्यान दो।'' स्वदेशी आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण आन्दोलन, सफल रणनीति व दर्शन था। स्वदेशी का अर्थ है - 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचाना व भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था। यह ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन था। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गान्धीजी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। .

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जन गण मन

कोई विवरण नहीं।

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जय भारत जननीय तनुजते

जय भारत जननीय तनुजते (ಜಯ ಭಾರತ ಜನನಿಯ ತನುಜಾತೆ) एक कन्नड़ कविता है, जिसका संपादन भारतीय कन्नड़ कवि कुवेम्पु ने किया था। यह कविता ६ जनवरी २००४ को कर्नाटक राज्य काई आधिकारिक गान घोषित हुई थी। .

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वन्दे मातरम का इतिहास

वन्दे मातरम् का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है-.

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वन्दे मातरम्

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय वन्दे मातरम् (बाँग्ला: বন্দে মাতরম) अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था। .

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खुदीराम बोस

युवा क्रान्तिकारी '''खुदीराम बोस''' (१९०५ में) खुदीराम बोस (बांग्ला: ক্ষুদিরাম বসু; जन्म: ३-१२-१८८९ - मृत्यु: ११ अगस्त १९०८) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व १७ जनवरी १८७२ को ६८ कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय १३ वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर ५०वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। (देखें सरफरोशी की तमन्ना भाग ४ पृष्ठ १३) .

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आनन्द मठ

आनन्द मठ के रचनाकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय। आनन्द मठ बांग्ला भाषा का एक उपन्यास है जिसकी रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने १८८२ में की थी। इस कृति का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भारत का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् इसी उपन्यास से लिया गया है। आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। .

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आमार शोनार बांग्ला

Amar Sonar Bangla Music.svg आमार शोनार बांग्ला के नोट का पहला हिस्सा अमार शोनार बांग्ला (मेरा सोने का बंगाल या मेरा सोने जैसा बंगाल), बांग्लादेश का राष्ट्रगान है, जिसे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था। यह बांग्ला भाषा में है। गुरुदेव ने इसे बंग भंग के समय सन १९०६ में लिखा था जब मजहब के आधार पर अंग्रेजों ने बंगाल को दो भागों में बांट दिया था। यह गीत बंगाल के एकीकरण के लिये माहौल बनाने के लिये लिखा गया था। स्वतन्त्र होने के बाद बांग्लादेश ने सन १९७२ में इस गीत की प्रथम दस पंक्तियों को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया। .

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कभी खुशी कभी ग़म

कभी खुशी कभी ग़म... 2001 की हिन्दी भाषा की पारिवारिक नाटक फिल्म है। यह करण जौहर द्वारा लिखित और निर्देशित है और इसका निर्माण यश जौहर ने किया। फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, काजोल, ऋतिक रोशन और करीना कपूर प्रमुख भूमिका निभाते हैं जबकि रानी मुखर्जी विस्तारित विशेष उपस्थिति में दिखीं हैं। यह घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख व्यावसायिक सफलता के रूप में उभरी। भारत के बाहर, यह फिल्म सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म थी, जब तक कि करण की अगली फिल्म कभी अलविदा ना कहना (2006) द्वारा यह रिकॉर्ड तोड़ा नहीं गया था। इसने अगले वर्ष लोकप्रिय पुरस्कार समारोहों में कई पुरस्कार जीते, जिसमें पांच फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी शामिल थे। .

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कायस्थ पाठशाला, प्रयाग

कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद का एक पुराना एवं प्रतिष्ठित विद्यालय है। गणेश शंकर 'विद्यार्थी', हरिवंशराय बच्चन आदि यहाँ के विद्यार्थी थे। इसकी स्थापना सन् १८७३ में अवध के प्रसिद्ध वकील मुंशी कालीप्रसाद कुलभास्कर द्वारा हुई थी। श्री हनुमान प्रसाद इस पाठशाला के प्रथम अध्यक्ष थे। आरम्भ में यह हाई स्कूल था जो सन् १८९५ में यह इण्टरमिडिएट कॉलेज बन गया। इसके आरम्भिक प्रधानाचार्यों में एक थे रमानन्द चटर्जी, जो बाद में बंगाली पुनर्जागरण की पत्रिका "मॉडर्न रिव्यू" के संस्थापक बने बने। 'वन्दे मातरम्' यहाँ की प्रार्थना थी। .

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कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

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कोलकाता ध्वज

कोलकाता ध्वज कलकत्ता ध्वज प्रथम भारतीय अनाधिकारिक ध्वज था। इसकी अभिकल्पना शचिन्द्र प्रसाद बोस ने की थी। इसे ७ अगस्त, १९०६ को पारसी बागान स्क्वेयर(ग्रीन पार्क), कोलकाता में फहराया गया था झंडे में बराबर चौड़ाई के की तीन क्षैतिज पट्टियां थीं। शीर्ष धारी नारंगी, केंद्र धारी पीला और नीचली पट्टी हरे रंग की थी। शिर्ष पट्टी पर ब्रिटिश-शासित भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते आठ आधे खुले कमल के फूल थे और निचली पट्टी पर बाईं तरफ सूर्य और दाईं तरफ़ एक वर्धमान चाँद की तसवीर अंकित थी। ध्वज के केंद्र में "वन्दे मातरम्" का नारा अंकित किया गया था। .

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अनुशीलन समिति

अनुशीलन समिति का प्रतीक: अखण्ड भारत (United India) अनुशीलन समिति भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बंगाल में बनी अंग्रेज-विरोधी, गुप्त, क्रान्तिकारी, सशस्त्र संस्था थी। इसका उद्देश्य वन्दे मातरम् के प्रणेता व प्रख्यात बांग्ला उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के बताये गये मार्ग का 'अनुशीलन' करना था। अनुशीलन का शाब्दिक अर्थ यह होता है: इसका आरम्भ १९०२ में अखाड़ों से हुआ तथा इसके दो प्रमुख (तथा लगभग स्वतंत्र) रूप थे- ढाका अनुशीलन समिति तथा युगान्तर। यह बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों में समूचे बंगाल में कार्य कर रही थी। पहले-पहल कलकत्ता और उसके कुछ बाद में ढाका इसके दो ही प्रमुख गढ़ थे। इसका आरम्भ अखाड़ों से हुआ। बाद में इसकी गतिविधियों का प्रचार प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे बंगाल में हो गया। इसके प्रभाव के कारण ही ब्रिटिश भारत की सरकार को बंग-भंग का निर्णय वापस लेना पडा था। इसकी प्रमुख गतिविधियों में स्थान स्थान पर शाखाओं के माध्यम से नवयुवकों को एकत्र करना, उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाना ताकि वे अंग्रेजों का डटकर मुकाबला कर सकें। उनकी गुप्त योजनाओं में बम बनाना, शस्त्र-प्रशिक्षण देना व दुष्ट अंग्रेज अधिकारियों वध करना आदि सम्मिलित थे। अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य उन भारतीय अधिकारियों का वध करने में भी नहीं चूकते थे जिन्हें वे 'अंग्रेजों का पिट्ठू' व हिन्दुस्तान का 'गद्दार' समझते थे। इसके प्रतीक-चिन्ह की भाषा से ही स्पष्ठ होता है कि वे इस देश को एक (अविभाजित) रखना चाहते थे। .

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उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम

सुगौली संधि द्वारा गोरखा शासन से मुक्त हुआ क्षेत्र। वर्तमान राज्य उत्तराखण्ड जिस भौगोलिक क्षेत्र पर विस्तृत है उस इलाके में ब्रिटिश शासन का इतिहास उन्नीसवी सदी के दूसरे दशक से लेकर भारत की आज़ादी तक का है। उत्तराखण्ड में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन 1815 में हुआ। इससे पहले यहाँ नेपाली गोरखों का शासन था। यह भी माना जाता है कि गोरखा शासकों द्वारा इस इलाके के लोगों पर किये गये अत्याचारों को देखकर ही अंग्रेजों का ध्यान इस ओर गया। हालाँकि अंग्रेजों और नेपाली गुरखाओं के बीच लड़े गये गोरखा युद्ध के अन्य कारण भी थे। अल्मोड़ा में 27 अप्रैल 1815 को गोरखा प्रतिनिधि बमशाह और लेफ्टिनेंट कर्नल गार्डनर के बीच हुई एक संधि के बाद नेपाली शासक ने इस क्षेत्र से हट जाने को स्वीकारा और इस क्षेत्र पर ईस्ट इण्डिया कंपनी का अधिकार हो गया। अंग्रेजों का इस क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार 4 अप्रैल 1816 को सुगौली की सन्धि के बाद इस पूरे क्षेत्र पर हो गया और नेपाल की सीमा काली नदी घोषित हुई। अंग्रेजों ने पूरे इलाके को अपने शासन में न रख अप्रैल 1815 में ही गढ़वाल के पूर्वी हिस्से और कुमायूँ के क्षेत्र पर अपना अधिकार रखा और पश्चिमी हिस्सा सुदर्शन शाह, जो गोरखों के शासन से पहले गढ़वाल के राजा थे, को सौंप दिया जो अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के पश्चिम में पड़ता था।Robert Montgomery Martin, History of the Possessions of the Honourable East India Company, Volume 1, pg.

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भारत का राष्‍ट्रीय गीत, राष्ट्रीय गीत, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम्‌, वन्दे मातरं, वन्देमातरम, वन्देमातरम्, वंदे मातरम, वंदे मातरम्, वंदेमातरम्

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