लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

लोहस धातुकर्म

सूची लोहस धातुकर्म

लोहस धातुकर्म (Ferrous metallurgy) में प्रथम स्थान लोह उत्पादन का आता है। भारत अति प्राचीन काल में लोह उत्पादन में अग्रणी रहा है। दिल्ली का लोहस्तंभ इस बात प्रत्यक्ष प्रमाण है। भारत की लोह अयस्क की खदानें विश्व की श्रेष्ठतम एवं विशालतम खदानों में से हैं। अनुमान लगाया गया है कि भारत के भूगर्भ में लगभग 10 अरब टन लोह अयस्क विद्यमान है। .

5 संबंधों: धातुकर्म, लौह धातुकर्म का इतिहास, वात्या भट्ठी, इस्पात निर्माण, अलोह धातुकर्म

धातुकर्म

धातुनिर्माता कारखाने में इस्पात का निर्माण दिल्ली का लौह-स्तम्भ भारतीय धातुकर्म के गौरव का साक्षी है। धातुकर्म पदार्थ विज्ञान और पदार्थ अभियांत्रिकी का एक क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत धातुओं, उनसे बनी मिश्रधातुओं और अंतर्धात्विक यौगिकों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। .

नई!!: लोहस धातुकर्म और धातुकर्म · और देखें »

लौह धातुकर्म का इतिहास

दिल्ली का लौह स्तम्भदिल्ली का लोह स्तम्भ भारत के लोहे तथा इस्पात की कई विशेषतायें थी। वह पू्र्णतया ज़ंग मुक्त थे। इस का प्रत्यक्षप्रमाण पच्चीस फुट ऊंचा कुतुब मीनार के स्मीप दिल्ली स्थित लोह स्तम्भ है जो लग भग 1600 वर्ष पूर्व गुप्त वँश के सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल का है और धातु ज्ञान का आश्चर्य जनक कीर्तिमान है। इस लोह स्तम्भ का व्यास 16.4 इन्च है तथा वज़न साढे छः टन है। 16 शताब्दियों तक मौसम के उतार चढाव झेलने के पश्चात भी इसे आज तक ज़ंग नहीं लगा। कुछ प्रमाणों के अनुसार यह स्तम्भ पहले विष्णु मन्दिर का गरूड़ स्तम्भ था। मुस्लिमशासकों ने मन्दिर को लूट कर ध्वस्त कर दिया था और स्तम्भ को उखाड कर उसे विजय चिन्ह स्वरूप ‘कुव्वतुल-इसलाम मसजिद’ के समीप दिल्ली में गाड़ दिया था। हाल ही में ईन्डियन इन्टीच्यूट ऑफ टेकनोलोजीकानपुर के विशेषज्ंयों नें स्तम्भ का निरीक्षण कर के अपना मत प्रगट किया है कि स्तम्भ को जंग से सुरक्षितरखने के लिये उस पर मिसाविट नाम के रसायन की ऐक पतली सी परतचढाई गयी थी जो लोह, आक्सीजन तथा हाईड्रोजन के मिश्रण से तैय्यार की गयी थी। यही परिक्रिया आजकल अणुशक्ति के प्रयाग में लाये जाने वाले पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिये डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सुरक्षा परत को बनाने में उच्च कोटि का पदार्थ प्रयोग किया गया था जिस में फासफोरस की मात्रा लोहे की तुलना में एक प्रतिशतके लगभग थी। आज कल यह अनुपात आधे प्रतिशत तक भी नहीं होता। फासफोरस का अधिक प्रयोग प्राचीन भारतीय धातु ज्ञान तथा तकनीक का प्रमाण है जो धातु वैज्ंयिानिकों को आश्चर्य चकित कर रही है। आजकल विकसित देश टेक्नोलोजी ट्राँसफर को हथियार बना कर अविकसित देशों पर आर्थिक दबाव बढाते हैं। जो लोग पाश्चात्य तकनीक की नकल करने की वकालत करते हैं उन्हें स्वदेशी तकनीक पर शोध करना चाहिये ताकि हम आत्म निर्भर हो सकें लौह धातुकर्म (Ferrous Metallurgy) का आरम्भ प्रागैतिहासिक काल में ही हो गया था। इस्पात निर्माण (steelmaking) का ज्ञान भी प्रागैतिहासिक काल से ही है। .

नई!!: लोहस धातुकर्म और लौह धातुकर्म का इतिहास · और देखें »

वात्या भट्ठी

Rahul Kushwahaसेस्टाओ, स्पेन में ब्लास्ट फर्नेस. वास्तविक भट्टी केन्द्रीय गिर्डरवर्क के अंदर है। वात्या भट्ठी या ब्लास्ट फर्नेस (Blast furnace) एक प्रकार की धातु-वैज्ञानिक भट्टी (मेटलर्जिकल फर्नेस) है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर लोहे जैसी औद्योगिक धातुओं का निर्माण करने हेतु धातुओं को पिघलाने के लिए किया जाता है। वात्या भट्ठी में भट्ठी के ऊपर से लगातार ईंधन और अयस्क की आपूर्ति की जाती है जबकि चैंबर के निचले तल में हवा (कभी-कभी ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा वाली हवा) भरी जाती है ताकि पदार्थों के नीचे की तरफ आने के दौरान पूरे फर्नेस में रासायनिक प्रतिक्रिया हो सके। अंतिम उत्पाद के रूप में आम तौर पर नीचे की तरफ से पिघली हुई धातु और धातुमल तथा फर्नेस के ऊपर से धुआं युक्त गैसें निकलती हैं। वात्या भट्ठी को आम तौर पर चिमनी के निकास मार्ग में गर्म गैसों के संवहन के माध्यम से स्वाभाविक रूप से चूषण युक्त एयर फर्नेसों (जैसे रिवर्बरेटरी फर्नेस) के साथ निरूपित किया जाता है। इस व्यापक परिभाषा के अनुसार लोहे की ब्लूमरी, टिन के ब्लोइंग हाउस और सीसे को गलाने वाली मिलों को ब्लास्ट फर्नेस के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि इस शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर उन्ही कारखानों तक सीमित है जहां लौह अयस्क को पिघलाकर कच्चे लोहे (पिग आयरन) का उत्पादन किया जाता है, जो वाणिज्यिक लौह एवं इस्पात के उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली एक मध्यवर्ती सामग्री है। .

नई!!: लोहस धातुकर्म और वात्या भट्ठी · और देखें »

इस्पात निर्माण

लौह अयस्क से इस्पात बनाने की प्रक्रिया का दूसरा चरण इस्पात निर्माण (Steelmaking) है। कच्चे लोहे से इस्पात बनाने के लिये कच्चे लोहे में उपस्थित अतिरिक्त कार्बन तथा गंधक, फॉस्फोरस आदि अशुद्धियों को निकाला जाता है और मैगनीज, निकिल, क्रोमियम तथा वनाडियम (vanadium) आदि तत्व मिलाये जाते हैं ताकि वांछित प्रकार का इस्पात बनाया जा सके। .

नई!!: लोहस धातुकर्म और इस्पात निर्माण · और देखें »

अलोह धातुकर्म

यह ठीक है कि विश्व में लोहस पदार्थों का उत्पादन ही सर्वाधिक है और ये अन्य धातुओं की तुलना में सस्ते पड़ते हैं, परंतु आज के वैज्ञानिक युग में बहुत से ऐसे उपयोग है जहाँ लोह पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। ऐसे स्थानों पर अलोह धातु अथवा उनकी मिश्रधातुओं का उपयोग होता है। अलोह धातुओं में अनेकानेक धातु सम्मिलित हैं, जिनमें ताम्र, ऐल्यूमिनियम, स्वर्ण, रजत, सीसा, जस्ता, वंग, निकल, मैंगनीज़ इत्यादि प्रमुख हैं। इन धातुओं के धातुकर्म को अलोह धातुकर्म (Non-ferrous Metallurgy) कहते हैं। इनमें से महत्वपूर्ण कुछेक नीचे दी जाती हैं। .

नई!!: लोहस धातुकर्म और अलोह धातुकर्म · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »